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रायपुर: छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में अशिक्षा और जागरुकता की कमी के चलते लोग आज भी अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यही कारण है कि पुराने समय से चला आ रही रूढ़ियां उतनी ही जीवंत हैं जितनी पहले हुआ करती थी। एक ऐसी ही मान्यता है जशपुर जिले के बगीचा थाना के सरबकोबी गांव की जहां गांव वाले भूतप्रेत को खरीदते और बेचते हैं। यही नहीं लोग यहां खुलेआम प्रेतबाधा की तस्करी करने की बात करते नजर आ जाते हैं।
गांव के लोग एक ऐसी किवदंती बताते हैं एक ऐसे भूत के बारे में बताते हैं जो करीब 3फीट का होता है और इस भूत को नाचना गाना काफी पसंद है। जब भी इस भूत की आहट होती है तो चारों ओर पारंपरिक वाद्ययंत्रों के थाप की गूंज सुनाई देनी लगती है और लोग भूत के स्वागत में झूमने लगते हैं। जिसे इस भूत को खरीदना होता है वह आगे आता है और उसे नियमानुसार बेच दिया जाता है। इस भूत की बहुत डिमांड है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भी इस भूत खरीदता है वो अचानक धनवान हो जाता है।
गाँव के बुजुर्गों की मानें तो उन्होंने अपनी आखों से मटिया भूत और उसके चमत्कार देखें हैं। गांव में भूत बेचने वाले नारायण यादव दावा करते हैं कि दुनिया में भूतप्रेत और आत्माओं का साया होता है। होता है। वे कहते हैं कि अगर दुनिया में भगवान है तो भूतप्रेत का भी अस्तित्व है। लेकिन अदृश्य होने के कारण हम उन्हें देख और छू नहीं सकते। लेकिन जानकार कहते हैं कि भूतप्रेत सिर्फ मन का वहम और अंधविश्वासमात्र है।
::/fulltext::रमजान का पवित्र महीना फिर से सभी पर अपनी तमाम रहमतों, बरकतों और सादतों के साथ जलवा अफ़रोज़ हो रहा है. इस पवित्र महीने में अल्लाह की तरफ से अपने नेक बन्दों पर रहमतों और बरकतों की बारिश होती है. फ़रिश्ते रोज़ादारों के लिए इबादत करते हैं. इस महीने में रोज़ादारों की दुनयावी भागीदारी कम हो जाती है. वे अपना ज्यादातर वक्त अल्लाह की याद, उसकी इबादत, क़ुरान की तिलावत और फ़रीज़ व नवाफिल की अदाएगी में गुज़ारते हैं. इनके ज़रिए वे अल्लाह से अपने तअल्लुक़ को बढ़ाते हैं. रोज़ा हुक़ूक़ुल्लाह के साथ-साथ हुक़ूक़ुल इबादत पर भी ज़ोर देता है. नाराज़ लोगों को मानाने और उनसे बेहतर ताल्लुक़ात बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है.
रोज़ा क्या है और किसे रोज़ा करना चाहिए ?
अरबी में रोज़ा को सौम कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है किसी चीज़ से रुकना और इसे त्यागना. शरिया में रोज़ा का अर्थ है- अल्लाह की इबादात करने के इरादे से, मनुष्य सुबह सूर्य निकलने से लेकर डूबने तक खाने पीने और जिन्सी ज़रूरत पूरी करने से रुका रहे.
दिल्ली के ओखला में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक संस्था जामिया इस्लामिया सनाबिल के वरिष्ठ शिक्षक मौलाना फजलुर्रहमान नदवी न्यूज़ 18 से बात करते हुए कहते हैं कि रमज़ान का रोज़ा हर आक़िल और बालिग़ मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है. यह पागल, मजनूं और बीमार पर फ़र्ज़ नहीं है. वह कहते हैं कि बीमार व्यक्ति पर रोज़ा की फ़र्ज़ियत ख़त्म नहीं होती है, बल्कि बीमारी की स्थिति में उसे राहत दी गई है. वह अगले रमज़ान से पहले जब भी स्वस्थ हो जाए, शेष रोज़ा पूरा करे.
रोज़ा का उद्देश्य क्या है?
मौलाना नदवी का कहना है कि कुरान में रोज़ा का उद्देश्य तक़वा बताया गया है. तक़वा क्या है, इस पर मौनाला कहते हैं कि जब मनुष्य में यह सिफ़त पैदा हो जाए कि वह कोई काम करे तो यह देखे कि इस काम से अल्लाह राज़ी होगा या नहीं. अगर अल्लाह उस के इस काम से राज़ी होता है तो वह ये काम करे वर्ना उससे बाज़ आए. यानि कोई भी काम करते वक़्त मनुष्य उसमें अल्लाह की मर्ज़ी तलाश करे.
किन चीज़ों से रोज़ा पर पड़ता है असर ?
