Sunday, 22 December 2024

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माइकोप्लाज्मा जेनिटेलियम (MG) नामक एक नई सेक्‍सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (STD's) HIV जितना खतरनाक हो सकता है।.....


 

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माइकोप्लाज्मा जेनिटेलियम (MG) नामक एक नई सेक्‍सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (STD's) सामने आया है। जिसके बारे में कहा जा रहा है कि समय रहते अगर इस बीमारी की समस्‍या का हल नहीं खोजा गया तो ये आने वाले समय में ये HIV जितना खतरनाक हो सकता है। ये सेक्‍सुअली डिसीज, अनसेफ सेक्‍स की वज‍ह से फैलता है। इन दिनों माइकोप्लैज़्मा जेनिटेलियम (MG) विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय पर इस बीमारी के लक्षण नहीं पहचानें गए, तो यह एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति काम करना बंद कर देता है। जिससे बाद में इलाज करना मुश्किल हो जाता है। ये बीमारी आने वाले समय में काफी खतरनाक साबित हो सकती है।

बीमारी के शुरुआती लक्षण

माइकोप्लाज्मा जेनिटेलियम के लक्षण बहुत हद तक क्लैमीडिया और गोनोरिया जैसे यौन संचारित रोग की तरह ही है। जरुरी नहीं है कि इसके लक्षण पहचान में आ जाएं। ऐसे में बहुत हद तक यह संभव है कि आपको इसके बारे में कभी पता ही न चले। विशेषज्ञों की मानें तो माइकोप्लैज़्मा जेनिटेलियम (MG) बीमारी के कोई शुरुआती लक्षण नहीं होते, लेकिन इससे महिला और पुरुष, दोनों के जननांगों में संक्रमण हो सकता है। इस बीमारी के चपेट में आने से दोनों में डिस्‍चार्ज होने की समस्‍या देखी जा सकती है। ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि इससे औरतों में बांझपन भी हो सकता है। इसके शुरुआती लक्षण समझ में नहीं आने के कारण इसका इलाज भी मुश्किल है और अगर इलाज ठीक से न हो तो इस पर एंटिबायॉटिक्स का असर भी खत्म हो जाता है।

क्या है माइकोप्लैज़्मा जेनिटेलियम?

माइकोप्लाज़्मा जेनिटेलियम एक जीवाणु है जिससे पुरुषों और महिलाओं को पेशाब के रास्ते में सूजन हो सकती है। इसका नतीजा दर्द, रक्तस्राव और बुखार के रूप में देखने को मिलता है। HIV की तरह ही असुरक्षित यौन संबंध को इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है। इस बीमारी के बारे में पहली बार ब्रिटेन में 1980 के दशक में पता चला था। उस समय सिर्फ 1 से 2 फीसदी

इस बीमारी का इलाज

पॉलिमेरस चेन रिएक्शन स्टडी (polymerase chain reaction study) नामक एक टेस्ट के जरिए इस बीमारी का अध्‍ययन कर डिस्चार्ज का पता किया जा सकता है। इसका उपचार एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए संभव है, लेकिन यह उपचार संक्रमण के शुरुआती दिनों में ही प्रभावी होता है। यदि बीमारी का पता नहीं चल पाता है, तो यह एंटीबायोटिक प्रतिरोध (antibiotic resistance) का कारण बन सकती है। दवाई जैसे एरिथ्रोमाइसिन डॉक्सीसाइक्लिन से इलाज संभव है, लेकिन मरीज पर ट्रीटमेंट का असर नहीं होता, तो क्विनोलोन्स (quinolones) का इस्तेमाल करर इस बीमारी का इलाज किया जाता है। हालांकि, आपको कोई भी ऊपर दिए गए लक्षण नजर आएं, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।

इससे बचाव

अन्‍य यौन संचारित रोगों की तरह कंडोम के बेहतर इस्‍तेमाल से इस रोग से बचा जा सकता है। सुरक्षित यौन संबंध ही इस रोग से बचाव का सबसे सही और आसान उपाय है। इसके अलावा रिसर्च की माने तो प्यूबिक हेयर को ट्रिम, वैक्स या शेव करने के कुछ द‍िनों तक यौन संबंध बनाने से परहेज करना चाह‍िए क्‍योंकि इसकी वजह से भी कई तरह के STD's होने के ज्‍यादा सम्‍भावनाएं रहती है।

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देश में कई सारी ऐसी चीजें बिकती हैं, जिन पर विकसित देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है।......

