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महंगाई (Inflation) के इस भयंकर दौर में महंगाई की बात इस तरह से हो रही है जैसे यह प्रतिशत में ही सताती है. आंकड़ों में ही नज़र आती है. किसी के घर का चूल्हा कैसे बुझता है और थाली से भोजन कैसे कम हो जाता है, इसकी चर्चा कहीं नहीं है और न कोई तस्वीर नज़र आती है.महंगाई के कारण कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे गए हैं, इसका भी अंदाज़ा नहीं है. अगर मीडिया में छाई तस्वीरों के हिसाब से देखें तो लाउडस्पीकर, पथराव की तस्वीरें हैं तो दूसरी तरफ विदेश में नेताओं से गले मिलते प्रधानमंत्री की तस्वीरें हैं. इसका ज़िक्र इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि आज के अखबारों में महंगाई का ज़िक्र ख़ूब है, रिज़र्व बैंक के गवर्नर का ज़िक्र है, लेकिन महंगाई की कोई तस्वीर नहीं है. ख़बरों में ज़्यादातर प्रधानमंत्री ही नज़र आते हैं. उनके दौरे का ही दौर है. तस्वीरों का ही ज्यादा विश्लेषण है. पुराने समझौतों और नए समझौतों से क्या बदलाव आ रहा है, उसके विश्लेषण बहुत कम है या न के बराबर है. ऐसे में पत्रकार पवन जयसवाल का जाना याद दिलाता है कि पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए. क्यों होनी चाहिए.
आवाज़ कमाल साहब की है जो अब हमारे बीच नहीं हैं और कमाल ख़ान जिस पत्रकार की रिपोर्ट पर रिपोर्ट कर रहे हैं, वह पत्रकार पवन जयसवाल हैं, जिनका आज वाराणसी में निधन हो गया. 38 साल के पवन को कैंसर था.23 अगस्त 2019 को पवन जायसवाल की एक रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई थी. रिपोर्ट यह थी कि जमालपुर स्थित हिनौता ग्रामसभा के सीयूर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को खाने के लिए नमक और रोटी दी जा रही थी. इस रिपोर्ट के बाद ज़िला प्रशासन ने पवन जायसवाल पर मुकदमा कर दिया था. एडिटर गिल्ड व प्रेस क्लब ने भी पवन पर एफआईआर का विरोध किया था. इंद्रेश पांडे ने बताया कि नमक-रोटी खबर बनाने के बाद से ही पवन की जिंदगी में मुसीबत बढ़ गयी.पहले मुकदमे में दौड़-धूप के कारण दुकान का काम बंद हुआ तो अब वह पिछले 8 महीनों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे.
मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ से मिर्ज़ापुर को जानने वाले लोगों में कुछ तो होंगे ही जिन्होंने मिर्ज़ापुर के पवन जयसवाल की यह रिपोर्ट पढ़ी होगी या इसके बारे में सुना होगा. पवन जन संदेश टाइम्स के लिए काम करते थे. FIR ऐसी थी कि निचली अदालत ने ही ख़ारिज कर दिया. उसके बाद से पवन फ्रीलांस के तौर पर काम करते रहे. 25 दिनों से वाराणसी के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे, लेकिन कैंसर उन पर हावी हो गया. जब पवन के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था तब कई पत्रकारों ने आवाज़ उठाई थी कि पवन को फंसाया जा रहा है.हमारे ही सहयोगी आलोक पांडे ने पवन का एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें पवन कह रहे थे कि उन्होंने जो देखा वही रिपोर्ट किया.
आज कल इस देश में बात-बात में गर्व करने की सनक चढ़ी हुई है, इसलिए पवन जायसवाल की खबर बताई ताकि जब आप विदेश जाएं और NRI अंकलों से मिलें तो बता सकें कि भारत में पवन जायसवाल नाम के पत्रकार भी होते हैं जो सीमित कमाई के बाद भी जनता की खबरें करते हैं, नौकरी से निकाल दिए जाते हैं, और कैंसर के इलाज में उनके परिवार का काफी कुछ बिक जाता है. तमाम हमलों के बाद भी पवन अपनी रिपोर्ट पर कायम रहे जब पवन जायसवाल का इलाज चल रहा था तब कई पत्रकारों ने उनकी मदद की. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी एक लाख रुपये की मदद की . बहुत लोगों ने मदद की फिर भी पूरी न हो सकी. पवन का परिवार कर्ज़ में डूब गया है. पवन के दो बच्चे हैं, पत्नी हैं, मां हैं. मां और पत्नी के ज़ेवर तक बिक गए हैं. अहरौरा गांव के लोगों को अपने पत्रकार पर गर्व है.
प्रेस की स्वतंत्रता (Press Freedom in India) की रैकिंग भारत की सरकार भले न स्वीकार करे कि विश्व गुरु के यहां प्रेस की स्वतंत्रता दुनिया में 150 वें नंबर पर है, लेकिन एस्टोनिया नाम के देश ने खंडन नहीं किया है, जिसे प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग में दुनिया में चौथा स्थान प्राप्त है. पिछली बार एस्टोनिया 15 वें स्थान पर था लेकिन इस बार पूरी दुनिया में चौथे स्थान पर आ गया है. एस्टोनिया में 1857 से एक अख़बार चल रहा है जिसका नाम पोस्टाईमीज़ है. मतलब पोस्टमैन. एक और अखबार है- जिसका नाम तरबिजा है मतलब आधिकारिक जर्नल. यह अखबार 1901 से चल रहा है.
