Sunday, 22 December 2024

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ग्रहणकाल का सूतक लगभग 12 घंटे पूर्व लगेगा। सूर्यग्रहण के 15 दिन के बाद चंद्रग्रहण पड़ेगा।....

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बिलासपुर। 13 जुलाई को साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। यह पुनर्वसु नक्षत्र व हर्षण योग में पड़ेगा जो सुबह सात बजकर 19 बजे से शुरू होकर नौ बजकर 44 मिनट में समाप्त होगा। 13 जुलाई शुक्रवार अषाढ़ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मिथुन राशि और पुनर्वसु नक्षत्र व हर्षण योग में सूर्यग्रहण पड़ेगा। र्यग्रहण का स्पर्श सुबह 7.19 बजे होगा और ग्रहणकाल का मोक्ष सुबह 9.44 बजे होगा। ग्रहणकाल का सूतक लगभग 12 घंटे पूर्व लगेगा। सूर्यग्रहण के 15 दिन के बाद चंद्रग्रहण पड़ेगा। पं.दीपक शर्मा ने बताया कि अषाढ़ में पड़ने वाले दो ग्रहण से वर्षा ऋतु प्रभावित होगी। ज्योतिषीय गणना के अनुसार अल्प वर्षा की स्थिति की आशंका प्रतीत हो रही है। जल निधि के कारक ग्रह चंद्रमा की कर्क राशि में राहु का गोचर होना जल की अल्पता का परिचायक है।

नहीं दिखेगा भारत में

सूर्यग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रहण उदयमान सूर्य देव पर पड़ रहा है। इससे ग्रहणकाल और सूतक के दौरान मान्य मान्यताओं का पालन करना चाहिए।

 खुलेंगे जगन्नाथ मंदिर के पट भी

इसी दिन जगन्नाथ मंदिर के पट भी खुलेंगे और श्रद्घालुओं को महाप्रभु के नवजोबन रूप के दर्शन होंगे। वहीं मंदिर समिति के पदाधिकारी केके बेहरा ने बताया कि मंदिर में ओडिशा मंदिर की सभी मान्यताओं और परंपरानुसार पूजन होता है। ओडिया कैलेंडर में भी ग्रहण नहीं दिखाने से मंदिर में पूजन की कोई बाधा भी नहीं होगी। इस वजह से मंदिर में सुबह पांच बजे से महाप्रभु के दर्शन श्रद्घालुओं को होने लगेंगे।

 15 दिन बाद चंद्रग्रहण भी

जुलाई महीने में ही सूर्यग्रहण के 15 दिन के बाद चंद्रग्रहण होगा। चंद्रग्रहण 27 जुलाई शुक्रवार को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मकर राशि और श्रवण नक्षत्र में चंद्रग्रहण पड़ेगा। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण दोनों ही शुक्रवार को पड़ रहा है।

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भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का डंका बजाने वाले ने केवल वैज्ञानिक सोच तथा तर्क पर बल ही नहीं दिया, बल्कि धर्म को लोगों की सेवा और सामाजिक परिवर्तन से जोड़ दिया......

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अपनी तेजस्वी वाणी के जरिए पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का डंका बजाने वाले ने केवल वैज्ञानिक सोच तथा तर्क पर बल ही नहीं दिया, बल्कि धर्म को लोगों की सेवा और सामाजिक परिवर्तन से जोड़ दिया। स्वामी विवेकानंद का को कोलकाता में हुआ था। 1884 में उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अत्यंत गरीबी की मार ने उनके चित्त को कभी डिगने नहीं दिया। संगीत, साहित्य और दर्शन में विवेकानंद को विशेष रुचि थी। तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती उनका शौक था। 
 
मानवता की दिव्यता के उपदेश का स्वाभाविक फल था निर्भयता और व्यावहारिक अंग्रेज जाति ने स्वामीजी के जीवन की कई घटनाओं में इस निर्भयता का प्रत्यक्ष उदाहरण देखा था। एक घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। एक दिन एक अंग्रेज मित्र तथा कु. मूलर के साथ वे किसी मैदान में टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज सज्जन अपनी जान बचाने को जल्दी से भागकर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा खड़े हुए। कु. मूलर भी जितना हो सका दौड़ी और फिर घबराकर भूमि पर गिर पड़ीं। स्वामीजी ने यह सब देखा और उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देखकर वे सांड के सामने खड़े हो गए और सोचने लगे- 'चलो, अंत आ ही पहुंचा।'
 
