Tuesday, 16 September 2025

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 पौराणिक गुप्तेशवर मंदिर : भगवान राम वनवास के दौरान बारिश का चार्तुमास यहीं व्यतीत किए थे.....

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जगदलपुर । बस्तर जिला के मुख्यालय जगदलपुर से 46 और राजधानी रायपुर से 346 किमी दूर छग और ओड़िशा राज्य की सीमा पर गुप्तेश्वर नामक स्थान में पहाड़ी गुफा में पौराणिक गुप्तेशवर मंदिर है। इसके दर्शन व उपासना से मनौती पूर्ण होती हैं। लोक मान्यता है कि इस भूगर्भीय विशाल शिवलिंग की खोज भगवान राम ने की थी। इसके दर्शन व उपासना से मनौती पूर्ण होती हैं। महाशिवरात्रि पर लाखों श्रध्दालु सैकड़ों किमी दूर से यहां पहुंचते हैं। यहां कारी गाय गुफा के ऊपर से शिवलिंग पर बूंद-बूंद टपक रहा जल अगर भक्त की हथेली में टपक जाए तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पौराणिक कथा है कि भगवान राम वनवास के दौरान बारिश का चार्तुमास यहीं व्यतीत किए थे। शबरी नदी के किनारे एक पहाड़ी पर गुफा में हजारों साल पुराना व प्राकृत करीब पांच फीट ऊॅंचा शिवलिंग है। हजारों भक्त इनकी एक झलक पाने शबरी नदी के खतरनाक चट्टानों से होकर पहुंचते हैं। यह सब वन विभाग द्वारा चट्टानों में बांस की चटाई बिछाने के बाद ही संभव हो पाता है। नदी का प्राकृतिक सौन्दर्य इस शिवधाम के प्रति लोगों को और आकृष्ट करता है।

खुद भगवान राम ने खोजा था यह भूगर्भीय विशाल शिवलिंग

आस्था का केंद्र

दण्डकारण्य में स्थित होने के कारण पूरे बस्तर सहित पड़ोसी राज्य ओड़िशा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते है। मंदिर समिति और ग्रामीणों द्वारा सावन की तैयारी की गई है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आकर भोलेनाथ का अभिषेक करते है। वहीं प्रति सोमवार यहां ज्यादा भीड़ रहती है।

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शाही सवारी की यह यशस्वी परंपरा का इतिहास क्या है और कब से यह परंपरागत आकर्षक रूप में निकाली जाने लगी है।....

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उज्जैन एक तीर्थ नगरी है। यहां पर्व, तीज, त्योहार, व्रत सभी आयोजन बड़ी आस्था, परंपरा और विधिपूर्वक मनाए जाते हैं। श्रावण मास में तीज-त्योहार की बहार आ जाती है। श्रावण सोमवार सवारी, नागपंचमी, रक्षाबंधन के अवसरों पर इस धार्मिक नगरी में गांव-गांव से आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस नगरी में सभी धर्म-संप्रदाय के लोग सामाजिक समरसता और सौहार्द्र के साथ रहते हैं।
 
12 ज्योतिर्लिंग में भगवान महाकालेश्वर का महत्व तिल भर ज्यादा है। वे इस नगरी के राजाधिराज महाराज माने गए हैं। यहां की शाही सवारी पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। इस शहर में जो भी कलेक्टर बन कर आते हैं उनके लिए बड़ी चुनौतियां सामने खड़ी होती हैं। उनकी महती जिम्मेदारी होती है कि जन-भावनाओं को ध्यान में रखते हुए शहर के विकास कार्यों को गति दें और सुरक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाएं। भगवान महाकाल की शरण में आए बिना इस नगरी का पत्ता भी नहीं हिल सकता यह बात यहां पदस्थ हर कलेक्टर जानते हैं। हिम्मत और साहस के साथ शहर को संभालते हुए धार्मिक आस्था को भी बनाए रखना बड़ी जटिल चुनौती होती है।
 
