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हर कोई जन्माष्टमी के लिये खास तैयारी करने में जुटा है। इस पर्व का बहुत सारे हिंदुओं को इंतजार रहता है। इस पर्व में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान कई महिलाएं पूरे दिन उपवास रह कर रात में अपना व्रत खोलती हैं। हिंदू सभ्यता के अनुसार ज्यादातर त्योहारों में लोग व्रत रखते ही हैं। पूरे दिन व्रत रखने में शरीर को काफी महनत करनी पड़ जाती है और खासतौर पर तब जब आप ऑफिस में जॉब कर रहे हों तो।
कई लोगों को तो व्रत रखने के बाद पाचन और गैस्ट्रिक कि समस्या पैदा हो जाती है। इस दौरान शरीर में थकान होने लगती है और आलस आने लगता है। तो अगर आपको व्रत के बाद इन सब समस्याओं से निपटना है तो आपको कुछ हेल्थ टिप्स आजमाने की आवश्यकता है। अगर आप भी जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने कि सोंच रहे हैं तो नीचे दिये हुए हेल्थ टिप्स पढ़ना न भूलें।
व्रत रखने से एक दिन पहले हेल्दी फूड खाएं। इससे आपका पेट ठीक तरह से कार्य कर पाएगा। अगर आपने तेल वाला और भारी खाना खाया तो व्रत वाले दिन आपको परेशानी हो सकती है।
दिनभर खूब सारा पानी पीजिये। पानी पीने से शरीर पूरी तरह से तर रहता है और उसमें कार्य करने की क्षमता बनी रहती है।
अगर आपको व्रत के सयम फल खाने कि मनाही नहीं है तो आप इसे खाएं, जिससे कि आपके शरीर को अच्छी मात्रा में विटामिन और पौष्टिक तत्व मिल सके। पेट भरने वाला फल जैसे केला और दूध का सेवन करें।
जब आप दिन का खाना खाते हैं तब आप भूख से ज्यादा खाने लग जाते हैं। जिससे पेट खराब हो जाता है और आप उल्टा और ज्यादा वजन बढा लेते हैं।
व्रत तोड़ने के बाद लोग कचौड़ी, पकौड़ी और समोसा आदि खाने का शौक रखते हैं तो ऐसे में अच्छा होगा कि आप तला भुना न खा कर बेक किया या रोस्ट किया हुआ ही भोजन खाएं।
जब आप व्रत करती हैं तो आपके शरीर का शुगर लेवल गिर जाता है। इससे नींद आती है और आलस आता है। इसलिये आलस को भगाने के लिये दूध से बनी मिठाइयों का सेवन करें।
आलू के चिप्स न खाएं क्योंकि ये आसानी से हजम नहीं होते और इसे खा कर आलस आता है और पेट में गैस बनती है।
व्रत के दौरान सिरदर्द होना जाहिर सी बात होती है लेकिन उसे दूर करने के लिये गरम कॉफी का सेवन आपकी तबियत को और खराब कर सकती है। इसकी जगह पर आपको हर्बल टी या बिना नमक का जूस पीना चाहिये।
Janmashtami 2018: इस बार जन्माष्टमी दो दिन पड़ रही है. ब्राह्मणों के घरों और मंदिरों में 2 सितंबर को जन्माष्टमी मनाई जाएगी, जबकि वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वाले लोग 3 सितंबर को जन्माष्टमी का त्योहार मनाएंगे.
खास बातें
नई दिल्ली: हम सब के प्यारे नटखट नंदलाल, राधा के श्याम और भक्तों के भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के जन्मदिन की तैयारियां पूरे देश में चल रही हैं. इस बार श्रीकृष्ण की 5245वीं जयंती है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था. हालांकि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं. इस बार जन्माष्टमी दो दिन पड़ रही है क्योंकि यह त्योहार 2 सितंबर और सितंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा. वहीं, वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर को है. अब सवाल उठता है कि व्रत किस दिन रखें? जवाब है 2 सितंबर यानी कि पहले दिन वाली जन्माष्टमी (Janmashtami) मंदिरों और ब्राह्मणों के घर पर मनाई जाती है. 3 सितंबर यानी कि दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं.
जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है. यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्कूलों में श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है.
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस बार अष्टमी 2 सितंबर की रात 08:47 पर लगेगी और 3 तारीख की शाम 07:20 पर खत्म हो जाएगी.
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 सितंबर 2018 को रात 08 बजकर 47 मिनट.
अष्टमी तिथि समाप्त: 3 सितंबर 2018 को शाम 07 बजकर 20 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 2 सितंबर की रात 8 बजकर 48 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 3 सितंबर की रात 8 बजकर 5 मिनट.
निशीथ काल पूजन का समय: 2 सितंबर 2018 को रात 11 बजकर 57 मिनट से रात 12 बजकर 48 मिनट तक.
व्रत का पारण: 3 सितंबर की रात 8 बजकर 05 मिनट के बाद. वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर को है और व्रत का पारण अगले दिन यानी कि 4 सितंबर को सूर्योदय से पहले 6:13 पर होगा.
जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें?
जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं. कृष्ण की पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है.