बाद में उन्होंने बताया था कि उस समय उनका मन हिसाब करने में लगा हुआ था कि सांड उन्हें कितनी दूर फेंकेगा। परंतु कुछ कदम बढ़ने के बाद ही वह ठहर गया और अचानक ही अपना सिर उठाकर पीछे हटने लगा। स्वामी जी को पशु के समक्ष छोड़कर अपने कायरतापूर्ण पलायन पर वे अंग्रेज बड़े लज्जित हुए। कु. मूलर ने पूछा कि वे ऐसी खतरनाक परिस्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके। स्वामी जी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा कि खतरे और मृत्यु के समक्ष वे अपने को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करते हैं क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किए हैं।' 
 
अपने बाल्यकाल में भी एक बार उन्होंने ऐसा ही साहस दिखाया था। इंग्लैंड के अपने कार्य तथा अनुभवों के विषय में उन्होंने हेल-बहनों को लिखा था कि यहां उनके कार्य को जबर्दस्त सफलता मिली है। एक अन्य अमेरिकी मित्र के नाम पत्र में उन्होंने लिखा कि अंग्रेजों के महान विचारों को आत्मसात करने की शक्ति में उन्हें विश्वास है, यद्यपि इसकी गति धीमी हो सकती है, परंतु यह अपेक्षाकृत अधिक सुनिश्चित एवं स्थायी होगी।
 
उन्हें उम्मीद थी कि एक ऐसा समय आएगी जब अंग्रेजी चर्च के प्रमुख पादरी वेदांत के आदर्शवाद से अनुप्राणित होकर एंग्लीकन चर्च के भीतर ही एक उदार समुदाय का गठन करेंगे और इस प्रकार सिद्धांत और व्यवहार दोनों ही दृष्टियों से धर्म की सार्वभौमिकता का समर्थन करेंगे। परंतु इंग्लैंड में उन्हें सबसे अच्छा लगा था - अंग्रेजों का चरित्र, उनकी दृढ़ता, अध्यवसाय, स्वामीभक्ति, आदर्श के प्रति निष्ठा तथा हाथ में लिए हुए किसी कार्य को पूरा करने की उनकी लगन। वहां के लोगों के अंतरंग संपर्क में आने पर उनके बारे में स्वामी जी के पूर्वकल्पित विचार बिल्कुल ही बदल गए। परवर्ती काल में उन्होंने कलकत्ता के नागरिकों को संबोधित करते हुए कहा था - 'ब्रिटिश भूमि पर अंग्रेजों के प्रति मुझसे अधिक घृणा का भाव लेकर कभी किसी ने पैर न रखा होगा।'
 
अब यहां ऐसा कोई भी न होगा जो मुझसे ज्यादा अंगरेजों को प्यार करता हो।' 28 नवंबर 1896 ई. को उन्होंने हेल-बहनों को लिखा - 'अंगरेज लोग अमेरिकनों की तरह उतने अधिक सजीव नहीं हैं, किंतु यदि कोई एक बार उनके हृदय को छू ले तो फिर सदा के लिए वे उसके गुलाम बन जाते हैं।... अब मुझे पता चल रहा है कि अन्याय जातियों की अपेक्षा प्रभु ने उन पर अधिक कृपा क्यों की है। वे दृढ़ संकल्प तथा अत्यंत निष्ठावान हैं; साथ ही उनमें हार्दिक सहानुभूति है - बाहर उदासीनता का केवल एक आवरण रहता है। उसको तोड़ देना है, बस फिर तुम्हें अपने पसंद का व्यक्ति मिल जाएगा।'
 
एक अन्य पत्र में वे लिखते हैं - 'यह तो तुम जानती ही हो कि अंगरेज लोग कितने दृढ़चित्त होते हैं; अन्य जातियों की अपेक्षा उन लोगों में पारस्परिक ईर्ष्या की भावना भी बहुत ही कम होती है और यही कारण है कि उनका प्रभुत्व सारे संसार पर है। दासता के प्रतीक खुशामद से सर्वथा दूर रहकर उन्होंने आज्ञा-पालन, पूर्ण स्वतंत्रता के साथ नियमों के पालन के रहस्य का पता लगा लिया है।
 
स्वामी विवेकानंद का मात्र 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया।
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इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए।.....

