Sunday, 13 July 2025

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ट्रेन के टिकट पर लिखे इन शब्दों का जानें मतलब, बुक करने में होगी आसानी

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ट्रेन के टिकट पर लिखें कई शब्द आपको समझ में नहीं आते है आज हम आपको उन्हीं की जानकारी दे रहे है.

ट्रेन का टिकट बुक करते समय हमें कुछ शॉर्टकट शब्द दिखाई देते हैं, लेकिन हम उनको जानें बिना ही क्लिक कर देते हैं. ऐसे में दिक्कत सिर्फ इतनी होती है कि आपको उनकी जानकारी नहीं होने के चलते आपकी टिकट बुक हो गई या नहीं, ये चिंता हमेशा सताती रहती है. इसी समस्या को दूर करने के लिए हम आज आपकी मदद कर रहे हैं. आइए जानते हैं इन शॉर्ट कट शब्दों का मतलब-

WL-आपकी सीट कंफर्म नहीं है. वेटिंग लिस्ट ज्यादा नहीं है तो टिकट कंफर्म हो जाता है. सीट नंबर जर्नी डेट को चार्ट तैयार होने से पहला मिलता है.

GNWL- जनरल वेटिंग लिस्ट, इसका मतलब है कि आपने जिस ट्रेन की टिकट ली है, वह ट्रेन वहीं स्टेशन या आसपास स्टेशन से बनकर खुलती है. इसमें टिकट कंफर्म होने के चांसेज ज्यादा होते हैं.

RLWL- रिमोट लोकेशन वेटिंग लिस्ट, दो बड़े स्टेशनों के बीच, जहां पर ज्यादा ट्रेनें नहीं आती है तो ऐसे में इस तरह का टिकट मिलता है. ऐसे टिकट कंफर्म होने के चांसेस ज्यादा होता है.

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ग्रेजुएशन के बाद, जॉब पाने के टिप्स

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जॉब पाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? जॉब के लिए एम्प्लॉयर को कैसे राजी किया जा सकता है? जॉब पाने में किस तरह की टिप्स और स्ट्रेटजीज एक फ्रेशर  की  मदद कर सकती हैं? इस तरह के सवाल जॉब सर्च शुरू करते ही एक फ्रेशर को परेशान करना शुरू कर देते हैं. हालांकि स्टूडेंट्स कॉलेज में पर्याप्त एकेडमिक नॉलेज अर्जित करते हैं लेकिन वह जॉब पाने के लिए पर्याप्त नहीं होता है. सफलता के लिए एकेडमिक नॉलेज के साथ साथ प्रैक्टिकल नॉलेज का भी होना ज़रूरी है. बिना प्रैक्टिकल नॉलेज के कॉर्पोरेट जगत में जॉब हासिल कर पाना लगभग असंभव है. इस लेख में हमने कुछ प्रैक्टिकल नॉलेज साझा किया है जो जॉब पाने में मदद कर सकते हैं. 

कॉलेज प्लेसमेंट पर नजर रखें

हर साल,एकेडमिक इंस्टीट्यूट्स कैंपस प्लेसमेंट की व्यवस्था करते हैं जिसमें कॉर्पोरेट कम्पनियां बड़ी संख्या में भाग लेती हैं. योग्य उम्मीदवारों का सेलेक्शन एग्जामिनेशन, जॉब इंटरव्यू व अन्य कैंडिडेट सेलेक्शन प्रोसेज के माध्यम से करते हैं. कॉलेज स्टूडेंट्स को हमेशा कॉलेज की प्लेसमेंट सेल की गतिविधियों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए. करियर के बारे में प्लेसमेंट सेल से सलाह लेनी चाहिए. प्लेसमेंट सेल जिसका काम ड्रीम करियर की पहचान करने में मदद करना है, आपको संबंधित इंडस्ट्री से जोड़ देगा जहां आपकी स्किल्सएबिलिटीज और स्ट्रेंथ की वास्तव में ज़रूरत है. इसके अलावाप्लेसमेंट सेल में मौजूद एक्सपर्ट्स के सुझाव निश्चित रूप से जॉब पाने में मदद कर सकते हैं.

