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एक स्वास्थ्य स्टाडी में पाया गया कि जिन महिलाओं ने गर्भपात का अनुभव किया हो, उनमें गर्भावस्था के अन्य सभी परिणामों वाली महिलाओं की तुलना में 70 साल की उम्र से पहले मरने की संभावना ज्यादा होती है।
4 में से 1 गर्भधारण में होता है गर्भपात
सहज गर्भपात गर्भावस्था के सबसे आम प्रतिकूल परिणामों में से एक है। एक अनुमान के मुताबिक 26 प्रतिशत प्रेग्नेंसी में गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाती है। और 10 प्रतिशत तक डॉक्टर की परमिशन या मेडिसिन खाकर गर्भपात होता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि गर्भपात के इतिहास वाली महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और टाइप 2 डायबिटीज का ज्यादा खतरा होता है। लेकिन गर्भपात से संबंधित ऐसे बहुत कम सबूत हैं कि प्रारंभिक मृत्यु का खतरा गर्भपात का कारण है।
हम वास्तव में नहीं जानते कि कई महिलाओं का गर्भपात क्यों होता है, या उसके क्या कारण है। गर्भपात के कई अलग-अलग कारण हैं। जो कई बड़े स्वास्थ्य मुद्दों की ओर संकेत नहीं दे सकता है। जैसे कई बार गर्भपात का कारण भ्रुण में बच्चे में किसी तरह की समस्या होने के कारण भी होता है।
गर्भपात के इमोशनल बर्डन पर भी दें ध्यान
गर्भपात के बाद महिलाओं को इमोशनल स्पॉर्ट की भी बहुत जरुरत होती है। गर्भपात के बाद महिलाओं के परिजनों को ये समझने की जरुरत है कि ऐसे समय में महिलाओं को मानसिक रूप से मजबूत होने की जरुरत है। ऐसे में अगर परिजनों का इमोशनल स्पॉर्ट मिलेगा तो उनके स्वस्थ्य पर अच्छा असर होगा। और वो जल्द ही रिकवर हो पाएंगी।
अगर कोई महिला एक से ज्यादा गर्भपात का अनुभव करने वाली महिलाओं को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन समय रहते इन समस्याओं का इलाद किया जा सकता है। जब भी किसी का गर्भपात होता है तो उनके स्वस्थ्य की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत होती है। ताकि उनकी लाइफस्टाइल पहले जैसे की जा सकें। अगर कोई महिला बार-बार गर्भपात का सामना कर रही है, तो उन्हे एक प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह जरुर लेनी चाहिए।
वर्तमान में, महिलाएं जल्द मां नहीं बनना चाहती हैं और इसलिए वह गर्भनिरोध के लिए कई रास्ते अपनाती हैं। इन्हीं में से एक है गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करना। यूं तो इन गोलियों का सेवन अधिक सुरक्षित व सुविधाजनक माना जाता है, लेकिन फिर भी हर महिला को इसका सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है। मसलन, अगर आपका वजन बहुत अधिक है तो ऐसे में गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से परहेज करें। एक अध्ययन में पाया गया है कि यह गोलियां ओवरवेट महिलाओं में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या को जन्म दे सकती हैं। महिलाओं का अधिक वजन और गर्भनिरोधक गोलियों व ब्लड क्लॉटिंग आपस में किस तरह जुड़ी है, इसके बारे में आज हम इस लेख में जानेंगे-
अध्ययन में हुआ है साबित
कार्डियोलॉजी के यूरोपीय सोसायटी के एक जर्नल, ईएससी हार्ट फेल्योर के एक अध्ययन के अनुसार, मोटापे से ग्रस्त महिलाएं जो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टिन युक्त ओरल गर्भ निरोधकों का उपयोग करती हैं, उनमें गैर-मोटापे से ग्रस्त महिलाओं की तुलना में वीनस थ्रोम्बोइम्बोलिज्म (वीटीई) का जोखिम 24 गुना बढ़ जाता है।
वीटीई वास्तव में एक नस में रक्त का थक्का जमना है। जब नसों में खून का थक्का जमने लगता है तो इससे वह अधिक ठोस हो जाता है। जिसके कारण पूरे शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन सही तरह से नहीं हो पाता। ब्लड सर्कुलेशन सही तरह से ना हो पाने से शरीर के किसी भी अंग पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