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इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी इस दिन जोक्स के जरिए अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए। दुनिया भले ही अलग-अलग धर्म और संस्कृति में बंटती हो, लेकिन एक बात दुनियाभर के हर इंसान को एक-दूसरे से जोड़ती है, वह है हास्य-व्यंग्य। हंसी-खुशी, मस्ती-मजाक ऐसे भाव हैं जिनका संचार इंसान को इंसान से जोड़ता है।
 
आप चाहें जिस भी धर्म या जाति के हों, जोक्स के प्रति आपकी प्रतिक्रियाएं एक जैसी ही होती हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में खुशी चाहता है। आजकल की तनावभरी जिंदगी में जोक्स हमारे तनाव को कम कर हमें खुश रखने में बेहद खास भूमिका निभाता है। जिस प्रकार रोटी, कपड़ा और मकान इंसान के लिए बेहद जरूरी हैं, उसी प्रकार खुशी या हास्य भी जीवन के विकास के लिए बेहद आवश्यक हैं।
 
इसीलिए इसके कई फायदों और महत्ता को देखते हुए पूरी दुनिया में को 'इंटरनेशनल जोक्स डे' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हर चेहरे पर मुस्कान लाना और हास्य से पूरी दुनिया को जोड़ते हुए उसे प्रसारि‍त करना है।
 
कैसे मनाएं यह दिन-  इंटरनेशनल जोक्स डे मनाने का मुख्य उद्देश्य हंसना और हंसाना है। आप भी इस दिन जोक्स के जरिए अपने आसपास के लोगों को हंसने पर मजबूर कीजिए। टीवी, रेडियो, जोक्स, कॉमेडी फिल्म के माध्यम से इस दिन को आप मना सकते हैं। बाजार में भी जोक्स की कई किताबें मि‍ल सकती हैं और इंटरनेट तो है ही, जहां आपके लिए जोक्स और फनी चीजों का भंडार उपलब्ध है।
 
* इस दिन आप अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को मजेदार जोक्स भेजकर या मेल करके खुशी दे सकते हैं।
 
* घर में बैठकर सभी के साथ कॉमेडी फिल्म या शो देख सकते हैं।
 
* छोटी-मोटी गेट-टुगेदर कर जोक्स सुनाकर सबके साथ मस्ती-मजाकभरे पलों को बिता सकते हैं।
 
* किसी वृद्धाश्रम में जाकर इस दिन सभी को जोक्स सुनाकर या कॉमेडी शो दिखाकर खुशियां बांट सकते हैं। 
* कुछ मजेदार गेम्स या टास्क ऑर्गेनाइज कर सकते हैं जिसमें सोसायटी को शामिल किया जा सकता है।
 
* आप अगर चाहें तो किसी स्कूल या अनाथ आश्रम में जाकर बच्चों के बीच इस दिन को मना सकते हैं, क्योंकि बच्चे ही सबसे ज्यादा जोक्स को एंजॉय करते हैं।
 
यह दिन आपके लिए एक बेहतर अवसर है, अपने आसपास की दुनिया में खुशी बिखेरने का...! इसे जाने मत दीजिए। जितना हो सके, इस दिन को सेलीब्रेट कीजिए, एक दिन ही सही, लेकिन खुद को खुश रखने और तनाव से दूर भागने का अच्छा बहाना साबित हो सकता है यह दिन।
 
उद्भव- हास्य के लिए जोक्स की भूमिका को देखते हुए 'इंटरनेशनल जोक्स डे' को सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में मनाया गया था। वैसे तो जोक्स के इतिहास के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम जोक्स का आविष्कार यूनान में हुआ था। आज भी ग्रीस में बने श्रेष्ठतम कॉमेडी क्लब वहां का गौरव हैं, जो भारत के साथ ही अन्य देशों में भी स्टैंड-अप कॉमेडी क्लब के नाम से जाने जाते हैं।
 
हास्य का
महत्व- 
जोक्स, हास्य का वह माध्यम है, जो एक ही समय में एक साथ हजारों-करोड़ों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने के साथ ही उन्हें ठ‍हाका लगाने पर मजबूर कर सकता है। यह सकारात्मक ऊर्जा का सशक्त माध्यम है। शायद इसीलिए जब भी आप हंस रहे होते हैं या ठहाका लगा रहे होते हैं, तब आपको कुछ भी याद नहीं रहता सिवाय हास्य के। जब आप हंसते हैं तो आपके दिमाग की सारी नकारात्मक बातें गुम-सी हो जाती हैं और आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
 