एस्टोनिया के अख़बार का ज़िक्र हुआ है तो एक घटना का भी करना चाहिए जिससे अंदाज़ा मिले कि वहां क्या हो रहा है. मिसाल के तौर पर इस खबर की बात कर सकते हैं. एस्टोनिया की एक अदालत ने वहां के अखबार एस्ती एक्सप्रेस के दो पत्रकारों पर जुर्माना लगा दिया. एक हज़ार यूरो का. पत्रकार ने वहां के सबसे बड़े बैंक के पूर्व अधिकारी की पड़ताल की जिस पर मनी लौंड्रिंग का शक था. कोर्ट ने माना कि ख़बर में जो तथ्य दिए गए थे वे सही हैं, लेकिन राष्ट्रहित में नहीं छापा जाना चाहिए था. भारत में इस तरह के कई हित निकाल लाए जाते हैं. खबरों को सेंसर करने के लिए. तो एस्टोनिया के कोर्ट के आदेश के बाद भी अखबार ने लिखा कि अदालत तय नहीं करेगी कि मीडिया किस मुद्दे को जनता के सामने लाए. अखबार अपनी बात पर अड़ा रहा कि उनकी रिपोर्ट सही है.
अखबार ने कहा कि कोर्ट कैसे तय कर सकता है कि मीडिया क्या छापे और क्या नहीं छापे. इससे पता चलता है कि वहां का मीडिया कितना स्वतंत्र है औऱ अपनी स्वतंत्रता के लिए कितना निर्भीक है. कोर्ट के आदेश के बाद भी अखबार ने इस पर लेख लिखा और अपने प्रेस होने का अहसास कराया.इससे पता चलता है कि वहां का मीडिया अदालत के सामने भी रीढ़ सीधी कर सकता है. होम लोन कितना बढ़ेगा. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सैकत नियोगी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस किसी ने 50 लाख का लोन बीस साल के लिए लिया है और ब्याज दर 7 प्रतिशत से नीचे है उसे EMI 38,765, देनी पड़ती है जो बढ़कर 39,974 हो जाएगी. महीने में 1209 रुपये ज़्यादा देने होंगे.
इसी खबर को दिव्य भास्कर ने दूसरे तरीके से देखा है. दिव्य भास्कर ने तो अच्छे दिन को उल्टा लिख दिया है.लिखा है कि 1 करोड़ 30 लाख गुजरातियों ने 7 लाख 23 हज़ार करोड़ का लोन लिया हुआ है. ब्याज दर बढ़ने से सालाना 3600 करोड़ का भार बढ़ेगा. इतनी मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं थी बल्कि अभी भी महंगाई की कहानी सस्ती की खुशफहमी में बदली जा सकती है. सोचिए कि अगर हाउसिंग सोसायटी और रिश्तेदारों के व्हाट्सएप ग्रुप में यह जानकारी वायरल करा दी जाए कि महंगाई तो पूरी दुनिया में है, और भारत से कहीं ज़्यादा है, तो मारे खुशी के लोग झूमने लगेंगे. उन्हें महंगाई पर गर्व होने लगेगा कि पूरी दुनिया की तुलना में तो भारत में मुद्रा स्फीति काफी कम है. इसलिए बताना ज़रूरी है कि टर्की में अप्रैल में महंगाई दर 69.9 प्रतिशत है.
अर्जेंटीना में मुद्रास्फीति 55.1 प्रतिशत हो गई है. रूस में 16.7 प्रतिशत है. यूरोज़ोन में मुद्रास्फीति ऐतिहासिक स्तर पर है. यहां मुद्रास्फीति की दर 7.5 प्रतिशत है आस्ट्रेलिया में 2010 के बाद ब्याज दर में बढ़ोत्तरी की गई है. एक साल पहले अमरीका मे मुद्रा स्फीति 2.6 प्रतिशत थी लेकिन इस साल मार्च में 8.5 प्रतिशत हो गई. फ्रांस में 1985 के बाद मुद्रास्फीति सबसे अधिक हो गई है. 4.8 प्रतिशत है.
भारत के लोग पहले से ही महंगाई का सामना कर रहे हैं और अच्छे तरीके से कर रहे हैं. हज़ार दो हज़ार EMI बढ़ने से उनके बजट पर बुरा असर तो पड़ेगा लेकिन क्या जनता ने पिछले साल ही 100 रुपये लीटर पेट्रोल भरा कर महंगाई का समर्थन नहीं किया था. अब तो हमने दुनिया भर का डेटा भी दे दिया कि हर देश में महंगाई का संकट है. यह सोच कर लोग सह भी लेंगे. भारतीय रिज़र्व बैंक के फैसले को लेकर कई लेख छपे हैं. इसमें एक लेख एंडी मुखर्जी का है. जिनका कहना है कि फरवरी में रिज़र्व बैंक ने एक अनुमान दिया कि मार्च 2023 तक महंगाई 4.5 प्रतिशत रहेगी. मतलब ज़्यादा नहीं होगी.
