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ऐसी कई महिलाएं है जो शादी के बाद प्रजनन क्षमता में कमी के कारण वर्षो तक सफल गर्भावस्था को प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। आधुनिक जीवनशैली की कुछ गलतियों का असर प्रजनन क्षमता पर पड़ता है जिस कारण उन्हें मातृत्व के सुख से दूर रहना पड़ता हैं। समतोल आहार, व्यायाम और एहतियात बरत कर महिलाए मातृत्व प्रदान कर सकती है। प्रजनन क्षमता में कमी आने पर डॉक्टर से जांच कराकर योग्य उपचार लेना बेहद आवश्यक होता हैं।
महिलाओं में प्रजनन क्षमता में कमी के मुख्य कारण
प्रेग्नेंसी में खान-पान का बहुत ध्यान रखना पड़ता है. जरा सी लापरवाही होने वाले बच्चे पर भारी पड़ सकती है. प्रेग्नेंसी में खाने की कुछ चीजों की बिल्कुल मनाही होती है जबकि कुछ चीजें सीमित मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है. आइए जानते हैं इन चीजों के बारे में.
ज्यादा मर्करी वाली मछली- मर्करी बहुत विषैला तत्व है जिसे सुरक्षित नहीं माना जाता है. ये प्रदूषित पानी में पाया जाता है. मर्करी की ज्यादा मात्रा नर्वस सिस्टम, इम्यून सिस्टम और किडनी को खराब कर देती है. इसकी थोड़ी भी मात्रा होने वाले बच्चे के विकास पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है. चूंकि, यह प्रदूषित समुद्रों में पाया जाता है, इसलिए बड़ी समुद्री मछलियां मर्करी अधिक मात्रा में जमा कर लेती हैं. इसलिए, प्रेग्नेंट और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को मर्करी वाली मछली नहीं खानी चाहिए. ज्यादा मर्करी वाली मछलियों में शार्क, किंग मैकरल, टूना, स्वोर्डफिश, मर्लिन और ऑरेंज रौफी आती हैं.
अधपकी या शेलफिश मछली- प्रेग्नेंसी में कभी भी शेलफिश या अधपकी मछली नहीं खानी चाहिए. शेलफिश खाने से कई तरह के वायरस या बैक्टीरियल संक्रमण हो सकते हैं. इनमें से कुछ इंफेक्शन आपको जबकि कुछ आपके होने वाले बच्चे को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं. प्रेग्नेंट महिलाओं में लिस्टेरिया संक्रमण आसानी से हो जाता है. ये बैक्टीरिया गीली मिट्टी और दूषित पानी या पौधों में पाया जाता है और शेलफिश मछली में आसानी से पहुंच जाता है. ये बैक्टीरिया प्लेसेंटा के जरिए होने वाले बच्चे तक पहुंच सकता है. इसकी वजह से गर्भपात या प्रीमेच्योर डिलीवरी भी हो सकती है.
अधपका और प्रोसेस्ड मीट- अधपका मीट भी प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए हानिकारक है. इसे खाने से टोक्सोप्लाज्मा, लिस्टेरिया और सैल्मोनेला जैसे कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकते हैं. ये होने वाले बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इससे बच्चे को गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी हो सकती है. अधिकांश बैक्टीरिया मांस के ऊपर जबकि कुछ मीट के अंदर पाए जाते हैं. इन मीट को कभी कच्चा या अधपका नहीं खाना चाहिए. पैटीज और बर्गर वाले प्रोसेस्ड मीट खाने से बचें. स्टोरेज में रखने के दौरान इनमें कई तरह के संक्रमण हो जाते हैं.
कच्चे अंडे- कच्चे अंडे में सैल्मोनेला बैक्टीरिया पाए जाते है. इन्हें खाने से बुखार, मितली, उल्टी, पेट में ऐंठन और दस्त हो सकते हैं. कुछ मामलों में इस संक्रमण की वजह से गर्भाशय में ऐंठन हो सकती है, जिससे बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है. कच्चे अंडे खाने वाले खाद्य पदार्थों में स्क्रैम्बल्ड एग और पोच्ड एग भी शामिल हैं. बाजार के कई प्रोडक्ट्स में कच्चे अंडे मिले होते हैं. खरीदने से पहले इनका लेबल पढ़ लें.