प्रभावशाली रिज्यूमे तैयार करें

कैंडिडेट्स सेलेक्शन प्रोसेज में रिज्यूम की व्यापक भूमिका होती है. रिज्यूमे  कैंडिडेट्स की स्किल्सएबिलिटीज, हॉबीज, और वर्क हिस्ट्री को दर्शाता है जो सेलेक्शन प्रोसेज के अगले स्तर में कैंडिडेट को आमंत्रित करने के लिए एम्प्लायर को प्रेरित कर सकता है. इस तरह, रेज़्यूमे कैंडिडेट्स का प्रभावशाली इंप्रेशन बनाता है जो सेलेक्शन प्रोसेज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसलिए, यदि आप किसी जॉब के लिए आवेदन करने जा रहे हैं तो पहले एक प्रभावशाली रिज्यूमे तैयार करें.

लिंक्डइन पर प्रोफेशनल प्रोफाइल बनायें

डिजिटल युग मेंलिंक्डइन प्रोफाइल जॉब सीकर्स की कई तरीकों से मदद करता है. लिंक्डइन, जो एक सोशल नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म है और खासकरवर्किंग प्रोफेशनल्स के इस्तेमाल में है कई तरीकों से ऐसे एम्प्लॉयर्स को खोजने में मदद करता है जो अपनी कंपनी के लिए सही कैंडिडेट्स की तलाश कर रहे होते हैं. यह ऐसे एम्प्लॉयर और वर्किंग प्रोफेशनल्स से जुड़ने में मदद कर सकता है जो जॉब पाने में आपकी मदद कर सकते हैं. एक पूर्ण लिंक्डइन प्रोफाइल में कैंडिडेट की स्किल्सएबिलिटीजऔर वर्क-एक्सपीरियंस शामिल होता है जिससे एम्प्लॉयर को यह तय करने में सहायता मिलती है कि आप उसकी आर्गेनाईजेशन में किस पोजीशन के योग्य हैं.

कॉलेज सीनियर से जुड़े रहें

सीनियर्स की जूनियर स्टूडेंट्स के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वह कॉलेज में, क्लासेज मेंप्ले ग्राउंड मेंहॉस्टल में और यहां तक ​​कि प्रोफेशन में भी अपने जूनियर्स का मार्गदर्शन करते  हैं . इसलिए, सीनियर्स के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहिए और सोशल नेटवर्किंग साइट्स तथा अन्य माध्यमों से उनसे जुड़े रहना चाहिए. इससे जॉब तलाशने व हासिल करने में आपको बहुत मदद मिलेगी क्योंकि वे आपको ऐसे जॉब ऑफर्स के बारे में वह बातें बता सकते हैं जिसे आप नहीं जानते हैं.

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के साथ अच्छे संबंध बनाएं

एक्सपर्ट्स के सुझाव टारगेटेड इंडस्ट्री में जॉब पाने में मदद कर सकते हैं क्योंकि इनकी सहायता से जॉब के लिए आवश्यक स्किल्सएबिलिटीज और क्वालिफिकेशन के बारे में जानने में मदद मिलेगी. इसलिएइंडस्ट्री एक्सपर्ट से अच्छ रिलेशन बनायें और समय समय पर उनसे राय लें . सोशल नेटवर्किंग साइट्स, इवेंट्स, और टेलीफोनिक कन्वर्सेशन के माध्यम से आप उनसे अच्छा रिलेशन बना सकते हैं.

निष्कर्ष

एक फ्रेशर के रूप मेंजॉब के लिए कंपनियों से इंटरव्यू के लिए आमंत्रण हासिल कर पाना मुश्किल होता है. खासकर तब जब कैंडिडेट्स के पास कॉर्पोरेट कंपनी के कैंडिडेट सेलेक्शन प्रोसेज का कोई अनुभव न हो. जॉब सीकर्स, जो अपनी पढाई ख़त्म करने के बाद जॉब तलाश रहे होते हैं, को सेलेक्शन प्रोसेस में ढेरों प्रैक्टिकल और तकनीकी प्रश्नों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें परेशान कर देता है. इन सवालों के सही जवाब देने के लिए प्रैक्टिकल और एकेडमिक नॉलेज के अलवा वर्तमान सिनेरियो को समझने की आवश्यकता होती है.

