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हिंदू रीति-रिवाज में जन्म से लेकर मुत्यु तक 16 संस्कार होते हैं। जिसमें से दाह संस्कार को हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार कहा जाता है। अंतिम संस्कार के दौरान एक मृत शरीर को जलाकर इस दुनिया से विदा किया जाता है। अंतिम संस्कार के दौरान भी कई तरह की रस्मों की अदायगी की जाती है जैसे सिर मुंडवाना, मृत शरीर के चारों तरफ चक्कर लगाना और जलती चिता में से लाश की सिर को डंडे से फोड़ना।
कपाला मोक्षम की विधि
शास्त्रों के अनुसार एक मनुष्य के शरीर में 11 द्वार होते हैं। माना जाता है कि आत्मा या जिव बह्मरंध्र (मस्तिष्क के द्वार ) से शरीर में प्रवेश करती है। जिवा या आत्मा आपके कर्मों के आधार पर इन दरवाजों के माध्यम से शरीर से निकलती है। ब्रह्म रंध्र को शरीर में मौजूद 11 द्वार में से उच्च माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जो जिव या आत्मा सिर से निकलती है वह मोक्ष प्राप्त करके जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। इस विधि को 'कपाला मोक्षम' भी कहा जाता है। हालांकि ये विधि गुरु के मार्गदर्शन के बिना हासिल करना एक कठिन काम है। इसलिए मृतक के रिश्तेदारों मृत शरीर का सिर या तो कपाली पर डंडे से मारते हैं।
क्यों तीन बार मारा जाता है डंडा
ये एक तरह का रस्म है, एक बार जब चिता जल जाती है तो तब कर्ता ( मुखाग्नि देने वाला ) बांस के डंडे से मृत व्यक्ति की खोपड़ी पर 3 बार मारता है। क्योंकि एक बार में वो आसानी से नहीं टूटती है इसलिए 3 बार मारते हैं। जब वो खोपड़ी या कपाली को डंडे से मारकर तोड़ते है तो चिता की गर्मी की वजह से खोपड़ी जल्दी टूट जाती है।
आत्मा का दुरपयोग होने से बचाने के लिए
शास्त्रों में लिखा है कि शरीर मरता है आत्मा कभी नहीं मरती। किसी व्यक्ति के मरने के बाद आत्मा तुरंत किसी अन्य गर्भ में प्रवेश कर लेती है। कहते है कि जब कोई आत्मा शरीर को छोड़ती है तो वो पूरी तरह धरती को छोड़ नहीं पाती है। कुछ दिन वो अपने प्रियजनों के पास रहती है जब तक कि स्वर्ग में अच्छी तरह से बस नहीं जाता है।
::/fulltext::हमारे भारत देश में हर महीने कोई न कोई व्रत या त्योहार मनाया जाता है चाहे वो बड़ा हो या छोटा, लोग पूरे उत्साह से इन्हें मनाते हैं। जिस तरह इस देश में अलग अलग धर्म और जाति के लोग रहते हैं ठीक उसी प्रकार उनके पर्व भी अलग अलग होते हैं। इन्हीं त्योहारों और व्रतों में से एक है तीज। चूंकि यह तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला व्रत है इसलिए इसे तीज कहा जाता है।
कजरी या कजली तीज
भादो के कृष्ण पक्ष की तीज को कजरी तीज मनाई जाती है। इसे कजली, सातुड़ी और भादों तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को भी सुहागन औरतें अखंड सौभाग्य की कामना करने के लिए रखती हैं। इसके अलावा कुंवारी कन्याएं भी अपना मनपसंद वर पाने की इच्छा के साथ इस दिन व्रत और पूजा करती हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार मध्य भारत के राज्य में कजली नाम का एक वन था। कहते हैं वहां के लोग कजली के नाम पर कई सारे गीत गाते थे। एक दिन वहां के राजा की मृत्यु हो गयी जिसके बाद उनकी रानी भी सती हो गयीं। वहां के लोग इस बात से बड़े ही दुखी रहने लगे। तब से वे कजली के गीत पति और पत्नी के प्रेम से जोड़कर गाने लगें।
कजरी तीज पर सुहागन औरतें कजरी खेलने अपने मायके जाती हैं। रात भर महिलाएं जागती हैं, साथ ही कजरी खेलती और गाती हैं। औरतें खूब झूमती नाचती हैं। इसके अलावा इस अवसर पर घर में झूला डाला जाता है जिस पर बैठकर महिलाएं अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करती हैं। गेहूं, सत्तू, चावल, जौ और चना यह सब घी में मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाए जाते हैं। यही पकवान खाकर औरतें अपना व्रत खोलती हैं। खीर, पूरी, हलवा आदि इस दिन बनने वाले मुख्य पकवानो में से एक हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार में लोग नाव पर बैठकर कजरी गाते हैं। वहीं राजस्थान में इस दिन पारंपरिक नाच गाना होता है। साथ ही ऊंट और हाथी की भी सवारी की जाती है।
आपको बता दें कि इस बार कजरी तीज 29 अगस्त, बुधवार को है।
हरियाली तीज
जैसा कि हमने आपको बताया तीज का त्योहार औरतों का ही होता है। हरियाली तीज सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन महादेव और माता गौरी की पूजा की जाती है। महिलाएं बिना अन्न और जल के इस कठिन व्रत को रखती हैं और भगवान से अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
हरियाली तीज पर जगह जगह पेड़ों पर झूले लगते हैं जिस पर बैठकर महिलाएं झूमती गाती हैं। यह भी इस त्योहार को मनाने का एक तरीका है। वैसे तो इस तीज को भारत के कई हिस्सों में मनाते हैं लेकिन विशेष रूप से यह राजस्थान में मनाया जाता है।
हरियाली तीज को सुहाग से इसलिए जोड़ा जाता है क्योंकि सबसे पहले माता पार्वती ने यह व्रत और पूजा की थी। उन्होंने भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी, तब जाकर महादेव ने उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था।
आपको बता दें इस बार हरियाली तीज 13 अगस्त, सोमवार को है।
हरतालिका तीज
कहते हैं इन तीनों तीज में से हरतालिका तीज सबसे महत्वपूर्ण है। ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में इस तीज का बड़ा ही महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि शिव जी ने माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा सुनाई थी।
पर्वत राज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती का विवाह विष्णु जी से करवाना चाहते थे लेकिन देवी पार्वती तो बचपन से ही महादेव को अपना पति मान चुकी थी इसलिए उन्होंने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक नदी के तट पर गुफा में जाकर शिव जी की आराधना शुरू कर दी। कहा जाता है माता ने रेत से भगवान की प्रतिमा बनाई और अन्न, जल त्याग कर कठिन उपवास रखा। देवी ने रात भर जाग कर महादेव के लिए गीत गाए यह सब देख कर भोलेनाथ का आसन डोल गया और भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में शिव जी ने माता को दर्शन दिए। इसके बाद देवी ने पूजा की सभी सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपना व्रत खोला था।
इसलिए हरतालिका तीज पर महिलाएं सुंदर मंडप सजाकर बालू से शिव और पार्वती की प्रतिमा बनाती हैं और उनका गठबंधन करती हैं।
नेपाल में भी होती है हरतालिका तीज की धूम
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि हरतालिका तीज नेपाल में भी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस पवित्र अवसर पर व्रतधारी महिलाएं और युवतियां भक्ति गीत गाती हैं और नाचती हैं। इसके अलावा यहां पर भी औरतें शिव और गौरी की पूजा करती हैं साथ ही निर्जल उपवास भी रखती हैं।
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