उनका कहना था कि ये हाल था रिज़र्व बैंक का जबकि प्राइवेट संस्थाएं भी महंगाई के 6 प्रतिशत तक जाने की बात कर रही थीं. अब तो कई जगहों पर छपा है कि अप्रैल में महंगाई की दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक हो सकती है. दो साल से महंगाई बढ़ रही है लेकिन आप वित्त मंत्री के पुराने बयानों को उठाकर देखिए, वे कह रही हैं कि महंगाई नियंत्रण में हैं. रिज़र्व बैंक के फैसले के बाद शायद कहना मुश्किल हो जाए. 21 अप्रैल का बयान है वित्त मंत्री का, इसे सुनिए फिर याद कीजिए कि सरकार ने आम आदमी को महंगाई से राहत देने के लिए क्या किया है.
ऐसा नहीं है कि लोग नहीं समझते कि महंगाई क्यों है, शायद वे यह भी जानते हैं कि इस पर बात ही रही है, कम तो होती नहीं, फिर भी इस दौर में हम इस बात से अनजान हैं कि महंगाई ने उनके जीवन पर कैसा असर डाला है. आम लोग महंगाई से कैसे लड़ रहे हैं. क्या आप जानते हैं कि 24 मई तक भारतीय रेल ने गाड़ियों के करीब 1100 फेरे रद्द किए हैं. पैसेंजर और मेल ट्रेनों के रद्द होने से आम लोगों के जनजीवन पर क्या असर पड़ा होगा इसकी भी जानकारी नहीं है. क्या यही विकल्प था या यही एकमात्र कारण था, इस पर कितनी कम चर्चा है.
कोविड के दूसरे लहर की याद आज भी उन घरों में जस की तस है जहां लोगों की मौत हुई है.मध्य प्रदेश के सिवनी में गोकशी के शक में दो आदिवासियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई लेकिन जांच से पहले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र ने बजरंग दल को क्लीन चिट दे दी.. स्थानीय विधायक और लोगों ने हत्या का आरोप बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर लगाया है यहां तक की स्थानीय थाना प्रभारी ने भी आरोपियों के बजरंग दल और राम सेना से संबंधित होने की बात कही थी.
कोरोना की दूसरी लहर की याद उन घरों में आज भी वैसी ही है जिनमें कई लोगों की जान नहीं बच सकी. इस दौरान उन परिवारों पर क्या बीती है, वही जानते हैं. पूजा भारद्वाज की रिपोर्ट बता रही है कि किसी महिला के लिए मुआवज़ा पाना और तमाम कागज़ी ज़रूरतों को पूरा करना कितना मुश्किल काम है. यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि रूसी सैनिकों ने चार लाख टन अनाज चुरा लिए हैं. बताइये ये सब होने लगा है. धान-गेहूं लूट रहे हैं सब. कुछ दिन में आरोप लगेगा कि पाकेट मार रहे हैं. जब रूस को यही सब करना है तो युद्ध बंद कर देना चाहिए. युद्ध बंद नहीं होने से उन ग्लोबल नेताओं की नेतागीरी चल रही है जो केवल बयान दे रहे हैं कि युद्ध बंद हो लेकिन हो कुछ नहीं रहा है. युद्ध जारी है.
आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. आज के दिन प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हैं. भारत और जर्मनी के बीच 14 समझौतों पर दस्तख़त हुए हैं. इनकी घोषणा के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर श्कोल्ज़ प्रेस के सामने हाज़िर हुए. दुनिया भर के पत्रकार इन समझौतों और यूक्रेन युद्ध को लेकर सवाल जवाब का इंतजार कर रहे थे लेकिन उन्हें बताया गया कि प्रेस कान्फ्रेंस में सवाल जवाब नहीं होगा.
समाचार एजेंसी रायटर ने इस घटना पर अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में एक भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की है, आज उन्होंने लिखित बयान पढ़ने के बाद कोई सवाल नहीं लिया. हम आपको बता दें कि प्रेस की स्वतंत्रता की रैकिंग में जर्मनी का स्थान 16 वां है और यहां से प्रधानमंत्री डेनमार्क गए हैं जिसका स्थान दुनिया में दूसरा है. क्या वहां भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं करेंगे? जर्मन विदेश प्रसारण सेवा डोएचे वेले के चीफ इंटरनेशनल एडिटर रिचर्ड वाल्कर ने एक तस्वीर के साथ ट्वीट किया है और लिखा है कि - मोदी और स्कोल्ज़ बर्लिन में प्रेस के सामने हाज़िर होने वाले हैं. दोनों 14 समझौतों की घोषणा करेंगे. भारतीय पक्ष के आग्रह पर दोनों ज़ीरो सवाल लेंगे. उन्होंने एक और ट्वीट किया जिसमें लिखा कि RSF प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत आज 142 नंबर से फिसल कर 150 वें नंबर पर आ गया है.
