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कर्नाटक 29 मई 2018। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद अब जेडीएस-कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं. सूबे के राज्यपाल वजुभाई वाला ने जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है. अब बुधवार को जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. पहले सोमवार को शपथ लेने की बात कही जा रही थी, लेकिन बाद में इसमें परिवर्तन कर दिया गया. लिहाजा अब शपथ ग्रहण समारोह सोमवार की बजाय बुधवार को होगा. जेडीएस के नेशनल सेक्रेटरी जनरल दानिश अली ने बताया कि राज्यपाल वजुभाई वाला ने एचडी कुमार स्वामी को 23 मई (बुधवार) को दोपहर 12:30 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया है.
इस शपथ समारोह में तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) प्रमुख के. चंद्रशेखर राव, तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य दिग्गज नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है. शनिवार को राज्यपाल से मुलाकात के बाद कुमारस्वामी ने कहा कि वो शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को आज रात या रविवार सुबह खुद आमंत्रित करेंगे. इसके अलावा वो सभी क्षेत्रीय नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर समारोह में शामिल होने के लिए फोन करेंगे.
::/fulltext::नई दिल्ली: कर्नाटक चुनाव से पहले भले ही इस बात के संकेत मिल रहे थे कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होगा, बावजूद इसके लोग इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति किसी न किसी तरह से बीजेपी को सत्ता में ले ही आएगी. हालांकि, ऐसा हुआ भी, मगर कांग्रेस के 'चाणक्य' के सामने अमित शाह की रणनीति धरी की धरी रह गई और बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार ढाई दिन में ही गिर गई. भले ही कर्नाटक का क्लाईमेक्स अब धीरे-धीरे अपने अवसान पर है, मगर इसके बावजूद लोगों की दिलचस्पी इस बात में बनी हुई है कि आखिर लगातार विजय पताका लहराने वाली पार्टी बीजेपी को कर्नाटक में किस शख्स ने पटखनी दी कि येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया. दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने अगर मिलकर बीजेपी को सत्ता में बने रहने से रोका है, तो उसका सारा क्रेडिट कांग्रेस के विधायक और कद्दावर नेता डी. के. शिवकुमार को जाता है. दरअसल, कांग्रेस के डी.के. शिवकुमार ने अपने दांव-पेंच और चाणक्य नीति से ऐसा बंदोबस्त किया कि बहुमत न होने के बाद भी आनन-फानन में सरकार बनाने वाली बीजेपी को सत्ता से हटना पड़ा और सीएम की कुर्सी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के लिए छोड़नी पड़ी. डी. के. शिवकुमार ही वह कांग्रेसी नेता हैं, जिन्होंने अपने सभी विधायकों को बीजेपी की सेंधमारी से बचाए रखा और एक भी विधायक को टूटने नहीं दिया. जब बीजेपी बहुमत के आंकड़े को छूने के लिए एक-एक विधायक की जुगत में थी, तब कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका में डी. के शिवकुमार ने पार्टी की नैया को संभाले रखा और बीच मझधार में डूबने से बचाया.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुए हैं और बिना जोड़-तोड़ किये सरकार बनाना मुश्किल है. नतीजे सामने आते ही कांग्रेस के दिग्गज नेता और आलाकमान जेडीएस के साथ गठबंधन को अमादा हो गये और 78 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 38 सीटों वाली पार्टी जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का ऑफर कर दिया. यानी कि कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. मगर कर्नाटक के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी को सबसे पहले सरकार बनाने का न्योता दिया गया, जिसके बाद 17 मई को येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली. अब मामला फंसा था बहुमत के आंकड़े को लेकर, जिसके लिए बीजेपी ने राज्यपाल से समय मांगा और राज्यपाल ने बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय दे दिया. अब कांग्रेस के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी, क्योंकि कांग्रेस के 7-8 विधायकों को तोड़ना बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. कांग्रेस के पास अपने विधायकों को बचाने के अलावा कोई चारा नहीं था. ऐसे वक्त में डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई और विधायकों को बीजेपी के संपर्क से दूर रखने और टूटने से बचाने का जिम्मा अपने कंधे पर लिया.
हालांकि, शिवकुमार की चाणक्य नीति पर कुछ समय के लिए फ्लोर टेस्ट के दिन यानी शनिवार को संशय पैदा हुआ, जब कांग्रेस के दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह लापता हो गये. मगर शिवकुमार लगातार उन लोगों के कॉन्टैक्ट में थे. यही वजह है कि शिवकुमार ने दोपहर के बाद कहा कि विधानसभा में प्रताप गौड़ा पहुंच चुके हैं और विधायक के रूप में शपथ लेंगे. साथ ही उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि वो कांग्रेस के लिए वोट करेंगे. शिवकुमार के चाणक्य नीति का सटिक अंदाजा उस वक्त लगा, जब विधानसभा में आनंद सिंह के साथ वह दिखे. यानी कि पूरे ढाई दिन तक के घटनाक्रम में शिवकुमार ने कांग्रेस के लिए बड़ी भूमिका निभाई. हैदराबाद के होटल से लेकर बेंगलुरु तक में वह लगातार कांग्रेस विधायकों के साथ थे और अपनी जिम्मेवारी का पूरी तरह से निर्वहन करते दिखे.
गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान जब अहमद पटेल की जीत पर संशय के बादल मंडरा रहे थे, तब भी कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के टूट से बचाने की जिम्मेवारी डी. के. शिवकुमार ने ही निभाई. बेंगलुरु के इग्लेटन गोल्फ रिसोर्ट में जब कांग्रेस के 44 विधायकों को रखा गया था, ताकि बीजेपी किसी तरह से उनसे संपर्क न कर पाए और विधायक टूटने से बच जाए, तब डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई थी और सभी विधायकों को अपनी देख-रेख में रखा था. हालांकि, इस दौरान शिवकुमार के ठिकानों पर रेड भी पड़े थे. डी. के. शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस के लिए बड़ा नाम है. सिद्धारमैया की सरकार में शिवकुमार ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं. वह कनकपुरा विधानसभा से विधायक हैं. डी. के. शिवकुमार पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं. 2015 में कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका डाल डीके शिवकुमार और उनके परिवार पर अवैध खनन में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. इतना ही नहीं, 2015 में ही शिवकुमार और उनके भाई डी के सुरेश पर 66 एकड़ जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगे हैं है. अमित शाह की रणनीति से कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने वाले डी. के. शिवकुमार ने साबित कर दिया कि वह भी अपनी पार्टी के लिए किसी चाणक्य से कम नहीं हैं.
बीएस येदियुरप्पा ने शनिवार को विधानसभा में शक्ति परीक्षण से ठीक पहले इस्तीफे का ऐलान करते हुए सबको चौका दिया. बहरहाल, येदियुरप्पा के इस कदम के बाद जनता दल (सेकुलर) और कांग्रेस ने गठबंधन सरकार पर मंथन शुरू कर दिया. जेडीएस नेता कुमारस्वामी बुधवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लने के 24 घंटे के अंदर ही सदन में बहुमत साबित करने की योजना बना रहे हैं. वहीं कांग्रेस अपने सभी विधायकों को अब भी बेंगलुरु के बाहर स्थित रिजॉर्ट में ही रखे हुई है.
कुमारस्वामी की शपथ पहले सोमवार को होनी थी, हालांकि उसी दिन राजीव गांधी की 27वीं पुण्यतिथि होने के चलते जेडीएस ने इसे बुधवार तक के लिए टाल दिया है. इससे पहले कुमारस्वामी ने शनिवार शाम राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया. अब वह सोमवार को दिल्ली रवाना होंगे, जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे. नए नवले जेडीएस-कांग्रेस के गठजोड़ ने 117 विधायकों के समर्थन का दावा किया है. गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा की क्षमता 224 सदस्यों की है, जिसमें से 222 सीटों पर इस बार चुनाव हुआ है. वहीं दो विधानसभाओं पर चुनाव होने अभी भी बाकी हैं. उधर कुमारस्वामी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की है. ऐसे में उन्होंने चन्नपटना सीट अपने पास रखते हुए, रामनगर सीट खाली छोड़ दी. दोनों पार्टियों के नेता सदन में शक्ति परीक्षण की रणनीति बनाने के लिए आज मिल रहे हैं. इस दौरान सत्ता साझा करने के बारे में बातचीत की जाएगी. कुमारस्वामी सीएम होंगे, डिप्टी सीएम कांग्रेस से हो सकता है और इस पद के लिए दलित उम्मीदवार का नाम चुना जा सकता है. एक हफ्ते के अंतराल में कुमारस्वामी कर्नाटक के दूसरे सीएम होंगे. गौरतलब है कि शनिवार को येदियुरप्पा की ढाई दिन की सरकार गिर गई थी, जब उन्होंने शक्ति परीक्षण से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया था.
वहीं बीजेपी की ओर से विधायकों को रिश्वत देने की बात सामने आने के बाद से ही कांग्रेस ने अपने विधायकों को बैंगलोर के बाहर एक रिजॉर्ट में रखा हुआ है. वहीं जेडीएस के विधायक भी बैंगलोर के ही एक अन्य होटल में हैं. वहीं दूसरी ओर अमित शाह ने खरीदफरोख्त के इन आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए दावा किया यह गठजोड़ एक साल ही चलेगा.