कैफीन- ज्यादातर लोगों को कॉफी पीना बहुत पसंद होता है लेकिन प्रेग्नेंट महिलाओं को कैफीन का सेवन बहुत कम मात्रा में करने की सलाह दी जाती है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, प्रेग्नेंट महिलाओं को एक दिन में 200 mg से कम कैफीन लेना चाहिए. कैफीन शरीर में बहुत जल्दी घुल कर प्लेसेंटा तक पहुंच जाता है. गर्भ में पल रहे बच्चे में मेटाबॉलिज्म एंजाइम नहीं होता है जिसकी वजह से उसको नुकसान पहुंच सकता है. प्रेग्नेंसी में ज्यादा कैफीन लेने से बच्चे का वजन और विकास रुक सकता है.
कच्चे स्प्राउट्स- स्प्राउट्स खाना शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है लेकिन कच्चे अंकुरित स्प्राउट्स प्रेंग्नेंसी में नहीं खाने की सलाह दी जाती है. अंकुरित मूंग वाले कच्चे स्प्राउट्स में सैल्मोनेला बैक्टीरिया पनप सकते हैं. धोने के बाद भी ये बैक्टीरिया स्प्राउट्स में रह जाते हैं. अच्छा होगा कि आप प्रेग्नेंसी में इन्हें पकाकर ही खाएं.
बिना धुली हुई चीजें- फल और सब्जियों के छिलकों पर कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं. इनमें सबसे खतरनाक टोक्सोप्लाज्मा बैक्टीरिया होता है. जब आप फलों और सब्जियों को बिना धोए और छीले खाते हैं तो ये बैक्टीरिया आपके पेट में चले जाते हैं. कुछ लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं जबकि कुछ लोगों में फ्लू की शिकायत हो जाती है. प्रेग्नेंसी में इस बैक्टीरिया की वजह से बच्चे की आंख में दिक्कत हो सकती है और उसका विकास भी रुक सकता है. प्रेग्नेंट महिलाओं को सब्जियों को अच्छी तरह धोकर, छील कर और पकाकर खाने चाहिए. फलों को भी ठीक तरह से धुलना चाहिए.
अनपाश्चराइज्ड मिल्क, चीज़ और जूस- कच्चे दूध और अनपाश्चराइज्ड चीज़ में ई कोलाई और कैम्पिलोबैक्टर जैसे कई हानिकारक बैक्टीरिया पाए जाते हैं. ये बैक्टीरिया अनपाश्चराइज्ड जूस में भी पाए जाते हैं. इनकी वजह से होने वाले इंफेक्शन शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं. इन चीजों से बैक्टीरिया खत्म करने के लिए इनका पाश्चराइजेशन जरूरी होता है. प्रेग्नेंट महिलाओं को सिर्फ पाश्चराइज्ड मिल्क, चीज़ और जूस का सेवन करना चाहिए.
जंक फूड- प्रेग्नेंसी में बच्चे के विकास के लिए सिर्फ पोषक तत्वों से भरपूर चीजें खानी चाहिए. इस समय जंक फूड से दूरी बना लें. जंक फूड में पोषक तत्व नहीं होते हैं और इनमें शुगर, फैट और कैलोरी बहुत ज्यादा पाई जाती है. जंक फूड खाने से वजन तेजी से बढ़ता है और इससे डिलीवरी के समय कई तरह की दिक्कत आ सकती है. प्रेग्नेंसी के समय अपनी डाइट में खूब सारे फल, हरी सब्जियां, प्रोटीन, फोलेट और आयरन शामिल करें.