इस रैकिंग पर भारत सरकार का आधिकारिक जवाब है कि वह इसे नहीं मानती है. इस रैकिंग को लेकर 2013 और 2022 में भारत की संसद में सवाल पूछे गए थे. कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों के मंत्रियों के जवाब में बहुत अंतर नहीं है. दोनों ने स्वीकार नहीं किया कि प्रेस की स्वतंत्रता का इतना बुरा हाल है. डोएचे वेले के इंटरनेशनल एडिटर लिख रहे हैं कि भारत के आग्रह पर तय हुआ कि प्रेस कान्फ्रेंस में एक भी सवाल नहीं लिया जाएगा. आज वैसे विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. जब सवाल जवाब का सामना ही नहीं करना था तब प्रेस के सामने हाज़िर होने की औपचारिकता भी छोड़ी ही जा सकती थी. ऐसा लग रहा है कि लोकतंत्र की परिभाषा से प्रेस और प्रेस का सवाल करना दोनों बाहर कर दिया गया है. सितंबर 2021 में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के दौरे पर थे. अमेरिकी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मोदी प्रेस के सामने हाज़िर होते हैं लेकिन वहां भी सवाल-जवाब से मना कर दिया जाता है.अगर बाइडेन ने कहा भी कि सवालों के जवाब नहीं दिए जाएंगे तब प्रधानमंत्री मोदी को क्यों कहना था कि वे इस बात से सहमत हैं.
इस बात को लेकर अमेरिकी प्रेस में हंगामा मच गया. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी को काफी सफाई देनी पड़ी. अमरिकी पत्रकारों ने पूछा कि अमेरिकी प्रेस की तुलना भारतीय प्रेस से क्यों की गई. तब प्रेस सचिव ने कहा कि राष्ट्रपति बाइडेन ने अमरिकी प्रेस का अपमान नहीं किया है. इतना कहा है कि कभी सही बिन्दु पर सवाल नहीं करता. एक अमरिकी पत्रकार ने प्रेस सचिव जेन साकी से पूछा कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस स्वतंत्रता रैकिंग में भारत 142 वें नंबर पर है. उसकी तुलना अमरिकी प्रेस से कैसे हो सकती है. तब जेन साकी के जवाब लड़खड़ाने लगे. वे अपनी सफाई में और उलझती चली गईं.
यह सब बातें हैं. अमेरिकी प्रेस में भी स्वतंत्रता को लेकर अलग स्तर पर संघर्ष चल रहा है. जेन साकी ने भले कह दिया कि जो बाइडेन दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के हिमायती हैं लेकिन उन्होंने भी प्रधानमंत्री मोदी के साथ पत्रकारों से सवाल जवाब न लेने की बात की. यही नहीं जून 2020 में जो बाइडेन प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे थे. फॉक्स न्यूज़ के पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या वे भूलने लगे हैं तब इसके जवाब में जो बाइडेन ने कह दिया कि कुत्ते के जैसी शक्ल है.
यह सही है कि इसके बाद भी उसी अमेरिका में देखने को मिलता है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन पत्रकारों के साथ रात्रि भोज में हैं. वहां पर कमेडियन ट्रेवर नोवा उन्हीं का मज़ाक उड़ा रहे हैं. हमने प्राइम टाइम में कहा था कि अगर भारत होता तो कमेडियन के घर पर बुलडोज़र चल गया होता या केस हो गया होता. ट्रेवर नोवा ने ट्वीट किया है कि मैं आज की रात यहां खड़ा हूं, राष्ट्रपति का मज़ाक उड़ा रहा हूं और मुझे कुछ नहीं होगा. यह बिल्कुल सही है लेकिन पूरा सच नहीं है. अमेरिकी पत्रकार ग्लेन ग्रीनवाल्ड ने ट्वीट किया है कि नोवा को कोई बताए कि अमेरिकी सुरक्षा संस्थानों को लेकर असरी खबर करने पर पत्रकार जूलियन असांज की क्या हालत कर दी गई है. जूलियन असांज को जान बचाने के लिए अलग-अलग देशों में शरण लेनी पड़ी है.अमेरिका में यह भी विवाद चल रहा है कि जब बाइडेन राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे तब उनके बेटे हंटर बाइडेन के ईमेल सामने आए थे. चुनाव के दौरान अमेरिकी प्रेस और ट्विटर फेसबुक ने इस खबर को दबा दिया. अब जाकर इसे सही माना जा रहा है क्योंकि FBI जांच कर रही है. तो हम हर जगह प्रेस का पतन देख रहे हैं.
अरबपतियों के कब्ज़े में प्रेस जाने से सूचनाओं का गला सूखता जा रहा है. प्रेस को चलाने के लिए पैसा चाहिए लेकिन उस पैसे के दम पर प्रेस की टांग ही तोड़ दी जा रही है. भारत में कई मुख्यमंत्री प्रेस कान्फ्रेंस से कतराने लगे हैं. कोई डिजिटल प्रेस कान्फ्रेंस के बहाने सवाल जवाब से बचने लगा है तो कोई एजेंसी से बात कर मीडिया में होने का दायित्व पूरा कर लेता है.
