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तेज़ी से दौड़ती-भागती जिंदगी में हर उम्र के लोग अपनी-अपनी गति से भाग रहे हैं। काम का बढ़ता प्रेशर, खूब सारा पैसा कमाने की चाह और बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच परिवार कहीं पीछे छूटता जा रहा है। देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में सिंगल चाइल्ड का ट्रेंड कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। क्यूंकि आजकल पति-पत्नी दोनों वर्किंग होते है और महंगाई भी बढ़ रही है ऐसे में पेरेंटस का ये मानना है कि वे एक बच्चे की जिम्मेदारी ही अच्छे से निभा सकते है। लेकिन जब बच्चा अकेला होता है तो वो कई तरह की मानसिक स्थितियों से गुजरता है, ऐसे में हकह सकते है कि सिंगल चाइल्ड होने के नुकसान भी कई है। यहां हम बताएंगे कि सिंगल चाइल्ड के क्या नुकसान है और इससे होने वाले दुष्परिणामों से कैसे बचा जाए।
बच्चा अकेलापन महसूस करता है
हर उम्र के लोगों को अपने उम्र के लोगों के साथ बातचीत करना, उसके साथ अपनी फीलिंग शेयर करना अच्छा लगता है। बात बच्चों की करें तो उनके मन में इतनी सारी बातें और शरारतें होती है कि वो इन्हें अपने उम्र के बच्चे के साथ शेयर करना पसंद करता है। चूंकि उनका अधिकांश समय घर में ही गुजरता है, ऐसे में वो ये चाहते है कोई ऐसा हो जो उन्हें समझें, उनकी भावनाओं को समझें। लेकिन जब उसे अपने घर में अपनी उम्र का कोई ऐसा सदस्य नहीं मिलता, तो उसे अकेलापन महसूस होने लगता है।
अधिक लाड़-प्यार बिगड़ता है
जाहिर-सी बात है जब बच्चा अकेला होगा तो सारा लाड़प्यार उसे ही मिलेगा और और उसकी सारी बातें मान ली जाएगी। ऐसा में बच्चा बिगड़ जाता है और अपनी हर बात मनवाने के लिए जिदद करने लगता है। बच्चे का ये बिहेवियर आगे जाकर घातक रूप ले लेता है।
डिप्रेशन का शिकार हो सकता है
जब बच्चा अकेला होता है, तब पैरेंट्स की उम्मीदें उस बच्चे से बढ़ जाती है। पेरेंटस जो अपनी उम्र में नहीं कर पाते, वो करने की उम्मीद बच्चे से करते है। पेरेंटस का दबाव बच्चे पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा देता है और इस वजह से बच्चा डिप्रेस हो सकता है।
इकलौता बच्चा होने की वजह से पैरेंट्स बच्चे की हर ज़रूरत और मांग पूरी करते हैं, जिसकी वजह से बच्चा चैलेंजेस के लिए मेंटली तैयार नहीं हो पाता है। क्यूंकि उसे पता होता है कि उस हर चीज आसान से मिल जाएगी। बल्कि ऐसे बच्चे हर चीज को लेकर लापरवाह या बेपरवाह भी हो जाते है।
आत्मविश्वास की कमी
चूंकि बच्चा घर में अकेला रहता है, ऐसे में उसे ज्यादा लोगों से घुलने-मिलने या बातचीत करने की आदत नहीं होती। ऐसे बच्चे पब्लिक प्लेस में सबका सामन नहीं कर पाते, क्यूंकि उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है।
अकेले बच्चे को कैसे पालें
सामाजिक दायरा बढाए
अकेला बच्चा हमेशा अपनी कल्पनाओं की दुनिया में ही खोया रहता है। ऐसे में वो बाहरी दुनिया के साथ इंटरैक्ट करने से घबरा सकता है, इसलिए ये जरूरी है कि बच्चे का सामाजिक मेल-जोल बढ़ाने की कोशिश की जाए। बच्चे को नए-नए दोस्त बनाना सीखाए, साथ ही उसे ये समझाए कि उसे सोशल सर्कल में किस तरह से बात करनी है।
पहले जब एक से ज्यादा बच्चे होते थे तो उन्हें भाई-बहिन और रिश्तों की कीमत का एहसास था। जब बच्चे के पास भाई बहन होते हैं, तो वह आपसी रिश्ते की कीमत ज्यादा समझते हैं। लेकिन अकेला बच्चा यह सब बातें नहीं समझ पाता, इसलिए ये बहुत जरूरी है कि माता-पिता बच्चे को रिश्तों का महत्व समझाए।
आत्मनिर्भर बनाए
जब बच्चा अकेला होता है, तो पेरेंटस उसका हर काम करते देते है, इस कारण बच्चा आत्मनिर्भर नहीं बन पाता। वह अपने हर काम को लेकर पेरेंटस पर ही निर्भर रहने लगता है। जिससे आगे जाकर बच्चा अपनी खुद की पहचान नहीं बना पाता। इसलिए ये जरूरी है कि बच्चे को हर स्थिति के लिए मेंटली तैयार किया जाए और उसे अपना काम खुद करने की आदत ड़ाली जाए।
बच्चों की इम्यूनिटी वयस्कों के मुकाबले काफी कमजोर होती है, ऐसे में वह बार-बार बीमार भी पड़ते हैं. उनमें संक्रमण का खतरा भी अधिक होता है, लिहाजा हमें उन्हें लेकर अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है. बच्चों से जुड़ी चीजों खासकर उनकी दूध की बोतलों को साफ करने में हमें खास सावधानी रखने की जरूरत होती है. बच्चों को खतरनाक बैक्टीरिया और वायरस से बचाना है तो बच्चों की दूध की बोतलों को सही तरीके से साफ करें. इस लेख में हम इससे जुड़ी अहम जानकारी साझा कर रहे हैं.
