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प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक का मामला इतना भी मामूली नहीं है कि ज़्यादातर बातें कानाफूसी और व्हाट्एसएप के ज़रिए पत्रकारों के बीच ठेली जाएं और लोग मीम बनाकर हंसी हंसी का खेल खेलें. तरह-तरह की बातें बनाने की जगह जनता के बीच सीधे सीधे और साफ-साफ तथ्य रखे जाने चाहिए. कानाफूसी यानी आफ रिकार्ड ब्रीफिंग के ज़रिए ही बहस बढ़ाई जा रही है. जिस तरह से जीवन के पंच तत्व होते हैं उसी तरह से पत्रकारिता के भी पंचतत्व होते हैं. कब, कौन, कहां, कैसे और क्यों. पत्रकारिता के ये पंचतत्व गोदी मीडिया में विलीन हो गए हैं. इस घटना के कई घंटे बीत जाने के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. एसपीजी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. पंजाब पुलिस के प्रमुख की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. गृह मंत्रालय की तरफ से बठिंडा लौटने के बाद एक बयान जारी हुआ है.
लेकिन गृह मंत्रालय के बयान से भी उन सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं जो मीडिया और नेताओं के ज़रिए उठाए जा रहे हैं. नतीजा यह हुआ है कि आधिकारिक सूचनाओं की जगह तरह तरह की अटकलों से बहस में रोमांच पैदा किया जा रहा है. बहस कभी रैली पर जाती है तो कभी हंसी मज़ाक में भटक रही है. यह दोनों तरफ से हो रहा है. पक्ष से भी और विपक्ष से भी. प्रधानमंत्री बिना किसी पूर्व जानकारी के अचानक लाहौर एयरपोर्ट पर उतर गए, तो जान को खतरा नहीं हुआ, किसानों के बीच चले गए तो खतरा हो गया. इस तरह की बातों से टेबिल टेनिस खेलने से यह जवाब नहीं मिलता कि सुरक्षा में चूक क्यों हुई, कौन ज़िम्मेदार था. जनता को ध्यान रखना चाहिए कि सवाल के जवाब दिए जा रहे हैं या चूक के नाम पर बहस का उत्पादन यानी बहसोत्पादन किया जा रहा है.
टेलीग्राफ, हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस ने पहली खबर तो बनाई है मगर सामान्य खबर के रूप में. हिन्दू अखबार ने इतना ही लिखा है कि प्रधानमंत्री का काफिला पंजाब के हंगामे में फंस गया. टेलीग्राफ की हेडलाइन का अपना ही अंदाज़ है. पूरे प्रसंग पर सवाल खड़े करता है.
दूसरी तरफ हिन्दी अखबारों की हेडलाइन चीख रही है. सीएम को कहना मैं ज़िंदा लौट आया वाली बात को हिन्दी और गुजराती अखबारों ने प्रमुखता और मोटे मोटे फोन्ट में छापा है. यह वाली खबर समाचार एजेंसी ANI की तरफ से आई थी. टीवी चैनलों में मैं ज़िंदा आ गया के नाम से कई डिबेट शो होने लगे. प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर माहौल बनाया जाने लगा. थ्रिल पैदा किया जाने लगा ताकि पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से लोग शेयर करने लगें. भिड़ जाएं. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं कि ANI से किस स्तर के अधिकारी ने बात की, उसके ट्वीट में इतना लिखा है कि बठिंडा एयरपोर्ट पर अधिकारियों से प्रधानमंत्री ने कहा. क्या ये अधिकारी एयरपोर्ट के थे या राज्य सरकार के थे? एक अधिकारी से कहा या कई अधिकारियों से कहा? क्या इन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री की यह बात लिखित रूप से पंजाब के मुख्यमंत्री को बताई? क्या प्रधानमंत्री की बात को उस अधिकारी ने मज़ाक समझा तब तो उसे सस्पेंड कर देना चाहिए. पंजाब सरकार ने भी अपनी तरफ से उस अधिकारी को पेश नहीं किया है जिससे प्रधानमंत्री ने ज़िंदा होने की बात कही है. लेकिन अब यही एक लाइन इस पूरी घटना का मुखौटा बन गया है और बहसोत्पादन का आधार बन गया है.
यह मामला गंभीर तो है लेकिन इसके आस-पास इस तरह से ईवेंट और डिबेट रचे जा रहे हैं कि पाठक और दर्शक का ध्यान सुराक्षा की चूक से जुड़े ठोस सवालों से भटक जा रहा है. जिससे संदेह पैदा हो सकता है कि सुरक्षा में चूक का यह मामला कहीं जोशीले ईवेंट पैदा करने के लिए तो नहीं किया गया है. आज प्रात: सवा ग्यारह बजे भोपाल में पत्रकारों को यह संदेश भेजा गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज दोपहर 1 बजे गुफा मंदिर में प्रधानमंत्री जी के दीर्घायु जीवन और रक्षा हेतु महामृत्युंजय जाप करेंगे. प्रदेश के दोनो ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर और ओम्कारेश्वर सहित सभी बड़े शिवालयों में भी महामृत्युंजय जाप किया जाएगा.
यह सूचना सही निकली. दो घंटे पहले बता दी गई थी ताकि प्रेस के लोग सही समय पर पहुंच जाएं और सुरक्षा चूक के मामले का कवरेज़ ठीक से हो सके. प्रधानमंत्री सुरक्षित हैं फिर भी महामृत्युंजय का जाप करने स्वयं मुख्यमंत्री पहुंच गए. आप फर्क को गौर करें तो फर्क साफ दिखेगा. कहां तो पत्रकारों का जमावड़ा गृह मंत्रालय, पीएमओ या एसपीजी के पास होना चाहिए तो मंदिर और हवन वगैरह के कवरेज में होने लगा है.
अगर यही कारगर है तो फिर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी एसपीजी को भी महामृत्युंजय के जाप की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. अगर उठाने की हालत में है तो सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार एसपीजी के प्रमुख ने महामृत्युंजय का जाप क्यों नहीं किया? उनका काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्यों कर रहे हैं. बेशक प्रधानमंत्री के दीर्घायु होने की कामना पूरे देश के साथ मुख्यमंत्री भी कर सकते हैं, हम सभी करते हैं, लेकिन इस तरह का जाप मामले की गंभीरता को हल्का भी कर रहा है. प्रश्न उठता है कि क्या यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि भाषणों से उदासीन हो चुकी जनता और खासकर समर्थकों में नया उत्साह भरा जा सके. थ्रिल पैदा हो सके. और तमाम मुद्दों को किनारे कर प्रधानमंत्री को ही मुद्दा बना दिया जाए? बहरहाल इस प्रश्न को स्थगित कर देते हैं. अनुराग द्वारी इसके कवरेज के लिए पहुंचे. बहुत सारे पत्रकार पहुंचे. मुख्यमंत्री हवन करते नज़र आए. लेकिन अनुराग यह देखकर हतप्रभ रह गए कि एक हज़ार मंत्रों का जाप इतनी जल्दी कैसे हो गया. आधे घंटे से भी कम समय में हवन की पूर्णाहुति हो गई. मुख्यमंत्री ने ट्वीट तो किया था कि महामृत्युंजय का जाप करेंगे लेकिन पुजारी ने बताया कि गणपति की पूजा करके चले गए.
अब अगर पूजा पाठ से ही इन सवालों को ढंक देना है तो फिर उन सवालों का क्या किया जाए जो जानने की ज़रूरी हैं कि सुरक्षा में चूक कैसे हुई और कौन कौन ज़िम्मेदार है. जनरल बात क्यों हो रही है. आधिकारिक रूप से जवाब देने के बजाए निंदा के ज़रिए राजनीतिक बहस पैदा की जा रही है. पत्रकारों के व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ का कुछ ठेला जा रहा है ताकि इसे लेकर पैदा की गई डिबेट कुछ दिन और चलती रहे. संसद ने एक कानून पास कर प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप एसपीजी को दी है. 5 जनवरी की इस घटना में एसपीजी का क्या पक्ष है आप सूचना के अधिकार से भी नहीं जान सकते क्योंकि एसपीजी को RTI से मुक्त रखा गया है. तो रास्ता यही है कि एसपीजी देश को आधिकारिक जानकारी दे कि क्या हुआ. बुधवार को पत्रकार मीतू जैन ने एसपीजी और पंजाब पुलिस की भूमिका को लेकर एक ट्वीट किया था.