रक्त के थक्कों से होने वाले नुकसान
जब शरीर में रक्त के थक्के जमने लग जाते हैं तो यह एक बेहद ही खतरनाक स्थिति साबित हो सकती है, क्योंकि पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह प्रभावित होता है। यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है, लेकिन रक्त का थक्का बनने से हद्य रोग होने या हार्ट अटैक आने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि शरीर के सभी हिस्सों में रक्त पहुंचाने के लिए शरीर को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोटापे का वैश्विक प्रसार 1975 और 2016 के बीच लगभग तीन गुना हो गया है। बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के साथ वीटीई का जोखिम बढ़ता ही जा रहा है। मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में यह रिस्क गैर-मोटापे से ग्रस्त महिलाओं की तुलना में दोगुने से अधिक है।
गर्भनिरोधक दवाइयों के सुरक्षित उपाय
चूंकि ऐसी महिलाओं के लिए एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टिन युक्त ओरल गर्भ निरोधकों का उपयोग करना बिल्कुल भी उचित नहीं माना जाता हैै। इसलिए, वह इसके स्थान पर कुछ अन्य उपाय अपना सकती हैं। मसलन, ऐसी महिलाओं को केवल प्रोजेस्टिन युक्त गर्भनिरोध दवाइयों का ही सेवन करना चाहिए और वह भी डॉक्टर की सलाह पर ही लें। इसके अलावा वह यूटीआई या कॉपर टी का विकल्प भी चुन सकती हैं।
चूंकि अधिक वजन होने पर वीटीई का रिस्क काफी बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, बहुत अधिक वजन कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। महिलाओं के लिए तो गर्भावस्था में भी कॉम्पलीकेशन बढ़ जाते हैं। इसलिए, अपने वजन को कम करने का प्रयास करें। आप नियमित रूप से व्यायाम करें और अपनी शारीरिक गतिविधि के स्तर में वृद्धि करें। साथ ही, पोषक तत्वों से युक्त बैलेंस डाइट लें।
अक्सर नवजात बच्चों के सिर पर मोटी सी एक पीले रंग की परत जम जाती है। इसे ही क्रेडल कैप कहते हैं। अमतौर पर यह बहुत सामान्य स्थिति है। हर बच्चे के सिर पर पीले रंग की यह परत जमती है। बच्चे के सिर पर जमने वाली इस पीली परत को मेडिकल की भाषा में इंफेटाइल सेबोरीक डर्मेटाइटिस भी कहा जाता है। बच्चे के क्रेडल कैप होना इस बात की ओर इशारा करता है कि आप अपने बच्चे की स्वच्छता का सही से ध्यान नहीं रख रही हैं। यह चिपचिपी, गाढ़ी पीले रंग की परत बच्चे के सिर के साथ आंखों, पलकों, कान, नाक, यहां तक की डाइपर एरिया के पास भी हो सकता है।
क्रैडल कैप के लक्षण
2 सप्ताह से 12 महीने के बच्चों में क्रैडल कैप की समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। क्रैडल कैप में बच्चे के सिर पर थोड़े लाल पपड़ीदार या पीले पपड़ीदार धब्बे हो जाते है। यह चेहरे या डायपर एरिया से भी शुरू हो सकता है और शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। क्रैडल कैप दिखने में त्वचा को असहज या परेशान करने वाला लग सकता है। लेकिन इसमें आमतौर पर खुजली नहीं होती है, और यह बच्चों को परेशान नहीं करता है।
बच्चों की त्वाचा बहुत नाजुक होती है। पैदा होने के बाद बाहर के हवा पानी के साथ मिलने में उन्हे थोड़ा समय लगता है। ऐसे में तेल ग्रंथियों में बहुत अधिक त्वचा का तेल (सीबम) होना, और त्वचा पर पाया जाने वाला एक प्रकार का खमीर जिसे मलसेज़िया कहा जाता है, क्रैडल कैप का कारण बनते है।
क्रैडल कैप का इलाज
बच्चों में क्रैडल कैप आमतौर पर हफ्तों या महीनों में अपने आप ठीक हो जाता है। इस बीच, आप अपने बच्चे के सिर पर मौजूद पपड़ी को हटाने के लिए यह तरीके अपना सकती हैं-
- अपने बच्चे के बालों को दिन में एक बार माइल्ड, टियर-फ्री बेबी शैम्पू से धोएं।
