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पैरेंट्स को बच्चों की हर छोटी-बड़ी गतिविधियों पर नजर रखनी होती है। उन्हें सही-गलत चीजें समझानी होती हैं। उन्हें कई चीजें सिखानी होती हैं। पैरेंट्स इस जिम्मेदारी का निर्वाह भी अच्छे से करते हैं। अभिभावकों को उनके खाने, सोने, बोलने व स्वास्थ्य की खूब चिंता रहती है। पर इन सबके बीच कुछ छोटी-मोटी बातें ऐसी भी होती हैं, जिन पर वे ध्यान नहीं देते और आगे चलकर ये बच्चों के लिए बड़ी समस्या बन जाती है। इन्हीं में से एक है बच्चों का बैठना। बच्चे कैसे उठ-बैठ रहे हैं, इसे पैरेंट्स नजरअंदाज कर देते हैं। अक्सर बच्चा डब्ल्यू पोजिशन में बैठता है, जिससे बच्चे को काफी दिक्कतें आती हैं। इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि इस तरह बैठने के नुकसान क्या हैं और कैसे बच्चों को बैठने का सही तरीका सिखाया जाए।
क्या है डब्ल्यू (W) सिटिंग पोजिशन और बच्चे ऐसे क्यों बैठते हैं
बच्चे जब अपने कूल्हों पर बैठकर घुटनों को मोड़ लेते हैं और पैरों को बाहर की तरफ फैलाते हैं तो यह डब्ल्यू पोजिशन होती है। अधिकतर बच्चे इस स्थिति में तब बैठते हैं जब वह बिना किसी बाहरी समर्थन के अपने शरीर को सीधा रखने की कोशिश करते हैं। डब्ल्यू पोजिशन में किसी भी तरह की मांसपेशियों की ताकत की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह बैठने की सबसे आसान और आरामदायक पोजिशन है, लेकिन इस तरह बैठना मांसपेशियों व शारीरिक विकास को प्रभावित करता है।
डब्ल्यू (W) सिटिंग पोजिशन से नुकसान
इस पोजिशन में बैठने से बच्चों को तो आराम महसूस होता है, लेकिन इससे उन्हें कई तरह की शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं, जिस बात को वे नहीं जानते। ऐसे में पैरेंट्स के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे बच्चों को इस पोजिशन में बैठने के लिए टोकें और उन्हें हतोत्साहित करें। आइए जानते हैं इस पोजिशन में बैठने से होने वाले नुकसान के बारे में।
इस तरह बैठने से बच्चे के शरीर का मुख्य भाग पर्य़ाप्त तनाव प्राप्त नहीं कर पाता है, जिससे विकास के दौरान यह कमजोर हो जाता है। इस वजह से बच्चों को चलने व दौड़ने में दिक्कत आती है।
डब्ल्यू पोजिशन की वजह से बच्चे की जांघ की मांसपेशियों को लचीले स्वभाव से आराम करने का मौका नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से पैर सामान्य अवस्था में भी एक प्रकार की कठोरता विकसित कर लेते हैं। इससे बच्चे को दिक्कत होती है।
इस तरह बैठने से जांघ की मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं, जब यह लंबे समय तक बना रहता है तो यह उन जोड़ों को भी प्रभावित कर सकता है। इससे पैरों में अकड़न की समस्या आती है। इससे बच्चे के चलने का तरीका अजीब हो जाता है।
इस तरीके से बैठने से शरीर का ऊपरी हिस्सा एक विशिष्ट स्थिति में रह जाता है, जबकि शुरुआती वर्षों में बच्चों के शरीर का कई तरह के तनाव व गतिविधियों से गुजरना जरूरी होता है। इससे शरीर का हर हिस्सा ठीक से विकसित होता है। पर डब्ल्यू सिटिंग पोजिशन में न तो पीठ पर कोई तनाव पड़ता है और न शरीर के ऊपरी हिस्से पर। इस वजह से पीठ कमजोर हो जाती है।
इस पोजिशन से कूल्हों पर अधिक दाबव पड़ता है, जिससे बच्चों को कूल्हे की अव्यवस्था से संबंधित समस्याएं होती हैं।
इस तरह बैठने से जांघ की मांसपेशियों के साथ ही जोड़ों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जोड़े भी कमजोर हो जाते हैं।