शिशु के जन्म के बाद छह माह तक बच्चे को मां का दूध पिलाने की ही सलाह दी जाती है। स्तन का दूध पोषक तत्वों के साथ पूरा तरह पैक होता है जो शिशुओं की जीआई प्रणाली द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाती है। स्तनपान का एक लाभ यह भी होता है कि यह शिशु को तत्काल व लॉन्ग टर्म के लिए एलर्जी से प्रोटेक्शन देता है। आपको शायद पता ना हो लेकिन मां के दूध में प्रोटीन होते हैं जो नवजात शिशुओं में एलर्जी के विकास को रोकने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं, इसे शिशु की आंत माइक्रोबायोम आकार देने के लिए भी जाना जाता है। स्तन के दूध के कई घटक हैं जो बच्चे की प्रतिरक्षा को प्रभावित करते हैं। यह एलर्जी के जोखिम को कम करने में भी एक भूमिका निभाता है। स्तनपान से शिशु को एक नहीं बल्कि कई बेहतरीन लाभ होते हैं। तो चलिए आज हम आपको छोटे बच्चों में एलर्जी और स्तनपान की भूमिका के बारे में बता रहे हैं-
होता है प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत
शिशुओं में स्तनपान से वैसे तो कई लाभ मिलते हैं। यह मां व बच्चों में आपसी बॉन्ड बनाने के साथ-साथ बच्चों के दिमाग विकास व मजबूत हड्डियां आदि प्रदान करता है। हालांकि स्तनपान का एक सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि यह बच्चों के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाता है। आपको शायद पता ना हो लेकिन एक बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली का विकास उसके विकास के पहले कुछ वर्षों में होता है। ऐसे में अगर बच्चे को शुरूआती महीनों में अगर केवल स्तनपान ही करवाया जाए तो इससे उसकी मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली उसे ना केवल बचपन में बल्कि भविष्य में भी एलर्जी आदि से बचाव करती है।
पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर में एलर्जी से होने वाली बीमारियों में लगातार वृद्धि देखी गई है। एनसीबीआई अर्थात् नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन, यूनाइटेड स्टेट्स द्वारा किए गए अध्ययनों में कहा गया है कि बच्चे को रेग्युलर फार्मूला मिल्क की जगह कम से कम चार महीने के लिए स्तनपान करवाने से बच्चों में दो वर्षों तक मिल्क एलर्जी व एग्जिमा आदि से प्रोटेक्शन मिलती है।
एनआईसी अर्थात् राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, भारत सरकार के अनुसार, पिछले एक दशक से लो एयर क्वालिटी के कारण 1.5 करोड़ से अधिक भारतीय अस्थमा से पीड़ित हैं। उनमें से अधिकांश बचपन से अस्थमा से पीड़ित हैं। हालांकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। लेकिन शोधकर्ता संकेत देते हैं कि शिशुओं को जीवन के शुरुआती चरण में केवल स्तनदूध पर पिलाया जाता है तो इससे अस्थमा से संबंधित लक्षण विकसित होने का खतरा कम हो जाता है। इतना ही नहीं, ब्रेस्ट मिल्क संज्ञानात्मक विकास को भी बढ़ावा देता है।
मां को भी मिलता है लाभ
अगर आप यह मानती हैं कि स्तनपान शिशु के लिए लाभकारी है तो आप गलत है। न केवल स्तनपान कराने से शिशु को मदद मिलती है, बल्कि यह माँ के लिए भी उतना ही लाभकारी है। मेडिकल शोध से पता चला है कि जो महिलाएं स्तनपान कराती हैं, उनमें डिम्बग्रंथि और स्तन कैंसर, हृदय रोगों और टाइप 2 मधुमेह के विकास का खतरा कम होता है।
बच्चों को खिलौने बेहद पसंद होते हैं, उन्हें देखते ही उनके चेहरे के भाव उनकी खुशी को साफ तौर पर दर्शाने लग जाते हैं। इन खिलौनों से ही बच्चे काफी कुछ सीखते हैं मसलन कलर्स की पहचान, काउंटिंग, टेबल और भी जाने क्या-क्या। लेकिन अक्सर माता-पिता बिना सोचे समझे बच्चों के लिए खिलौने खरीदने लगते हैं, जिनका असर उनके मानसिक विकास पर पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा एक्टिव हो और उसमें सीखने की क्षमता का निरंतर विकास हो, तो बच्चों के लिए खिलौनों का चयन सोच-समझ कर करें।