प्रधानमंत्री की यात्रा योजना SPG की ब्लू बुक के हिसाब से ही बनाई जाती है. अनिष्ट की आशंका को देखते हुए Safe house यानी सुरक्षित ठिकाने से लेकर सुरक्षित मार्ग तक की योजना प्रधानमंत्री की Advanced Security लियेज़ॉं में होती है. Advanced Security लियेज़ॉं में SPG, IB और राज्य की पुलिस होती है.
प्रधानमंत्री कार्यालय को जवाब देना चाहिए कि क्या उसे पता नहीं था कि पंजाब में मौसम खराब है. क्या ब्लू बुक के हिसाब से मौसम विभाग से इस बारे में कोई जानकारी ली गई थी. अगर मौसम खराब हो जाता है, हेलिकाप्टर का उड़ना संभव नहीं है तब क्या वैकल्पिक मार्ग की योजना एडवांस सिक्योरिटी लियेज़ॉं के हिसाब से तय की गई थी जिसमें तीन लोग हिस्सेदार होते हैं. एसपीजी, खुफिया एजेंसी और राज्य की पुलिस. 111 किमी की सड़क से यात्रा में दो घंटे लगते हैं. क्या वाकई SPG ने उस मार्ग को पूरी तरह सुरक्षित करने से पहले इसकी अनुमति दी? ब्लू बुक के अनुसार SPG तब तक आगे नहीं बढ़ती है जब तक राज्य पुलिस मार्ग को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं करती है और हरी झंडी नहीं देती है. क्या SPG ने पूर्व योजना के तहत सड़क मार्ग से ले जाने का फैसला किया? अगर नहीं तो SPG के प्रमुख को बर्खास्त कर देना चाहिए. अगर पंजाब के पुलिस प्रमुख ने यह कहा कि पूरे मार्ग को सुरक्षित कर लिया गया और नहीं किया गया था तो उन्हें इस्तीफा देना चाहिए. क्योंकि उन्होंने SPG को गलत सूचना दी. बीजेपी कहती है कि बीजेपी का झंडा लेकर बीजेपी के ही कार्यकर्ता काफिले के नज़दीक आ गए थे. जहां से प्रधानमंत्री का काफिला वापस मुड़ गया. तब यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री के सुरक्षा मार्ग में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को काफिले के करीब कैसे आने दिया गया? प्रधानमंत्री काफिले के सामने बस और टैम्पो में बैठे नागरिकों को कैसे आने दिया गया. काफिले के आगे चेतावनी देने वाली एक कार चलती है और एक पायलट कार चलती है. क्या इन कारों ने भीड़ देखकर काफिले को अलर्ट नहीं किया? काफिला प्रदर्शनकारियों के इतना नज़दीक कैसे आ गया? बीस मीटर की ही दूरी थी. क्या SPG को तुरंत यू टर्न नहीं लेना था, उसने बीस मिनट इंतज़ार क्यों किया? प्रधानमंत्री ने एयरपोर्ट आफिशियल से कहा कि ज़िंदा लौट आए है. अगर उनकी जान को खतरा था तब एसपीजी को जवाब देना चाहिए. उनकी सुरक्षा का काम एसपीजी का है. एसपीजी प्रधानमंत्री के बिल्कुल करीब होती है. जो वीडियो और फोटो है उसमें एसपीजी कार के दोनों तरफ हैं. कार के सामने नहीं है. इस कार के सामने किसने फोटोग्राफर को आने की इजाज़त दी जो प्रदर्शनकारियों के वीडियो ले रहा था? कुछ भी हो अगर प्रधानमंत्री की जान को खतरा था तब मीडिया के फोटोग्राफर को इतना करीब जाने की अनुमति किसने दी. क्या प्रधानमंत्री अपने साथ इतना नज़दीक फोटोग्राफर को रखते हैं?
ये सारे सवाल अहम हैं. इनके ही जवाब से हम सुरक्षा में चूक को लेकर कुछ जान सकते हैं. मीतू जैन के इस ट्वीट से साफ है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का काम एसपीजी करती है, उनकी यात्रा से पहले उस जगह की सुरक्षा का इंचार्ज वह बन जाती है. स्थानीय पुलिस भी उसके अधीन और साथ साथ काम करने लग जाती है. इसके बाद भी मुख्यमंत्री स्तर की हस्तियां कह रही हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की थी. जबकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि कौन ज़िम्मेदार है.
अगर गांधी परिवार और कांग्रेस ने साज़िश की है तो फिर इसकी जांच केंद्र सरकार की सुरक्षा एजेंसी ही करेगी. करनी चाहिए. पंजाब सरकार ने जांच का एलान किया है और गृह मंत्रालय ने पंजाब से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. 1998 में संसद में एसपीजी एक्ट बना था. 25 नवंबर 2019 को इसमें संशोधन के लिए एक बिल लोकसभा में पेश किया गया. यह संशोधन इसलिए किया जा रहा है ताकि SPG अपने मुख्य कर्तव्य कोर मैंडेट प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर केंद्रित कर सके. इसके मकसद में साफ साफ लिखा है कि “अधिनियम का संशोधन करना इसलिए आवश्यक समझा गया है जिससे मुख्य आदेश पर ध्यान केंद्रित किया जा सके क्योंकि सरकार के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री की सुरक्षा सरकार, शासन और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में सर्वोच्च महत्व की है. इसका एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री और उनके कुटुम्ब के सदस्यों को निकट सुरक्षा प्रदान करना है.”
तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा की मुख्य ज़िम्मेदारी एसपीजी की है, राज्य सरकार की नहीं है. एसपीजी का मुख्य काम ही है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को देखे. ऐसा क्यों है कि मूल सवालों के जवाब का इंतज़ार किए बगैर धार्मिक कार्यक्रमों के ज़रिए सियासी माहौल बनाया जा रहा है.
आज दिल्ली में भी कई मंदिरों में प्रधानमंत्री की सुरक्षा और दीर्घायु होने के लिए महामृत्युंजय का जाप किया जाने लगा. प्रेस को जानकारी दी गई कि बीजेपी के उपाध्यक्ष बैजयंत पंडा झंडेवाला मंदिर में, पंजाब और उत्तराखंड के प्रभारी बीजेपी नेता दुष्यंत गौतम कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर में और राज्यसभा सांसद अरुण सिंह प्रितिविहार में, जाप करेंगे. यज्ञ की भी सूचना आई. इसी दिल्ली में और देश में कोरोना के समय लाखों लोग मर गए, ऑक्सीजन और अस्पताल की कमी से तड़प कर मर गए तब क्यों नहीं महामृत्युंजय का जाप किया गया. अगर किया जाता तो वे सारे लोग भी दीर्घायु रहते. मेरा यही कहना है कि क्या सुरक्षा की चूक को इन धार्मिक कार्यक्रमों के बहाने राजनीतिक कार्यक्रम में बदला जा रहा है. इससे तो पूरे मामले की गंभीरता समाप्त हो जाती है. असल में यह सब न हो तो सुरक्षा में हुई चूक के अगले दिन न्यूज़ चैनलों पर कवरेज क्या होगा, तो इस तरह से ईवेंट के ज़रिए उन्हें लाइव दिखाने के लिए कटेंट भी दिया गया जिसका लाभ हमें भी मिला.
हाल ही में खबर आई थी कि करोड़ों रुपये की मर्सिडिज़ कार खरीदी गई ताकि सुरक्षा और मज़बूत हो. इस कार को विस्फोटक से भी नहीं उड़ाया जा सकता है. ऐसी मर्सिडिज़ खरीदने के बाद भी महामृत्युंजय का जाप किया जा रहा है. देश भर में बीजेपी ने पूजा पाठ और यज्ञ शुरू कर दिया. इससे संदेह और गहरा होता है कि सुरक्षा में चूक एक नया ईवेंट है.