पिछले दिनों जब वरिष्ठ अधिकारी एमएन बुच नहीं रहे तो स्वाभाविक रूप से हर उस शख्स को उनका दबंग व्यक्तित्व याद आया जिन्होंने उन्हें उज्जैन में कलेक्टर के रूप में काम करते देखा था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि स्व. श्री बुच के खाते में एक अनूठा मील का पत्थर दर्ज है। दरअसल आज जो राजा महाकालेश्वर की सवारी का भव्य स्वरूप है उसका संपूर्ण श्रेय श्री बुच साहब को जाता है। यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि शाही सवारी की यह यशस्वी परंपरा का इतिहास क्या है और कब से यह परंपरागत आकर्षक रूप में निकाली जाने लगी है।

 
स्वयं बुच साहब ने अपने करीबी मित्रों के बीच चर्चा के दौरान बड़े ही विनम्र भाव से बताया था कि कैसे यह सवारी इस स्वरूप तक पहुंची। उन्होंने बताया था कि पहले श्रावण मास के आरंभ में सवारी नहीं निकलती थी, सिर्फ सिंधिया वंशजों के सौजन्य से महाराष्ट्रीयन पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थी। विशेषकर अमावस्या के बाद ही यह निकलती थी।
 
एक बार उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व.. पं. सूर्यनारायण व्यास के निवास पर कुछ विद्वजन के साथ कलेक्टर बुच भी बैठे थे। उनमें महाकाल में वर्तमान पुजारी सुरेन्द्र पुजारी के पिता भी शामिल थे। आपसी विमर्श में परस्पर सहमति से तय हुआ कि क्यों न इस बार श्रावण के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए और समस्त जिम्मेदारी सहर्ष उठाई कलेक्टर बुच ने। सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिेंधिया व शहर के गणमान्य नागरिक प्रमु्ख थे। सभी पैदल सवारी में शामिल हुए और शहर की जनता ने रोमांचित होकर घर-घर से पुष्प वर्षा की। इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आगाज हुआ।
 
सवारी का पूजन-स्वागत-अभिनंदन शहर के बीचोंबीच स्थित गोपाल मंदिर में सिंधिया परिवार की और से किया गया। यह विनम्र तेजस्वी परंपरा सिंधिया परिवार की तरफ से आज भी जारी है। पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे। बाद में राजमाता नियमित रूप से आती रहीं। आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधित्व सम्मिलित रहता है। महाकालेश्वर मंदिर में एक अखंड दीप भी आज भी उन्हीं के सौजन्य से प्रज्ज्वलित है।
 
श्री बुच ने अपने यशस्वी कार्यकाल में कई साहसिक और नवोन्मेषी निर्णय लिए। महाविद्यालयों में होने वाले चुनाव हो या छात्रों की हुड़दंगबाजी, हड़ताल हो या नारेबाजी कलेक्टर बुच बड़ी ही दबंगता से शहर को नियंत्रित रखते थे। उनके बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि उनसे बचने के लिए एक बड़े सरदार छात्र नेता ने अपने केश कटवा लिए थे और एक छात्र नेता को तो उन्होंने ट्रेन की जंजीर खींच कर उतारा था। खैर, उनके दबंग और कुशल प्रशासन के ऐसे कई किस्से हैं। फिलहाल तो जिन्हें पता है वे उज्जैनवासी उनके शाही सवारी के ऐतिहासिक निर्णय के लिए उनके सदैव ऋणी हैं और रहेंगे। बुच साहब कहते थे कि किसी शहर कलेक्टर बनना बड़ी बात है लेकिन किसी धार्मिक नगरी का कलेक्टर बनना सौभाग्य की बात है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए ईश्वरीय शक्ति जरूरी है।
 
महाकालेश्वर की विशेष सवारी के पूर्व उनका स्मरण हो जाना स्वाभाविक है।
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श्रावण का प्रथम सोमवार : कैसे करें व्रत, कैसे करें पूजा, क्या मिलेगा फल.....

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श्रावण से होते हैं सारे कष्ट दूर
 
पुराणों और शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं। सावन सोमवार, सोलह सोमवार और सोम प्रदोष। सोमवार व्रत की विधि सभी व्रतों में समान होती है। इस व्रत को श्रावण माह में आरंभ करना शुभ माना जाता है। श्रावण सोमवार के व्रत में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। श्रावण सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।
 
कैसे करें व्रतधारी श्रावण सोमवार का व्रत
 
* श्रावण सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।

* पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।

* गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें।

* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
 
* पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें -
 
- 'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये'
 
* इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें -
 
- 'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥
 
* ध्यान के पश्चात 'ॐ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा ' ॐ शिवाय नमः ' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें।
 
* पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें।
 
* तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें।
 
* इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
 
श्रावण सोमवार व्रत का फल
 
* सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकंपा बनी रहती है।
* जीवन धन-धान्य से भर जाता है।

* सभी अनिष्टों का हरण कर भगवान शिव अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।
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सूर्य देव को जल अर्पित करते समय कई वास्‍तु दोषों का भी ध्‍यान रखना जरुरी होता है।.....