बेशक बच्चे को बैठने के लिए डब्ल्यू सिटिंग पोजिशन बेहतर लग रही हो, लेकिन आपको अलर्ट होने की जरूरत है। बच्चों को सही-गलत की जानकारी नहीं होती, इसलिए वह खुद इस आदत को नहीं छोड़ सकते। ऐसे में आपको इस आदत को बदलने की कोशिश करनी होगी। यहां हम बता रहे हैं कि आप कैसे इसे बदल सकते हैं।
बच्चे के शारीरिक विकास पर ध्यान दें - आपको बच्चे के शारीरिक विकास पर ध्यान देना होगा। इसके लिए आप उसे तैराकी, साइक्लिंग व अन्य आउटडोर गेम्स में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे वह इस तरह बैठने से बचेगा।
बच्चों को लगातार टोकें – जब कभी बच्चा इस पोजिशन में बैठा दिखे तो उसे फौरन टोकें। उसे इसके होने वाले नुकसानों के बारे में बताएं। उसे इनाम का लालच देकर भी इस तरह से बैठने से रोक सकते हैं।
सही तरीका बताएं – बच्चे को गलत करने से रोकना ही काफी नहीं है, बल्कि आपको उसे सही चीजें भी बतानी चाहिएं। जब आप बच्चे को इस तरह से बैठने से टोकें, तो उसे साथ ही बैठने का सही तरीका भी बताएं, जैसे आलथी-पालथी मारकर बैठना।
एक्सरसाइज बताएं – बच्चा अगर थोड़ा बड़ा है और इस आदत को बदलने में देरी कर रहा है। तो आपको उसे ऐसे एक्सरसाइज के बारे में बताना चाहिए, जिससे उसका शारीरिक विकास हो। इसके लिए आप बाल रोग विशेषज्ञ से भी मिल सकते हैं।
एक प्रशिक्षित ट्रेनर की देखरेख में योग शुरू कराना भी आपके बच्चे के लिए फायदेमंद हो सकता है। योग से कोर मजबूत होगा।
छोटे बच्चों को मालिश करें – इस तरह से बैठने वाले छोटे बच्चों की पीठ और जाड़ों पर आपको नियमित मालिश करनी चाहिए। इससे उनमें मजबूती आएगी।
विकल्प दें – अगर बच्चे को डब्ल्यू पोजिशन के अलावा किसी अन्य मुद्रा में बैठने में दिक्कत आ रही है, तो आप उसे कुछ विकल्प दे सकती हैं। जैसे आप उसे एक स्टूल या कुर्सी दें और इसी पर बैठने को कहें।
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस) प्रसव से पहले किया जाने वाला एक परीक्षण है जिसका उपयोग गर्भावस्था के दौरान जन्म दोष, आनुवांशिक बीमारियों और अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। परीक्षण के दौरान, कोशिकाओं का एक छोटा सा नमूना ( जिसे कोरियोनिक विली कहा जाता है) नाल से लिया जाता है जहां यह गर्भाशय की दीवार से जुड़ता है। कोरियोनिक विली दरअसल, नाल के छोटे हिस्से होते हैं जो फर्टिलाइज्ड एग से बनते हैं, इसलिए उनके पास बच्चे के समान जीन होते हैं। अगर किसी गर्भवती महिला के होने वाले बच्चे में जन्म दोष या आनुवांशिक बीमारी होने का खतरा अधिक होता है तो सीवीएस करना एक अच्छा ऑप्शन है, ताकि गर्भावस्था में समस्याओं का जल्द पता चल सके। तो चलिए विस्तार पूर्वक जानते हैं सीवीएस यानी कोरियोनिक विलस सैंपलिंग के बारे में-
सीवीएस क्रोमोसोमल समस्याओं को डाउन सिंड्रोम या अन्य आनुवांशिक बीमारियों जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस, टीए-सैक्स रोग और सिकल सेल एनीमिया के रूप में पहचानने में मदद कर सकता है। क्रोमोसोमल समस्याओं के निदान में सीवीएस को 98 प्रतिशत सटीक माना जाता है। यह प्रक्रिया भ्रूण के लिंग की पहचान भी करती है, इसलिए यह उन विकारों की भी पहचान कर सकता है जो एक लिंग से जुड़े होते हैं। हालांकि, सीवीएस न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट जैसे कि स्पाइना बिफिडा आदि का पता नहीं लगा पाता है।
सीवीएस गर्भावस्था के शुरूआती दौर में आमतौर पर एमनियोसेंटेसिस से पहले किया जा सकता है, और इसके परिणाम आमतौर पर 10 दिनों के भीतर प्राप्त होते हैं। ऐसे में अगर महिला को परीक्षण के बाद असामान्य रिजल्ट प्राप्त होते हैं तो उनके लिए प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना अधिक सुरक्षित होती है।