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देश में लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ आए दिन होता है। कारण, लोग जागरुक नहीं है और सरकारों के पास आम लोगों की समस्याओं को सुनने का समय नहीं है। यही वजह है कि देश में कई सारी ऐसी चीजें बिकती हैं, जिन पर विकसित देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है। जानते हैं, इन्हीं में से कुछ चीजों के बारे में...

एनर्जी ड्रिंक के रूप में रेड बुल का प्रचार किया जाता है। हालांकि, यह स्वास्थ्य के लिहाज से काफी नुकसानदेह है।शोध से पता चला है कि इसे पीने से अवसाद, तनाव और दिल की बीमारी होती है। इसे फ्रांस और डेनमार्क में बैन कर दिया गया है। मगर, भारत में यह धड़ल्ले से बिक रहा है। दर्द निवारक गोली डिस्प्रिन विदेशों में मानकों पर खरी नहीं उतरी, इसलिए वहां इसे बैन कर दिया गया। इसी तरह कोल्ड और फ्लू ठीक करने वाली डी कोल्ड की गोली किडनी से रिलेटेड बीमारियां दे सकती है। इसलिए इसे विदेशों में बैन कर दिया गया है। वहीं दर्द में काम आने वाली निमुलिड को ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में बैन कर दिया गया है।

जैली से बनी मिठाईयां और टॉफी हर दूसरी दुकान में मिलती है। ये यूएस, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में बैन है। कारण इनके खाने से बच्चों का दम घुटने का खतरा रहता है। खिलौने के साथ मिलने वाली किंडर जॉय चॉकलेट बच्चों को काफी पसंद आती है। मगर, इसे खाने से उनका दम घुटने का खतरा रहता है। इसलिए अमेरिका ने इसे बैन कर दिया है। खाने के बाद चुइंग गम को जहां फेंका जाता है, यह वहीं चिपक जाता है। इसे साफ करना आसान नहीं होता, लिहाजा सिंगापुर ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है।

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EPF :हाल ही में इससे जुड़े नियमों कुछ बदलाव हुए हैं। इन नियमों का आपके लिए क्या है मतलब।.....

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एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड यानी ईपीएफ़ के ज़रिए कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड के तहत भविष्य के लिए धन सुरक्षित रखते हैं। हाल ही में इससे जुड़े नियमों कुछ बदलाव हुए हैं। आख़िऱ है क्या और क्या हैं इसके नियम हैं और इन नियमों का आपके लिए क्या है मतलब। धंधा-पानी में आज चर्चा इन्हीं सवालों की। कुछ साल पहले ईपीएफओ ने नियम बनाया था कि आंशिक निकासी बच्चे की शादी, उच्च शिक्षा और मकान खरीदने के लिए की जा सकती है। अब ईपीएफओ के नए नियम के मुताबिक, नौकरी छोड़ने के एक महीने बाद ही मेंबर्स 75 फीसदी धन की निकासी कर सकते हैं और 2 महीने बाद बचा हुआ 25 फीसदी हिस्सा भी निकाल सकते हैं। इससे पहले, नौकरी छोड़ने या बेरोजगार होने की स्थिति में दो महीने के बाद ही पीएफ़ की रकम निकाली जा सकती थी। 
 
आख़िऱ ईपीएफ है क्या और क्या हैं इसके नियम हैं और इन नियमों का आपके लिए क्या है मतलब। धंधा-पानी में आज चर्चा इन्हीं सवालों की।

ईपीएफओ क्या है?
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफ़ओ की स्थापना 15 नवम्बर 1951 में हुई थी। कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय में उन सभी कार्यालयों और कंपनियों को रजिस्टर करना पड़ता है जहाँ पर 20 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।
 
