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लाई डिटेक्टर टेस्ट पास कर सुर्खियों में आए तथाकथित टाइम ट्रेवलर की एक और बात ने सनसनी मचा दी है। जेम्स ओलिवीयर जो खुद को टाइम ट्रेवलर बताता है, अंतरिक्ष को लेकर चौंकाने वाले खुलासे कर चुका है। उसके वायरल वीडियो के अंत में उसने कहा कि अंतरिक्ष में एक 'सत्ता' है, जो पूरे ब्रह्मांड को चला रही है। इस सत्ता को वो 'फेडरेशन' कहता है। अंतरिक्ष में कई बार इनके बीच तकरार होती है, लेकिन ' फेडरेशन' सबकुछ संभाल लेता है। 'स्टार ट्रैक' की तरह लगती है कहानी...
- अपने दावों के बाद जेम्स सुर्खियों में है। सोशल मीडिया पर उनका वीडियो वायरल होने के बाद कुछ लोग उनकी बात पर भरोसा कर रहे हैं, तो कुछ उन्हें सनकी करार दे रहे हैं। जब उन्होंने ब्रह्मांड की सत्ता की बात की, तो लोगों ने कहा कि ये कहानी साइंस फिक्शन 'स्टार ट्रैक' की तरह लगती है। स्टार ट्रैक 1996 में शुरू हुई एक अमेरिकन टेलीविजन सीरीज थी, जो अंतरिक्ष में युद्ध पर आधारित थी।
ओलिवीयर के चौंकाने वाले दावे
उसका कहना है कि एलियंस का वजूद है। कुछ इंसानों से कम बुद्धिमान हैं तो कुछ बहुत ज्यादा। ओलिवीयर ने ये भी कहा है कि एलियंस और इंसानों की लड़ाई होकर रहेगी। ओलिवीयर ने ये दावा भी किया कि वो जानता है कि धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या होगा। उसके मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग ही धऱती के लिए सबसे बड़ा खतरा है
बहुत दूर से आया हूं
जेम्स कहता है, मैं सन् 6491 में दूसरे प्लैनेट में रहता हूं। वो सूरज से बहुत ज्यादा दूर है। इसी वजह से हमारे यहां के साल और तुम्हारे यहां के सालों में बहुत अंतर है। सारी बातचीत के बाद लाई डिटेक्टर मशीन ग्रीन सिग्नल देती है, जिसका मतलब ये है कि ये शख्स सही कह रहा है।
ऐसे चर्चा में आया जेम्स
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर इस शख्स का वीडियो सामने आया, जिसमें उसने बताया कि वो सन् 6491 में रहता है, लेकिन टाइम ट्रैवल के दौरान 2018 में अटक गया। हैरानी की बात ये है कि इस शख्स ने लाई डिटेक्टर टेस्ट भी पास कर लिया है। यूट्यूब पर पैरानॉर्मल वीडियो डालने वाले चैनल एपेक्स टीवी ने एक वीडियो जारी किया है। इसमें ओलीवियर लाई डिटेक्टर टेस्ट में बैठा नजर आता है।
::/fulltext::पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षांत समारोह का हिस्सा बन रहे हैं। कांग्रेस नेताओं में इस फैसले को लेकर नाखुशी देखने को मिल रही है। हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है। राजनीति में ऐसे मौके कई बार देखने को मिलते हैं, जब नेता कट्टर विरोधी विचारधारा वाले लोगों के भी साथ खड़े दिखे। शायद यही वजह रही कि नरेंद्र मोदी पर भी सरदार वल्लभभाई पटेल की विचारधारा को कांग्रेस से छीनने के आरोप लगे। जबकि पटेल वही लीडर हैं, जिन्होंने कभी संघ पर रोक लगाई थी।सरदार पटेल आजादी के आंदोलन का बड़ा चेहरा थे। इन्होंने देश को एक करने में अहम भूमिका निभाई थी। पर उन्हें आरएसएस की देशभक्ति ठीक नहीं लगती थी। वो संघ के विरोधी तो नहीं थे, लेकिन उसकी हिन्दू राष्ट्र या मुस्लिम विरोधी विचारधारा पटेल को आकर्षित भी नहीं करती थी। कई मौकों पर इसे लेकर उनके विचार भी दुनिया ने देखे थे।
संघ पर प्रतिबंध