हंसने और हंसाने के फायदे- हास्य के जीवन में अपने फायदे हैं फिर चाहे वह मानसिक तनाव को दूर करने के लिए हो या खुश रहने के साथ शारीरिक स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए हो। हास्य को 'बेस्ट मेडि‍सिन' कहा गया है। इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आधी बीमारियों को बिना दवा के भी ठीक किया जा सकता है। समाज में प्रसार के लिए जोक्स की अहम भूमिका है। जोक्स या किसी भी हास्य को देखना या सुनना दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर को वे सिग्नल्स देता है, जो हमें अच्छा या बेहतर महसूस कराते हैं।
 
एक छोटी-सी मुस्कान भी किसी भी तकलीफ या परेशानी के दर्द को कम कर देती है। यही कारण है कि विश्व के अनेक देशों में अस्पतालों में भी छोटे-छोटे लॉफिंग क्लब या सेशंस शुरू कर दिए गए हैं। इनके जरिए मरीजों का तनाव कम होता है और वे खुश रहते हैं जिससे उनके जल्दी ठीक होने की उम्मीद बढ़ जाती है।
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 लंबे समय के इंतजार के बाद अखिरकार 36 इंच के दूल्हे को उसकी जीवन की हमसफर मिल गई.....

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गोरखपुर। एक लंबे समय के इंतजार के बाद अखिरकार 36 इंच के दूल्हे को उसकी जीवन की हमसफर मिल गई। उत्तर प्रदेश के में गत सोमवार को हुई अनोखी शादी पूरे शहर में चर्चा का विषय रही। शादी के बाद 36 इंच का दूल्हा एवं 34 इंच की एक-दूसरे के हमसफर बने। शादी में आने वाले लोगों में दूल्‍हा-दुल्‍हन के साथ सेल्‍फी खिंचवाने का जुनून भी खूब दिखाई दिया। इस अनोखी शादी में कई ऐसे लोग भी पहुंचे थे, जिनको न तो वर पक्ष से न्‍योता मिला था और न ही वधू पक्ष से लेकिन, सभी के चेहरे पर खुशी साफ झलकती दिखाई दी।
 
गोरखपुर जिले में खजनी क्षेत्र के विशुनपुरा गांव निवासी 42 वर्षीय डॉ. सुनील पाठक जो 36 इंच के हैं और संस्कृत से पीएचडी किए हुए हैं। वह छह भाइयों में तीसरे नंबर के हैं। सभी की शादियां हो चुकी हैं। शिक्षा प्राप्त करने के दौरान भी सहपाठियों द्वारा उन्हें कद छोटा होने पर उपहास का विषय बनाया जाता था। सुनील ने अपने छोटे कद की वजह से धीरे-धीरे शादी की उम्मीद छोड़ दी थी। फिर अचानक एक दिन उसके लिए रानीबाग के प्रज्ञा कालोनी निवासी सारिका मिश्रा (32) का रिश्ता आया जो लगभग उसी के जैसी थी। सुनील ने झट से शादी के लिए हां कर दी। उसने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है।
 
बेटी सारिका की उम्र बढ़ने के साथ ही उसके विवाह की चिंता भी घरवालों को सताने लगी थी। डॉ. पाठक का रिश्ता सारिका के लिए वरदान सरीखा रहा। दोनों को एक साथ देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।बढ़ती उम्र के चलते डॉ. सुनील ने शादी की उम्‍मीद खो दी थी, लेकिन आखिरकार उसे अपने सपनों की रानी मिल ही गई। दोनों की शादी गत सोमवार को धूमधाम से हुई। दोनों एक-दूसरे के हो गए। इस मौके पर जुटे परिवारीजन और परिचितों ने वर-वधू को आशीर्वाद देकर उनके सुखद वैवाहिक जीवन की मंगल कामना की।
 
वहीं शादी में ऐसे लोग भी जुटे जिन्हें बुलाया नहीं गया था, लेकिन विवाहित जोड़े के साथ सेल्फी लेने वालों की भीड़ जुट गई थी। दुल्हन बनी सारिका इस शादी से काफी खुश है। वहीं शादी से खुश उसके भाई प्रवीण कुमार मिश्र का कहना था कि उन्होंने बहन सारिका के शादी की उम्मीद ही छोड़ चुके थे।
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