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जगदलपुर । बस्तर जिला के मुख्यालय जगदलपुर से 46 और राजधानी रायपुर से 346 किमी दूर छग और ओड़िशा राज्य की सीमा पर गुप्तेश्वर नामक स्थान में पहाड़ी गुफा में पौराणिक गुप्तेशवर मंदिर है। इसके दर्शन व उपासना से मनौती पूर्ण होती हैं। लोक मान्यता है कि इस भूगर्भीय विशाल शिवलिंग की खोज भगवान राम ने की थी। इसके दर्शन व उपासना से मनौती पूर्ण होती हैं। महाशिवरात्रि पर लाखों श्रध्दालु सैकड़ों किमी दूर से यहां पहुंचते हैं। यहां कारी गाय गुफा के ऊपर से शिवलिंग पर बूंद-बूंद टपक रहा जल अगर भक्त की हथेली में टपक जाए तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पौराणिक कथा है कि भगवान राम वनवास के दौरान बारिश का चार्तुमास यहीं व्यतीत किए थे। शबरी नदी के किनारे एक पहाड़ी पर गुफा में हजारों साल पुराना व प्राकृत करीब पांच फीट ऊॅंचा शिवलिंग है। हजारों भक्त इनकी एक झलक पाने शबरी नदी के खतरनाक चट्टानों से होकर पहुंचते हैं। यह सब वन विभाग द्वारा चट्टानों में बांस की चटाई बिछाने के बाद ही संभव हो पाता है। नदी का प्राकृतिक सौन्दर्य इस शिवधाम के प्रति लोगों को और आकृष्ट करता है।
आस्था का केंद्र
दण्डकारण्य में स्थित होने के कारण पूरे बस्तर सहित पड़ोसी राज्य ओड़िशा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते है। मंदिर समिति और ग्रामीणों द्वारा सावन की तैयारी की गई है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आकर भोलेनाथ का अभिषेक करते है। वहीं प्रति सोमवार यहां ज्यादा भीड़ रहती है।
::/fulltext::हिंदू परंपराओं में सूर्य को जल देने के कई फायदे बताए गए हैं। लेकिन ये होते तभी हैं, जब ये अर्घ्य पूरी विधि से दिया जाए। सूर्य देव को जल अर्पित करते समय कई वास्तु दोषों का भी ध्यान रखना जरुरी होता है। क्योंकि अगर थोड़ी भी चूक हो गई तो इसका फल जल चढ़ाने वाले जातक नहीं मिलता है, आइए जानते है कि सूर्य को जल अर्पित करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और क्यूं?
किसी भी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद सूर्य ग्रह को पिता या ज्येष्ठ का दर्जा दिया जाता है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति सही ना हो या उनका ताप अधिक हो तो उसे सूर्य को जल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।
सूर्य देव को जल चढ़ाने का सबसे पहला नियम यह है कि उन्हें प्रात: 8 बजे से पूर्व ही अर्घ्य दे देना चाहिए। नियमित क्रियाओं से मुक्त होकर और स्नान करने के बाद ही ऐसा किया जाना चाहिए।
सूर्य को जल देने के लिए शीशे, प्लास्टिक, चांदी... आदि किसी भी धातु के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सूर्य को चल देते समय केवल तांबे के पात्र का ही प्रयोग करें और नियमित उपयोग में लेने वाले तांबे के बर्तन का उपयोग न करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करने के लिए अलग से ही तांबे की धातु वाला पात्र रखें।
सूर्य को जल चढ़ाने से अन्य ग्रह भी मजबूत होते हैं। कुछ लोग सूर्य को अर्घ्य देते समय जल में गुड़ या चावल भी मिला लेते अहिं। ये अर्थहीन है, इससे प्रभाव कम होने लगता है।
सूर्य को जल देते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए। अगर कभी पूर्व दिशा की ओर सूर्य नजर ना आएं तब ऐसी स्थिति में उसी दिशा की ओर मुख करके ही जल अर्घ्य दे दें।
सूर्य देव को जल अर्पित करते समय दायें हाथ को आगे कर के जल चढ़ाएं। बायें हाथ से जल अर्पित करने से पुण्य नहीं मिलता है।
अर्घ्य देते समय हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य देव को जल अर्पित करने से नवग्रह की भी कृपा रहती है। इसके बाद तीन परिक्रमा करें।
सूर्य को जल देते समय आप उसमें पुष्प और अक्षत (चावल) मिला सकते हैं। साथ ही साथ अगर आप सूर्य मंत्र का जाप भी करते रहेंगे तो आपको विशेष लाभ प्राप्त होगा।
जल चढ़ाते वक्त सूर्य को सीधे ना देंख कर बल्कि लोटे से जो जल बह रहा हो, उसकी धार में ही सूर्य के दर्शन करें।
लाल वस्त्र पहनकर सूर्य को जल देना ज्यादा प्रभावी माना गया है, जल अर्पित करने के बाद धूप, अगबत्ती से पूजा भी करनी चाहिए।
मनोवांछित फल पाने के लिए प्रतिदिन इस मंत्र का उच्चारण करें- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।