यही पूरे मामले की एकमात्र गंभीर तस्वीर है. खबर आई कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर गंभीर रूप से चिन्तित हैं. भारत के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री ने मुलाकात कर स्थिति की जानकारी दी. क्या जानकारी दी, किस तरह के तथ्य रखे गए इसकी जानकारी नहीं. उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की निंदा की है.
इस बीच कुछ वकील प्रधानमंत्री की सुरक्षा के सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए कि इसकी न्यायिक जांच हो. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले का संज्ञान लिया है और सात जनवरी को सुनवाई तय की है. इस जगह पर हम बताना चाहते हैं कि आज पंजाब के अखबारों ने इस पूरी घटना को हिन्दी और अंग्रेज़ी अखबारों से कैसे अलग कवर किया है. आप कह सकते हैं कि पंजाबी अखबारों की हेडलाइन अंग्रेज़ी अखबारों की तरह प्रमुखता से लैस तो है मगर हिन्दी अखबारों की तरह चीख नहीं रही है. जैसे जिंदा लौट आया वाले बयान को उन पंजाबी अखबारों में चीखते हुए नहीं लगाया है जिन्हें हमने देखा है. क्योंकि ज़िंदा लौट आने वाला बयान केवल ANI की तरफ से रिपोर्ट हुआ है. लगता है कि अंग्रेजी और पंजाबी अखबारों ने इसे कवर तो किया है मगर थोड़ी दूरी भी बनाई है. पंजाबी के मशहूर अखबार अजीत की पहली हेडलाइन है कि ‘हालात के मद्देनज़र प्रधानमंत्री मोदी ने फिरोज़पुर दौरा बीच में छोड़ा', इसके नीचे एक नोट है कि सुरक्षा में हुई बड़ी कोताही - 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसा रहा मोदी का काफ़िला - केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार से मांगी रिपोर्ट. इसके नीचे यानी तीसरे नंबर पर है' सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक ज़िंदा पहुंच पाया - मोदी' पंजाबी ट्रिब्यून की हेडलाइन है 'सुरक्षा खामियों' के कारण रैली में ना पहुंच सके मोदी. सुरक्षा खामियों को इनवर्टेड कॉमा में रखा गया है. यानी सुरक्षा खामियों पर संदेह भी करता है. यह अखबार भी छोटी हेडलाइन में लिखता है कि ‘अपने सीएम का धन्यवाद करना कि मैं बठिंडा हवाई अड्डे से ज़िंदा आ सका - मोदी' इसी तरह एक और पंजाबी अखबार जग बाणी की हेडलाइन है कि सुरक्षा में कोताही होने के कारण पीएम मोदी को पंजाब आ कर लौटना पड़ा. सभी अखबारों में पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का भी पक्ष प्रमुखता से छापा गया है.
आपको याद दिला दें कि तीन जनवरी को PIB ने एक प्रेस रिलीज़ जारी की थी जिसमें पंजाब के दौरे का पूरा कार्यक्रम था. इसमें हुसैनीवाला जाने का ज़िक्र नहीं था. 5 जनवरी की सुबह प्रधानमंत्री PIB की इसी रिलीज़ को ट्वीट करते हैं कि पंजाब में आज उनके क्या क्या कार्यक्रम हैं. पांच जनवरी के उनके ट्वीट में हुसैनीवाला का ज़िक्र नहीं है. रास्ता रोके जाने के बाद गृह मंत्रालय का बयान PIB की तरफ से जारी होता है. इसमें लिखा गया है कि ''प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आज सुबह बठिंडा पहुंचे, जहां से वे हेलीकॉप्टर से हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने वाले थे. बारिश और खराब दृश्यता के कारण प्रधानमंत्री ने करीब 20 मिनट तक मौसम साफ होने का इंतजार किया जब मौसम में सुधार नहीं हुआ तो निर्णय लिया गया कि प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाएंगे, जिसमें दो घंटे से अधिक समय लगेगा. डीजीपी पंजाब पुलिस द्वारा आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों की आवश्यक पुष्टि के बाद प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से यात्रा के लिए रवाना हुए.''
इसमें यह तो लिखा है कि प्रधानमंत्री हेलिकाप्टर से हुसैनीवाला जाने वाले थे लेकिन यह नहीं लिखा है कि जाने का कार्यक्रम कब तय हुआ. यह भी लिखा है कि बारिश नहीं रुकी तब दो घंटे के सफर का निर्णय लिया गया है और डीजीपी पंजाब ने हरी झंडी दे दी कि आवश्यक सुरक्षा प्रबंध कर लिए गए हैं तब काफिला रवाना हुआ.
यह वीडियो उस जगह है जहां काफिला रुका हुआ है। इस वीडियो में बीजेपी का झंडा दिखाई देता है। बीजेपी का झंडा लेकर कर समर्थक काफिले के इतने नज़दीक कैसे पहुंचे. हमारे सहयोगी मोहम्मद ग़ज़ाली ने एक वीडियो भेजा है. इस वीडियो में बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अमित तनेजा कमेंट्री कर रहे हैं. उनकी कार के ठीक सामने से प्रधानमंत्री का काफिला गुज़र रहा है. काफिले में परिंदा नहीं आ सकता लेकिन बीजेपी का यह नेता कमेंट्री कैसे कर रहा है.
कितनी अफरातफरी थी कि बीजेपी के नेता कार के रास्ते में हैं. ये वो जगह है जिसके बारे में गृहमंत्रालय ने PIB की रिलीज़ में लिखा है कि हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर, जब प्रधानमंत्री का काफिला एक फ्लाईओवर पर पहुंचा तो पाया गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया है. रैली में भीड़ नही थी इस वजह से लौट आए इस पर फोकस करने के बजाए सुरक्षा में चूक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. 140 किमी की दूरी सड़क से तय करने का फैसला अचानक हुआ या पहले से आपात स्थिति के तौर पर तय था? क्या पंजाब पुलिस के डीजीपी ने एसपीजी को सुरक्षा की हरी झंडी देने से पहले इस बात की पुष्टि कर ली थी कि रास्ता खाली है. दस हज़ार पुलिस तैनात थी वो कहां तैनात थी, बठिंडा से हुसैनीवाला के रास्ते में तैनात थी? ट्रिब्यून अखबार में डीजीपी इंदरबीर सिंह का बयान छपा है कि 100 किसानों का फ्लैशमॉब अचानक आ गया. तो सौ किसान नहीं हटाए जा सके? मगर किसान नेता कह रहे हैं कि उनका धरना तो पहले से चल रहा था. ग़ज़ाली ने हमें एक वीडियो भेजा है. इस वीडियो में धरना दे रहे किसान यूनियन के नेता बलदेव सिंह ज़िरा लाउडस्पीकर पर पंजाबी में कहते सुने जा सकते हैं. कह रहे हैं कि प्रशासन वाले आए थे, कह रहे थे कि उनकी नौकरी दांव पर है, प्रधानमंत्री आ रहे हैं, चले जाइए. किसान नेता कह रहे हैं कि उन्हें भरोसा नहीं हो रहा है. उन्हें लगता है कि प्रशासन उन्हें हटाने के लिए पीएम के आने का बहाना बना रहा है.
इसी बात को कई चैनल इस तरह से चला रहे हैं कि पंजाब पुलिस ने पीएम के आने की सूचना लीक कर दी लेकिन किसान नेता कह रहे हैं कि उन्हें प्रशासन की बात पर भरोसा नहीं है, लगता है वे उन्हें हटाने के लिए बहाने बना रहे हैं. इसी बात को लेकर इंडियन एक्स्प्रेस के कमलदीप सिंह बरार ने अंग्रेज़ी में रिपोर्ट लिखी है, ''इस खबर में बलदेव सिंह ज़िरा का बयान छपा है कि फिरोज़पुर एसएसपी ने जब कहा कि प्रधानमंत्री ये रूट ले रहे हैं तो हमें यकीन नहीं हुआ. हमें लगा कि प्रशासन बहाने बना रहा है. हम यहां पर बीजेपी की गाड़ियों को रोकने के लिए पहले से धरना दे रहे थे. अगर हमें पता होता कि वास्तव में प्रधानमंत्री इस रूट से जाने वाले हैं तो हमारी प्रतिक्रिया अलग होती. वे हमारे प्रधानमंत्री हैं. बलदेव सिंह का और भी बयान छपा है कि हमने बीजेपी से कहा था कि हम यहां धरना दे रहे हैं तो किसी और रूट से रैली में जाएं. धरना स्थल पर बीजेपी के कार्यकर्ता और किसानों के बीच टकराव भी हुआ. हमारे लोग घायल भी हुए.''
भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी पंजाब का पुराना और प्रभावशाली किसान संगठन है. पंजाब में कुछ दिनों से किसानों का आंदोलन चल रहा है. यह आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ भी है और स्थानीय मांगों को लेकर पंजाब सरकार के खिलाफ भी है.
बेशक किसान बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का रास्ता रोक रहे थे लेकिन उनका प्रदर्शन राज्य सरकार के खिलाफ भी चल रहा था. प्रधानमंत्री की रैली का विरोध पंजाब के ग्यारह किसान संगठन कर रहे थे. उनका यह प्रदर्शन पिछले चार दिनों से चल रहा था और राज्य सरकार के खिलाफ भी चल रहा था. 48 घंटे से पंजाब पुलिस अलग अलग जगहों पर किसानों के इन प्रदर्शनों से जूझ रही थी. कुछ सामूहिक मांगें भी थी जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के कानून को लेकर और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा की गिरफ्तारी को लेकर लेकिन कुछ मांगे पंजाब सरकार से भी थी. जैसे बिजली और कर्ज की माफी को लेकर. जब पता था कि चार दिनों से पंजाब में 11 किसान संगठनों के जगह जगह आंदोलन चल रहे हैं तब क्यों प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से ले जाने का फैसला किया गया. क्या एसपीजी ने इसके जोखिमों का हिसाब लगा लिया था, 140 किलोमीटर की सड़क यात्रा का जोखिम इतना आसान नहीं कि केवल पंजाब सरकार पर आरोप लगाकर छुटकारा पा लिया जाए.
पंजाब पुलिस के प्रमुख सिद्धार्थ चटोपाध्याय को सामने आकर सभी प्रश्नों का जवाब देना चाहिए और इसके बाद एसपीजी प्रमुख को भी, मुमकिन हो तो एक साथ प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए. जब इतनी राजनीति हो रही है तब फिर इसका बहाना नहीं चलेगा कि सुरक्षा एक गंभीर मसला है और सारी जानकारी साझा नहीं की जा सकती है. पंजाब पुलिस के प्रमुख ही बता सकते हैं कि हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम कब बना? 140 किमी सड़क मार्ग से ले जाने का प्रस्ताव पंजाब पुलिस को कब मिला? पंजाब पुलिस ने इतने लंबे रास्ते को कितने देर में खाली कराया? प्रधानमंत्री के रूट में सुरक्षा की कैसी तैनाती थी? मुख्यमंत्री चन्नी का बयान है कि सड़क मार्ग से जाने की पहले योजना नहीं थी. इस एक सवाल को स्थापित करना बहुत ज़रूरी है. समस्या यह है कि मुख्यमंत्री भी तुरंत रैली और खाली कुर्सियों पर शिफ्ट हो जा रहे हैं. पंजाब का पक्ष बिन्दुवार नहीं रख रहे हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री ने विस्तार से प्रेस कांफ्रेंस की है. उनके कुछ मुख्य जवाब हैं...
- डीजीपी ने केंद्र से कहा था कि खराब मौसम और किसानों के प्रदर्शन के कारण प्रधानमंत्री यात्रा टाल दें
- तय कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री का हेलिकाप्टर फिरोज़पुर के हेलिपैड पर उतरना था
- सड़क मार्ग से जाने की कोई योजना नहीं थी। आखिरी वक्त में तय किया गया
- रास्ते में हमें पता चला कि प्रदर्शनकारी जमा हो गए हैं तब हमने PMO को तुरंत सूचित कर दिया
- सुरक्षा में कोई चूक नही हुई है
हम फिर से लौट कर आते हैं. हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम कब तय हुआ, 140 किमी सड़क से जाने का कार्यक्रम कब बना? पंजाब पुलिस के डीजीपी ने क्या कहा और केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने क्या कहा? प्रधानमंत्री की जहां भी यात्रा होती है उसके कई दिन पहले से सुरक्षा की टीम ज़िले में मौजूद रहती है. उस टीम का क्या इनपुट था. इन सभी सवालों के जवाब आधिकारिक तौर पर दिए जाने चाहिए. न कि कुछ चिट्ठी यहां से लीक कर और कुछ चिट्ठी वहां से लीक कर. ध्यान रखें कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का जिम्मा एसपीजी के पास होता है. वो खुफिया एजेंसी और राज्य पुलिस के साथ मिल कर अंतिम फैसला करती है. एसपीजी को जवाब देना चाहिए। आज पंजाब पुलिस का अंदरुनी पत्राचार लीक हुआ. इसे हमारे पेशे की ज़ुबान में सरफेस होना कहते है. मतलब कोई नहीं जानता कि चिट्ठी कब और कैसे बाहर आ गई. यह पत्र पंजाब पुलिस के कानून व्यवस्था के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक की तरफ से भेजा गया है. इसमें लिखा है कि पांच जनवरी को प्रधानमंत्री फिरोज़पुर की रैली में आ रहे हैं. पांच को मौसम खराब रहेगा. फिरोज़पुर की रैली के लिए पंजाब के सभी ज़िलों से एक लाख लोगों के जुटाने की योजना है. फिरोज़पुर में बहुत सारा वीआईपी मूवमेंट होगा. बारिश के कारण मुख्यमंत्री और अन्य वीआईपी सड़क मार्ग का ही इस्तमाल करेंगे. इसलिए ट्रैफिक की गंभीर समस्या हो सकती है तो अपने अपने इलाके में वैकल्पिक मार्ग की तैयारी रखें. किसानों पर नज़र रखें. रैली स्थल तक न पहुंचने दें. एस एस पी इसे खुद निजी तौर पर देखें और ट्रैफिक प्लान सुनिश्चित करें.
3 जनवरी और 5 जनवरी को जब PIB और प्रधानमंत्री अपनी पंजाब यात्रा के बारे में ट्वीट करते हैं तो हुसैनीवाला का कोई ज़िक्र नहीं है. पंजाब पुलिस के पत्राचार में आपने गौर किया होगा कि मौसम खराब होने का ज़िक्र है इसी जगह पर हम फिर से पत्रकार मीतू जैन के इस सवाल को लाना चाहते हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में पूछा है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को देखने वाली जो कोर टीम होती है वो एसपीजी, खुफिया एजेंसी और राज्य की पुलिस होती है. उस टीम का काम मौसम का भी ध्यान रखना होता है. और इसकी जानकारी मौसम विभाग से लेनी होती है. इस बारे में क्या इनपुट लिया गया. चार जनवरी के पंजाब पुलिस के पत्राचार से साफ है कि मौसम खराब होने की बात है और इसे ध्यान में रखते हुए इमरजेंसी प्लान के तौर पर वैकल्पिक रूट तैयार रखने की भी बात है.
अगर मौसम खराब होने का अनुमान था, मौसम खराब भी चल रहा था, दिल्ली से चलने से पहले से ही पता होगा कि पंजाब में मौसम कैसा है तब सड़क मार्ग वो भी 140 किमी लंबे सड़क मार्ग को लेकर क्या तैयारी थी. क्यों अचानक योजना बनाई गई? एसपीजी का मोटो है ज़ीरो एरर. मतलब एक भी गलती नहीं. तो ज़ीरो एरर वाली एस पी जी बताए कि इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई. क्या इस मामले में केवल पंजाब सरकार की साख दांव पर है? एसपीजी का कुछ भी दांव पर नहीं है?