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हिंदू परंपराओं में सूर्य को जल देने के कई फायदे बताए गए हैं। लेकिन ये होते तभी हैं, जब ये अर्घ्य पूरी विध‍ि से दिया जाए। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय कई वास्‍तु दोषों का भी ध्‍यान रखना जरुरी होता है। क्‍योंकि अगर थोड़ी भी चूक हो गई तो इसका फल जल चढ़ाने वाले जातक नहीं मिलता है, आइए जानते है कि सूर्य को जल अर्पित करते समय किन बातों का ध्‍यान रखना च‍ाहिए और क्‍यूं?

 सूर्य कृपा के लिए चढ़ाएं जल
 
 सूर्य कृपा के लिए चढ़ाएं जल

किसी भी व्‍यक्‍त‍ि की कुंडली में मौजूद सूर्य ग्रह को पिता या ज्येष्ठ का दर्जा दिया जाता है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति सही ना हो या उनका ताप अधिक हो तो उसे सूर्य को जल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।

सुबह जल्‍दी चढ़ाएं जल..

सूर्य देव को जल चढ़ाने का सबसे पहला नियम यह है कि उन्हें प्रात: 8 बजे से पूर्व ही अर्घ्य दे देना चाहिए। नियमित क्रियाओं से मुक्त होकर और स्नान करने के बाद ही ऐसा किया जाना चाहिए।

तांबे के पात्र का

सूर्य को जल देने के लिए शीशे, प्लास्टिक, चांदी... आदि किसी भी धातु के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सूर्य को चल देते समय केवल तांबे के पात्र का ही प्रयोग करें और नियमित उपयोग में लेने वाले तांबे के बर्तन का उपयोग न करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करने के लिए अलग से ही तांबे की धातु वाला पात्र रखें।

 अन्य सामग्री न मिलाएं

सूर्य को जल चढ़ाने से अन्य ग्रह भी मजबूत होते हैं। कुछ लोग सूर्य को अर्घ्य देते समय जल में गुड़ या चावल भी मिला लेते अहिं। ये अर्थहीन है, इससे प्रभाव कम होने लगता है।

पूर्व दिशा की ओर मुख

सूर्य को जल देते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए। अगर कभी पूर्व दिशा की ओर सूर्य नजर ना आएं तब ऐसी स्थिति में उसी दिशा की ओर मुख करके ही जल अर्घ्य दे दें।

दांये हाथ से ही चढ़ाए

सूर्य देव को जल अर्पित करते समय दायें हाथ को आगे कर के जल चढ़ाएं। बायें हाथ से जल अर्पित करने से पुण्‍य नहीं मिलता है।

तीन परिक्रमा जरुर

अर्घ्य देते समय हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य देव को जल अर्पित करने से नवग्रह की भी कृपा रहती है। इसके बाद तीन परिक्रमा करें।

 पुष्प और अक्षत

सूर्य को जल देते समय आप उसमें पुष्प और अक्षत (चावल) मिला सकते हैं। साथ ही साथ अगर आप सूर्य मंत्र का जाप भी करते रहेंगे तो आपको विशेष लाभ प्राप्त होगा।

सीधे सूर्य को न देखे

जल चढ़ाते वक्‍त सूर्य को सीधे ना देंख कर बल्‍कि लोटे से जो जल बह रहा हो, उसकी धार में ही सूर्य के दर्शन करें।

लाल वस्त्र

लाल वस्त्र पहनकर सूर्य को जल देना ज्यादा प्रभावी माना गया है, जल अर्पित करने के बाद धूप, अगबत्ती से पूजा भी करनी चाहिए।

 इस मंत्र का करें उच्‍चारण

मनोवांछित फल पाने के लिए प्रतिदिन इस मंत्र का उच्चारण करें- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

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