यूज करने के बाद तुरंत पानी डाल कर धोएं
इस्तेमाल के बाद सीधे बच्चे की बोतलों को धो दें. जैसे ही आप अपने बच्चे को दूध पिलाएं, बोतल को पानी से धो दें. बाद में समय मिलने पर बोतल को अच्छी तरह धो सकते हैं, लेकिन इससे बोतल में पुराना दूध या गंदगी जमा नहीं होगी. बोतल को धोते समय गर्म पानी का इस्तेमाल करें.
बोतल और निप्पल ब्रश का करें इस्तेमाल
खासकर बेबी बोतलों के लिए डिज़ाइन किया गया डिशवॉशिंग लिक्विड का इस्तेमाल करें, ये सॉफ्ट और केमिकल मुक्त होती है. अगर आप प्लास्टिक की बेबी बोतलों का उपयोग कर रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि वह BPA (बिस्फेनॉल ए) फ्री हो.
बोतल के सभी पार्ट्स को धोएं
बोतल को खोल कर सभी हिस्सों को अलग करें. अब सभी पार्ट्स को अलग-अलग धोएं. बोतल, रिंग और निप्पल को अलग-अलग धोना जरूरी है. रिंग और निप्पल के बीच बहुत सारा पुराना दूध जमा हो सकता है, जिससे बैक्टीरिया पनप सकते हैं.
बॉयल करें बोतल
बोतल के सभी हिस्सों को अलग करके उन्हें गर्म उबलते हुए पानी में डाल दें और उबाल आने दें, इससे सभी बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं. अब ब्रश और वॉशिंग लिक्विड की मदद से बोतल, रिंग और निप्पल को अच्छे से साफ करें.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है
मां बनना हर स्त्री का सपना होता है। गर्भावस्था के दौरान महिला को जिस चीज का अहसास होता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो ईश्वर के इस वरदान से वंचित रह जाती हैं। आमतौर पर, महिलाएं अपनी मां बनने की आस को पूरा करने के लिए इलाज भी करवाती हैं। लेकिन जब उनकी मुराद पूरी नहीं होती है, तो वे निराशा के अंधकार में डूब जाती हैं। हालांकि, आप इस इनफर्टिलिटी स्ट्रेस को दूर करने के लिए कुछ उपाय अपना सकती हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको इनफर्टिलिटी स्ट्रेस को मैनेज करने के लिए कुछ आसान उपायों के बारे में बता रहे हैं-
अपने वर्तमान पर ध्यान दें
कुछ कपल्स अपनी इनफर्टिलिटी के कारण स्ट्रेस में इसलिए भी होते हैं, क्योंकि उन्हें अपने भविष्य की चिंता अधिक सताती हैं। उन्हें लगता है कि अगर उनका बच्चा नहीं होगा तो उनके भविष्य का क्या होगा। बुढ़ापे में उनका ख्याल कौन रखेगा? यही सब सवाल उनके दिमाग में घूमते हैं और इसलिए वह खुद को अधिक तनाव में महसूस करते हैं। इसलिए, अगर आपको इनफर्टिलिटी स्ट्रेस से उबरना है तो आप अपने भविष्य के स्थान पर वर्तमान पर ध्यान दें। इससे आप खुद को अधिक खुश महसूस करेंगे.
