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ताइवान (Taiwan) अपने अबतक के सबसे बुरे सूखे (droughts) की समस्या से एक से जूझ रहा है, लेकिन कम से कम एक आदमी के लिए ये सूखा खुशी लेकर लाया है. शख्स जिसका नाम चेन है, उसे अपना एक iPhone 11 दोबारा से मिल गया, जिसे उसने एक साल पहले ताइवान की सबसे प्रतिष्ठित झीलों में से एक में गिरा दिया था, क्योंकि बारिश की कमी के कारण झील का पानी सूख गया था.
चेन ने रविवार को एक वायरल फेसबुक पोस्ट में कहा, कि उन्होंने पिछले साल सन मून लेक (Sun Moon Lake) में पैडलबोर्डिंग (paddleboarding) करते समय अपना आईफोन गिरा दिया था.
ताइवान समाचार के अनुसार, झील एक बंजर भूमि में बदल गई है, क्योंकि द्वीप पानी की भारी कमी से ग्रस्त है. जैसे ही सन मून लेक में पानी का स्तर एक रिकॉर्ड लेवल से कम हो गया, एक कार्यकर्ता ने चेन को ये बताने के लिए संपर्क किया कि उसका आईफोन मिल गया है. चेन का कहना है, कि वो ये खबर पाकर खुशी के मारे सो नहीं सके.
हालांकि, ये पूरी तरह से कीचड़ में दबा था, लेकिन, ये चमत्कार है कि स्मार्टफोन अभी भी काम कर रहा है. एक झील के अंदर पर एक वर्ष डूबे रहने के बावजूद, इसके वॉटरप्रूफ कवर ने इसे भीगने नहीं दिया.
चेन ने कहा, कि चार्ज करने के बाद फोन ने पूरी तरह से काम किया. उन्होंने यह दिखाने के लिए एक फेसबुक ग्रुप पर फोटो शेयर कीं, कि एक बार चार्ज करने के बाग iPhone फिर से काम करने लगा. इस बीच फेसबुक पोस्ट पर 25 हजार से ज्यादा लाइक्स और सैकड़ों कमेंट्स आ चुके हैं.
अमित शाह पर कार्रवाई कर सकता है चुनाव आयोग...? इस सवाल को पूछकर देखिए. आपको महसूस होगा कि आप खुद से कितना संघर्ष कर रहे हैं. खुद को दांव पर लगा रहे हैं. अमित शाह पर कार्रवाई की बात आप कल्पना में भी नहीं सोच सकते और यह तो बिल्कुल नहीं कि चुनाव आयोग कार्रवाई करने का साहस दिखाएगा, क्योंकि अब आप यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव आयोग की वैसी हैसियत नहीं रही. आप जानते हैं कि कोई हिम्मत नहीं कर पाएगा.
चुनाव आयोग ने ही नियम बनाया है कि कोरोना के काल में रोड शो किस तरह होगा. उन नियमों का गृहमंत्री के रोड शो में पालन नहीं होता है. रोड शो में अमित शाह मास्क नहीं लगाते हैं. बुधवार को दिनभर बिना मास्क के रोड शो करते रहे. जब आयोग गृहमंत्री पर ही एक्शन नहीं ले सकता, तो वह विपक्षी नेताओं के रोड शो पर कैसे एक्शन लेगा...? लेकिन अमित शाह आयोग के नियमों का पालन करते, तो आयोग विपक्षी दलों की रैलियों में ज़रूर एक्शन लेता कि कोविड के नियमों का पालन नहीं हो रहा है.
चुनाव आयोग हर दिन अपनी विश्वसनीयता को गंवा रहा है, ताकि उसकी छवि खत्म हो जाए और वह भी गोदी मीडिया के एंकरों की तरह डमरू बजाने के लिए आज़ाद हो जाए. हर तरह के संकोच से मुक्त हो जाए.