- मुलायम ब्रश या टूथब्रश से बच्चे के सिर से पपड़ी को हटाएं।
- अगर पपड़ी आसानी से नहीं हट रही, तो अपने बच्चे के सिर पर थोड़ी मात्रा में तेल लगा सकती हैं। इसके बाद नरम ब्रश की मदद से पपड़ी को हटा सकती हैं। ये ब्रश आप एमजॉन से खरीद सकती हैं।
- अगर नियमित शैंपू करने से मदद नहीं मिलती है, तो आप डॉक्टर की मदद लें सकती हैं।
- शरीर के अन्य हिस्सों पर क्रैडल कैप को हटाने के लिए भी आप डॉक्टर की सलाह लें सकती हैं। आमतौर पर डॉक्टर स्टेरॉयड या एंटिफंगल क्रीम लगाने की सलाह देते हैं।
- बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी तरह के स्टेरॉयड या ऐंटिफंगल क्रीम या एंटी-सेबोरहिया शैंपू का प्रयोग न करें।
जल्द ही पितृपक्ष की शुरुआत होने वाली है। कहते हैं जो भी व्यक्ति इस दौरान नियमों का पालन करता है और सही विधि से तर्पण और श्राद्ध करता है उनके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष पूरे 15 दिनों का होता है और ऐसी मान्यता है कि इस दौरान कुछ बुरी आत्माएं भी धरती पर होती हैं। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से बहुत ही संभलकर रहने की आवश्यकता होती है। उन्हें कुछ खास नियमों का पालन करना चाहिए जिससे वे और उनका होने वाला शिशु सुरक्षित रहे। कहा जाता है कि यदि गर्भवती महिलाएं पितृपक्ष के नियमों का पालन करती हैं तो उन्हें गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ और उनकी आने वाली कई पीढ़ियों को पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
आइए आपको बताते हैं कि गर्भवती महिलाओं को पितृपक्ष के दौरान कौन से नियमों का पालन करना चाहिए और उन्हें किन गलतियों से बचने की आवश्यकता है।
गर्भवती महिलाएं रात को घर से बाहर निकलने से बचें। सुनसान जगहों पर अकेले जाने से आपको बचना चाहिए। कहते हैं इस समय नेगेटिव एनर्जी सक्रिय रहती हैं। ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए यह ठीक नहीं है। यदि इस समय आपको किसी जरूरी काम से बाहर जाना हो तो आप किसी के साथ ही जाएं।
पितृपक्ष में यात्रा न करें
जहां तक हो सके पितृपक्ष में गर्भवती महिलाओं को यात्रा करने से बचना चाहिए। खासतौर पर लंबे सफर पर न जाएं।
इस दौरान आपको तेज महक वाले परफ्यूम या इत्र लगाने से परहेज करना चाहिए, विशेष रूप से रात के समय आपको इनके इस्तेमाल से बचने की जरूरत है।
मांसाहारी भोजन का सेवन करने से बचें
पितृपक्ष के दौरान शुद्ध शाकाहारी भोजन का ही सेवन करना चाहिए। जो व्यक्ति तर्पण और श्राद्ध कर्म करने वाले हैं उन्हें लहसुन प्याज का भी त्याग करना चाहिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को भी इस अवधि में मांस, मछली खाने से बचना चाहिए।
पितरों का आदर सम्मान करें
पितृपक्ष में आपको अपने पितरों का अपमान नहीं करना चाहिए। पूरे 15 दिनों तक आप उनकी सेवा करें साथ ही ब्राह्मणों, गरीबों और जानवरों को भी भोजन कराएं।
जानवरों को न सताएं
गर्भावस्था के दौरान आपको जानवरों की सेवा करनी चाहिए। यदि आप उनका अपमान करती हैं या फिर उन्हें सताती है तो इससे आपके पितरों के साथ ईश्वर भी रुष्ट हो सकते हैं। पितृपक्ष में आपको किसी भी जानवर की हत्या नहीं करनी चाहिए। ऐसी गलती करने से आपको पित्र दोष लग सकता है।
गरीबों और ब्राह्मणों को दान करें
पितृपक्ष में दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। आप अपनी क्षमता अनुसार गरीबों और ब्राह्मणों को दान कर सकती हैं। ऐसा करने से आपको और गर्भ में पल रहे शिशु को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
गर्भवती महिलाओं को पितृपक्ष में श्मशान घाट पर नहीं जाना चाहिए। कहते हैं यहां अच्छी आत्माओं के साथ बुरी आत्माओं का भी वास होता है। इन बुरी आतमाओं की छाया होने वाले बच्चे पर नहीं पड़नी चाहिए।