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30 मुहूर्तों के नाम, कौन से मुहूर्त में क्या करें, जानिए

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मुहूर्त को लेकर मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि शास्त्र हैं। इसमें मुहूर्त के बारे में विस्तार से बताया गया है। दिन और रात को मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं। आओ जानते हैं मुहूर्त के बारे में कुछ खास।

कितने होते हैं मुहूर्त?
दिन और रात के 24 घंटे के समय के अनुसार देखा जाए तो प्रात: 6 बजे से लेकर दिन-रात मिलाकर प्रात: 5 बजकर 12 मिनट तक कुल 30 मुहूर्त होते हैं। एक मुहूर्त 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट के बराबर होता है। 24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं:- मुहूर्त सुबह 6 बजे से शुरू होता है।
 
मुहूर्तों के नाम : 1.रुद्र, 2.आहि, 3.मित्र, 4.पितॄ, 5.वसु, 6.वाराह, 7.विश्वेदेवा, 8.विधि, 9.सतमुखी, 10.पुरुहूत, 11.वाहिनी, 12.नक्तनकरा, 13.वरुण, 14.अर्यमा, 15.भग, 16.गिरीश, 17.अजपाद, 18.अहिर, 19.बुध्न्य, 20.पुष्य, 21.अश्विनी, 22.यम, 23.अग्नि, 24.विधातॄ, 25.कण्ड, 26.अदिति जीव/अमृत, 27.विष्णु, 28.युमिगद्युति, 29.ब्रह्म और 30.समुद्रम।
 
मुहूर्त दो तरह के होते हैं शुभ मुहूर्त और अशुभ मुहूर्त। शुभ को ग्राह्य समय और अशुभ को अग्राह्‍य समय कहते हैं। शुभ मुहूर्त किसी भी को शुरू करने का ऐसा शुभ समय होता है जिसमें तमाम ग्रह और नक्षत्र शुभ परिणाम देने वाले होते हैं। इस समय में कार्यारंभ करने से लक्ष्यों को हासिल करने में सफलता मिलती है और काम में लगने वाली अड़चने दूर होती हैं। शुभ मुहूर्त जानते समय वक्त तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, अयन, चौघड़ियां एवं लग्न आदि का भी ध्यान रखा जाता है।
 
शुभ मुहूर्त कौन से हैं?
शुभ मुहूर्त कुल 15 है। शुभ मुहूर्त में रुद्र, श्‍वेत, मित्र, सारभट, सावित्र, वैराज, विश्वावसु, अभिजित, रोहिण, बल, विजय, नैरऋत, वरुण सौम्य और भग ये 15 मुहूर्त हैं। अमृत/जीव मुहूर्त और ब्रह्म मुहूर्त बहुत श्रेष्ठ होते हैं
 
उक्त मुहूर्त में क्या करें?
*रुद्र में सभी प्रकार के मारणादि प्रयोग, भयंकर एवं क्रूर कार्य।
*श्‍वेत में नए वस्त्र धारण, बगीचा लगाना, कृषि कार्यो का आरंभ आदि या इसी तरह के अन्य कार्य करना चाहिए।
*मित्र में मित्रता, मेल-मिलाप और संधि आदि के कार्य करें।
*सारभट में शत्रुओं के लिए अभिचार कर्म करना।
*सावित्र में सभी प्रकार के यज्ञ, विवाह, चूडाकर्म, उपनयन, देवकार्य आदि संस्कार किए जाते हैं।
*वैराज में पराक्रम के कार्य, शस्त्रों का निर्माण, वस्त्रों का दान आदि किया जाता है।
*विश्वावसु द्विजाति के स्वाध्याय संबंधी सभी कार्य एवं अर्थ सिद्धि के कार्य किए जाते हैं।
*अभिजित में सभी वर्ण एवं जाति के मेल-मिलाप संबंधी कार्य, धन संग्रह, यात्रा आदि के कार्य किए जाते हैं। यह मुहूर्त सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाला भी माना गया है।
*रोहिणी में पेड़, पौधे, बेल, लताएं आदि लगाए जाते हैं। इससे वे निरोग रहकर उन पर सर्वदा ही सुन्दर फल एवं फूल लगे रहते हैं।
*बल में सेनाओं का संचालन और आक्रमण करने का कार्य किया जाता है जिसके चलते विजय अवश्य प्राप्त होती है।
*विजय में स्वस्ति वाचन तथा शांति पाठ आदि मंगलाचार कार्यो को संपन्न किया जाता है। किसी देश आदि पर चढ़ाई करने के लिए यह मुहूर्त श्रेष्ठ होता है।
 
*नैरऋत में शत्रुओं के राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुभ होता है। इस मुहूर्त में आक्रमण करके उनकी संपूर्ण सेना को नष्ट किया जा सकता है।
*वरुण में जल में उत्पन्न होने वाले धान्य, गेंहूं, जौ, धान, कमल आदि के बीज बोना शुभ होता है।
सौम्य में सभी तरह के मांगलिक या शुभ कार्य सफल होते हैं।
*भग में कन्याओं के सौभाग्य कार्य अर्थात पाणिग्रहण संस्कार को करना शुभ होता है।
 