जन्माष्टमी की पूजा विधि
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें 16 चरण शामिल हैं:
1. ध्यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्यान करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ तमअद्भुतं बालकम् अम्बुजेक्षणम्, चतुर्भुज शंख गदाद्युधायुदम्।
श्री वत्स लक्ष्मम् गल शोभि कौस्तुभं, पीताम्बरम् सान्द्र पयोद सौभंग।।
महार्ह वैढूर्य किरीटकुंडल त्विशा परिष्वक्त सहस्रकुंडलम्।
उद्धम कांचनगदा कङ्गणादिभिर् विरोचमानं वसुदेव ऐक्षत।।
ध्यायेत् चतुर्भुजं कृष्णं,शंख चक्र गदाधरम्।
पीताम्बरधरं देवं माला कौस्तुभभूषितम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्यानात् ध्यानम् समर्पयामि।।
2. आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर इस मंत्र से श्रीकृष्ण का आवाह्न करें:
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स-भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्।।
आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।।
ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।।
3. आसन- अब श्रीकृष्ण को आसन देते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्।
स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।।
4. पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के पांव धोने के लिए उन्हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्र्च पुरुष:।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।
अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन।
पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।।
5. अर्घ्य- अब श्रीकृष्ण को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें:
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः।।
अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।।
6. आचमन- अब श्रीकृष्ण को आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पुरुष:।
स जातो अत्यरिच्यत पश्र्चाद्भूमिनथो पुर:।।
नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे।।
गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।।
7. स्नान- अब भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्य पात्र में रखकर स्नान कराएं. सबसे पहले पानी से स्नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्खन, घी और शहद से स्नान कराएं. अंत में साफ पानी से एक बार और स्नान कराएं.
स्नान कराते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।।
8. वस्त्र- अब भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्त्र पहनाएं. फिर उन्हें पालने में रखें और इस मंत्र का उच्चारण करें:
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।।
9. यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें:
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।।
10. चंदन: अब श्रीकृष्ण को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें:
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्।
विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।।
11. गंध: इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्रीकृष्ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं:
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।।
12. दीपक: अब श्रीकृष्ण की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं:
साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया।
गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य तिमिरापहम्।।
भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते।।
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:।
उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि॥
13. नैवैद्य: अब श्रीकृष्ण को भागे लगाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें:
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।।
14. ताम्बूल: अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्ण को समर्पित करें. साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।।
15. दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्य के अनुसार श्रीकृष्ण को दक्षिणा या भेंट दें और इस मंत्र का उच्चारण करें:
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।।
16. आरती: आखिरी में घी के दीपक से श्रीकृष्ण की आरती करें:
आरती युगलकिशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरिख मेरो मन लोभा।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
गौरश्याम मुख निरखत रीझै, प्रभु को रुप नयन भर पीजै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
कंचन थार कपूर की बाती . हरी आए निर्मल भई छाती।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
फूलन की सेज फूलन की माला . रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहै,नटवर वेष देख मन मोहै।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
ओढे नील पीट पट सारी . कुंजबिहारी गिरिवर धारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी. आरती करत सकल ब्रजनारी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी . परमानन्द स्वामी अविचल जोरी।।
।।आरती युगलकिशोर…।।
रायपुर। जैनाचार्य विजय कीर्तिचंद्र ने कहा कि मनुष्य को कभी भी शरीर, संपत्ति और सत्ता पर गर्व नहीं करना चाहिए। ये सभी अनित्य हैं। किसी पर भी नित्यता का आरोप नहीं कर पाएंगे। वैभव भी शाश्वत नहीं है। आज राजा, तो कल रंक। शक्ति, सम्पत्ति और सत्ता के समय नम्र बन जाइए। ऐसा करने से हमरी संकल्प शक्ति बढ़ेगी। हम भगवान के शासन की साधना कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि वैराग्य प्राप्त करना आसान है, वैराग्य की लब्धि का उपयोग न करना कठिन है।
आचार्य ने उक्त विचार आज विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर प्रांगण की धर्मसभा में भगवान महावीर के समकालीन पट्टशिष्य़ धर्मदास रचित आगम ग्रंथ उपदेश माला पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में ऐसे असंख्य दृष्टांत हैं, जिसमें थोड़े से निमित्त पा कर आत्माएं वैराग्य को प्राप्त कर लेती हैं। हमारे जीवन में अनेक आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक दुखों के बावजूद हमरी दृष्टि वैरागी नहीं हो पाती है। हम अपने संबंधियों को श्मशान में फूंक आते हैं। श्मशान में क्षणिक वैराग्य उत्पन्न होता है। घर आकर ठंडे पानी से नहाने पर वैराग्य धुल जाता है।
आचार्य़श्री ने कहा कि आप करोड़ों ग्रंथ पढ़ लें, मन वैरागी नहीं होता है। सभी साधर्मियों को उपदेश माला ग्रंथ पढ़ना चाहिए। यदि यह भी संभव नहीं है तो मोक्ष मिलने वाले किसी एक श्लोक को कंठस्थ कर लें और हृदयस्थ कर लें। उसका मनन करें। स्वयं उसकी अनुुभूति करें। वह श्लोक आपकी आत्मा को जागृत कर देगा। आपके आत्म कल्याण के लिए एक ही संजीवनी औषधि सक्षम है। व्यर्थ में मेहनत मत करो। एक ही श्लोक का चिंतन करें आपके हृदय के द्वार खुल जाएंगे।
आचार्य़ ने कहा कि जीवन में अगर श्रीमंत बनेंगे तो पड़ोसी की ईष्या के पात्र बनेंगे। धर्मी बनेंगे तो परिवार शत्रु बन जाएगा। हमें जीवन में आगे बढ़ना है । चाहे रास्ते में पहाड़ आए या दीवार। सभी को तोड़ते हुए लक्ष्य प्राप्त करना है। हमें साधना करते हुए अपनी आत्मा के पापों को धो डालना है और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ना है। वैरागी भाव से, दृष्टा भाव से दुनिया को देखना है।