जनता के बीच यह बात सामान्य होने लगी कि प्रधानमंत्री प्रेस कान्फ्रेंस नहीं करते. भारत में भी नहीं, भारत के बाहर भी नहीं. फैसला आपको करना है कि प्रेस चाहिए भी या नहीं. एक समय आप नेताओं को इस बात से भी परखा करते थे कि वह पत्रकारों के सवालों का सामना कैसे कर रहा है और पत्रकारों को परखा करते थे कि वह किस तरह के सवाल कर रहा है. तब जाकर आप अपनी समझ बनाते थे. लेकिन अब जनता भी बदल गई है. या हो सकता है कि यह बात भी पूरी तरह सही न हो. यह भी हो सकता है कि जनता को ऐसे न्यूज़ चैनलों के बीच घेर लिया गया है जिसमें डिबेट हैं, हंगामा है. मगर न्यूज़ के नाम पर कोई सूचना और सवाल नहीं है. अगर ऐसा नहीं होता तब आम लोग अपनी कमाई के दो सौ पांच सौ रुपये से नए-नए मीडिया संस्थानों का सब्सक्रिप्शन क्यों लेते? ये वो लोग हैं जो अपनी जेब से पत्रकारों को मदद कर रहे हैं ताकि भले समंदर माफियों के कब्ज़े में चला गया है कम से कम तालाब तो बचा लें. विश्व प्रेस स्वतंत्रता के दिन दुनिया भर में पत्रकारों को सपोर्ट करने वाले लोगों को सलामी दी जानी चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र का ट्विट है - बिना पत्रकारों के, कोई पत्रकारिता नहीं हो सकती, बिना पत्रकारिता के लोकतंत्र नहीं हो सकता. किसी पत्रकार को हर ख़तरा आपकी आज़ादी को ख़तरा है. प्रेस की स्वंतत्रता के लिए खड़े होईए.
सब मतलब समझ रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि उपदेश की तरह इन अच्छी बातों को केवल सुना जा रहा है. मंत्रियों से सवाल कीजिए तो जवाब नहीं आता है, ट्वीटर पर आए दिन लोग लिखते रहते हैं लेकिन वही मंत्री हर दिन किसी न किसी महापुरुष की जयंती के बहाने जनता के बीच बने रहते हैं. महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि एक तरह की ढाल बन गई है. इससे आपको लगता है कि मंत्री जी पब्लिक के बीच दिन-रात रहते हैं लेकिन ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि पब्लिक की किसी बात का जवाब तो देते नहीं. इसलिए कहता हूं कि न्यूज़ के नाम पर न्यूज़ आध्यात्मिकता का दौर आ गया है. जिसमें भेंट मुलाकात, भाषण उदघाटन का वीडियो ही दिखाया जाएगा और बताया जाएगा कि यही न्यूज़ है. बेहतर है चांद तारों और सितारों की बातें की जाएं या नेताजी को ही प्रभु मान कर उनका गुणगान. लेकिन गर्मी इतनी है कि उससे ध्यान हटता ही नहीं. A time outside this time के लेखक अमितावा कुमार ने एक सवाल किया कि हिन्दी में गर्मी के कितने शब्द हैं. तो हमने सोचा कि न्यूज़ आध्यात्मिकता के लिए यह बेस्ट रहेगा कि गर्मी के शब्दों पर बात की जाए, इससे टाइम भी कट जाएगा और टेंशन भी नहीं होगा.
गर्मी प्रचंड रूप धारण कर चुकी है. आपने देखा होगा कि अब गर्मी और लू की जगह हीट वेव का चलन बढ़ चुका है. गर्मी को शब्दों से कम 44, 46, 48 डिग्री सेल्सियस के नंबर से बयान किया जाने लगा है. लेकिन आम जनजीवन में अब भी गर्मी के अलग-अलग शब्द बचे हुए हैं. हिन्दी में गर्मी, ताप, धाह, धधकना, दाघ, जेठ और घाम जैसे शब्द मिले तो मराठी में उकाडा वाढणे,उष्णता वाढणे, तापमानात वाढ होणे, काहिली, उन्हाळा जाणवणे, गरम होणे का प्रयोग होता है. गुजराती में कठारो, घाम, आंच, उष्मा, तड़फो और ताप है. बुंदेलखंडी में जब गर्मी असहनीय हो जाती है तब आगी बरसत है का इस्तेमाल होता है. कुमाऊ में गर्मी के मौसम को रूड़ कहते हैं. राजस्थानी में ताड़वा शब्द का इस्तेमाल होता है. राजस्थान में जब धरती नौ दिन तपती है तो उसे नौतपा कहते हैं. वर्षा से पहले की जो गर्मी होती है उसे ओघमो कहते हैं.
इस सूची में ओम थानवी ने भी राजस्थान के कुछ शब्द जोड़ दिए हैं. उन्होंने बताया कि तावड़ो के अलावा राजस्थानी में लाय, बायरो, तपत, बळत, सिळगत, उनाळौ और भक्खड का भी इस्तेमाल होता है. वृंदा ने भी कुछ शब्दों की खोज की तो पता चला कि राजस्थानी में गर्मी के संदर्भ में बलबलती, तातो, अंगार, बास्ते, झल बरसे, बायदी पड़े, भोभल, लू बाजे, बल रियो है और तापे का इस्तेमाल होता है.
