Wednesday, 09 July 2025

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 विज्ञान या चमत्‍कार! जगन्नाथ मंदिर से जुड़े ये रहस्य..... 




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हिन्दू धर्म के बेहद पवित्र स्थल और चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी की धरती को भगवान विष्णु का स्थल माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ को विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है,।पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है।

मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं। हर साल ओडिशा प्रान्त के पुरी जिले में भगवान 'जगन्नाथ जी' की रथयात्रा निकाली जाती है। इस साल 14 जुलाई को जगन्‍नाथ जी की रथ यात्रा शुरु होगी। ये परंपरा पिछले लगभग 500 सालों से चली आ रही है। इस रथ यात्रा से कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हैं। इसी के साथ इस यात्रा और खुद जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई तरह चौंकाने वाली बातें जुड़ी हैं। जानिए इस यात्रा और मंदिर से जुड़े कुछ चौंकाने वाले रहस्य...

मंदिर से जुड़े हैरान करने वाले रहस्य

फैक्‍ट 1 : मंदिर के पास हवा की दिशा भी हैरान करती है। ज्यादातर समुद्री तटों पर हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, पुरी में ऐसा बिल्कुल नहीं है यहां हवा जमीन से समंदर की तरफ चलती है और यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है। आम दिनों में हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, शाम के वक्त ऐसा नहीं होता है।

फैक्‍ट 2 :  जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर की इतनी ऊंचाई के कारण ही पास खडे़ होकर भी आप गुंबद नहीं देख सकते।

फैक्‍ट 3 :  विज्ञान के अनुसार, किसी भी चीज पर सूरज की रोशनी पड़ने पर उसकी छाया जरूर बनती हैं। मगर इस मंदिर के शिखर की कोई छाया या परछाई दिखती ही नहीं है। फैक्‍ट 4  जगन्नाथ मंदिर के ऊपर कोई भी पक्षी आज तक उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। मंदिर के शिखर के पास पक्षी या कोई भी चिड़ियां उड़ते हुए नहीं दिखाई दिए है। यहां तक मंदिर के उपर विमान उड़ाना भी‍ नि‍षेध है।   

फैक्‍ट 5 : जगन्‍नाथ मंदिर के रसोईघर को दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, लेकिन अन्न कभी भी खत्म नहीं होता। मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

फैक्‍ट 6 : मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।

फैक्‍ट 7 : इस मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र मंदिर की शान है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप उसे कहीं से भी देख लें यह आपको सीधा ही नजर आएगा। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र बेहद पवित्र माना जाता है। करीब 200 साल पहले इसे मंदिर में स्‍थापित किया गया था जो इसको स्‍थापित करने की तकनीक आज भी रहस्‍य है।

फैक्‍ट 8 : मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अंदर समंदर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती। इसके अलावा मंदिर के ऊपर लगा ध्वज भी हवा की विपरित दिशा में लहराता रहता है।

फैक्‍ट 9 :  इसके अलावा मंदिर में हमेशा 20 फीट का ट्रायएंगुलर ध्वज लहराता है इसे रोजाना बदला जाता है। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है।इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है वह इसे 800 साल से करती चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अगर ध्वजा रोज नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 सालों तक अपने आप बंद हो जाएगा।

फैक्‍ट 10 : यहां जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरों में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं। तीनों की मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनका आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है कहती है ये मूर्तियां अपने आप विघटित हो जाती है।

फैक्‍ट 11 : वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्‍य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।

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कई शिवलिंग वाली पांच तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं....

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नदी में पानी के बीच चट्टानों पर कई शिवलिंग वाली पांच तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। इन तस्वीरों को लेकर दावा किया जा रहा है कि इतिहास में पहली बार लाखों शिवलिंग एक साथ देखे गए।
 
क्या है इन तस्वीरों में..
 
वायरल तस्वीरों में नदी के बीच चट्टानों पर शिवलिंग और नंदी की मूर्तियां साफ नजर आ रही हैं। इन तस्वीरों के साथ मैसेज लिखा गया है कि ‘भारत के इतिहास में पहली बार कर्नाटक में शिवकाशी नदी में पानी कम होने पर दिखे लाखों शिवलिंग। शेयर करना ना भूलें। हर हर महादेव’।
 

क्या है सच्चाई..
 
जब हमने पड़ताल शुरू की तो पता चला कि यह तस्वीरें तो असली हैं, लेकिन इन तस्वीरों को लेकर किया जा रहा दावा झूठा है कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। आइए, अब जानते हैं कि यह कौन-सी जगह है, जहां पर इतने सारे शिवलिंग हैं..
 
