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सनसनीखेज़ ख़बर है कि इस साल देश में भ्रष्टाचार और बढ़ गया. पिछले साल तक 100 में 45 भारतीय नागरिकों को घूस देकर अपना काम करवाना पड़ता था. इस साल 56 फीसदी नागरिकों को घूस देनी पड़ी. यह बात विश्वप्रसिद्ध संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (TI) और लोकल सर्किल्स के सर्वेक्षण से निकलकर आई है. TI पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार की नापतोल का काम करती है. कुछ महीनों बाद TI भ्रष्टाचार के मामले में वैश्विक सूचकांक जारी करेगी, जिससे पता चलेगा कि भ्रष्टाचार के मामले में दूसरे देशों की तुलना में हमारी और कितनी दुर्गति हो रही है. बहरहाल इस सर्वेक्षण से यह ज़ाहिर है कि भ्रष्टाचार के आने वाले वैश्विक सूचकांक में अपने देश की हालत और खराब निकलकर आने का अंदेशा बढ़ गया है.
यह तो सिर्फ निचले भ्रष्टाचार का आकलन है...
मौजूदा सर्वेक्षण पुलिस, ज़मीन-जायदाद के कागज़ बनवाने, वाहन के रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस बनाने वाले दफ़्तरों, बिजली विभाग के दफ़्तरों वगैरह में घूस देने तक सीमित दिखाई दे रहा है. इसमें घटतौली, मिलावट, बैंकों में घूस, जालसाज़ी जैसे भ्रष्टाचारों को देखा ही नहीं जा सका है, और न ही बैंकों से कर्ज़ और निर्माण कार्यो के ठेके या दूसरे बड़े लाइसेंस पाने के लिए होने वाले भ्रष्टाचार को जाना जा सका. बैंकों में हज़ारों करोड़ की जालसाज़ी और सरकारी खरीद में हुए घपले-घोटाले भी इस सर्वेक्षण से काफी दूर हैं. फिर भी यह सर्वेक्षण भ्रष्टाचार के कारण आम नागरिक की व्यथा कथा बताने के लिए पर्याप्त है. और यह बताने के लिए भी पर्याप्त है कि उम्मीद तो भ्रष्टाचार खत्म करने की बंधाई गई थी, लेकिन यह तो और बढ़ गया. भ्रष्टाचार एक साल के अंतराल में 45 फीसदी से बढ़कर 56 फीसदी पहुंच गया. यानी भ्रष्टाचार खत्म होने की बजाय पिछले साल की तुलना में 25 फीसदी और बढ़ गया. पिछले दो साल के भ्रष्टाचार सूचकांक में भी अपने देश की हालत ठीक नहीं पाई गई थी - भ्रष्टाचार में कमी की पोल खोली TI ने..
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
::/fulltext::नई दिल्ली. इंटरनेट यूजर्स को अगले 48 घंटो के लिए इंटरनेट न मिलने से परेशानी हो सकती है. खबर है कि दुनियाभर में अगले 48 घंटो के दौरान इंटरनेट कनेक्टिविटी बंद हो सकती है. मुख्य डोमेन सर्वर्स अगले कुछ घंटो तक रुटीन मेंटनेंस पर रहेंगे. Russia Today की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले कुछ घंटों तक इंटरनेट यूजर्स को नेटवर्क फेलियर होने की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि मुख्य डोमेन सर्वर्स और इससे जुड़े नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर कुछ समय के लिए डाउन रहेंगे.
इंटरनेट कॉर्पोरेशन ऑफ असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स इस दौरान क्रिप्टोग्राफिक की बदलकर इस दौरान मेंटनेंस का काम करेंगी. इससे इंटरनेट की अड्रेस बुक या डोमेन नेम सिस्टम (DNS)को प्रोटेक्ट करने में मदद मिलेगी. ICANN ने कहा कि साइबर अटैक की बढ़ती घटनाओं से बचने के लिए मेंटनेंस का यह काम करना जरूरी हो गया है.
एक बयान में कम्युनिकेशन्स रेगुलेटरी अथॉरिटी (CRA) ने कहा कि ग्लोबल इंटरनेट शटडाउन, सुरक्षा, स्थिर और लचीले डीएनएस के लिए बेहद जरूरी है. अथॉरिटी ने आगे बताया, ‘स्पष्ट कर दें कि, अगर यूजर्स के नेटवर्क ऑपरेटर्स या इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (ISPs) इस बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं तो कुछ इंटरनेट यूजर्स को इससे परेशानी हो सकती है. हालांकि, उचित सिस्टम सिक्यॉरिटी एक्सटेंशन्स को इनेबल कर इस प्रभावक को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है.’