यहां पर हम इस बिन्दु को भी लाना चाहते हैं. हुसैनीवाला पाकिस्तान की सीमा से बिल्कुल सटा है. फिरोज़पुर ज़िला भी सीमावर्ती ज़िला है. चार महीने पहले केंद्र सरकार ने सुरक्षा कारणों को देखते हुए सीमा से सटे पचास किलोमीटर के इलाके को सीमा सुरक्षा बल BSF के हाथ में दे दिया. इसका मतलब है वहां केंद्र सरकार के हिसाब से गंभीर खतरा होग. ड्रोन से हमले की खबरें आती ही रहती हैं. तो ऐसी जगह पर सड़क मार्ग से जाने के लिए अचानक फैसला क्यों लिया गया? इस पूरे मामले में BSF की क्या भूमिका है, उसके पास किस तैयारी की सूचना थी? हम नहीं जानते. इसलिए हमारा ज़ोर इस बात पर है कि सारे जवाब एक जगह से और आधिकारिक तौर पर मिलने चाहिए. यह सवाल पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी उठाए हैं. समराला की सभा में मुख्यमंत्री चन्नी कह रहे हैं कि पीएम की जान पर आएगी तो वे अपनी जान दे देंगे लेकिन पंजाब को बदनाम करने की बात बर्दाश्त नहीं करेंगे.
कांग्रेस के मुख्यमंत्री इसे पंजाब के सम्मान का मुद्दा बना रहे हैं, बीजेपी के मुख्यमंत्री महामृत्युंजय जाप करा रहे हैं. सूरक्षा चुक से सबको फायदा होता लग रहा है लेकिन आधिकारिक जवाब तो आने चाहिए. प्रधानमंत्री को सौ किलोमीटर सड़क से ले जाने का फैसला वो भी सीमावर्ती इलाके में, इतना हल्का नहीं कि पंजाब बनाम केंद्र और गांधी परिवार बनाम मोदी सरकार में समेट दिया जाए. प्रधानमंत्री अपने रुट में अचानक बदलाव करते रहे हैं. जैसे मौजूदा प्रधानमंत्री तो लाहौर एयरपोर्ट पर ही उतर गए. 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जेएनयू में छात्रों ने घेर लिया था. जब वे जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय गए थे, तब AISA से जुड़े छात्रों ने उन्हें काले झंडे दिखाए गए थे. नवंबर का महीना था. छात्र इरान पर यूपीए सरकार की नीति का विरोध कर रहे थे. प्रधानमंत्री ने अपना भाषण शुरू ही किया कि काले झंडे दिखाए जाने लगे. मनमोहन सिंह अपना भाषण दस मिनट में समेट कर चले गए. उस समय वे जेएनयू के अवैतनिक प्रोफेसर भी थे. लेकिन उसके बाद उन्होंने छात्रों पर कार्रवाई से मना कर दिया था. काले झंडे दिखाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.
हर घटना अपने आप में अलग होती है. इस घटना की तुलना जेएनयू से नहीं कर सकते. वैसे आज जेएनयू के छात्र प्रधानमंत्री का काफिला रोक दें तो सभी UAPA की धारा में बंद हो चुके होते. पांच जनवरी का दिन सुरक्षा में चूक और ज़िंदा लौट आया के नाम रहा. वैसे 5 जनवरी 2020 को जेएनयू के साबरमती होस्टल में गुंडों ने हमला किया था. आज तक वे गुंडे नहीं पकड़े गए. इस तरह से गुंडे लड़कियों को पीट कर चले गए, तोड़फोड़ कर चले गए और पकड़े तक नहीं गए. उसी जेएनयू से एक छात्र नजीब गायब हो गया, हमारी सुरक्षा एजेंसियां खोज नहीं सकीं.
किसान आंदोलन एक साल तक चला. प्रधानमंत्री ने कभी उनसे बात नहीं की. कृषि कानूनों को वापस ले लिया तब भी किसानों से बात नहीं की. मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बयान दिया कि किसानों के मरने की बात पर प्रधानमंत्री ने कहा कि क्या मेरे लिए मरे हैं. राज्यपाल इस बात पर सफाई देकर राज्यपाल बने हुए हैं. प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक गंभीर है लेकिन इसे मीम और महामृत्युजंय जाप के ज़रिए हल्का बना दिया गया है. आप गंभीर बने रहिए.
ब्रिटिश मूल की सिख सेना अधिकारी प्रीत चंडी ने अकेले दक्षिणी ध्रुव का सफर पूरा करने वाली पहली "गैर श्वेत महिला" बनकर इतिहास रच दिया है. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, चंडी का साहसिक कार्य पिछले साल नवंबर में शुरू हुआ, जब उन्होंने अंटार्कटिका के हरक्यूलिस इनलेट से असमर्थित अपनी यात्रा शुरू की. उसने अगले कुछ सप्ताह अंटार्कटिका में अकेले स्कीइंग करते हुए बिताए और 3 जनवरी को घोषणा की कि उन्होंने 40 दिनों में 700 मील (1126 किमी) का ट्रेक पूरा कर लिया है. प्रीत चंडी ने अपने ब्लॉग पर बताया, "अभी बहुत सारी भावनाओं को महसूस कर रही हूं ..."
अपने अंटार्कटिका अभियान के दौरान, भारतीय मूल की ब्रिटिश सेना अधिकारी ने एक पुल्क या स्लेज ढोया, जिसका वजन लगभग 90 किलोग्राम था और उसके पास किट, ईंधन और भोजन था. ब्रिटिश सेना के जनरल स्टाफ के चीफ ने चंडी को उनके ट्रेक के पूरा होने पर बधाई दी, उनकी तारीफ "धैर्य और दृढ़ संकल्प के प्रेरक उदाहरण" के रूप में की.
दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पूरी करने के बाद उन्होंने अपने ब्लॉग पर घोषणा की, "यह अभियान हमेशा मुझसे कहीं अधिक था. मैं लोगों को अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने और खुद पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं." "मैं सिर्फ कांच की छत को तोड़ना नहीं चाहती, मैं इसे एक लाख टुकड़ों में तोड़ना चाहती हूं."
नई दिल्ली: आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government)ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों (Farm Laws)को वापस करने का फैसला कर लिया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुरु नानक के जन्मोत्सव पर प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर राष्ट्र के नाम संदेश में इसकी घोषणा की. जहां आंदोलनकारी किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया है, वहीं उन्होंने यह भी कहा है कि जब तक संसद में इसे मूर्त रूप नहीं दे दिया जाता, तब तक वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे. उन्होंने अपनी मांगों की सूची को लंबा करते हुए एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, मृतक किसानों के परिवारवालों को मुआवजा देने और आंदोलनकारी किसानों पर लगाए गए मुकदमों को वापस लेने की मांग पर भी जोर दिया है. वहीं विपक्षी पार्टियों ने सरकार के अहंकार को लेकर हमले किए और इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठाए. कल तक इन कृषि कानूनों को ऐतिहासिक बताने वाली बीजेपी अब इन कानूनों को वापस लेने के फैसले को ऐतिहासिक बताने में जुट गई है. पार्टी और सरकार कहती आ रही थी कि ये कानून किसी भी सूरत में वापस नहीं होंगे, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि पीएम मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बने इन कानूनों पर यूटर्न करने का फैसला किया. इसके पीछे के प्रमुख कारण ये हैं-
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
बीजेपी का अपना फीडबैक है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के कारण जमीनी हालात तेजी से बदल रहे हैं. लगातार तीन चुनावों में बीजेपी को यहां जबर्दस्त समर्थन मिला. जाटों के नेता माने जाने वाले अजित सिंह खुद चुनाव हार गए. वैसे तो प्रमुख रूप से गन्ने की फसल उगाने वाले इस क्षेत्र में इन कृषि कानूनों के कारण किसानों के हक पर कोई चोट नहीं हो रही थी, लेकिन धारणा यह बन गई कि सरकार किसान विरोधी है, हालांकि योगी सरकार ने गन्ने के समर्थन मूल्य में बढोत्तरी और बकाया चुकाने की घोषणा की, लेकिन आंदोलन को लेकर जिस तरह से सरकार की ओर से सख्ती बरती गई और बीजेपी नेताओं के बयान आए उससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट खासतौर से नाराज हुए. राकेश टिकैत इस आंदोलन का चेहरा बन गए. उनके द्वारा राज्य में बुलाई गई महापंचायतों को विपक्षी पार्टियों का जमकर समर्थन मिला. इसी तरह राष्ट्रीय लोक दल भी अपना खोया जनाधारा वापस पाने में जुट गई. सपा और रालोद के बीच समझौता भी बीजेपी के लिए चिंता का कारण है. पंचायत चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को भी इसी से जोड़ा गया. मुजफ्फपुर हिंसा के बाद टूटी जाट मुस्लिम एकता फिर से जुड़ने लगी. बीजेपी को यह भी डर रहा कि चुनाव प्रचार में उतरने पर उसके नेताओं को कहीं वैसे ही विरोध का सामना न करना पड़े जैसे हरियाणा और पंजाब में हुआ. खुद पीएम मोदी 25 नवंबर को ग्रेटर नोएडा में जेवर में नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की आधारशिला रखने जा रहे हैं. इसमें बीजेपी दो से ढाई लाख लोगों को जुटाना चाह रही है, लेकिन किसान आंदोलन के चलते उसे इस कार्यक्रम में विरोध का डर था. अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 में अगर मोदी को फिर पीएम बनाना है तो यूपी में 2022 में योगी को जिताना जरूरी है, लेकिन किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को नुकसान की आशंका थी. लखीमपुर खीरी की घटना ने भी बीजेपी का नुकसान किया.
