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नारियल पानी आमतैर पर सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। नारियल पानी शरीर स्वस्थ रखता है। इसमें क्लोराइड इलेक्ट्रोलाइट भी मौजूद होते हैं। इसकी इस खासियत के कारण ये प्रेगनेंसी में भी बहुत लाभदायक होता है। नारियल पानी प्रेग्नेंट महिला को बच्चे की ग्रोथ के लिए रोज एक ग्लास नारियल पानी पीना चाहिए। नारियल पानी में विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता साथ ही मिनरल्स पाए जाते हैं। मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम और कैल्शियम भी अच्छी मात्रा में होता है जो आपकी हेल्थ के लिए बेनिफिशियल होता है। डॉक्टर भी इन्ही कारणों से नारियल पानी पीने की सलाह देते हैं।
1- थकान को करता है दूर-
सुबह के समय प्रेग्नेंट महिला को थकान महसूस होती है, इसके लिए नारियल पीना बेहतरीन ऑप्शन है।इससे बॉडी में एनर्जी आती है और थकान दूर होती है। इसमें फाइबर होता है जो आपके वजन को भी कंट्रोल करता है।
2. शरीर में रोग प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाता है-
इस बात के भी कुछ प्रमाण हैं कि नारियल पानी शरीर में रोग प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाने का काम करता है। इसके साथ ही नारियल पानी मूत्रमार्ग संक्रमण रोकने में भी कारगर साबित होता है। उच्च रक्तचाप कम करने में भी ये हेल्प करता है।
3. कब्ज से रहात दिलाता है नारियल पानी-
नारियल पानी पीने से प्रेगनेंसी में होने वाली कब्ज की परेशानी भी दूर होती है। प्रेगनेंसी के दौरान पाचनतंत्र कमजोर होने लगता है। अगर आप रोजाना नारियल पानी पीएंगे तो कब्ज की समस्या से आराम मिलेगा। नारियल पानी पाचन तंत्र मजबूत करता है।
4. कॉफ़ी, चाय या कोक के ऑप्शन में बदल सकते हैं-
नारियल पानी पीने से गर्भावस्था के दौरान मिचली, कब्ज और एसिडिटी से राहत मिलती है। इसकी ठंडक उल्टी और बुखार को भी कम करता है। आप नारियल पानी को कॉफ़ी, चाय या कोक के ऑप्शन में बदल सकते है, जो एक हेल्थी ड्रिंग होगा आपके लिए।
कितना नारियल पानी पीना सही-
नारियल पानी प्रेगनेंसी के दौरान पीना लाभकारी तो होता है लेकिन इसका ज्यादा इन्टेक करने से बचना चाहिए। आप प्रेगनेंसी के दौरान डेली एक गिलास नारियल पानी पी सकती हैं। लेकिन इसका भी ख्याल रखे कि नारियल ताजा और साफ हो। फफूंद वाले नारियल को ना इस्तेमाल करें।
ओव्यूलेशन डिसऑर्डर क्या हैं?
महिलाओं में बांझपन के सबसे सामान्य कारणों में से एक ओव्यूलेशन असामान्यताएं हैं। ओव्यूलेशन डिसआर्डर को एक महिला के मासिक धर्म चक्र के दौरान एक अंडे (जिसे ओओसीट या डिंब के रूप में भी जाना जाता है) के निर्माण में अनियमितता के रूप में वर्णित किया जा सकता है। जिसके कारण महिला के प्रजनन हार्मोन में भी समस्या शुरू होती है, जिससे महिला के लिए कंसीव करना मुश्किल हो जाता है। इन ओव्यूलेशन डिसऑर्डर के पीछे का कारण कुछ दवाएं, मेडिकल प्रॉब्लम और खराब लाइफस्टाइल भी हो सकता है।
अलग-अलग ओव्यूलेशन विकार कौन से हैं?
