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इस वर्ष 23 जुलाई 2018 को देवशयनी एकादशी का व्रत है। इस दिन से गृहस्थ लोगों के लिए चातुर्मास नियम प्रारंभ हो जाते हैं। वहीं, संन्यासियों का चातुर्मास 27 जुलाई यानी गुरु पूर्णिमा के दिन से शुरू होगा।
::/introtext::कर्क संक्रांति समय काल में सूर्य को पितरों का अधिपति माना जाता है। कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है और देवताओं की रात्रि प्रारंभ हो जाती है। इस दिन सूर्य देव के साथ ही अन्य देवता गण भी निद्रा में चले जाते हैं। सृष्टि का भार भोलेनाथ संभालते हैं, इसीलिए श्रावण मास में शिव पूजन का महत्व बढ़ जाता है।
28 जुलाई से श्रावण मास आरंभ हो जाएगा और सावन का पहला सोमवार 30 जुलाई को होगा। 27 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के अलावा चंद्र ग्रहण भी है।
पाताल के राजा बलि के यहां करेंगे आराम
इस दिन श्रीहरि शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में श्रीहरि पाताल के राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं। वास्तव में यह एक पारंपरिक धारणा है कि सृष्टि का कार्यभार संभालते हुए भगवान विष्णु बहुत थक जाते हैं। तब माता लक्ष्मी उनसे निवेदन करती है कि कुछ समय उन्हें सृष्टि की चिंता और भार छोड़ देना चाहिए।
तब विष्णु भगवान देवों के देव महादेव को भार देकर चले जाते हैं। हिमालय से महादेव पृथ्वीलोक पर आए भोले 4 मास तक संसार की गतिविधियां संभालते हैं। इसके बाद वह कैलाश की तरफ रूख करते हैं।
यह दिन एकादशी का ही होता है। जिसे देवउठनी एकादशी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन हरिहर मिलन होता है। इस साल यह एकादशी 19 नवंबर 2018 को है। इस दिन चातुर्मास नियम भी समाप्त हो जाते हैं।भगवान शिव गृहस्थ होते हुए भी सन्यासी हैं अत: उनके राज में विवाह आदि कार्य वर्जित होते हैं।
नहीं होते हैं कोई मांगलिक कार्य
इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है। बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।
::/fulltext::13 जुलाई शुक्रवार को इस साल के दूसरे सूर्य ग्रहण के बाद अब इसी महीने में एक और ग्रहण जल्द ही लगने वाला है। जी हां, इस बार यह सूर्य नहीं बल्कि चंद्र ग्रहण होगा जो 27 जुलाई, शुक्रवार को लगने वाला है।
चंद्र ग्रहण
सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने के कारण सूर्य की पूरी रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है तब इसे चंद्र ग्रहण कहते हैं। सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा का एक सरल रेखा में होना चंद्र ग्रहण की स्थिति बनाता है। चंद्र ग्रहण भी आंशिक और पूर्ण दोनों रूप में होते हैं। ये इस साल का नहीं बल्कि पूरे 21 वीं सदी का सबसे बड़ा और पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। अगर जानकारों की मानें तो यह विशेष संयोग करीब 104 साल बाद बन रहा है। इस बार यह ब्लड मून होगा।
162 साल बाद केमद्रुम योग
इस बार इस ग्रहण के साथ केमद्रुम योग बन रहा है। जानकारों के अनुसार यह योग 162 सालों में एक बार बनता है। कुंडली में बने केमद्रुम दोष की शांति के लिए यह योग बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। चन्द्र ग्रहण काल में केमद्रुम दोष से पीड़ित जातक इस दोष का निवारण कर इससे मुक्ति पा सकते हैं। चलिए जानते हैं क्या है केमद्रुम योग।
क्या है केमद्रुम योग और क्यों बनता है
ये जब जातक की कुंडली में चंद्रमा के आगे-पीछे कोई ग्रहण नहीं होता है तब केमद्रुम योग बनता है। इस दोष के कारण जातक के जीवन में कई तरह की परेशानियां आती हैं जैसे, रोग, दरिद्रता, पारिवारिक कलह आदि। इतना ही नहीं व्यक्ति हमेशा खुद को अकेला ही पाता है। इस दशा में व्यक्ति के भीख मांग कर खाने की भी स्थिति आ जाती है। इस दोष की वजह से व्यक्ति के जीवन में कई सारी बाधाएं उत्पन्न होती है लेकिन दूसरी ओर उसे इन मुश्किलों का सामना करने की ताकत भी मिलती है। चन्द्रमा के आगे और पीछे का स्थान खाली रहना हमारे दिमाग के भाग का प्रतीक होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है ठीक उसी प्रकार इस दोष से पीड़ित जातक का जीवन उसके बुरे ख्यालों की वजह से नकारात्मक ऊर्जा से घिरा रहता है।
केमद्रुम दोष से मुक्ति के उपाय
जैसा कि हमने आपको बताया कि इस दोष के कारण मनुष्य का जीवन परेशानियों से भर जाता है। न तो व्यक्ति के जीवन में खुशियां आती है, न उसे सच्चे प्रेम की प्राप्ति होती है और न ही उसे कोई और सुख मिलता है। ऐसे में जितनी जल्दी हो सके इस दोष का निवारण कर लेना चाहिए ताकि जातक को इस तरह की समस्याओं से छुटकारा मिल सके।
केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव से बचने के कुछ उपाय
1. सोमवार की पूर्णिमा के दिन या सोमवार को चित्रा नक्षत्र से लगातार चार वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखें। 2. इस दोष से पीड़ित जातकों के लिए शिव और लक्ष्मी जी की उपासना बेहद फायदेमंद होती है। 3. प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं साथ ही शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करें। इस मंत्र के जाप के लिए आप रुद्राक्ष की माला का प्रयोग कर सकते हैं। 4. महामृत्युंजय मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार करें। 5. घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करें। इस शंख के जल से लक्ष्मी जी को स्नान करवाएं। किसी भी ग्रह दोष से मुक्ति पाने के लिए हम पूजा पाठ का सहारा लेते हैं ताकि हमें ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद दोनों ही प्राप्त हो जाए और हमारा जीवन सुखमय बन जाए।
इस चंद्र ग्रहण पर केमद्रुम पूजा
केमद्रुम दोष से पीड़ित व्यक्ति इस शुभ योग में अपने इस दोष का निवारण कर सकता है। आषाढ़ पूर्णिमा होने के कारण यह अवसर और भी शुभ हो गया है।162 सालों बाद यह चंद्र ग्रहण इस पूजा के लिए बहुत ही अच्छा माना जा रहा है। केमद्रुम योग पूजा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।