कैप्टन अमरिंदर सिंह
जिस दिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वे कांग्रेस छोड़ रहे हैं लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बजाए उससे गठबंधन करेंगे, उसी दिन यह संकेत मिल गया था कि कृषि कानूनों पर मोदी सरकार पुनर्विचार कर रही है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब का मुख्यमंत्री रहते हुए खुद बीजेपी ही उन पर यह आरोप लगाती थी कि दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब के किसानों को भेजने के पीछे कैप्टन ही हैं। लेकिन अब हालात बदल गए. बीजेपी के पास पंजाब में न पाने को कुछ है, न खोने को कुछ. उसे उम्मीद है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी से उसका गठबंधन होने पर वह शहरी क्षेत्रों में हिंदू वोटों के सहारे थोड़ी-बहुत ताकत पा सकती है. बीजेपी कृषि कानूनों की वापसी के पीछे कैप्टन को अगर खुल कर श्रेय दे दे तो हैरानी नहीं होगी. इसी तरह, इसी मुद्दे पर बीजेपी से अलग हुए अकाली दल के लिए भी अब बीजेपी के साथ वापस आने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी, खासतौर से चुनाव के बाद जरूरत पड़ने पर. बीजेपी नेता आज बताते हुए नहीं थक रहे कि सिखों के लिए पीएम मोदी ने क्या क्या कदम उठाए. इनमें करतारपुर साहिब कॉरीडोर दोबारा खोलना, कोविड के बावजूद गुरु तेग बहादुर का 400 वां प्रकाश पर्व मनाना, पीएम मोदी का खुद गुरुद्वारे जाना, गुजरात के सीएम रहते हुए कच्छ में भूकंप से तबाह हुए लखपत गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण, हाल ही में अफगानिस्तान से सिख समुदाय लोगों की सुरक्षित भारत वापसी और गुरु ग्रंथ साहिब को ससम्मान वापस लाना आदि शामिल हैं. गुरु गोविंद सिंह का 350 वां प्रकाश पर्व और गुरु नानक देव जी का 500 वां प्रकाश पर्व मोदी सरकार ने बहुत उत्साह के साथ मनाया। बीजेपी नेताओं के मुताबिक अपने राजनीति जीवन में मोदी ने बहुत समय पंजाब में बिताया और इसीलिए सिख समुदाय के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है। यही कारण है कि कृषि कानूनों की वापसी का फैसला गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर किया गया.
हरियाणा में उग्र प्रदर्शन
बीजेपी ने जाटों की नाराजगी के बावजूद हरियाणा में दूसरी बार सरकार बनाई लेकिन उसे सरकार बनाने के लिए जाट नेता दुष्यंत चौटाला का साथ लेना पड़ा. किसान आंदोलन उसके बाद शुरू हुआ लेकिन पिछले एक साल से हरियाणा युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया था. राज्य के अधिकांश टोल बूथ पर किसान आंदोलनकारी बैठे हुए थे और दिल्ली से सटी सीमाओं पर आवाजाही बंद थी. लोगों का रोजगार छिन रहा था. सड़कें बंद होने से आम लोग परेशान हैं और कई बार किसानों और स्थानीय लोगों के बीच टकराव की नौबत भी आई. उधर, राज्य भर में राजनेताओं की शामत आ चुकी थी. खासतौर से बीजेपी नेताओं के लिए सड़कों पर निकलना और कोई राजनीतिक कार्यक्रम करना मुश्किल हो गया था. ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनमें बीजेपी नेताओं के कपड़े फाड़ दिए गए. कई जगहों पर हिंसक टकराव भी हुआ. बीजेपी पर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का भी दबाव था कि इस आंदोलन को जल्द खत्म किया जाए. हाल के उपचुनाव में बीजेपी के वोट जरूर बढ़े लेकिन हार को किसान आंदोलन से ही जोड़ा गया.
पीएम की छवि को धक्का
बीजेपी ने किसानों की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. पार्टी दावा करती है कि किसानों के हित में कई बड़े फैसले किए गए. इनका श्रेय पीएम मोदी को दिया जाता है. किंतु, किसान आंदोलन में सीधे पीएम मोदी पर हमले किए जाने लगे. उनके पुतले जलना, उनके खिलाफ नारेबाजी होना, यह सब बीजेपी को रास नहीं आया. इससे न केवल पीएम मोदी बल्कि पूरी सरकार के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनने लगा. विरोध केवल कृषि कानूनों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें महंगाई, बेरोजगारी जैसे शाश्वत मुद्दे भी जुड़ने लगे. बीजेपी के भीतर से भी आवाजें उठने लगीं. मणिपुर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, बीजेपी सांसद वरुण गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह खुल कर किसान आंदोलन का समर्थन करने लगे. दबी जुबान में पार्टी के अन्य किसान नेता भी इस आंदोलन से उठने वाले नुकसान की तरफ ध्यान दिलाने लगे. आरएसएस के पूर्व महासचिव भैय्याजी जोशी को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि किसान आंदोलन का हल निकाला जाना चाहिए. पार्टी को फीडबैक मिला कि किसान आंदोलन के कारण पांच राज्यों के आने वाले विधानसभा चुनावों में दिक्कत हो सकती है. हालांकि कानूनों को वापस लेना भी पीएम मोदी की छवि को धक्का ही है. इससे पहले वे भूमि अधिग्रहण कानूनों को भी वापस ले चुके हैं. नोटबंदी, अनुच्छेद 370 और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कड़े फैसलों के बूते एक कठोर प्रशासक के तौर बनी उनकी छवि को इन कानूनों पर चल रहे आंदोलन से भी चोट पहुँच रही थी और अब कानूनों की वापसी से भी नुकसान पहुंचेगा.
राष्ट्रीय सुरक्षा
बीजेपी नेता कहते हैं कि लंबे समय से चला आ रहा यह आंदोलन आगे चल कर एक बड़ी समस्या का रूप भी ले सकता था. देश विरोधी और अलगाववादी ताकतें इस असंतोष का फायदा उठाने की फिराक में थीं. बीजेपी नेता गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर हुई हिंसा का उदाहरण देते हैं. सुरक्षा एजेंसियों को चिंता थी कि पंजाब जैसे बॉर्डर राज्य में अलगाववादी ताकतें इस आंदोलन को हाईजैक कर सकती थीं. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इस बारे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और गृह मंत्री अमित शाह को प्रजेंटेशन देकर भी आए थे. बीजेपी नेताओं का मानना है कि देश को कमजोर करने वाली ताकते सक्रिय हो रही थीं. पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस करने का फैसला करते समय इस बात का भी खासतौर से ध्यान रखा.