मेरे मकसद इतना है कि जब आप गर्मी के अलग-अलग रूपों के लिए अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो जीवन में बोलने-लिखने का रोमांच बना रहेगा. हर चीज़ के लिए एक ही शब्दों के प्रयोग से दिमाग़ हैवान की मशीन में बदल जाता है जिसे हर बात में पथराव से टकराव के लिए अवसर नज़र आने लगता है.जोधपुर हो या करौली हो या किसी भी राज्य का कोई भी शहर हो, हर जगह वही कारण, वही बयान. एक समाज हिंसा को सही ठहराने के लिए कितनी मेहनत कर रहा है. आप कब तक ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते रहेंगे. जब लोग गर्मी के शब्दों को भूल सकते हैं तो मुमकिन है कि अपने पड़ोसी को भूल जाएं, भूल जाएं कि किस तरह दो मज़हब के लोग आपस में साथ रहा करते थे.पूरा महीना ही ऐसी घटनाओं और बयानों से भरा रहा. आप समझ नहीं रहे कि आप क्या क्या भूलते जा रहे हैं.
हम सभी बादलों के नाम भूल गए हैं लेकिन हमारे ही पूर्वजों ने बादलों के अनगिनत नाम रचे ताकि हम जीवन का उल्लास न भूलें. आसमान में उड़ते अलग-अलग आकार-प्रकार के बादलों के नाम को गढ़ने वाला यह समाज अपने पड़ोसी का जलता और ढहता घर देखकर कैसे खुश हो सकता है. अनुपम मिश्र ने अपनी किताब राजस्थान की रजत बूंदों में बादलों के ही चालीस से अधिक नाम लिखे हैं. किस कोण पर, किस ऊंचाई पर, किस आकार का बादल उड़ रहा है उन सबके नाम है. वादल, वादली, जलहर, जलधर, जीमृत, जलवाद, जलधरण, जलद, घटा, क्षर, सारग, व्योम, व्योमचर. मेघ, मेघाडवर, मेघमाला, मुदिर, महीमडल. भरणनद, पाथोद, धरमडल, दादर, डबर, दलबादल, धन, घणमड, जलजाल, कालीकाठल, कालाहरण, कारायण, कद, हब्र, मैमट, मेहाजल, मेघाण, महाघण, रामइयो, सेहर, बादलों के 38 नाम गिना दिए हैं और अभी खत्म नहीं हुए हैं. बादलों के नाम उनकी चालढाल और आकार के हिसाब से भी है. बड़े बादलों को सिखर कहते हैं. छोटे-छोटे बादलों के दल के छीतरी कहते हैं. आपने देखा होगा कि बादल का एक टुकड़ा बादलों के झुंड से छिटक गया है, इसे चूखो कहते हैं. ठंडी हवा के साथ उड़ कर जो बादल आता है उसे कोलायण कहते हैं. काले-काले बादलों के आगे श्वेत पताका उठाए सफेद बादल के हिस्से को कोरण या कागोलड़ कहते हैं. और अगर श्वेत पताका जैसे बादल नहीं है तो वैसे काले बादलों को काठल या कलायण कहते हैं. क्या आपको याद भी है कि बादल का एक नामा कलायण है. दिन भर घटा छाई रहे और बूंदा-बांदी होती रहे तो उसे सहाड़ कहते हैं.
हो सके तो यू ट्यूब में प्राइम टाइम के इस अंक को जाकर देखिएगा और गिनने का अभ्यास कीजिएगा, हमने बादलों के कितने नाम बताए. ये सारे शब्द हमने अनुपम मिश्र की किताब राजस्थान की रजत बूंदों से लिए हैं. इसलिए ताकि आप हर चुनाव में हिन्दू मुसलमान के अलावा दूसरे मुद्दों पर बात करना सीखें.आप भी जानते हैं चुनाव से पहले ऐसी घटनाएं इसलिए होती हैं ताकि गोदी मीडिया और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के लिए डिबेट पैदा हो और आप सब कुछ भूलकर उसी डिबेट में फंस जाएं. इसलिए उस समाज को याद कीजिए जिसने बादलों को लेकर शानदार शब्दों की रचना की. उन शब्दों को भूल, दंगों की दलीलों की रचना हो रही है, एक बार सोचिएगा कि किस राजस्थान और किस हिन्दुस्तान की रचना हो रहा है.