अधिकतर एजुकेशनल टॉय ऐसे होते हैं जो बच्चों को बिना किसी बड़े व्यक्ति की सहायता और कंडीशन के घुलना-मिलना सिखाते हैं। यह जरूरी है कि आप ऐसे खिलौनों का चयन करें, जो बच्चों को सोचने और समझने की ओर प्रेरित करें। ध्यान रहे इस तरह के खिलौने बहुत अधिक महंगे या ट्रेंडी नहीं होते। माता-पिता का ध्यान खींचने के लिए खिलौने विकल्प नहीं होने चाहिए। बच्चों को ऐसे सुरक्षित, सस्ते खिलौने उपल्बध कराएं, जिनका विकासात्मक उपयोग हो।
बच्चों के खिलौने ऐसे होने चाहिएं, जो उन्हें विकास और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने वाले क्षेत्रों में सीखने और विकास को बढ़ावा देने वाले हों। उन खिलौनों से बचना चाहिए, जो कल्पनाशक्ति का उपयोग करने से बच्चों को हतोत्साहित करते हैं। बच्चों को ऐसे खिलौने दें, जो उन्हें हमेशा कुछ अच्छा सीखने के लिए प्रेरित करें, उनके ज्ञान में वृद्धि करे और उन्हें मानसिक रूप से समृद्ध बनाए, जिससे बड़े होने पर उन्हें जीवन की समस्याओं से उबारने में सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक कौशल विकसित हो।
खिलौने ऐसे होने चाहिए जो न सिर्फ बच्चे का अकेलापन दूर करें, बल्कि उनमें एक अच्छा सामाजिक, स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक भाव भी विकसित करें। दोस्तों या परिवारजनों के साथ खेलने से बच्चों में सहयोग, सद्भाव की भावना विकसित होती है एवं खेल-भावना को समझने में सरलता होती है। छोटे बच्चों को बिल्डिंग ब्लॉक जैसे खेलों से अपनी रचनात्मक शक्ति बढ़ाने में मदद मिलती है। खेल- खेल में अपनी चीजें साझा करना सीखते हैं, हार- जीत से दबाव में न आना और सबसे मिलकर रहना सीखते हैं।
अपने बच्चों के साथ ऐसी किताबें और मैगजीन शेयर करें, जिन्हें आप भी उनके साथ पढ़ सकें। कुछ खिलौने हिंसा या जातीय या लिंग भेद को बढ़ावा देने वाले होते हैं। ऐसे खिलौनों से अपने बच्चों को दूर रखें। जैसे कि वीडियो गेम और कंप्यूटर गेम का इस्तेमाल सीमित होना चाहिए। प्रतिदिन बच्चों का कुल स्क्रीन टाइम (जिसमें टीवी और कम्प्यूटर देखना भी शामिल है), प्रतिदिन 1 से 2 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। 5 साल से छोटे बच्चों को टीवी और वीडियो गेम्स का इस्तेमाल तभी करने दें जब वह उनके लिए विकासात्मक रूप से उपयुक्त हों।
बच्चों को दिए गए खिलौने ऐसे होने चाहिए जो नुकीले न हो और बच्चों को नुकसान न पहुंचा सकें। खासतौर पर अगर आपका बच्चा छोटा है तो उन्हें ऐसे खिलौने न दें जिनके छोटे-छोटे अथवा नुकीले पार्ट्स हों, इन खिलौनों को बच्चा मुँह में डाल सकता है अथवा हाथ- पैर में चोट लगा सकता है, जिससे उसकी जान को खतरा हो सकता है। यह भी ध्यान रहे कि बच्चे को खिलौना देकर यूं ही निश्चिंत न हो जाएँ, बल्कि ख्याल रखें कि बच्चा वो खिलौना कैसे खेल रहा है और कितना समय दे रहा है।
बच्चे के सही विकास के लिए ये याद रखना भी आवश्यक है कि उसके पास ऐसे खिलौने भी हों जो उसकी मानसिक गतिविधि के साथ- साथ उसकी शारीरिक सक्रियता को बढ़ाने में सहयोगी हों। क्योंकि अगर बच्चे को बैठे- बैठे खेलने की आदत पड़ जाएगी तो उसके सम्पूर्ण स्वास्थ्य व शारीरिक विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी है। इसलिए अपने बच्चे के लिए खिलौने खरीदते समय पूरा ध्यान रखें कि उस खिलौने से आपका बच्चा क्या सीखेगा, उसके मानसिक व शारीरिक विकास पर इसका क्या असर पड़ेगा और सुरक्षा की दृष्टि से भी खिलौना पूरी तरह जांचा- परखा गया है। साथ ही इस बात का ख्याल रखें कि खिलौना देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है आपका अपने बच्चे के साथ अच्छा समय बिताना, उसे समझना और उसे एक अच्छा इंसान बनने में सहायता करना।