Tuesday, 16 September 2025

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हरियाली तीज 13 अगस्त, सोमवार को है, कुंवारी कन्याएं यदि इस व्रत को रखती और पूजा करती हैं तो उनके विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं......




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पापोंं से मुक्ति दिलाता है कामिका एकादशी, सावन के 11वें दिन आता है ये व्रत. 

सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत सबसे पहले पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती ने रखा था जिन्हे स्वयं महादेव ने इस पवित्र अवसर पर पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था।

हिंदू धर्म में इस त्योहार का बड़ा ही महत्व है। ख़ास तौर पर उत्तर भारत में यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सुहागन औरतें पूरे सोलह श्रृंगार करती हैं और हाथों में मेहंदी लगाती हैं। साथ ही निर्जल व्रत भी रखती हैं।
Hariyali Teej 2018

यह व्रत बेहद कठिन होता है क्योंकि महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहती हैं और दूसरे दिन सुबह स्नान करने के पश्चात पूजा पाठ करके ही अपना व्रत खोलती हैं। हरियाली तीज को श्रावणी तीज भी कहा जाता है।

आपको बता दें इस बार हरियाली तीज 13 अगस्त, सोमवार को है।

हरियाली तीज पर झूला झूलने की भी एक ख़ास परम्परा है। इस दिन जगह जगह पेड़ों पर झूले दिखायी पड़ेंगे जिस पर बैठकर महिलाएं खूब झूमती और गाती हैं। इसके अलावा कई स्थानों पर मेले भी लगते हैं और माता पार्वती की सवारी भी निकाली जाती है।

आइए हरियाली तीज के इस शुभ अवसर पर जानते हैं इससे जुड़ी कुछ और बातें।

माता पार्वती ने किया था शिव जी के लिए कठोर तप

कहते हैं शिव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। ऐसा भी माना जाता है कि माता ने कुल 108 जन्म लिए थे तब जाकर भोलेनाथ ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। कहा जाता है कि देवी के 108वे जन्म में महादेव ने उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे और अपनी पत्नी बनाने का वरदान भी दिया था। वह दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया का दिन था तब से इसे हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है और सुहागन औरतें अपने सुहाग की रक्षा के लिए यह कठिन व्रत रखती हैं।

कुंवारी कन्याएं यदि इस व्रत को रखती और पूजा करती हैं तो उनके विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।

हरियाली तीज व्रत और पूजन विधि

इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। महिलाओं के लिए श्रृंगार का सारा सामान उनके मायके से आता है। हरियाली तीज पर सभी औरतें निर्जला व्रत रखती हैं। इस पूजा में माता पार्वती को चढ़ावे के रूप में श्रृंगार का सभी सामान चढ़ाया जाता है जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, आलता आदि।

व्रत के साथ साथ हरियाली तीज की कथा भी सुनी जाती है। इसके बाद महिलाएं पूरी रात जागरण कर नाचती गाती हैं फिर अगले दिन सुबह नहा धोकर पुनः पूजा पाठ करके ही अपना व्रत खोलती हैं।

कहते हैं जो भी स्त्री सच्चे मन से इस दिन व्रत और पूजन करती हैं उसे भोलेनाथ और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे उसका वैवाहिक जीवन हमेशा सुखी रहता है। साथ ही अन्य कई भौतिक सुखों की भी प्राप्ति होती है।

हरियाली तीज पर वरुण देव की भी पूजा की जाती है।

राजस्थान में है सिंजारा की परंपरा

जैसा कि हमने आपको बताया हरियाली तीज पर श्रृंगार का सारा सामान औरतों के मायके से आता है लेकिन राजस्थान में इसे लेकर एक ख़ास परंपरा है। जिन कन्याओं की सगाई हो चुकी होती है उन्हें अपने होने वाले सास ससुर से इस दिन भेंट मिलती है जिसे सिंजारा (श्रृंगार) कहते हैं। इसमें श्रृंगार का सारा सामान होता है जैसे लाख की चूड़ियां, कपड़े (लेहरिया), विशेष मिष्ठान घेवर, मेहंदी आदि।

 शुभ मुहुर्त

तृतीया तिथि आरंभ - 13 अगस्त 08:36 बजे से।

तृतीया तिथि समाप्त - 14 अगस्त 05:45 बजे तक।

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 तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन-भर व्रत-उपवास रखती हैं, हरियाली तीज पर गौरी-शंकर की आराधना की जाती है.....

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हरियाली तीज (Haryali Teej) सावन माह की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है. इस दिन शिव-पर्वती की पूजा का विधान है.