गतिरोध न टूटना
किसानों और सरकार के बीच लगातार बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका. दोनों ही अपने-अपने रुख पर अड़े रहे. इसके अलावा मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया लेकिन कोर्ट के कहने पर बनाई गई समिति भी गतिरोध नहीं तोड़ सकी.सड़कें बंद होने को भी कोर्ट में चुनौती दी गई जिस पर सुनवाई लगातार जारी है. किसानों को दिल्ली में आने से रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने जो बाड़बंदी की थी कि वह हटाई गई. सरकार ने आंदोलन खत्म करने के लिए कृषि कानूनों को दो साल के लिए मुल्तवी करने का प्रस्ताव दिया था जो किसानों ने ठुकरा दिया था. वे कानूनों की वापसी से कम पर राजी नहीं थे. यही कारण है कि सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.
मोटे तौर पर यही कारण हैं जिनके चलते मोदी ने इन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया, हालांकि इससे उनकी छवि को धक्का जरूर पहुंचा है और सुधारों को लेकर कारोबारी जगत को सही संदेश नहीं गया, लेकिन फिलहाल बीजेपी की प्राथमिकता पांच राज्यों के चुनाव हैं, जिसके लिए वह कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती. यह सही है कि पहले पेट्रोल डीजल पर एक्साइज में कटौती कर और अब कृषि कानूनों को वापस लेकर बीजेपी ने विपक्षी पार्टियों के हाथ से बड़े मुद्दे छीन लिए हैं, लेकिन कृषि कानूनों के कारण पार्टी के खिलाफ बना माहौल क्या इससे कम होगा, यह कह पाना अभी मुश्किल है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
गोदी मीडिया ने आम जनता को इस तरह से झूठ की चपेट में ले लिया है कि जनता के लिए भी उस झूठ से निकलना संभव नहीं है. गोदी मीडिया के अलावा आई टी सेल और अन्य संगठनों से जुड़े लोग इस तंत्र के नॉन-स्टेट एक्टर हैं जो स्टेट का काम कर रहे हैं. झूठ फैला कर. आपने लोकतंत्र की एक सामान्य परिभाषा सुनी होगी. जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का शासन. अब इसे बदल कर झूठ द्वारा, झूठ के लिए और झूठ का शासन किया जा सकता है. पिछले दो दिनों से मेरे बारे में अलग-अलग नेटवर्क से अफवाह फैलाई गई कि मैंने दिवंगत जनरल बिपिन रावत की पत्नी मधुलिका रावत को लेकर कुछ टिप्पणी की है, जबकि मैंने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है. न तो कहीं लिखा है और न अपने किसी कार्यक्रम में बोला है.
अभी जनरल साहब के निधन की पुष्टि भी नहीं हुई थी कि हज़ारों ऐसे मैसेज तैयार कर दिए गए और अनगिनत अकाउंट से इसे फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में भेजा जाने लगा. हर दिन ऐसे झूठ को फार्वर्ड करने वाले रिटार्यड अंकिल लोग इसे भी फार्वर्ड करने लगे. यह कोशिश किसी के लिए भी जानलेवा हो सकती है. इस झूठ के ज़रिए उन्मादी भीड़ बनाई जाती है और किसी ग़रीब को उकसा दिया जाता है.अमित चतुर्वेदी नाम के इस अकाउंट से यह झूठ शुरु हुआ. हम दावा नहीं कर सकते कि सबसे पहला ट्वीट अमित चतुर्वेदी ने किया या किसी और ने. अपने बायोडेटा में इंजीनियर और आध्यात्मिक लिखने वाला अमित चतुर्वेदी झूठ की इंजीनियरिंग में माहिर लगता है. अमित ने अपने ट्विटर अकाउंट की प्राइवेसी सेटिंग सीमित कर दी है. अब केवल वही देख सकते हैं जो उसे फॉलो करते हैं. अमित चतुर्वेदी ने 2015 में ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया है और छह साल में सवा लाख के करीब ट्विट किए हैं. उम्मीद है गीता से प्रेरित रहने वाला अमित एक दिन सत्य से भी प्रेरित होगा.
न जाने कितने लोगों ने यह अफवाह फैलाई है. जनार्दन मिश्रा के ट्विटर अकाउंट से भी ऐसा ही ट्वीट किया गया. जनार्दन मिश्रा की प्रोफाइल में प्रधानमंत्री की तस्वीर है. इन्हें 1 लाख 86 हज़ार लोग फॉलो करते हैं. जनार्दन मिश्रा ने भी इतना लंबा चौड़ा अनाप-शनाप मेरे बारे में लिखा है. राष्ट्रवाद और धर्म का नाम लेकर इन जैसे लोग इतना झूठ कैसे बोल लेते हैं. इसकी तरकीब के बारे में प्रधानमंत्री मोदी जनार्दन मिश्रा को DM कर पूछ सकते हैं. मेरे बारे में इसी तरह का पोस्ट जनार्दन मिश्रा नाम के एक और अलग अकाउंट से किया गया है इस वाले जनार्दन मिश्रा के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर है. आशीष कौशिक के ट्विटर अकाउंट से भी मेरे बारे में ट्वीट किया गया है. आशीष कौशिक को 28 हजार लोग फॉलो करते हैं. आशीष सिंह को 789 लोग फॉलो करते हैं. ट्विटर के अकाउंट में खुद को पत्रकार संपादक बताते हैं.
इस तरह के कई पोस्ट में मुझे गालियां दी गई हैं और पढ़ने के बाद लोगों ने गालियां दी हैं. मुझे धमकियां आने लगीं. बीजेपी को चेक करना चाहिए कि ये लोग पार्टी के नाम का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं. जब लोग नड्डा और योगी की तस्वीर लगाकर ट्वीट करने लगे तब लगा कि लोगों के बीच यह बात रखनी चाहिए कि मैंने ऐसी कोई बात नहीं की है जिससे जनरल रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत का अपमान हो. कहीं नहीं बोला है. कहीं नहीं लिखा है. मेरे खंडन करने के बाद भी ये अफवाह फैलाई गई है और फैलाई जा रही है. गांव गांव में व्हाट्एस एप यूनिवर्सिटी के द्वारा पहुंचाई जा चुकी है. ऐसा कर इन लोगों ने राष्ट्रीय शोक की इस घड़ी में अच्छा काम नहीं किया है लेकिन ये आगे भी ऐसा ही काम करते रहेंगे.
खब्बू तिवारी अयोध्या के गोसाईपुर से बीजेपी के विधायक चुने गए थे. करीब पांच साल तक विधायक रहने के बाद उनकी विधायकी रद्द हो गई है. खब्बू तिवारी की मार्कशीट जाली पाई गई है. कोर्ट ने पांच साल के लिए जेल भेज दिया है. खब्बू तिवारी अयोध्या के गोसाईगंज से बीजेपी के विधायक थे. अगर आई टी सेल इस खबर को वायरल कराए तो बाकी विधायक भी अपनी डिग्री और मार्कशीट चेक कर लेंगे. अशोक चंदेल और कुलदीप सिंह सेंगर भी बीजेपी के विधायक थे हत्या और बलात्कार के मामले में जेल जाने के बाद उनकी विधायकी रद्द कर दी गई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार खब्बू तिवारी पर जीप लूटने का भी मामला चल रहा है.
आई टी सेल इन खबरों को वायरल नहीं कराएगा और अगर पत्रकार यह खबर करेगा तो उसे निशाना बनाया जाएगा. शायद इसीलिए अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा है कि अमरीका एक ग्लोबल फंड बनाएगा जिससे मीडिया की आज़ादी की लड़ाई को सपोर्ट किया जाएगा और खोजी पत्रकारिता करने वालों को मदद दी जाएगी जिन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जाता है.
दुनिया भर के देशों के साथ-साथ भारत में भी काम करने वाले पत्रकार मुकदमों का सामना कर रहे हैं. पत्रकार सिद्दीक कप्पन की कहानी हम कई बार बता चुके हैं. कितने महीनों से जेल में हैं. त्रिपुरा में पत्रकारों के साथ क्या हुआ आपने देखा, इन पर UAPA लगा दिया गया. अगर सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत न दी होती तो ये पत्रकार जेल में होते. जो भी पत्रकारिता कर रहा है उसे सोशल मीडिया के ज़रिए और प्रशासन के ज़रिए टारगेट किया जा रहा है. चंद रोज़ पहले सिलचर के एक पत्रकार अनिर्बन रॉय चौधरी पर राजद्रोह का मुकदमा दायर कर दिया गया. आज सरकार से सवाल करने वाला पत्रकार एक गलती कर दे वह जेल में होगा लेकिन सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का फोटो लगाकर कोई कितना भी झूठ फैला ले उनका कुछ नहीं होगा.
