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गर्मियों का मौसम आते ही सनस्क्रीन के अलावा सनग्लास भी जरूरी हो जाते हैं. आंखों की सेहत के लिए धूप में निकलते वक्त ये बहुत जरूरी भी हैं. लेकिन सनग्लास का डार्क होना ही काफी नहीं. कई बार लोग केवल डार्क ग्लास को ही धूप का चश्मा मान लेते हैं. ये आंखों के लिए अच्छा नहीं. ये यूवी रेज़ से आंखों को बचा नहीं पाते और नुकसान भी पहुंचाते हैं. हम आपको बता रहे हैं कुछ टिप्स, जिनसे आप अपने लिए सही सनग्लासेज का चुनाव कर सकते हैं.
*धूप का चश्मा ऐसा ही लें, जिनसे आपकी आंखें पूरी तरह से ढंक जाएं. आंखों के लिए यही सही रहते हैं. छोटे सनग्लासेज की अगर डिजाइन पसंद आ रही हो तो ये कभी-कभार थोड़ी देर पहनने के लिए ले सकते हैं.
*चश्मा वही ठीक रहता है, जो चेहरे पर फिट आ सके, यानी न तो बहुत ढीला हो और न ही बहुत कसा हुआ. इससे आंखों की सुरक्षा होती है.
*कोशिश करें कि सनग्लास ब्रांडेड हों. इनमें अल्ट्रावायलेट किरणों से निपटने की क्षमता होती है. अगर धूप में ज्यादा वक्त बीतता हो तो इसका ख्याल रखना जरूरी है.
नई दिल्ली: करदाता अब आधार ओटीपी OTP से तुरंत अपनी ITR ई-वेरीफाई कर सकते हैं. आयकर फाइलिंग और सत्यापन को आसान बनाने के लिए यह तरीका अपनाया गया है. यूआईडीएआई ने अपने ट्विटर हैंडल से इसकी जानकारी दी है. यूआईडीएआई को भारत सरकार ने देश के सभी नागरिकों को 12 अंकों का आधार नंबर जारी किया है. अभी तक 16.65 करोड़ भारतवासियों ने अपने आधार को पैन कार्ड से जोड़ा है. जिन करदाताओं ने अपने पैन को आधार से जोड़ लिया है, ऐसे लोगों को लिए यह खास सुविधा दी जा रही है. यूआईडीएआई ने बताया कि ऐसे करदाता ओटीपी के माध्यम से अपने इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) को ई-वेरिफाई (सत्यापित) कर सकते हैं.
यूआईडीएआई के मुताबिक आईटीआर को ई-वेरिफाइ करने का तरीका इस प्रकार है.
परीक्षाओं को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर किसी को परीक्षा के बाद कितने नंबर आयेंगे इस बात की चिंता रहती है. यह चिंता कभी कभी अवसाद तथा फोबिया का रूप ले लेती है. वस्तुतः परीक्षा के बाद नंबर को लेकर चिंतित होना एक सामान्य प्रक्रिया तथा मानवीय स्वभाव है लेकिन हमें इस दौरान बहुत सावधानी बरतनी चाहिए तथा चिंता छोड़ किसी अन्य चीज में मन लगाना चाहिए. आगे कुछ उक्तियाँ दी गयी हैं जिनपर अमल कर आप इस चिंता से मुक्ति पा सकते हैं.
चीजों को बहुत गंभीरता से न लें
सबसे महत्वपूर्ण बात है परीक्षा में किए गए गलतियों से सीखना न कि उसके लिए पश्चाताप कर रोना या फिर चिंतित होना.इसलिए अगर आपने गलती की है, तो कोई बात नहीं लेकिन वैसी गलती पुनः भविष्य में नहीं करने का दृढ़ संकल्प लें.इसके अतिरिक्त हमेशा सकारात्मक सोंच रखें. आप यह सोचकर की जो बीत गयी वो बात गयी अब आगे की तैयारी करें. आप अपना पास्ट तो नहीं बदल सकते लेकिन फ्यूचर तो आपके हाथ में है. अतः हमेशा एनर्जेटिक रहकर अपना भविष्य बनाने की कोशिश करते रहें.
भविष्य की योजनाओं का खाका खींचें
इस दौरान आप अपने भविष्य में 5 से लेकर 10 वर्ष तक क्या कर सकते हैं या क्या करने की योजना है ?आदि का एक विस्तृत विवरण तैयार करें. यदि आप इतिहास में रूचि रखते हैं तो उससे सबंधित आप क्या काम कर सकते हैं ? इसी तरह साइंस या बिजनेस से जुड़े किस काम को करने में आपकी रूचि है ? इसे बेहतर तरीके से जानकर उस पर अमल करना शुरू कर दें.वैसे तो ये काम जीवन में कभी भी किया जा सकता है लेकिन इस दौरान इसका कुछ अलग ही महत्व होता.