महात्मा गांधी की हत्या के बाद तो ये मौका भी आया था कि पटेल ने 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिंबध लगा दिया था। उस वक्त वो देश के गृह मंत्री थे। उन्होंने प्रतिबंध लगाते हुए चिट्ठी में कहा था, ''इसमें कोई दो राय नहीं कि आरएसएस ने हिन्दू समाज की सेवा की है। जहां भी समाज को जरूरत महसूस हुई, वहां संघ ने बढ़-चढ़कर सेवा की। ये सच मानने में कोई हर्ज नहीं है। पर इसका एक चेहरा और भी है, जो मुसलमानों से बदला लेने के लिए उन पर हमले करता है। हिन्दुओं की मदद करना एक बात है, लेकिन गरीब, असहाय, महिला और बच्चों पर हमला असहनीय है।''
हत्या में सीधा हाथ होने से किया था इनकार
हालांकि, महात्मा गांधी की हत्या और संघ पर प्रतिबंध लगाए जाने के करीब महीने भर बाद पटेल ने नेहरू को 27 फरवरी, 1948 को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में पटेल ने लिखा कि संघ का गांधी की हत्या में सीधा हाथ तो नहीं है लेकिन ये जरूर है कि गांधी की हत्या का ये लोग जश्न मना रहे थे। पटेल के मुताबिक गांधी की हत्या में हिंदू महासभा के उग्रपंथी गुट का हाथ था।
मुखर्जी को दिया था करारा जवाब
- जनसंघ की स्थापना करने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्दी ने जुलाई 1948 में पटेल को एक चिट्ठी लिखी। इसमें आरएसएस से प्रतिबंध हटाने की मांग की गई थी।
- इस पर पटेल ने 18 जुलाई 1948 को जवाब दिया कि महात्मा गांधी की हत्या का मामला कोर्ट में है इसलिए वो इसपर कुछ नहीं कहेंगे। हालांकि, पटेल ने अपने पहले के बयानों का हवाला देते हुए साफ कर दिया कि भले ही गांधी हत्या में संघ का सीधा हाथ नहीं था लेकिन संघ के कारण ऐसा माहौल बना जिससे गांधी की हत्या हुई। पटेल ने आगे लिखा कि संघ की गतिविधियां सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए जोखिम भरी थीं।
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अब एक बार फिर टैक्स रिटर्न फाइल करने का मौसम है. लोग और कंपनियां अपने-अपने आईटीआर रिटर्न फाइल कर रहे हैं.नई दिल्ली: 2014 में केंद्र में सत्ता पर आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने भी काला धन पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए. लेन देन में फर्जीवाड़ा को रोकने के लिए सरकार कुछ कदम उठाए. इसमें लाखों फर्जी पैन कार्ड को निरस्त कर दिया गया. पिछले साल सरकार ने करीब 12 लाख पैन कार्ड निष्क्रिय कर दिए थे. कई लोग यह जांच नहीं कर पाए कि उनका पैन कार्ड सक्रिय है या नहीं. अब एक बार फिर टैक्स रिटर्न फाइल करने का मौसम है. लोग और कंपनियां अपने-अपने आईटीआर रिटर्न फाइल कर रहे हैं. बता दें कि केंद्र सरकार ने 27 जुलाई 2017 को 11.44 लाख पैन कार्ड निष्क्रिय कर दिए थे और कई हज़ार फर्जी पैन कार्ड की भी पहचान कर ली थी. तब वित्त राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार ने संसद को सूचित किया कि 11.44 लाख से अधिक पैन कार्ड या तो बंद कर दिया गया है. ऐसा उन मामलों में किया गया था जहां किसी व्यक्ति को एक से अधिक पैन कार्ड आवंटित कर दिए गए थे. गंगवार ने बताया था कि 27 जुलाई तक 1,566 फर्जी पैन की पहचान की गई. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि आप यह जांच लें कि आपके नाम से फर्जी पैन कार्ड तो नहीं बन गया है. कोई और आपके नाम का पैन कार्ड बनवाकर दुरुपयोग तो नहीं कर रहा है. और यदि आपके पास एक से ज़्यादा पैन कार्ड हैं तो आप ऑनलाइन जांच करके जान सकते हैं कि आपका कौन सा कार्ड वैध है. इसके लिए आपको नीचे दी गई गई प्रक्रिया को अमल करना होगा.