तालाबंदी और कर्फ्यू की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है. पहली बार जनता को लगा था कि अगर बचने के लिए यही कड़ा फ़ैसला है, तो सहयोग करते हैं. इस मामले में जनता के सहयोग करने का प्रदर्शन शानदार रहा. हालांकि उसे पता नहीं था कि तालाबंदी का ही फैसला क्यों किया गया...? क्या यही एकमात्र विकल्प था...? हम आज तक नहीं जानते कि वे कौन सी प्रक्रियाएं थीं...? अधिकारियों और विशेषज्ञों ने क्या कहा था...? कितने लोग पक्ष में थे...? कड़े निर्णय लेने की एक सनक होती है. इससे छवि तो बन जाती है, लेकिन लोगों का जीवन तबाह हो जाता है. वही हुआ. लोग सड़क पर आ गए. व्यापार चौपट हो गया.
फिर जनता ने देखा कि नेता किस तरह लापरवाह हैं. चुनावों में मौज ले रहे हैं. बेशुमार पैसे खर्च हो रहे हैं. लगता ही नहीं कि इस देश की अर्थव्यवस्था टूट गई है. रैलियों में लाखों लोग आ रहे हैं. रोड शो हो रहा है. यहां कोरोना की बंदिश नहीं है. लेकिन स्कूल नहीं खुलेगा, कॉलेज नहीं खुलेगा, दुकानें बंद रहेंगी. लोगों का जीवन बर्बाद होने लगा और नेता भीड़ का प्रदर्शन करने लगे. यही कारण है कि जनता अब और कालाबाज़ारी झेलने के लिए तैयार नहीं है. पिछली बार जब केस बढ़ने लगे, तो प्रधानमंत्री TV पर आए, गंभीरता का लबादा ओढ़े हुए. आज हालत पहले से ख़राब हैं, वे चुनाव में हैं. उनके गृहमंत्री बिना मास्क के प्रचार कर रहे हैं. उनके रोड शो में कोई नियम-कानून नहीं है. वहीं जनता पर कोरोना के नियम-कानून थोपे जा रहे हैं. अमित शाह अपने आप में एक अलग देश बन गए हैं, जिन पर भारत के कोरोना के कानून लागू नहीं होते हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
इन जूतों के सोल (तलवे वाले हिस्से) में इंसान के ख़ून की बूंद भी इस्तेमाल की गई थी. ललित कला के लिए काम करने वाली आर्ट कलेक्टिव MSCHF ने रैपर लिल नैस एक्स के साथ मिलकर इस जूते को डिज़ाइन किया था. 1,018 डॉलर (तक़रीबन 75 हज़ार रुपये) की क़ीमत वाला यह जूता असल में नाइकी एयर मैक्स 97s का मॉडिफ़ाइड वर्ज़न था जिसमें ईसाइयों के पवित्र चिह्न पेंटाग्राम और क्रॉस को भी इस्तेमाल किया गया था. इस तरह के 666 जूते तैयार किए गए थे, जो सब बिक चुके हैं.
नाइकी ने क्यों दायर किया मुक़दमा?
नाइकी ने इसे अपने ट्रेडमार्क का उल्लंघन बताते हुए न्यूयॉर्क के फ़ेडरल कोर्ट में मुक़दमा दायर किया था और MSCHF को यह जूते बेचने और उसके लोगो 'स्वूश' का इस्तेमाल रोकने की मांग की थी.
स्पोर्ट्स जूते बनाने वाली कंपनी नाइकी ने अपने मुक़दमे में कहा, "MSCHF और उसके अनाधिकृत शैतानी जूते MSCHF के उत्पादों और नाइकी को लेकर भ्रम और ग़लतफ़हमी की स्थिति पैदा कर सकते हैं."
वहीं, MSCHF की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि 666 जोड़ी जूते कोई 'आम जूते नहीं हैं बल्कि यह व्यक्तिगत रूप से बनाई गई एक आर्ट है जिसे इसे सहेजने वालों को 1,018 डॉलर में बेची गई थी.'
नाइकी का पक्ष लेते हुए फ़ेडरल जज ने गुरुवार को इस पर रोक लगाने का अस्थायी आदेश जारी कर दिया.