अधिकतर कपल्स को जब यह पता चलता है कि वह पैरेंट नहीं बन सकते हैं तो वह खुद को दुनिया से पूरी तरह से दूर कर लेते हैं। इतना ही नहीं, वे खुद पर ध्यान देना ही छोड़ देते हैं। जिसके कारण वह खुद को और भी अधिक तनावग्रस्त महसूस करते हैं। इसलिए, खुद पर ध्यान देना शुरू करें। जब आप अपने खान-पान से लेकर एक्सरसाइज रूटीन आदि पर फोकस करते हैं, तो इससे हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं और आप तनाव को कम कर पाते हैं।
किसी करीबी से करें बात
जब आप तनाव में हैं या फिर चाहकर भी खुद को डिप्रेशन से बाहर नहीं निकाल पा रही हैं तो ऐसे में सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने पार्टनर या किसी करीबी से बात करें। जब आप किसी करीबी से इस विषय में बात करते हैं तो ऐसे में आपको अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस कर पाते हैं और इस तरह आपके लिए खुद को हैप्पी रखने में मदद मिलती है।
हो सकता है कि आपके लिए पैरेंट बनना संभव ना हो और इसलिए आप खुद को निराश महसूस कर रहे हों। ऐसें में आप विकल्पों पर ध्यान दें। मसलन, आप डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं और चिकित्सीय उपचार के जरिए पैरेंट बन सकते हैं। हालांकि, अगर आपके लिए चिकित्सीय रूप से भी पैरेंट बनना संभव नहीं है तो आप सरोगेसी पर विचार कर सकते हैं या फिर किसी बच्चे को कानूनी रूप से गोद भी लिया जा सकता है।
साइकोलॉजिस्ट से मिलें
कभी-कभी इनफर्टिलिटी स्ट्रेस इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति के लिए उसे खुद मैनेज करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में आपको जरूरत होती है एक एक्सपर्ट की। बहुत अधिक इनफर्टिलिटी स्ट्रेस आपको कई तरह से प्रभावित होता है। अगर आपको ऐसा लग रहा है कि आप इस तनाव को खुद नहीं संभाल पा रही हैं तो आप किसी साइकोलॉजिस्ट से अपॉइटमेंट अवश्य लें।
जब कोई इंसान इनफर्टिलिटी स्ट्रेस से गुजर रहा होता है तो ऐसे में वह खुद को अकेला रखता है। जब वह सिर्फ और सिर्फ अपने जीवन के इस खालीपन पर विचार करता है। जिससे उसका तनाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए, इस तनाव को मैनेज करने के लिए आप खुद को काम में व्यस्त रखें। जब आप अपना फोकस बदलेंगे तो इससे आपका तनाव भी कम होगा।
महामारी के दौरान लड़कियों में जल्दी पीरियड शुरू होने के मामलों की भारी संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है। द वाशिंगटन पोस्ट और द फुलर प्रोजेक्ट द्वारा ये रिपोर्ट सामने आई है। जल्दी पीरियड शुरू होना असामान्य है। प्रत्येक 5,000 से 10,000 बच्चों में से इसने एक को प्रभावित किया है। दुनिया भर के डॉक्टरों और माता-पिता ने कम ऊम्र में ही लड़कियों के पीरियड होने में वृद्धि देखी है। वहीं कुछ मामलों में, 5 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में ब्रेस्ट विकसित करना शुरू कर दिया है और 8 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में मासिक धर्म शुरू हो गया है। द इटैलियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिशियन में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, प्रारंभिक आंकड़े कोविड -19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान लड़कियों में असामयिक प्यूबर्टी के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि को बताते हैं।
शुरूआती प्यूबर्टी (प्रारंभिक यौवन) क्या है?
शुरूआती यौवन का,तब होता है जब एक बच्चे का शरीर एक वयस्क शरीर में बदलना शुरू कर देता है, जो बहुत जल्दी होता है। लड़कियों में आठ साल की उम्र से पहले और लड़कों में नौ साल की उम्र से शुरू होने वाले प्यूबर्टी को उम्र की सीमा माना जाता है।
इस अजीबोगरीब उछाल को देखने वाला भारत अकेला नहीं है। इटली से लेकर तुर्की तक, अमेरिका से लेकर यूरोपियन कंट्रीज तक दुनिया भर के पीडियाट्रिशियन ने असामयिक मासिक धर्म और प्यूबर्टी के मामलों में वृद्धि के बारें में बताया है।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव
शुरूआती प्यूबर्टी, विशेष रूप से लड़कियों में, कुछ दर्दनाक स्थितियों को जन्म देती है। साथ-साथ उनके माता-पिता के लिए भी। प्यूबर्टी हार्मोन के स्तर को बदलता है, इसलिए यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह रोगी की भावनाओं को प्रभावित करता है। खून देखना दर्दनाक हो सकता है। अधिकांश मासिक धर्म के 'एपिसोड' को संभालने के लिए पर्याप्त परिपक्व नहीं होते हैं। वे अपने शरीर के प्रति भी खुलकर कॉन्शस हो जाते हैं। ये अवसाद, खाने के विकार, मादक द्रव्यों के सेवन और असामाजिक व्यवहार को बढ़ा सकता है। ऐसी स्थिति के लिए मेन है ट्रीटमेंट, हार्मोन थेरेपी जिसे GnRH एनालॉग थेरेपी के रूप में जाना जाता है। लेकिन कुछ मरीज़ और परिवार जागरूकता की कमी या मासिक धर्म के साथ आने वाले कलंक के कारण इलाज नहीं कर पाते हैं।