यही वजह है कि सरकार ने पांच लाख और तीन लाख के जुर्माने को बढ़ाकर 25 लाख और 20 लाख कर दिया है।
रायपुर। राज्य के शासकीय मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट पर दाखिला लेने वाले एक छात्र को डॉक्टर बनाने में सरकार तीन करोड़ रुपये खर्च करती है। इसमें डॉक्टर/प्रोफेसर का वेतन, कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर प्रयोगशाला, हॉस्टल और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) में मान्यता के आवेदन का खर्च शामिल है। तो क्यों नहीं इनसे एमबीबीसी के बाद दो साल की शासकीय सेवा करवाई जाए?
नियम तो बनाए गए यह सोचकर की इन डॉक्टर्स को ग्रामीण अंचलों के स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेजों में पोस्टिंग देकर प्रदेश में डॉक्टर्स की कमी कुछ हद तक पूरी की जाएगी।
ग्रामीण सेवा में जाने पर 2013 तक अनारक्षित वर्ग के छात्रों को पांच लाख, आरक्षित वर्ग के लिए तीन लाख जुर्माने का प्रावधान था। लेकिन जानकर हैरानी होगी कि 75-80 फीसद डॉक्टर ने इस राशि को बतौर जुर्माना भरा और दो साल शासकीय सेवाएं में सेवाएं नहीं दी।
2017-18 में पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के शासकीय कोटा सीट पर दाखिला लेने वाले 124 एमबीबीएस डिग्रीधारियों में सिर्फ 28 ही शासकीय सेवा में गए। यही वजह है कि सरकार ने पांच लाख और तीन लाख के जुर्माने को बढ़ाकर 25 लाख और 20 लाख कर दिया है। अगले सत्र में 2013 का बैच पास आउट होगा, देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई ऐसा भी है जो 25 लाख और 20 लाख का जुर्माना भरेगा।
सीट कम इसलिए नियम
प्रदेश में पिछले साल एमबीबीएस की 850 सीट थी, इस साल सिर्फ 550 ही रह गई। अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज पिछले साल जीरो ईयर था, इस साल उसे 100 सीट की मान्यता मिली है जबकि तीनों निजी कॉलेज जीरो ईयर हो गए हैं।
ऑल इंडिया कोटा वालों के लिए भी नियम
दो साल की शासकीय सेवा का नियम सिर्फ राज्य कोटा सीट पर दाखिला लेने वालों पर लागू था, लेकिन सत्र 2018-19 के प्रवेश नियम में इसे संशोधित कर ऑल इंडिया कोटा सीट पर दाखिला लेने वाले छात्रों पर भी लागू कर दिया गया है। यानी अब 100 फीसद एमबीबीएस डिग्रीधारियों को शासकीय सेवा करनी होगी।
2013 तक एमबीबीएस सीटों की स्थिति
पं. जवाहरलाल नेहरू में राज्य कोटा की 124 सीट, छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (सिम्स) बिलासपुर में 82, स्व. बलीराम कश्यप मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में 82 सीट। इनमें से 75 फीसद ने जुर्माना भर दिया।
इस साल से पीजी में भी लागू किया शासकीय सेवा
सत्र 2017-18 में मेडिकल कॉलेजों की पीजी सीट पर दाखिला लेने वालों को भी दो साल की शासकीय सेवा अनिवार्य कर दी गई है। ये स्पेशलिस्ट की कमी को पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम है। न करने पर 50 लाख रुपये जुर्माना भरना होगा।
ग्रामीण अंचलों में डॉक्टर्स की जरूरत
हमें ग्रामीण अंचलों के लिए डॉक्टर्स की जरुरत है। सरकार डॉक्टर बनाने में करोड़ों रुपये खर्च करती है तो क्यों न उनकी सेवा मरीजों को मिले। शासकीय सेवा की अनिवार्यता थी, आज भी लेकिन पहले न करने पर जुर्माना की राशि कम थी। इसलिए इसे बढ़ाया गया। - डॉ. अशोक चंद्राकर, संचालक, चिकित्सा शिक्षा
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