इन दिनों के मुहूर्त वर्जित : रवि के दिन 14वां, सोमवार के दिन 12वां, मंगलवार के दिन 10वां, बुधवार के दिन 8वां, गुरु के दिन 6टा, शुक्रवार के दिन 4था और शनिवार के दिन दूसरा मुहूर्त कुलिक शुभ कार्यों में वर्जित हैं।
 
विशेष मुहूर्त योग : सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग। यदि सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा तथा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है। शुभ मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है- गुरु-पुष्य योग। यदि गुरुवार को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में हो तो इससे पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है। जब चतुर्दशी सोमवार को और पूर्णिमा या अमावस्या मंगलवार को हो तो सिद्धिदायक मुहूर्त होता है।
 
शुभ मुहूर्त में क्या करें?
1. गर्भाधान, पुंसवन, जातकर्म-नामकरण, मुंडन, विवाह आदि संस्कार।
2. भवन निर्माण में मकान-दुकान की नींव, द्वार, गृहप्रवेश, चूल्हा भट्टी आदि का शुभारंभ।
3. व्यापार, नौकरी आदि आय प्राप्ति के साधनों का शुभारंभ।
4. पवित्रता हेतु किए जाने वाले स्नान।
5. यात्रा और तीर्थ आदि जाने के लिए भी शुभ मुहूर्त को देखा जाता है।
6. स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना।
7.वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना आदि।
8. मुकद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना आदि।
9. किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना आदि।
 
इस समय में ना करें मांगलिक कार्य :
1. पंचकों में ये कार्य निषेध माने गए हैं- श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रप्रद तथा रेवती नक्षत्रों में पड़ने वाले पंचकों में दक्षिण की यात्रा, मकान निर्माण, मकान छत डालना, पलंग खरीदना-बनवाना, लकड़ी और घास का संग्रह करना, रस्सी कसना और अन्य मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। किसी का पंचकों में मरण होने से पंचकों की विधिपूर्वक शांति अवश्य करवानी चाहिए।
 
2. बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए है। ऐसे में शुभ कार्यों से बचना चाहिए। जैसे विवाह करना, मकान खरीदना, गृह प्रवेश आदि। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है।
 
3. रविवार, मंगलवार, संक्राति का दिन, वृद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, हस्त नक्षत्र में लिया गया ऋण कभी नहीं चुकाया जाता। अंत: उक्त दिन में ऋण का लेना-देना भी निषेध माना गया है।
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शरीर के भीतर के 28 प्राणों को जानकर रह जाएंगे हैरान

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हमारा की एक ईकाई है। जैसा ऊपर, वैसा नीचे। जैसा बाहर, वैसा भीतर। संपूर्ण ब्रह्मांड को समझने के बजाय यदि आप खुद के शरीर की संवरचना को समझ लेंगे तो ब्राह्मांड और उसके संचालित होने की प्रक्रिया को भी समझ जाएंगे। यहां प्रस्तुत है शरीर में स्थित प्राण की स्थिति के बारे में।

प्राण के निकल जाने से व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है। यदि द्वारा प्राण को शुद्ध और दीर्घ किया जा सके तो व्यक्ति की आयु भी दीर्घ हो जाती है। प्राण के विज्ञान को जरूर समझें। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो गहरी श्वास लेता है और जब मरता है तो पूर्णत: श्वास छोड़ देता है। प्राण जिस आयाम से आते हैं उसी आयाम में चले जाते हैं। हाथी, व्हेल और कछुए की आयु इसलिए अधिक है क्योंकि उनके श्वास प्रश्वास की गति धीमी और दीर्घ है।
 
वैदिक विज्ञान के अनुसार :
 
जिस तरह हमारे शरीर के बाहर कई तरह की वायु विचरण कर रही है उसी तरह हमारे शरीर में भी कई तरह की वायु विचरण कर रही है। वायु है तो ही प्राण है। अत: वायु को प्राण भी कहा जाता है। वैदिक ऋषि विज्ञान के अनुसार कुल 28 तरह के प्राण होते हैं। प्रत्येक में 7-7 प्राण होते हैं।
 
जिस तरह ब्राह्माण में कई लोकों की स्थिति है जैसे स्वर्ग लोक (सूर्य या आदित्य लोक), अं‍तरिक्ष लोक (चंद्र या वायु लोक), पृथिवि (अग्नि लोक) लोक आदि, उसी तरह शरीर में भी कई लोकों की स्थिति है।

