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शिशु और मां के लिए स्तनपान के महत्व के बारे में आप बखूबी जानती हैं लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि मां के बीमार होने की स्थिति में क्या अपने बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए? बहुत सारे लोग ये मानकर भी चलते हैं कि मां के स्तनपान कराने से बच्चा भी बीमार हो सकता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है उसके बारे में हम आपको इस ब्लॉग में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही ये भी जानकारी देंगे कि किस बीमारी के दौरान आप शिशु को दूध पिला सकती हैं और किस तरह की बीमारियों में आपको शिशु को स्तनपान कराने से परहेज रखना चाहिए।
मां के दूध में सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व क्या हैं?
मां के दूध में शिशु को हर वो पोषक तत्व मिल जाते हैं जो उनके सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। इसके अलावा आप ये भी जान लें कि मां के दूध में लैक्टोफेरिन नाम का एक ऐसा पोषक तत्व होता है जिसकी पूर्ति किसी भी दूसरे आहार से नहीं की जा सकती है। लैक्टोफेरिन एक प्रोटीन है और इसमें कोलोस्ट्रम सबसे ज्यादा पाया जाता है।
मां की सेहत खराब होने पर क्या करें?
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर मां बीमार है तो भी अपने बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं और इससे शिशु की सेहत पर निगेटिव असर नहीं पड़ता है। लेकिन इसके साथ ही ये भी ध्यान रखें की मां को किसी प्रकार की गंभीर बीमारी ना हो या वायरल इन्फेक्शन नहीं होना चाहिए। अगर इस तरह की कोई समस्या मां को है तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
किन बीमारियों में मां अपने बच्चे को स्तनपान कराना जारी रख सकती हैं?
किन बीमारियों में शिशु को स्तनपान ना कराएं?
ये जानना बहुत जरूरी है कि किस प्रकार की बीमारियों के दौरान शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहिए। कैंसर, एचआईवी जैसी बीमारियों के दौरान शिशु को स्तनपान ना कराएं इसके अलावा अगर मां के दूध के रंग में बदलाव नजर आ रहा है तो भी स्तनपान कराने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
इन सभी उपायों का अवश्य पालन करें, बीमारी के दौरान आराम करें, सकारात्मक सोच बनाए रखें।
अपने 8 साल के बच्चे से उम्मीद होती है कि वह पहाड़े, तारीख और शब्द-अर्थ याद करे, अपना काम समय पर करे, अपना स्कूल बैग लगाये और ठीक से पढ़ाई करने के साथ और बहुत कुछ करे। कई बार हम अपने शिशु से उम्मीद करते हैं और सोचते हैं कि वह खुद अपने रोजमर्रा की चीजों के हिसाब से ढ़ले और चीजों को संभालना और उनका सामना करना सीखे।
कुछ बच्चे इसे खुद ही सीख लेते हैं जबकि दूसरों को यह सिखाना पड़ता है। यह आपके बच्चे के लिये कठिन समय होता है- इस समय वह जिन आदतों को अपनाता है, वह जीवनभर उसके साथ रहती हैं। तो सवाल ये है कि शुरूआत कहाँ से करें? शिशु के विद्यार्थी और एक इंसान होने के सफर में उसे देने के लिये यहाँ कुछ जांचे-परखे तरीके हैं, पर नियम केवल एक हैः बार-बार अभ्यास करने से ही महारत आती है।
बच्चे के अंदर पढ़ने-लिखने की भावना को प्रबल बनाने के लिए ये तरीके आजमाएं.
क्या आपके बच्चे का भी मन पढ़ाई में नहीं लगता? अगर बच्चा अपने रोजाना के कामों से जी चुराये और इन्हें संभालने में उसे कठिनाई हो, तो एक माँ-बाप होते हुये असरदार ढंग अपने बच्चे की इस आदत को सुधारने और उसका हौसला बढ़ाने के लिये आप क्या करना चाहेंगे...
हिंदू धर्म में करवा चौथ का बहुत महत्व है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन भूखे और प्यासे रहकर अपने पति के लिए व्रत रखती हैं. इस व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार, करवा चौथ का उपवास रखने से पति के जीवन से संकट दूर होते हैं और उसकी आयु लंबी होती है. इसी मान्यता के चलते यह त्योहार बहुत प्रचलित है. करवा चौथ का व्रत जितना प्रसिद्ध है उतना ही कठिन भी है. क्योंकि इस दिन महिलाएं पूरा दिन बिना पानी पिए रहती हैं.