इस आदेश का क्या असर होगा यह बिलकुल साफ़ नहीं है क्योंकि MSCHF यह संकेत दे चुकी है कि उसके इस तरह के जूते और बनाने की कोई योजना नहीं है.
इस जूते पर 'ल्यूक 10:18' भी लिखा है जो कि बाइबल की एक आयत है. हर जूते में नाइकी का साइन भी है. इन काले-लाल जूतों में इंसानी ख़ून की बूंद का भी इस्तेमाल किया गया है जो कि MSCHF आर्ट कलेक्टिव के सदस्यों ने डोनेट किया था.
विवाद कहां से शुरू हुआ?
न्यूयॉर्क के ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में केस दायर करते हुए नाइकी ने कहा था कि उसने शैतानी जूतों को ख़ासतौर से बनाने की कोई अनुमति नहीं दी थी. नाइकी ने कहा, "बाज़ार में भ्रम और बदनाम करने के बहुत से साक्ष्य मौजूद हैं. MSCHF के शैतानी जूतों के कारण नाइकी के बहिष्कार की मांग की जा रही है. यह ग़लतफ़हमी हो गई है कि नाइकी ने इस उत्पाद को मंज़ूरी दी है."
मुक़दमे के दौरान जूतों की जानकारी देने वाले प्रसिद्ध ट्विटर हैंडल @Saint के शुक्रवार को किए गए ट्वीट का हवाला दिया गया जिसमें इस जूते के बारे में जानकारी दी गई थी जिसके बाद अमेरिका में मीडिया और सोशल मीडिया पर इस पर बहस छिड़ गई.
साउथ डकोटा की कंज़रवेटिव गवर्नर क्रिस्टी नोम समेत कई आस्थावान लोगों ने इस विवादित जूतों पर आपत्ति जताई और लिल नेस एक्स और MSCHF की आलोचना की.
इसके बाद लिल नेस एक्स ने गवर्नर और कई आलोचकों पर ट्विटर पर जवाब देते हुए नाइकी के मुक़दमे पर कई मीम्स ट्वीट किए. टेनेसी में रहने वाले जॉजेफ़ रेश ने इन जूतों को ख़रीदने के लिए 1,080 डॉलर ख़र्च किए थे, अब उन्हें डर है कि इस विवाद के कारण उनके पैसे डूब जाएंगे.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि उन्हें लगता था कि उन्होंने इसके लिए पैसे ख़र्च किए हैं तो वो उन्हें मिल जाएंगे. उन्होंने कहा कि उन्होंने इन जूतों को एक राजनीतिक बयान के तौर पर पहनने का सोचा था. मैकेंज़ी ने इस मुक़दमे की आलोचना की है
उन्होंने कहा, "मैं एक काले आदमी का समर्थन करना चाहता था जिसने बहुसंख्यक ईसाई देश में एक अलग कहानी दिखाने की कोशिश की है जहां पर काले लोगों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. तो उस व्यक्ति के ज़रिए बनाए गए जूते ख़रीदने से बेहतर और क्या हो सकता था?"
साउथ कैरोलाइना के एक ख़रीदार मैकेंज़ी नॉरिस काफ़ी समय से MSCHF आर्ट कलेक्टिव को फ़ॉलो करते हैं. उनका कहना है कि इस मुक़दमे के कारण इन जूतों को ईबे पर 2,500 डॉलर में बेचने की उनकी योजना खटाई में पड़ गई है क्योंकि वहां पर इसे उनकी लिस्ट से हटा दिया गया है.
वो कहते हैं, "साधारण तरीक़े से देखा जाए तो नाइकी का यह मुक़दमा और उनका हस्तक्षेप बेतुका है क्योंकि इससे मेरे जैसे आम लोगों को कितना नुक़सान होगा जो इन जैसी चीज़ों को बनाते हैं और उन्हे क़ानूनी तरीक़ों से दोबारा बेचते हैं."