खास बातें

  1. सुहागिन स्त्रियों में हरियाली तीज का विशेष महत्‍व है
  2. यह तीज गौरी-शंकर मिलन का पर्व है
  3. इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं

नई दिल्‍ली: Hariyali Teej 2018: हिन्‍दू धर्म में तीज (Teej) पर्व का विशेष स्‍थान है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन की याद में मनाया जाता है. तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए दिन-भर व्रत-उपवास रखती हैं. अच्‍छे पति की कामना के लिए अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखती हैं. मान्‍यता है कि तीज का व्रत रखने से विवाहित स्त्रियों के पति की उम्र लंबी होती है, जबकि अविवाहित लड़कियों को मनचाहा जीवन साथी मिलता है. साल भर में कुल चार तीज मनाई जाती हैं, जिनमें हरियाली तीज (Hariyali Teej) का विशेष महत्‍व है.  यह त्‍योहार मुख्‍य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है. हरियाली तीज सावन महीने की शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. इस बार यह त्‍योहार 13 अगस्‍त को मनाया जाएगा.

क्‍यों मनाई जाती है तीज?

सुहागिन महिलाओं के बीच तीज पर्व का खास महत्‍व है. मान्‍यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्‍त करने के लिए पूरे तन-मन से करीब 108 सालों तक घोर तपस्‍या की. पार्वती के तप से प्रसन्‍न होकर शिव ने उन्‍हें पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार कर लिया. तीज पर्व पार्वती को समर्पित है, जिन्‍हें तीज माता कहा जाता है. 

तीज का पर्व कब-कब मनाया जाता है?

हिन्‍दू धर्म में तीज साल में चार बार आती है: 
अखा तीज: इस तीज को अक्षय तृतीया तीज भी कहते हैं. हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार बैसाख महीने की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को अक्षया तृतीया तीज मनाई जाती है. इस बार अखा तीज 18 अप्रैल को थी.
हरियाली तीज: हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार सावन माह की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. इस बार 13 अगस्‍त को हरियाली तीज मनाई जाएगी.
कजरी तीज: हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह के कृष्‍ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है. इस बार 29 अगस्‍त को कजरी तीज मनाई जाएगी.
हरतालिका तीज: हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार भादो माह के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है. इस बार 12 सितंबर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी.

हरियाली तीज का महत्‍व 
हरियाली तीज को छोटी तीज और श्रावण तीज के नाम से भी जाना जाता है. सावन माह में पड़ने वाली यह तीज सुहागिन स्त्रियों के लिए बेहद महत्‍वपूर्ण है. हिन्‍दू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार यह त्‍योहार पति के प्रति पत्‍नी के समर्पण का प्रतीक है. मान्‍यता है कि इस दिन गौरी-शंकर की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सुहागिनों के पति दीर्घायु होते हैं और लड़कियों को मनचाहा वर मिल जाता है. 

हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त

हरियाली तीज की तिथि आरंभ: 13 अगस्‍त की सुबह 8 बजकर 38 मिनट. 
हरियाली तीज की तिथि समाप्‍त: 14 अगस्‍त की सुबह 5 बजकर 46 मिनट.

हरियाली तीज के लिए जरूरी पूजा और श्रृंगार सामग्री

हरियाली तीज के दिन व्रत रखा जाता है और पूजा के लिए कुछ जरूरी सामान की आवश्‍यकता होती है. पूजा के लिए काले रंग की गीली मिट्टी, पीले रंग का कपड़ा, बेल पत्र, जनेऊ, धूप-अगरबत्ती, कपूर, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल, घी,दही, शहद दूध और पंचामृत चाहिए . वहीं, इस दिन पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है और इसके लिए चूड़‍ियां, आल्‍ता, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, कंघी, शीशा, काजल, कुमकुम, सुहाग पूड़ा और श्रृंगार की अन्‍य चीजें जुटा लें. 

हरियाली तीज की पूजा विधि 

- सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद मन में व्रत का संकल्‍प लें. 
- सबसे पहले घर के मंदिर में काली मिट्टी से भगवान शिव शंकर, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाएं. 
- अब इन मूर्तियों को तिलक लगाएं और फल-फूल अर्पित करें.
- फिर माता पार्वती को एक-एक कर सुहाग की सामग्री अर्पित करें. 
- इसके बाद भगवान शिव को बेल पत्र और पीला वस्‍त्र चढ़ाएं. 
- तीज की कथा पढ़ने या सुनने के बाद आरती करें. 
- अगले दिन सुबह माता पार्वती को सिंदूर अर्पित कर भोग चढ़ाएं. 
- प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण करें.

कैसे मनाते हैं हरियाली तीज?

हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं दिन भर व्रत-उपवास करती हैं. साथ ही इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं, जिनमें हरी साड़ी और हरी चूड़‍ियों का विशेष महत्‍व है. दिन-भर स्त्रियां तीज के गीत गाती हैं और नाचती हैं. हरियाली तीज पर झूला झूलने का भी विधान हैं. स्त्रियां अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलती हैं. कई जगह पति के साथ झूला झूलने की भी परंपरा है. शाम के समय भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के बाद चंद्रमा की पूजा की जाती है. इस दिन सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार का सामान भेंट किया जाता है. खासकर घर के बड़े-बुजुर्ग या सास-ससुर बहू को श्रृंगार दान देते हैं. 

हरियाली तीज पर खान-पान

हरियाली तीज के दिन खान-पान पर भी विशेष ज़ोर दिया जाता है. हालांकि इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन फिर भी बिना मिठाइयों के त्‍योहार कैसा? तीज के मौके पर विशेष रूप से घेवर, जलेबी और मालपुए बनाए जाते हैं. रात के समय खाने में पूरी, खीर, हल्‍वा, रायता, सब्‍जी और पुलाव बनाया जाता है.

हरियाली तीज की व्रत कथा
हरियाली तीज की व्रत कथा इस प्रकार है: शिवजी कहते हैं, 'हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था. इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था. मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया. तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे. ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे.

जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं. आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.' नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती. मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं.'

शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, 'तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया. लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ. तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी.

तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई. तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना. इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली.

तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी. श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की. इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, 'पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है. अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे.' पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए. कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया.'

भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, 'हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्‍व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं.' 

भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा.

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यह शाश्वत सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। किंतु हमें वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों में मृत्यु के पश्चात पुनः जीवित होने के वृत्तांत मिलते हैं। गणेश का सिर काट कर हाथी का सिर लगा कर शिव ने गणेश को पुनः जीवित कर दिया। भगवान शंकर ने ही दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर वध कर दिया था और पुनः अज (बकरे) का सिर लगा कर उन्हें जीवन दान दे दिया। सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए राजा भगीरथ सैकड़ों वर्ष तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए और सागर पुत्रों को जीवन प्राप्त हुआ।
 
उक्त समस्त वृत्तांतों का प्रत्यक्ष संबंध शिव से है। ऐसे अनगिनत वृत्तांत शास्त्रों में मिलते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव, जो महामृत्युंजय भगवन भी कहलाते हैं, रोग, संकट, शत्रु आदि का शमन तो करते ही हैं, जीवन तक प्रदान कर देते हैं। महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और शुक्राचार्य महामृत्युंजय मंत्र के साधक और प्रयोगकर्ता हुए हैं।
 
ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र के बल पर अपनी मृत्यु को टाल दिया था, यमराज को खाली हाथ वापस यमलोक जाना पड़ा था। लंकापति रावण भी महामृत्युंजय मंत्र का साधक था। इसी मंत्र के प्रभाव से उसने दस बार अपने नौ सिर काट कर उन्हें अर्पित कर दिए थे।
शुक्राचार्य के पास था जिसके प्रभाव से वह युद्ध में आहत सैनिकों को स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे। शुक्राचार्य ने रक्तबीज नामक राक्षस को महामृत्युंजय सिद्धि प्रदान कर युद्धभूमि में रक्त की बूंद से संपूर्ण देह की उत्पत्ति कराई थी।
 
ashwthama
 
सबसे महत्वपूर्ण कथा यह है कि से ही गुरु द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी, कहा जाता है कि शाप के साथ-साथ यह भी एक वजह है कि वह आज भी जीवित है। कई लोगों ने उसे उसी देह में नर्मदा नदी के किनारे घूमते देखा है।

किस कार्य के लिए कितनी बार जपें महामृत्युंजय मंत्र..
 
शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग संख्याओं में मंत्र के जप का विधान है। इसमें किस कार्य के लिए कितनी संख्या में जप करना चाहिए इसका उल्लेख किया गया है।
 
* भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।
 
* रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है।
 
* पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है।
 
* मंत्रानुष्ठान के लिए शास्त्र के विधान का पालन करना परम आवश्यक है, अन्यथा लाभ के बदले हानि की संभावना अधिक रहती है।
 
इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक कार्य शास्त्रसम्मत ही किया जाए। इस हेतु किसी योग्य और विद्वान व्यक्ति का मार्गदर्शन लेना चाहिए।
 
* यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है।
 
इसका सामान्य मंत्र निम्नलिखित है, किंतु साधक को बीजमंत्र का ही जप करना चाहिए।
 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥

Maha mrityunjay Mantra
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