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रायपुर । भूतेश्वर महादेव राजधानी रायपुर से 90 किमी दूर और गरियाबंद जिला मुख्यालय से 3 किमी दूर ग्राम मरौदा में पहाड़ियों के बीच स्थित है भूतेश्वर महादेव का शिवलिंग। इसे विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग कहा जाता है। यह जमीन से लगभग 85 फीट उंचा एवं 105 फीट गोलाकार है। आज से सैकडों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार शाम को जब अपने खेत मे घूमने जाते थे, तो उन्हें खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) एवं शेर के दहाड़नें की आवाज आती थी।
गांव वालों के साथ खोजने पर वहां कोई शेर या सांड नजर नहीं आया। जिसके इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ गई। आज इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है। यह भी किंवदंती हैं कि इनकी पूजा छुरा नरेश बिंद्रनवागढ़ के पूर्वजों द्वारा की जाती रही हैं। बताया जाता है कि शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है, जिसके कारण लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं। गरियाबंद जिले के भूतेश्वर महादेव में पूरे सावन मेले जैसा माहौल रहता है। मंदिर समिति और ग्रामीण इसकी तैयारी में जुटे हुए है। यहां पूरे प्रदेश सहित पड़ोसी जिला ओडिसा से बड़ी संख्या में भक्त आकर शिवलिंग में अभिषेक करते है। मंदिर परिसर के आसपास पूजा सामान की दुकानें सज गई है।
::/fulltext::नई दिल्ली। 104 साल बाद 27 जुलाई यानी शुक्रवार रात को सदी का सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण पड़ने जा रहा है। गुरु पूर्णिमा की रात पड़ने वाला साल का यह दूसरा ग्रहण देशभर में दिखाई देगा। इसकी अवधि करीब 3 घंटे 55 मिनट की रहेगी। इस तरह का खग्रास चंद्रग्रहण इससे पहले सन् 1914 में पड़ा था, जो भारत समेत कई अन्य देशों में देखा गया था। जानकारों के मुताबिक, चंद्रग्रहण को सामान्य तरीके से देखा जा सकता है और सूर्य ग्रहण की तरह इसमें आंखों को किसी तरह का नुकसान होने की आशंका नहीं रहती है। भारत को लेकर कहा जा रहा है कि पूरे देश में इस खगोलीय घटना को स्पष्ट देखा सकता है। भारत में शुक्रवार रात 11.44 बजे से चंद्रग्रहण शुरू होगा। रात करीब 1 बजे पूर्ण चंद्रग्रहण नजर आएगा। 1.15 बजे से 2.43 बजे तक ब्लड मून नजर आएगा। शनिवार सुबह 4.58 बजे चंद्रग्रहण समाप्त हो जाएगा।
होगा चंद्रग्रहण, नजरें होंगी मंगल पर
मंगल इन दिनों हमारे सर्वाधिक करीब आ पहुंचा है। यह संयोग पिछले 60 हजार साल में दूसरी बार बनने जा रहा है। इससे पहले वर्ष 2003 में मंगल हमारे सर्वाधिक नजदीक पहुंचा था। आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोलीय वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार यह तीनों घटनाएं खगोलीय दृष्टि से बेहद खास हैं। वहीं वैज्ञानिक नजरिए से मंगल ग्रह अध्ययन के लिए खास होगा। मंगल मिशन के लिए भावी योजनाओं के अलावा इन दिनों मंगल के वातावरण पर छाए धूल के गुबार का अध्ययन किए जाने में मदद मिलेगी।
इसलिए कहते हैं 'ब्लड मून'
पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा जब पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है तो वह नाटकीय रूप से चमकीले नारंगी रंग से लाल रंग का हो जाता है। यही कारण है कि इस अवधि में उसे 'ब्लड मून' कहा जाता है।
::/fulltext::उज्जैन । शास्त्रों में इंसान की जीवन को नियमों के सूत्रों में पिरोया गया है। विज्ञान के साथ शास्त्र का संयोग कर जिंदगी को चुस्त-दुरुस्त और सहज और सरल बनाने की कवायद की गई है ऐसे ही दो शास्त्रोक्त विधान है सूतक और पातक। जब किसी घर में किसी बच्चे का जन्म होता है या परिवार के किसी मृत्यु होती है तो इन दोनों बातों का पालन किया जाता है।
बच्चे के जन्म के समय लगता है सूतक -
जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो उस परिवार में सूतक लग जाता है । सूतक की यह अवधि दस दिनों की होती है । इन दस दिनों में घर के परिवार के सदस्य धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं। साथ ही बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरे काम करने का भी निषेध रहता है। जब तक की घर में हवन न हो जाए। शास्त्रों के अनुसार सूतक की अवधि विभिन्न वर्णो के लिए अलग-अलग बताई गई है। ब्राह्मणों के लिए सूतक का समय 10 दिन का, वैश्य के लिए 20 दिन का, क्षत्रिय के लिए 15 दिन का और शूद्र के लिए यह अवधि 30 दिनों की होती है।
मृत्यु के पश्चात लगता है पातक –
जिस तरह घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को ' पातक ' कहते हैं। इसमें परिवार के सदस्यों को उन सभी नियमों का पालन करना होता हैं , जो सूतक के समय पालने होते हैं। पातक में विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर गरुड़ पुराण का वाचन करवाया जाता है।
सूतक और पातक हैं शास्त्रोक्त के साथ वैज्ञानिक विधान -
'सूतक' और 'पातक' सिर्फ धार्मिक कर्मंकांड नहीं है। इन दोनों के वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है या किसी सदस्य की मृत्यु होती है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का खतरा मंडराने लगता है।
इसलिए यह दोनों प्रक्रिया बीमारियों से बचने के उपाय है, जिसमें घर और शरीर की शुद्धी की जाती है। जब 'सूतक' और 'पातक' की अवधि समाप्त हो जाती है तो घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट बंद रखे जाते हैं। देव प्रतिमाओं को भी ढंककर रखा जाता है।ग्रहण के दौरान पूजन या स्पर्श का निषेध है। केवल मंत्र जाप का विधान है। ग्रहण के दौरान यज्ञ कर्म सहित सभी तरह के अग्निकर्म करने की मनाही होती है। ऐसा माना जाता है कि इससे अग्निदेव रुष्ट हो जाते हैं। ग्रहण काल और उससे पहले सूतक के दौरान गर्भवती स्त्रियों को कई तरह के काम नहीं करने चाहिए। साथ ही सिलाई, बुनाई का काम भी नहीं करना चाहिए।
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