सवाल पूछने की पत्रकारिता क्यों ज़रूरी है इसका एक उदाहरण श्रीनिवासन जैन और पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के इंटरव्यू से दे सकता हूं. अयोध्या पर फैसला देने के चार महीने बाद चीफ जस्टिस रिटायर होते हैं और राज्य सभा के सदस्य बन जाते हैं. इसे लेकर कई लोगों ने सवाल भी किया था. श्रीनिवासन ने रंजन गोगोई से पूछा कि राज्य सभा में आपकी उपस्थिति दस प्रतिशत भी नहीं है तो फिर कैसे कह सकते हैं कि आप लोगों की सेवा के लिए राज्य सभा गए हैं. इस सवाल के जवाब में पूर्व चीफ जस्टिस कह रहे हैं कि कोविड के कारण नहीं गए क्योंकि वहां कोविड के दिशानिर्देशों का पालन नहीं होता है. इस पर तो राज्य सभा के सभापति ही जवाब दे सकते हैं लेकिन यह जवाब भी शानदार है कि जब लगता है कि जाना चाहिए तब जाते हैं और जब लगता है कि नहीं जाना चाहिए तब नहीं जाते हैं. यानी रंजन गोगोई को केवल छह दिन लगा कि जाना चाहिए.
मन करेगा तो जाएंगे और मन नहीं करेगा तो नहीं जाएगा. मन की बात पर ही सारा देश चल रहा है. कुछ दिन पहले खबर आई कि प्रधानमंत्री बीजेपी के सांसदों से नाराज़ हैं कि वे सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेते हैं. हेडलाइन बनी. अब खबर है कि बीजेपी ने अपने सौ सांसदों से कहा है कि संसद में आने के बजाए चुनावी राज्यों में काम करें. उन्हें छुट्टी दे दी गई है और वे सोमवार से नहीं आएंगे. इसी तरह पांच साल में छह लाख भारतीयों को लगा कि चलो भारत की नागरिकता ही छोड़ देते हैं और छोड़ देते हैं. इन छह लाख भारतीयों को क्या आप एक्स देशभक्त ED कहना चाहेंगे या डबल देशभक्त DD कहना चाहेंगे. भारत और अमरीका दोनों की देशभक्ति करने वाले DD यानी डबल देशभक्त. कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के सवाल के जवाब में 9 दिसंबर को राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि पिछले पांच साल में हर साल औसतन पचास हज़ार लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ अमरीका की नागरिकता ली है. भारतीयों की नज़र दूसरे विकल्पों पर भी हैं. इस साल चार हज़ार भारतीयों ने इटली की नागरिकता ली है. कनाडा, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की नागरिकता के लिए बड़ी संख्या में भारतीय कतार में हैं.
इनमें से कोई ट्विटर का चीफ या मेयर बनेगा तो हम दिल खोलकर स्वागत करेंगे और याद भी करेंगे, फिलहाल यहां के लोगों की चिन्ता करते हैं. यहां पर हम यह सवाल लाना चाहते हैं कि आई टी सेल की झूठ की फैक्ट्री में कौन लोग काम करते हैं, और धर्म के नाम पर सड़क पर उतर कर कौन लोग भीड़ बन जाते हैं. आप ऐसी हिंसा के किसी भी वीडियो में देखेंगे तो इसमें साधारण घरों के लड़के ज़्यादा दिखते हैं. जिनके हाथ में लाठी होती है, पत्थर होता है ये किसी चूड़ी वाले को मार रहे होते हैं, किसी सब्ज़ी वाले को मार रहे होते हैं, किसी स्कूल में पत्थर चला रहे होते हैं. वहां पुलिस होती है, रोकती भी है लेकिन कई बार पुलिस भी सहायक की भूमिका में नज़र आती है. बहुसंख्यक धर्म के नाम पर ऐसा करने वालों के प्रति सहनशील नज़र आती है. इन्हें पुलिस का ख़ौफ नहीं है.
आर्थिक असमानता पर पर्दा डालने के लिए धर्म के सहारे राजनीतिक समानता कायम की जा रही है ताकि यह बात छिप जाए कि भारत में अमीर ही अमीर हो रहे हैं और ग़रीब पहले से ज़्यादा ग़रीब हो रहे हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के एक वयस्क नागरिक की औसत मासिक कमाई 17000 से कुछ अधिक है. अगर आप आबादी के 50 फीसदी हिस्से की कमाई को देखें तो वह महीने में औसतन 5,523 रुपये ही कमाता है. इस देश में केवल 10 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो महीने का करीब एक लाख कमाते हैं. इस दस फीसदी की कमाई और बाकी के पचास फीसदी की कमाई के बीच 20 गुने का अंतर है. हम आए दिन अखबार और टीवी चैनलों के विज्ञापन के ज़रिए एक ऐसा भारत देखते हैं जो केवल दस प्रतिशत के लोगों का है. बड़े-बड़े मॉल को देखते हुए और महंगे टोल टैक्स देकर एक्सप्रेस वे से गुज़रते हुए उस 50 फीसदी भारत की सोचिए जो महीने का साढ़े पांच हज़ार ही कमाता है. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत का मिडिल क्लास भी गरीब जैसा ही है. बहुत छोटा और बहुत कम कमाने वाला.
हर दल के पास धर्म की राजनीति की कोई न कोई स्कीम है. राजनीति अब सही और ग़लत के हिसाब से नहीं होती, धर्म और धर्म को मानने वालों की संख्या के हिसाब से होती है. कोई मुखर है तो कोई चुप है. सांप्रदायिकता के कई वर्ज़न लांच हो हो रहे हैं. गुरुग्राम में पांच हफ्ते से नमाज़ को लेकर यही चल रहा है. इसी तरह से चर्च और कान्वेंट स्कूलों पर हमले हो रहे हैं. मध्य प्रदेश के विदिशा के सेंट जोसेफ स्कूल के कैंपस में लड़के घुस गए और पत्थर चलाने लगे. उत्तराखंड के रुड़की में दो महीने हो गए चर्च पर हमले को. आज तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है. मेहर पांडे की रिपोर्ट बताती है कि इस हमले से संबंधित FIR में जो नाम हैं, कइयों के संबंध बीजेपी से हैं.
पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा में धर्म के नाम पर असुरक्षा की राजनीति चल रही है. आपकी आर्थिक असुरक्षा की बात कोई नहीं कर रहा है. लोग राजनीति के बारे में धर्म के हिसाब से सोचने लगे हैं. चूड़ी बेचने वाले तस्लीम की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ तो आरोप लगाया गया कि इसने फर्ज़ी नाम और पहचान पत्र देकर पीएम आवास योजना का लाभ लिया है. तब भी उसकी इस तरह से पिटाई नहीं की जा सकती थी. तस्लीम पर एक बच्ची के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा कर पोक्सो लगा दिया. वह 100 से अधिक दिनों तक जेल में रहा और अब ज़मानत मिल गई है न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने जमानत दे दी है. कोर्ट ने कहा है कि उसके खिलाफ आरोप की प्रकृति ऐसी नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसे मामले के निर्णय तक हिरासत में रहना चाहिए. एक ग़रीब चूड़ी वाले को पचास हज़ार के मुचलके पर छोड़ने के आदेश दिए गए हैं. क्या यह राशि उसके लिए ज़्यादा नही है?
धर्म की राजनीति के नए-नए संस्करण अभी और आएंगे, आप उसी में उलझे रहेंगे और केंद्रीय विश्वविद्यालों में छह हज़ार प्रोफेसरों के पद ख़ाली रह जाएंगे. आपके बच्चे बिना टीचर के ही पास होंगे और भारत विश्व गुरु बन जाएगा.