मौलाना कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति रोज़ा रखता है और झूठ बोलता है, चुगली करता है तो शरीयत की निगाह में यह तारिक सौम यानी रोज़ा न रखने वाला नहीं माना जाएगा. हां, रोज़ा रखने में जो असर मिलना चाहिए था उस में ज़रूर कमी आएगी.
कभी-कभार छोटे बच्चों को भी रखवाना चाहिए रोज़ा
यूं तो हर बालिग़ और अक़ील मर्द व औरत पर ही रोज़ा फ़र्ज़ है, लेकिन छोटे बच्चों में भी कभी-कभार रोज़ा रखने की आदत डालनी चाहिए. इस की हिकमत बताते हुए मौलाना कहते हैं कि जब कम उम्र में ही बच्चा रोज़ा रखने की आदत डालना शुरू कर देगा तो फिर बालिग़ होने के बाद उसे रोज़ा रखने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी. मौलाना कहते हैं कि सहाबा किराम अपने कम उम्र बच्चों से कभी-कभार रोज़ा रखवाते थे और बच्चों के हाथों में खिलौना थमा देते थे, ताकि बच्चे दिन भर खिलौने से खेलते रहें और इसमें उनका दिन आसानी से गुज़र जाए.
प्राचीन भारत के लोग स्वर्ण बनाने की विधि जानते थे। वे पारद आदि को किसी विशेष मिश्रण में मिलाकर स्वर्ण बना लेते थे, लेकिन क्या यह सच है? यह आज भी एक रहस्य है। प्राचीन भारत में बगैर किसी 'खनन' के बावजूद भारत के पास अपार मात्रा में सोना था। मंदिरों में टनों सोना रखा रहता था। सोने के रथ बनाए जाते थे और प्राचीन राजा-महाराजा स्वर्ण आभूषणों से लदे रहते थे। कहते हैं कि बिहार की सोनगिर गुफा में लाखों टन सोना आज भी रखा हुआ है। मध्यकाल में गौरी, गजनी, तेमूर और अंग्रेज लूटेरे लाखों टन सोना लूट कर ले गए फिर भी भारतीय मंदिरों और अन्य जगहों पर आज भी टनों से सोना है। आखिर भारतीय लोगों और राजाओं के पास इतना सोना आया कहां से था? इस संबंध में प्राचीन और मध्यकाल में हस्तलिखित दस्तावेज बहुत होते थे। उनमें से लाखों तो लुप्त हो गए या जला दिए गए। फिर भी हजारों आज भी किसी लाइब्रेरी में, संग्रहालय, आश्रम में या किसी व्यक्ति विशेष के पास सुरक्षित है। ऐसी ही एक हस्तलिखित पांडुलिपि या किताब इंदौर के रहने वाले साधारण से व्यक्ति नरेंद्र चौहान के पास सुरक्षित है। इस पांडुलिपि या किताब में सोना और चांदी बनाने की 155 विधियां हैं। इस संबंध में हमने नरेंद्र चौहान से बात की और उन्होंने हमें अद्भुत जानकारी दी। आप भी वीडियो देखें और जानें कि आखिर सोना बनाने का क्या रहस्य है।
आईपीएल-11 का 33वां मुकाबला आज कोलकाता नाइट राइडर्स और चेन्नई सुपरकिंग्स के बीच खेला जाना है. कोलकाता के ईडन गार्डन में होने वाले इस मुकाबले के लिए दोनों टीमों ने पूरी तैयारी कर ली है. लेकिन मैच से पहले चेन्नई सुपरकिंग्स को क्रिकेट फैन्स ने ख़ूब ट्रॉल किया और इस ट्रोल की वजह धोनी और टीम का कोई खिलाड़ी नहीं बल्कि सचिन तेंदुलकर हैं. सचिन ने भले ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया हो लेकिन फैन्स के लिए वो अभी भी क्रिकेट के भगवान हैं. कोई भी ऐसा फैन नहीं है जो मास्टर ब्लास्टर का अपमान होता बर्दाश्त करें. दरअसल, चेन्नई सुपर किंग्स के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की गई. तस्वीर में सुरेश रैना और सचिन तेंदुलकर साथ में जा रहे हैं. इस फोटो का कैप्शन था, 'रमेश और सुरेश'. जिसके बाद सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने सीएसके को ट्रोल करना शुरू कर दिया और साथ ही ख़ूब सुनाया.
आपको बता दें कि सचिन तेंदुलकर के पिता का नाम रमेश तेंदुलकर था. जिसकी वजह से सचिन का पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर है. इस पोस्ट के कैप्शन से क्रिकेट फैन्स नाराज़ हो गए और सीएसके को ट्रोल करना शुरू कर दिया.
ट्विटर यूजर्स ने सीएसके को खूब लताड़ लगाई. कुछ फैंस ने कहा है कि चेन्नई की टीम को लाइफाइम के लिए आइपीएल से बैन कर देना चाहिए.
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