सीवीएस प्रक्रिया के साथ कुछ जोखिम भी जुड़े हैं। मसलन, सीवीएस में एमनियोसेंटेसिस की तुलना में गर्भपात का थोड़ा अधिक जोखिम होता है क्योंकि प्रक्रिया प्रारंभिक गर्भावस्था में की जाती है। इससे संक्रमण भी हो सकता है। कुछ मामले में बच्चे की उंगलियों या पैर की उंगलियों में दोष के दुर्लभ केसेस भी देखे गए हैं, खासकर जब सीवीएस नौ सप्ताह से पहले किया गया था। इस संभावित जोखिम के कारण, 10 सप्ताह आम तौर पर इस परीक्षण को करने के लिए सबसे शुरुआती सही समय है।
किसे करवाना चाहिए सीवीएस टेस्ट
यहां यह समझना आवश्यक है कि हर गर्भवती महिला को इस टेस्ट को करवाने की जरूरत नहीं है। जब शिशु में आनुवांशिक विकार का खतरा बढ़ जाता है, तभी इस टेस्ट को करवाने की सलाह दी जाती है। इन मामलों में मुख्य शामिल हैं-
• जिन महिलाओं ने 35 वर्ष या उससे अधिक उम्र में गर्भधारण किया हो। बच्चे में क्रोमोसोमल समस्या जैसे डाउन सिंड्रोम होने का जोखिम महिला की उम्र के साथ बढ़ जाता है।
• ऐसे कपल्स जिनके पास पहले से ही बर्थ डिफेक्ट वाला बच्चा है या कुछ जन्म दोषों का पारिवारिक इतिहास है।
• गर्भवती महिला, जिनमें अन्य टेस्ट में अबनॉर्मल जेनेटिक टेस्ट रिजल्ट आए हों।
जब मैं गर्भवती थी तो अपनी शारीरिक और मानसिक दशा को कभी नहीं समझ सकी। कभी खुश होना और फिर दुःखी हो जाना, पेट भरा होने के बावजूद भूख महसूस होना, पुरजोश और सेहतमंद महसूस करते-करते बहुत चिंतित हो जाना और थका हुआ महसूस करना- मैं इस तरह की तमाम सारी बातों के बीच झूल रही थी।
मेरे हाव-भाव में इस तरह के बदलावों वाला समय मेरे पति नकुल के लिए कठिन होने के साथ परिवार के लोगों की समझ से भी बाहर था ..... पर मुझे लगता है मैं इस सबसे इसलिए छुटकारा पाने में सफल हो गई क्योंकि मैं ‘खास’ हूँ। मैं हमेशा से एक सेहतमंद और प्यारे से शिशु को जन्म देना चाहती थी, तो मैंने अपने मन को खुश और दिमागी समझ-बूझ को स्थिर रखने के साथ अपनी जिस्मानी ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने का संकल्प किया क्योंकि - हम जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं।
गर्भावस्था के दौरान मानसिक तनाव से बचने के लिए इन उपायों को आजमाएं
1. आस-पास का माहौल खुशनुमा होना चाहिएः इस समय (या किसी भी समय), आपके आस-पास ऐसे लोग नही होने चाहिए जो मायूसी फैलाएं, आपका जोश बढ़ाने के बजाय आपकी कमजोरियों से फायदा लेने की सोच रखते हों।
2. खुद को किसी काम में व्यस्त रखें/पुराने शौक फिर से शुरू करेंः सिलाई-कढ़ाई हमेशा से मेरा पंसदीदा काम रहा है। जब मेरा शिशु मेरे गर्भ में बढ़ रहा था, मैं उसके लिए ऊनी कपड़े बुन रही थी और उसे लपेटने वाले कपडों पर कढ़ाई कर रही थी। मेरी कड़ी मेहनत के नतीजे में मुझे बेहिसाब तसल्ली मिली।
3. व्यायाम करना और सेहतमंद रहनाः गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं होती तो मुझे व्यायाम छोड़ने की बिल्कुल जरूरत नहीं पड़ी। यहाँ कि मेरे दोनों प्रसव होने के एक दिन पहले तक मैने जिम में पसीना बहाया। एड्रेनालाईन रश पोस्ट जैसे व्यायाम ने मेरा हौसला बढ़ाने में बड़ी मदद की और गर्भावस्था में मेरा लगातार व्यायाम करते रहना सी-सेक्शन से जल्दी उबरने में काफी काम आया।
4. अपना मुताबिक कुछ करने के लिए समय निकालेंः अगर ऐसा करने के लिए आप गर्भावस्था में समय नहीं निकाल पाती तो बहुत मुश्किल है कि शिशु के जन्म के बाद आपको ऐसा करने का मौका मिले। मैं अपनी गर्भावस्था में हमेशा, कम से कम एक घंटा रोज खुद अपने को समय देने के लिए निकालती थी। जैरी और उसके बाद कीकी के पैदा होने के बाद भी मैं इस काबिल थी कि अपनी दिमागी सेहत को बरकरार रखने के लिए कुछ समय निकाल सकूं!!