राजस्थान में समंदर नहीं है लेकिन वहां समंदर के ही अनेक शब्द हैं. कुछ संस्कृत से लिए गए हैं तो कुछ की रचना स्थानीय लोगों ने की है. सिंधु, सरितापति, वारहर, आच, उअह,वडनीर, सफरा भडार, देधाण और हेल. हाकड़ो भी समंदर के लिए इस्तेमाल होता है. अनुपम मिश्र ने लिखा है कि जिनके पूर्वजों ने समंदर नहीं देखा वे समंदर के लिए हाकड़ो का इस्तेमाल करते हैं. आज अजीब हालात है. केवल वही बात, हिन्दू बनाम मुसलमान. संविधान की शपथ लेकर विधायक बनने वाले हिन्दू राष्ट्र की शपथ ले रहे हैं. हरियाणा में बीजेपी के विधायक असीम गोयल हिन्दू राष्ट्र बनाने की शपथ लेते दिखाई दे रहे हैं. जिन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा रखने की शपथ ली है.
हम भूल गए हैं कि आज़ादी किस लिए हासिल की, नागरिकता का क्या मतलब है, ठीक उसी तरह से जैसे हम गर्मी, बादल, वर्षा के नाम भूल चुके हैं. अंबाला की इस घटना को अपवाद या अनौपचारिक मत समझिए. देखिए कि किस तरह से समानांतर रूप से औपचारिक आंदोलन चलाया जा रहा है.
इसी जनता के बीच बहुत से लोग हैं जो नफरत की आंधी को मौज समझ रहे हैं और इसी जनता के बीच थोड़े बहुत ऐसे भी हैं जो मोहब्बत की हवा का मतलब जानते हैं. दिल्ली के जहांगीरपुरी में ईद के मौके पर दोनों समुदाय ऐसे मिले कि झगड़े की बात आंधियों में उड़ गई.
आम को फलों का राजा कहा जाता है और गर्मी के मौसम में इस रसीले और स्वादिष्ट फल को खाने का अपना ही मजा होता है। आम का सीजन होते ही लोग इसे अपने तरीके से खाना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन अक्सर घरों में देखा गया है कि सालों से दादी-नानी आम खाने से पहले एक बाल्टी पानी में डाल देती थीं। यह सलाह दी जाती है कि आम को कम से कम 2 घंटे पहले पानी में डुबो देना चाहिए। उसके बाद ही आम खाना चाहिए। इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं जो आपके लिए जानना जरूरी है।
क्या कहता है आयुर्वेद
सभी फलों और सब्जियों में कुछ प्रकार के थर्मोजेनिक गुण होते हैं जो शरीर के कामकाज को प्रभावित करते हैं। आमों को पानी में भिगोने से उनमें गर्मी मूल को कम करने में मदद मिलती है। पानी में भिगोए हुए फल खाने से कब्ज, त्वचा की समस्या, सिरदर्द और दस्त जैसे दुष्प्रभाव काफी हद तक कम हो जाते हैं।
खाने से पहले आम को भिगोना है जरूरी
आम को पानी में भिगोने का नुस्खा बहुत पुराना है। ऐसा करने से अतिरिक्त फाइटिक एसिड को बाहर निकालने में मदद मिलती है, जिसका सेवन करने पर शरीर में गर्मी पैदा कर सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार तरबूज, आम और पपीता जैसे फल शरीर में गर्मी पैदा करने के लिए जाने जाते हैं और अत्यधिक गर्मी पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकती है। जिससे डायरिया और स्किन इंफेक्शन की समस्या हो सकती है। ऐसे में फलों को पानी में भिगोने से प्राकृतिक गर्मी (तासीर) कम हो जाती है और यह शरीर के लिए सुरक्षित हो सकता है।
आम को पानी में भिगोने का वैज्ञानिक कारण -
आम की त्वचा से गंदगी, कीटनाशकों, कीटनाशकों और अवांछित रसायनों को हटाने के लिए पानी में भिगोना आवश्यक है। ये संभावित रूप से कैंसर कोशिका वृद्धि का कारण बन सकते हैं। - आम आम तौर पर शरीर का तापमान बढ़ाते हैं, जिससे थर्मोजेनेसिस होता है। इसलिए इसे आधे घंटे के लिए पानी में भिगोने से इनके थर्मोजेनिक गुण कम हो जाते हैं। - यह अपने थर्मोजेनिक गुणों के कारण मुंहासे, फुंसी, कब्ज, सिरदर्द और आंत्र संबंधी समस्याओं जैसी प्रतिक्रियाओं को रोकता है। - आम में फाइटोकेमिकल्स शक्तिशाली होते हैं, भिगोने से उनकी एकाग्रता कम हो जाती है, और वे प्राकृतिक फैट बस्टर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
आम को कितनी देर तक भिगोना चाहिए?
आम को 15-30 मिनट के लिए पानी में भिगो देना चाहिए। आम में बहुत अधिक गर्मी होती है, और भिगोने की प्रक्रिया उन्हें अधिक तापमान तटस्थ बनाती है। पानी में भिगोने से आम की गर्मी को बाहर निकालने में मदद मिलती है। एक बार भीगने के बाद, आमों को पानी से निकाल दें और उन्हें ठंडा होने दें और तुरंत आनंद लेने के लिए टुकड़ों में काट लें।
दुनिया दुनिया में अधिकांश लोगों को कैटस यानि बिल्लियां आकर्षित करती है , ये सेंसिटिव होती हैं और अपने क्यूट से चेहरे और नटखट अदाओं के कारण सभी को खूब लुभाती है। वो स्मेल और इंटूयशन के जरिए यह पता लगाने में मदद कर सकती है कि उसके सामने जो महिला है वो प्रेगनेंट है या नहीं। सुनने में आपको भले ही ये बात अजीब लगे, लेकिन ये सच है, इस आर्टिकल में हम आपको कैट के प्रेगनेंसी सेंस से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी बताने जा रहे है।
किन चीजों से बिल्लियां इंसानों में प्रेगनेंसी का पता लगाती हैं?