जी हां, आज भी कई घरों में महिलाएं करवा चौथ के दौरान पानी नहीं पीतीं. लेकिन आपको बता दें, कि व्रत की प्रचलित कथाओं में कहीं भी पानी ना पीने के बारे में नहीं लिखा गया है. बल्कि, अपने ही घरों और आसपास चली आ रही इस परंपरा के चलते महिलाएं करवा चौथ के दिन पानी नहीं पीतीं. माना जाता है कि पहले करवा चौथ के दौरान जिन नियमों को अपना लिया जाता है आगे के सालों में आने वाले सभी व्रतों में उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है.
लेकिन, अगर आपको सेहत से जुड़ी परेशानी या फिर आप प्रेग्नेंट हों तो एक बार डॉक्टर से सलाह करके ही पानी को अवॉइड करें. साथ ही अगर आपका यह पहला करवा चौथ है, तो आप शाम की कथा के बाद पानी पी सकती हैं. वहीं, जिन घरों में सरगी का चलन है, वो सुबह सरगी खाने के साथ पानी भी पी सकती हैं. बता दें, इस बार 4 नवंबर को करवा चौथमनाया जा रहा है.
लंदन : जो महिलाएं अधिक संभोग (Sex) करती हैं, उनमें रजोनिवृत्ति होने की संभावना कम होती है. हफ्ते में एक बार संभोग (सेक्स) करने वाली महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मीनोपॉज) की संभावना महीने में एक बार संभोग करने वाली औरतों से 28 फीसदी कम होती है. एक शोध में यह जानकारी मिली है. शोधकर्ताओं ने कहा कि संभोग के भौतिक संकेत शरीर को संकेत दे सकते हैं कि गर्भवती होने की संभावना है.
अध्ययन में कहा गया है कि जो महिलाएं मिड लाइफ (35 व इससे अधिक उम्र) में बार-बार संभोग नहीं करती हैं, उनमें जल्द रजोनिवृत्ति देखने को मिलती है.
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की अध्ययनकर्ता मेगन अर्नोट ने कहा, "अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि अगर कोई महिला यौन संबंध नहीं बना रही है और गर्भधारण का कोई मौका नहीं है, तो शरीर अंडोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) बंद कर देता है क्योंकि यह व्यर्थ होगा."
अध्ययन में कहा गया है कि अंडोत्सर्ग के दौरान महिला की प्रतिरक्षा क्षमता बिगड़ जाती है, जिससे शरीर में बीमारी होने की संभावना अधिक होती है.
यह शोध 2,936 महिलाओं से एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित है, जो कि 1996/1997 में एसडब्ल्यूएएन अध्ययन के तहत किया गया था.
इस दौरान महिलाओं को कई सवालों के जवाब देने के लिए कहा गया था, जिसमें यह भी शामिल था कि पिछले छह महीनों में उन्होंने अपने साथी के साथ संभोग किया है या नहीं.
संभोग करने के अलावा उनसे पिछले छह महीनों के दौरान कामोत्तेजना से जुड़े अन्य प्रश्न भी किए गए, जिनमें मुख मैथुन, यौन स्पर्श और आत्म-उत्तेजना या हस्तमैथुन के बारे में भी विस्तृत जानकारी ली गई.
यौन क्रियाओं में भाग लेने संबंधी सबसे अधिक उत्तर साप्ताहिक (64 फीसदी) देखने को मिले.
दस साल की अनुवर्ती अवधि में देखा गया कि 2,936 महिलाओं में से 1,324 (45 फीसदी) ने 52 वर्ष की औसत उम्र में प्राकृतिक रजोनिवृत्ति का अनुभव किया.
बता दें कि रजोनिवृत्ति उस स्थिति को कहा जाता है जब महिलाओं में मासिक धर्म चक्र बंद हो जाता है. असल में इसे प्रजनन क्षमता का अंत माना जाता है.
शोध की रिपोर्ट को जर्नल रॉयल सोसायटी ओपन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. इस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में इसके कारण का उल्लेख नहीं किया गया है.