कर्नाटक के उत्तर कन्नडा जिले में सिरसी से 14 किलोमीटर दूर स्थित यह जगह सहस्रलिंग के नाम से प्रसिद्ध है। यहां बहने वाली शालमला नदी में हजारों की संख्या में शिवलिंग मौजूद हैं। ये सभी शिवलिंग चट्टानों पर बने हुए हैं। शिवलिंग के अलावा इन चट्टानों पर नंदी, सर्प आदि की आकृतियां भी बनी हुई हैं।
 
शालमला नदी में जब पानी रहता है, तो उस समय यहां मौजूद शिवलिंग नहीं दिखाई देते हैं। लेकिन, जैसे-जैसे पानी का स्तर कम होता है, तो नदी में हजारों की संख्या में मौजूद शिवलिंग दिखाई देने लगते हैं। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए शिव भक्‍तों का यहां तांता लगा रहता है।
 
मान्यताओं के अनुसार, इन शिवलिंगों का निर्माण राजा सदाशिवराय वर्मा ने 16वीं शताब्दी में कराया था। राजा सदाशिवराय भगवान शिव के बड़े भक्त थे और वे भगवान शिव की अद्भुत रचना का निर्माण करवाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शालमला नदी में मौजूद चट्टानों पर भगवान शिव और उनके प्रियजनों की हजारों आकृतियां बनवा दीं। नदी के बीच स्थित होने के कारण सभी शिवलिंगों का अभिषेक खुद शालमला नदी करती है।
 
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा ‍‍कि कुछ ऐसे ही शिवलिंग कंबोडिया के प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर से कुछ दूरी पर भी मौजूद हैं। इस मंदिर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केब्ल स्पीन नामक स्थान पर पत्थरों पर देव आकृतियां हैं।
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आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को शुरू होने वाला यह त्योहार माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पर्व है।....

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हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह में पड़ने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस बार गुप्त नवरात्रि 13 जुलाई को शुरू होने वाली है जो 21 जुलाई को समाप्त हो जाएगी। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस दौरान सच्चे मन से आराधना करता है उसे देवी का आशीर्वाद ज़रूर प्राप्त होता है। आइए इस पवित्र पर्व के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं। नौ दिनों तक चलने वाली यह पूजा देवी दुर्गा को समर्पित है। इन पवित्र दिनों में माँ दुर्गा की पूजा करके भक्त माता से अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को शुरू होने वाला यह त्योहार माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पर्व है। प्रत्येक दिन माता के एक रूप की पूजा अर्चना की जाती है।

पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित है, दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी, तीसरा माँ चंद्रघंटा, चौथा दिन माँ कूष्मांडा, पांचवा दिन माँ स्कंदमाता, छठा दिन माँ कात्यायनी, सातवें दिन माँ कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री को पूजा जाता है।

सप्तशती पाठ का शुभ समय

किसी भी देवी देवता की पूजा के लिए एक विशेष दिन होता है ठीक उसी प्रकार नवरात्रि का पवित्र अवसर सप्तशती पाठ या सप्तशती स्तोत्र के लिए सबसे शुभ माना गया है। कहते हैं इस स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से मनुष्य के जीवन से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं साथ ही उसके जीवन में सुख और समृद्धि में भी वृद्धि होती है।

दुर्गा कवच जो इस पाठ का ही एक हिस्सा है मनुष्य को हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नज़र से दूर रखता है। इसके अलावा यह पाठ रोग, दोष, चोरी व्यापार में नुकसान आदि जैसी समस्याओं से भी दूर रखता है और व्यक्ति को सफलता की बुलंदियों तक ले जाता है।

काला जादू

कुछ लोग नवरात्री के दौरान दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं ताकि वे महासिद्धि प्राप्त कर सकें। महासिद्धि वह अवस्था है जिसमें न सिर्फ भविष्य के बारे में पता लगाया जा सकता है बल्कि भविष्य को बदला भी जा सकता है। इतना ही नहीं नवरात्री में काला जादू भी किया जाता है। हालांकि हर धर्म में काला जादू को बहुत बड़ा पाप माना गया है।

नवरात्रि में व्रत

नवरात्री में न केवल माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है बल्कि लोग पूरे नौ दिनों तक व्रत भी रखते हैं। इस दौरान भक्त अनाज ग्रहण नहीं करते वे फल या फिर तरल पदार्थ का ही सेवन करते हैं। यहां तक की वे बिस्तर पर न सोकर ज़मीन पर चटाई बिछाकर सोते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पूरे नौ दिनों तक कुर्सी या सोफे पर नहीं बैठते बल्कि ज़मीन पर बैठते हैं। माता की प्रतिमा या चित्र के आगे अखंड ज्योत जलाया जाता है।

आठवें और नौवें दिन को पारण का दिन कहा जाता है। जहां कुछ लोग अष्टमी को अपना व्रत खोलते हैं तो वहीं कुछ लोग नवमी को।

नवरात्रि पारण

पारण के दिन भक्त सुबह से ही अपनी तैयारियों में लग जाते हैं। सबसे पहले प्रसाद बनाया जाता है जैसे हलवा, पूरी और काले चने की सब्ज़ी। कहते हैं माता को यह सब बेहद प्रिय है। हालांकि कुछ लोग खीर भी बनाते हैं। माना जाता है कि यह प्रसाद घर पर ही बना होना चाहिए न की बाज़ार से मंगवाना चाहिए।

प्रसाद बनाने के बाद सबसे पहले माता और अन्य देवी देवताओं को इसका भोग लगाया जाता है। उसके बाद नौ कुंवारी कन्याओं को यह सब खिलाया जाता है। इन कन्याओं को माँ दुर्गा का नौ रूप कहा जाता है। प्रसाद देने से पहले इनके चरण धोये जाते हैं फिर तिलक लगाकर कलाई पर मोली बांधी जाती है। फिर इन्हें श्रृंगार का सारा सामान भेंट किया जाता है और अंत में प्रसाद दिया जाता है। इन कन्याओं को कंजक भी कहा जाता है और इस पूजा को कंजक पूजा के नाम से जाना जाता है। लोग इनके चरण स्पर्श करके इनका आशीर्वाद भी लेते हैं।

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