कैसे जमा होता है पैसा
जब कोई व्यक्ति किसी कंपनी में काम करना शुरू करता है तो उसकी बेसिक सैलरी का 12% उसकी सैलरी से काटा जाता है और इतना ही योगदान कंपनी की तरफ से दिया जाता है। व्यक्ति की सैलरी का 12% कर्मचारी ईपीएफ में जमा हो जाता है जबकि कंपनी द्वारा किया गए योगदान का केवल 3.67% ही इसमें जमा होता है बकाया का 8.33% कर्मचारी पेंशन योजना यानी ईपीएस में जमा हो जाता है।

 क्या 12% से अधिक रकम भी कटा सकते हैं?
कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी के 12% से भी अधिक रकम कटवा सकता है। इसे वॉलियंटरी प्रोविडेंट फंड कहते हैं। इस पर भी टैक्स छूट मिलती है, लेकिन एंप्लॉयर यानी नियोक्ता सिर्फ़ बेसिक सैलरी का 12% कंट्रीब्यूशन ही देता है।

ईपीएफ़ पर कितना ब्याज?
कर्मचारियों की ईपीएफ की रकम पर उन्हें ब्याज मिलता है। जिसका निर्धारण सरकार और केन्द्रीय न्यासी बोर्ड करता है। वर्तमान वर्ष में दी जाने वाली ब्याज दर 8.55% है।
 
क्या नॉमिनेशन की सुविधा है?
जी हाँ, आप अपने ईपीएफ के लिए भी नॉमिनेशन सुविधा ले सकते हैं। कर्मचारी की मृत्यु होने की स्थिति में नॉमिनी को का सारा पैसा दिया जाता है। अपने ईपीएफ अकाउंट के लिए नॉमिनी को चेंज भी कर सकते हैं।

पेंशन भी मिलती है क्या?
पीएफ़ में एम्पलॉयर का योगदान 12 फ़ीसदी ही होता है, लेकिन इसका एक हिस्सा 8.33 प्रतिशत कर्मचारी पेंशन स्कीम में चला जाता है। पेंशन 58 साल की उम्र के बाद ही मिलती है। नौकरी के 10 साल (लगातार) पूरे करने अनिवार्य हैं। न्यूनतम पेंशन 1000 रुपए है, जबकि अधिकतम पेंशन 3250 रुपये प्रतिमाह है। पेंशन ईपीएफ़ खाताधारक को आजीवन और उसके मरने के बाद आश्रित को दी जाती है।
 
एडवांस ले सकते हैं क्या?
नौकरी करते समय ईपीएफ का पैसा निकलने की इजाजत नहीं होती, लेकिन ऐसे कुछ खास मौके हैं जिनके लिए ईपीएफ की कुछ राशि निकाली जा सकती है, हालांकि इसके तहत भी आप पूरी राशि नहीं निकाल सकते। अपने या परिवार (पति/पत्नी, बच्चे या डिपेंडेंट पेरेंट्स) के इलाज के लिए सैलरी की छह गुना रकम निकाल सकते हैं। अपनी, बच्चों की, या भाई-बहन की शादी या एजुकेशन के लिए पूरी रकम का 50 प्रतिशत निकाल सकते हैं। नौकरी के दौरान अधिकतम तीन बार ऐसा कर सकते हैं। होमलोन चुकाने के लिए सैलरी का 36 गुना तक रकम निकालने की इजाज़त है। घर की मरम्मत के लिए सैलरी का 12 गुना तक रकम निकाल सकते हैं, लेकिन ये सुविधा सिर्फ़ एक बार मिलती है। इसके अलावा प्लॉट या घर खरीदने के लिए भी अपने ईपीएफ़ अकाउंट से पैसा निकाल सकते हैं।
 
ईपीएफ में पैसा कटवाने से मना कर सकते हैं क्या?
आप चौंकेंगे तो सही, लेकिन इसका जवाब हाँ है। अगर आपकी सैलेरी 15000 रुपए प्रति माह से ज्यादा है तो आप पीएफ में निवेश करने से मना कर सकते हैं। इसके लिए आपको नौकरी शुरू करने से पहले पीएफ फंड से बाहर रहने का विकल्प चुनना होगा।

अगर आप ऐसा करते हैं तो इसके लिए आपको फॉर्म नंबर 11 भरना पड़ता है। लेकिन अगर आप एक बार ईपीएफ का हिस्सा बन जाते हैं, तो फिर आप इससे बाहर नहीं आ सकते।
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