कई एनिमल बिहेवियर स्पेशलिस्ट का दावा है कि बिल्लियां जो आम तौर पर एकान्तप्रिय होती हैं, वे खुद को आपके पैरों से रगड़ना शुरू कर सकती हैं और अधिक बार गड़गड़ाहट कर सकती हैं। वो आपके शरीर में प्रेगनेंसी के दौरान बनने वाले हार्मोन और बॉडी टेम्परेचर में आए बदलाव को सूंघने की क्षमता के साथ इस बारे में जान सकती हैं। साथ ही, वो आपकी हरकतों, व्यवहार और आदतों पर पर भी काफी ध्यान देती है।
प्रेगनेंसी में आने वाले बदलाव जिसे बिल्ली समझ सकती है -
1. आपकी बॉडी कैमिस्ट्री में होने वाले बदलावों को देखते हुए बिल्ली यह बता सकती हैं कि आप प्रेगनेंट हैं। उसका स्मैल सेंस हार्मोनल लेवल में बदलाव को नोटिस करेगा। क्यूंकि इस समय आपका शरीर अधिक प्रोजेस्टेरोन, एचसीजी हार्मोन और एस्ट्रोजन का प्रोडक्शन शुरू कर देता है। और इससे आपकी बॉडी में एक अलग ही स्मैल आती है, जिसे वो नोटिस करती है।
2. जब आप प्रेगनेंट होती हैं तो बिल्लियां आपके व्यवहार में आने वाले बदलावों का भी पता लगा सकती हैं। क्यूंकि इस समय आपको भूख भी बहुत लगती है और अक्सर अधिक थकान महसूस होती हैं। और कैटस आपके व्यवहार में नजर आने वाले इन छोटे-छोटे अंतरों को भी नोटिस कर सकती हैं। ऐसे में वे हमेशा घर के आसपास नहीं घूमती।
3. प्रेगनेंसी में मूड स्विंग्स बहुत होता है। आप एक सेकंड के लिए खुश होते हैं और दूसरे ही पल अचानक आप परेशान या चिड़चिड़े हो जाते हैं। बिल्लियां भी इस व्यवहार को महसूस कर सकती हैं और इस समय या तो वो आपसे बहुत नम्रता से पेश आएगी या आपसे पूरी तरह से बचकर रहेगी।
4 प्रेगनेंसी के टाइम में आपकी पीठ धनुषाकार हो जाती है और आप भारी कदम उठाने लगते हैं। ऐसे समय में क्यूट-सी नजर आने वाली कैटस आपको संस्पेंसिव मोड में दिखाई देगी, जो आप इस समय नोटिस कर सकते है।
5. जब आप प्रेगनेंट होती हैं तो आपका शरीर गर्म हो जाता है और कैटस इस तरह की जगहों को बेहतर महसूस करने के लिए अपना शरीर रगड़ना शुरू कर देंगी। यदि आप देखते हैं कि आपकी बिल्ली आपकी तरु अधिक प्यार जता रही है, तो इस चीज की संभावना बहुत अधिक है कि आप प्रेगनेंट है।\
- टोक्सोप्लाज़मोसिज़ एक ऐसी बीमारी है जो तब हो सकती है जब बिल्ली की पॉटी से परजीवी आपके बच्चे में ट्रांसफर हो जाते है। इसलिए जब भी आप अपनी कैट के कूड़े और खाने के बाउल को साफ कर रहे हों तो हमेशा दस्ताने और सर्जिकल मास्क पहनें।
- जब तक आप पहले कुछ हफ्तों या महीनों तक बच्चे की देखभाल नहीं कर लेते, तब तक किसी अन्य व्यक्ति को अपनी कैट की देखभाल की ज़िम्मेदारियां सौंप दें।
- 40% तक महिलाएं टोक्सोप्लाज्मोसिस से ठीक हो सकती हैं, इसलिए इससे जुड़ा कोई जोखिम नहीं है। बस, अपनी कैट की डाइट रेगुलर रखें और उसे ज्यादातर घर के अंदर रखें ताकि बीमारियां ना फैले।
- यदि आपको कोई इंफेक्शन हो जाता है, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें और आवश्यक ट्रीटमेंट लें।
तो ये कुछ संकेत है, जिसकी मदद से आपकी कैट आपकी प्रेगनेंसी को आपसे पहले नोटिस कर सकती है। वैसे रिसर्च ये बताती है कि पालतू जानवर के साथ अधिक समय बिताने से मूड में सुधार हो सकता है, इससे अलावा ये तनाव और ब्लडप्रेशर कम करने में भी मदगगार है जिससे आप हेल्दी लाइफ जी सकते है ।