शरीर में कंठ से दृदय तक सूर्य लोक, दृदय से नाभि तक अंतरिक्ष लोक, नाभि से गुदा तक पृथिवि लोक की स्थिति बताई गई है। अर्थात हमारे शरीर की स्थिति भी बाहरी लोकों की तरह है। यही हम पृथिति लोक की बात करें तो इस अग्नि लोक भी कहते हैं। नाभि से गुदा तक अग्नि ही जलती है। उसके उपर दृदय से नाभि तक वायु का अधिकार है और उससे भी उपर कंठ से हृदय तक सूर्य लोक की स्थिति है। कंठ से उपर ब्रह्म लोक है।
 
कंठ से गुदा तक शरीर के तीन हिस्से हैं। उक्त तीन हिस्सों या लोकों में निम्नानुसार 7,7 प्राण हैँ। कंठ से गुदा तक शरीर के तीन हिस्से हैं। उक्त तीन हिस्सों या लोकों में निम्नानुसार 7,7 प्राण है। ये तीन हिस्से हैं- कंठ से हृदय तक, हृदय से नाभि तक और नाभि से गुदा तक। पृथिवि लोक को बस्ती गुहा, वायुलोक को उदरगुहा व सूर्यलोक को उरोगुहा कहा है। इन तीनोँ लोको मेँ हुए 21 प्राण है।
 
पांव के पंजे से गुदा तक तथा कंठ तक शरीर प्रज्ञान आत्मा ही है, किंतु इस आत्मा को संचालन करने वाला एक और है- वह है विज्ञान आत्मा। इसको परमेष्ठी मंडल कहते हैं। कंठ से ऊपर विज्ञान आत्मा में भी 7 प्राण हैँ- नेत्र, कान, नाक छिद्र 2, 2, 2 तथा वाक (मुंह)। यह 7 प्राण विज्ञान आत्मा परमेष्ठी में हैँ।
 
अब परमेष्ठी से ऊपर मुख्य है स्वयंभू मंडल जिसमें चेतना रहती है यही चेतना, शरीर का संचालन कर रही है अग्नि और वायु सदैव सक्रिय रहते हैं। आप सो रहे है कितु शरीर मेँ अग्नि और वायु (श्वांस) निरंतर सक्रिय रहते हैं। चेतना, विज्ञान आत्मा ही शरीर आत्मा का संचालन करती है। परमेष्ठी में ठोस, जल और वायु है। यही तीनों, पवमान सोम और वायव्यात्मक जल हैं। इन्हीं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन कहते हैं जल और वायु की अवस्था 3 प्रकार की है अत:जीव भी तीन प्रकार अस्मिता, वायव्य और जलज होते हैं। चेतना को भी लोक कहा है। इसे ही ब्रह्मलोक, शिवलोक या स्वयंभूलोक कहते हैं। ब्रह्मांड भी ऐसा ही है।
 
 
विज्ञान के अनुसार :
'प्राण' का अर्थ योग अनुसार उस वायु से है जो हमारे शरीर को जीवित रखती है। शरीरांतर्गत इस वायु को ही कुछ लोग प्राण कहने से जीवात्मा मानते हैं। इस वायु का मुख्‍य स्थान हृदय में है। इस वायु के आवागमन को अच्छे से समझकर जो इसे साध लेता है वह लंबे काल तक जीवित रहने का रहस्य जान लेता है। क्योंकि वायु ही शरीर के भीतर के पदार्थ को अमृत या जहर में बदलने की क्षमता रखती है।
 
हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु मुख्यत: पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर और स्थित हो जाता हैं। लेकिन वह स्थिर और स्थित रहकर भी गतिशिल रहती है।
 
ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।
 
वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं। उक्त में से एक भी जगह दिक्कत है तो सभी जगहें उससे प्रभावित होती है और इसी से शरीर, मन तथा चेतना भी रोग और शोक से घिर जाते हैं। मन-मस्तिष्क, चरबी-मांस, आंत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायुतंत्र और खून आदि सभी प्राणायाम से शुद्ध और पुष्ट रहते हैं। इसके काबू में रहने से मन और शरीर काबू में रहता है।
 
1.व्यान:- व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।
2.समान:- समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।
3.अपान:- अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।
4.उदान:- उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।
5.प्राण:- प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।
 
प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। उक्त तीन तरह की क्रियाओं को ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।
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