मां बनना हर विवाहित स्त्री का सपना होता है। इससे उसे पूर्णता का अहसास होता है। लेकिन अगर आप मां ही ना बन पाएं या फिर गर्भवती होने के बाद भी मिसकैरिज हो जाए तो इससे बड़ा दुख एक स्त्री के लिए और कुछ नहीं हो सकता। इस दुख की घड़ी में आपको यह पता चले कि आपके गर्भपात या प्रेग्नेंसी लॉस के पीछे आपका स्वास्थ्य नहीं, बल्कि वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर है तो यकीनन आपके लिए इस पर विश्वास कर पाना काफी कठिन होगा। हालांकि यह सच है। हाल ही में हुए एक रिसर्च से इस बात का खुलासा हुआ है कि दक्षिण एशिया में प्रति वर्ष अनुमानित 349681 गर्भावस्था नुकसान PM2.5 सांद्रता के संपर्क से जुड़े थे। जो भारत के 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (μg / m3) छोटे कण पदार्थ (PM2.5) की वायु गुणवत्ता मानक से अधिक था। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तारपूर्वक-
द लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक मॉडलिंग अध्ययन के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में गर्भवती महिलाओं, जो खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में हैं, उन्हें स्टिलबर्थ और गर्भपात का खतरा अधिक हो सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण एशिया में प्रति वर्ष अनुमानित 349,681 गर्भावस्था हानि PM2.5 सांद्रता के संपर्क से जुड़ी थी, जो भारत के 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg / m3) छोटे कण पदार्थ (PM2.5) की वायु गुणवत्ता मानक से अधिक थी। 2000-2016 तक इस क्षेत्र में वार्षिक गर्भावस्था हानि का 7 प्रतिशत है।
किए गए अध्ययन में 34,197 महिलाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने गर्भावस्था को खो दिया था, जिसमें 27,480 गर्भपात और 6,717 स्टिलबर्थ शामिल थे, जिनकी तुलना लाइवबर्थ कण्ट्रोल से की गई थी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि गर्भावस्था के नुकसान के मामलों में से 77 फीसदी भारत से, 12 फीसदी पाकिस्तान से और 11 फीसदी बांग्लादेश से हैं। बता दें कि 10 μg / m3 की वृद्धि एक माँ के प्रेग्नेंसी लॉस को 3 प्रतिशत बढ़ाता है।
डब्ल्यूएचओ की यह है गाइडलाइन
डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार, एयर क्वालिटी 10 μg / m3 होनी चाहिए। लेकिन इस दिशानिर्देश के ऊपर वायु प्रदूषण ने गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को 29 प्रतिशत अधिक बढ़ा दिया है।होता है व्यापक प्रभाव
वायु प्रदूषण का यह विपरीत प्रभाव कई मायनों में नुकसानदायक है। प्रेग्नेंसी लॉस से महिलाओं पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रभाव पड़ सकते हैं। इसके अलावा इससे महिलाओं में पोस्टनेअल डिप्रेसिव डिसऑर्डर से लेकर गर्भावस्था से संबंधित लागतों में वृद्धि आदि का खतरा भी बढ़ता है। इतना ही नहीं, अगर हवा की गुणवत्ता में सुधार करके प्रेग्नेंसी लॉस को कम किया जाए तो इससे लिंग समानता में सुधार हो सकता है।
ग्रामीण महिलाओं पर दिखा अधिक असर
शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि भारत और पाकिस्तान में उत्तरी मैदानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से जुड़े गर्भावस्था के नुकसान अधिक आम थे। यद्यपि हाल के वर्षों में 30 वर्ष से कम आयु की ग्रामीण महिलाओं द्वारा प्रेग्नेंसी लॉस का कुल बोझ मुख्य रूप से वहन किया गया था। वायु प्रदूषण ने ग्रामीण क्षेत्रों में 30 वर्ष या उससे अधिक आयु की वृद्ध माताओं को प्रभावित करती हैं, क्योंकि प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के लिए उनकी उच्च संवेदनशीलता है। टीम ने 1998-2016 तक स्वास्थ्य पर घरेलू सर्वेक्षणों से डेटा संयुक्त किया और वायुमंडलीय मॉडलिंग आउटपुट के साथ उपग्रह के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान PM2.5 के लिए जोखिम का अनुमान लगाया।