इंटरनेट यूजर्स को अगले 48 घंटों के दौरान वेब पेज ऐक्सेस करने या किसी ट्रांज़ेक्शन करने में दिक्कतें हो सकती हैं. इसके साथ ही अगर यूजर्स आउटडेटेड ISP का इस्तेमाल करते हैं तो ग्लोबल नेटवर्क को ऐक्सेस करने में असुविधा हो सकती है.
::/fulltext::आप अकबर की ख़बर को लेकर फेसबुक पोस्ट और YouTube वीडियो पर गौर कीजिए. इनके शेयर होने की रफ्तार धीमी हो गई है. प्रिंट मीडिया में अकबर की ख़बर को ग़ायब कर दिया गया है. अख़बारों के जिला संस्करणों में अकबर की ख़बर तीन-चार लाइन की है. दो-तीन दिन तो छपी ही नहीं. उन ख़बरों में कोई डिटेल नहीं है. एक पाठक के रूप में क्या यह आपका अपमान नहीं है कि जिस अख़बार को आप बरसों से ख़रीद रहे हैं, वह एक विदेश राज्यमंत्री स्तर की ख़बर नहीं छाप पा रहा है...?
क्या आपने इसी भारत की कल्पना की थी...? हिन्दी के अख़बारों ने अकबर के मामले में मेरी बात को साबित किया है कि हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं. लोगों को कुछ पता नहीं है. हर जगह आलोकनाथ की ख़बर प्रमुखता से है, मगर अकबर की ख़बर नहीं है. है भी, तो इस बात का ज़िक्र नहीं है कि अकबर पर किन-किन महिला पत्रकारों ने क्या-क्या आरोप लगाए हैं. अख़बार जनता के खिलाफ हो गए हैं. सोचिए, अखबारों पर निर्भर रहने वाले कई करोड़ पाठकों को पता ही नहीं चला होगा कि अकबर पर क्या आरोप लगा है.
अकबर की ख़बर को भटकाने के लिए रास्ता खोजा जा रहा है. पुराना तरीका रहा है कि आयकर विभाग से छापे डलवा दो, ताकि 'गोदी मीडिया' को वैधानिक (legitimate) ख़बर मिल जाए. लगे कि छापा तो पड़ा है और हम इसे कवर कर रहे हैं. ख़बरों को मैनेज करने वालों को कुछ सूझ नहीं रहा है, इसलिए हिन्दी अख़बारों को अकबर की ख़बर से रोक दिया गया है. दूसरी तरफ आयकर के छापे डलवाकर दूसरी ख़बरों को बड़ा और प्रमुख बनाने का अवसर बनाया जा रहा है. हाल के दिनों में The Quint वेबसाइट ने सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर आलोचनात्मक रिपोर्टिंग की है. अब इसके मालिक राघव बहल के यहां छापे की ख़बर आ रही है. इस तरह मीडिया में सनसनी पैदा की जा रही है. विपक्ष के नेताओं के यहां छापे पड़ेंगे.
आयकर छापे की ख़बर अकबर और राफेल डील की ख़बर को रोकने या गायब करने के लिए ज़रूरी है. फ्रांस के अख़बार 'मीडियापार्ट' ने नई रिपोर्ट छापी है. दास्सो एविएशन के दस्तावेज़ों को देखकर बताया है कि भारत सरकार ने शर्त रख दी थी कि अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर बनाने के लिए दबाव डाला गया था. यह अब तक का और भी प्रमाणित दस्तावेज़ है. रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण फ्रांस ही गईं हैं. फ्रेंच मीडिया में इस तरह की बात छप रही हो और रक्षामंत्री फ्रांस में हैं. सोचिए, भारत की क्या स्थिति होगी. सरकार चुप है.
सरकार आर्थिक हालात पर भी चुप है. एक डॉलर 74.45 रुपये का हो गया है. पीयूष गोयल को यह रुपये का स्वर्ण युग लगता है. उन्हें शायद यकीं है कि जनता को मूर्ख बनाने का प्रोजेक्ट 50 साल के लिए पूरा हो चुका है. अब वह वही सुनेगी या समझेगी, जो हम कहेंगे. पेट्रोल-डीज़ल के दाम फिर से बढ़ने लगे हैं. 90 रुपये पर 5 रुपया कम इसलिए किया गया, ताकि चुनाव के दौरान 100 रुपया लीटर न हो जाए. फिर से पेट्रोल के दाम बढ़ते हुए 90 की तरफ जाते हुए नज़र आ रहे हैं.
फेसबुक और व्हॉट्सऐप पर अकबर की ख़बर को ज़्यादा से ज़्यादा साझा कीजिए, क्योंकि इस ख़बर को हिन्दी के अख़बारों ने आप तक पहुंचने से रोका है. यह एक पाठक की हार है. क्या पाठक अपने हिन्दी अख़बारों का गुलाम हो चुका है...? हिन्दी के अख़बार आपको गुलाम बना रहे हैं. आपको इनसे लड़ना ही होगा.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.