अपरंपरागत विकल्पों का चयन करें
अगर कोई चीज या स्ट्रीम आपको बहुत अच्छा लगता है तो अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर उस क्षेत्र में अपना करियर बनाने की सोंचे. ज्यादातर छात्र पारंपरिक स्ट्रीम्स जैसे इंजीनियरिंग या मेडिकल आदि का ही चयन करते हैं. आप इससे आगे की सोंच रखते हुए इनसे कुछ अलग अ पारम्परिक लिक का चयन कर अपने करियर और जीवन में बदलाव महसूस करें.
किसी प्रोफेशनल की मदद लें
अगर करियर का चयन करने में उलझन आ रही है तो आप किसी प्रोफेशनल करिअर एक्सपर्ट की सहायता ले सकते हैं. वो आपकी योग्यता को देखते हुए एक निश्चित कोर्स तथा कॉलेज में एडमिशन लेने की सलाह देगा. इससे आपके साथ साथ आपके माता पिता को भी राहत मिलेगी. अपनी तुलना किसी अन्य स्टूडेंट्स से हरगिज नहीं करें
अपने किसी ब्रिलिएंट दोस्त या रिश्तेदार की तुलना अपने आप से कभी नहीं करें. हर किसी की अपनी विशेषताएं होती है. इस दुनिया में दो आदमी बिलकुल एक समान कभी नहीं हो सकते हैं. आप कभी भी अपने आप को एक भीड़ का हिस्सा न मानें. आपकी अपनी प्रतिभा है जिसके बल पर आप किसी अन्य क्षेत्र में उम्दा प्रदर्शन कर सकते हैं.
निष्कर्ष
वस्तुतः परीक्षा में आये नंबरों का जीवन की कठिनता तथा उसके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से कोई लेना देना नहीं होता और ना ही इनके बल पर जीवन की समस्याओं का समाधान संभव है. एकेडमिक रूप से आगे बढ़ने के लिए अच्छे नंबर जरुरी हैं लेकिन जीवन में वही सब कुछ नहीं है. इसलिए इस विषय पर चिंतन न करते हुए करियर में आगे की राह तलाशें
::/fulltext::नई दिल्ली। दिल्ली में मानसून के बाद और सर्दी के मौसम से पहले हर साल प्रदूषण बढऩे की सबसे बड़ी वजह का नासा ने पता लगाया है। अमेरिकी एजेंसी के वैज्ञानिकों ने अपनी नई स्टडी में कहा है कि पंजाब और हरियाणा में फसलों के अवशेष जलाए जाने का दिल्ली में प्रदूषण बढऩे से सीधा संबंध है। रिपोर्ट के मुताबिक फसलों के अवशेष जलाए जाने का सीधा असर दिल्ली पर पड़ता है क्योंकि पंजाब और हरियाणा की हवा यहां आती हैं। ऐसे में यदि इन दोनों राज्यों में फसलों के अवशेष जलाए जाते हैं तो पीएम 2.5 के स्तर पर में इजाफा हो जाता है।
फसलों के अवशेष जलाए जाने से दिल्ली पर कितना विपरीत असर पड़ता है, इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि आम दिनों में दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, जबकि नवंबर की शुरुआत में यह 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो जाता है।
इन्हीं दिनों में आमतौर पर किसान धान की पराली जलाते हैं। 2016 की सर्दियों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली थी, जबकि पराली जलाए जाने के चलते पीएम 2.5 का स्तर 550 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था। खासतौर पर नवंबर महीने में स्मॉग की समस्या बहुत बढ़ गई थी और 5 नवंबर को तो पीएम 2.5 का स्तर 700 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था। हालांकि स्टडी में यह भी कहा गया है कि पराली के अलावा 95 लाख स्थानीय वाहनों, इंडस्ट्रीज और कंस्ट्रक्शन भी एयर पलूशन के लिए जिम्मेदार हैं। इस स्टडी में सरकार को स्मॉग की समस्या से निपटने के लिए कुछ अहम सुझाव भी दिए गए हैं। स्टडी में एक अहम बात और कही गई है कि पराली पहले भी जलाई जाती थी, लेकिन उसका समय अक्टूबर महीने का होता था। बीते कुछ सालों में धीरे-धीरे यह टाइमिंग नवंबर तक आ गई, जब हवा धीमी होती है और सर्दियों का मौसम शुरू होता है। ऐसे में पराली जलने के कारण पैदा हुआ धुआं हवा में उड़ नहीं पाता।
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