अधिक वजन या कम वजन होना, हार्मोन के स्तर को बाधित कर सकता है, अनियमित हार्मोन उत्पादन को जन्म दे सकता है, अंडाशय को नुकसान पहुंचा सकता है और ओव्यूलेशन की समस्या पैदा कर सकता है। अन्य बीमारियां, दवाएं और जीवनशैली कारक भी हार्मोन के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं। गर्भवती होने में असमर्थता और अनियमित या कोई भी मासिक धर्म बाधित ओव्यूलेशन के दो मुख्य लक्षण हैं। हालांकि, प्रत्येक बीमारी के लक्षणों का एक अलग सेट होता है। कुछ सामान्य ओव्यूलेशन डिसऑर्डर कुछ इस प्रकार हैं-
पीसीओएस महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन की वजह बनाते हैं और यह महिला के एण्ड्रोजन (टेस्टोस्टेरोन) के स्तर को प्रभावित करते हैं और इंसुलिन सेंसेटिविटी इसके पीछे कारण हो सकता है। इंसुलिन प्रतिक्रिया के निम्न स्तर के कारण रक्त शर्करा का स्तर बढ़ सकता है और टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ सकता है।
हालांकि कुछ टेस्टोस्टेरोन महिलाओं द्वारा स्वाभाविक रूप से उत्पादित किया जाता है, लेकिन जिन्हें पीसीओएस की समस्या है और टेस्टोस्टेरोन के स्तर में वृद्धि हुई है, उन्हें ओवेरियन सिस्ट, अनियमित पीरियड्स और एनोव्यूलेशन का सामना करना पड़ सकता है। समय के साथ विकसित होने वाले कई सिस्ट ओवेरियन फॉलिकल्स को परिपक्व अंडे विकसित करने से रोक सकते हैं, और टेस्टोस्टेरोन एण्ड्रोजन की अधिकता ओव्यूलेशन को रोक सकती है और बांझपन का कारण बन सकती है।
हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया वाली महिलाओं में ओव्यूलेशन अनियमित या गैर-मौजूद हो सकता है क्योंकि उनके शरीर में अंडाशय में हार्मोन आवेगों को प्रसारित करने के लिए आवश्यक पोषण या वसा सामग्री की कमी होती है। उच्च या निम्न शरीर का वजन, अत्यधिक वजन बढ़ना या हानि, और अत्यधिक तनाव सभी कारण योगदान दे सकते हैं। नर्तक, एनोरेक्सिक महिलाएं और पेशेवर एथलीट अक्सर हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया का अनुभव करते हैं।
समय से पहले ओवेरियन फेलियर और मेनोपॉज
40 साल की उम्र से पहले शुरू होने वाले रजोनिवृत्ति को समय से पहले ओवेरियन फेलियर (पीओएफ) के रूप में जाना जाता है। मेनोपॉज और समय से पहले ओवेरियन फेलियर के दौरान अंडाशय एस्ट्रोजन उत्पन्न करना बंद कर देते हैं। समय से पहले ओवेरियन फेलियर आमतौर पर स्वस्थ डिम्बग्रंथि के रोम के शुरुआती "रन-आउट" के परिणामस्वरूप होती है या क्योंकि ऐसे में ओवेरियन के रोम ठीक से काम नहीं करते हैं।
ऑटोइम्यून विकारों वाली महिलाओं में समय से पहले ओवेरियन फेलियर होना बेहद आम है। इसके अलावा, जिन महिलाओं की कीमोथेरेपी या रेडिएशन ट्रीटमेंट हुआ है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है।
हार्मोनल असंतुलन
महिलाओं में बांझपन कुछ हार्मोन के अधिक उत्पादन के कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए, हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया प्रोलैक्टिन के अतिउत्पादन के परिणामस्वरूप हो सकता है, यह पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनाया गया एक हार्मोन होता है। हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया में, अतिरिक्त प्रोलैक्टिन एस्ट्रोजन के स्तर को कम करता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के लिए कंसीव करना मुश्किल हो जाता है।
आज के टाइम में भागदौड़ भरी जुंदगी में ज्यादा थकान होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन आप कुछ ना कर रहे हों कोई फिजकल वर्क भी आप ने ना किया लेकिन बिना काम किए ही आपको थकान महसूस हो रही हो तो ये किसी बीमारी के होने का अलार्म हो सकता है। अगर आपको दिनभर आलस या कोई काम ना करने का मन करता हो तो इसे आप यूं ही ना जानें दे और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। जल्दी थक जाना किसी बीमारी के लक्षण भी होते हैं। बेवजह की थकान होना शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है। आप अगर जल्दी-जल्दी थक जा रहे हैं तो ये डिप्रेशन के लक्ष्ण भी हो सकते हैं। डिप्रेशन किसी खतरनाक बीमारी से कम नहीं होता है ये तो कई और बीमारियों को जन्म देने वाले होता है। डिप्रेशन बॉडी की एनर्जी में कमी कर देता है।
डायबिटीज
डिप्रेशन
डिप्रेशन तो कई बीमारियों का घर है। इससे आपके सोने, खाने और सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। बिना इलाज आप महीनों या सालो तक डिप्रेशन के मरीज हो सकते हैं। डिप्रेशन से सोचने-समझने की क्षमता पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। निगेटिविटी बढ़ती है। ऐसा अगर आपको फील होता है ति डॉक्टर से सलाह जरूर लें
रुमेटॉइड आर्थराइटिस
रुमेटॉइड आर्थराइटिस भी थकान की बड़ी वजह हो सकता है क्योंकि इससे इम्यून सिस्टम बिगड़ने लगता है। इसके बिगड़ने के कारण ये ज्वाइंट के टिसूज़ पर हमला कर देता है। अटैक जिससे हड्डियां खराब होने लगती हैं, इससे आपको थकान ज्यादा महसूस होती । साथ ही इसमें शरीर में एनर्जी की कमी, भूख का कम हो जाना जोड़ों मे दर्द भी लक्षण है।
एनीमिया
एनीमिया की वजह से भी थकान महसूस होती है। जब आपके शरीर मे रेड ब्लड सेल्स कम हो जाती है और ये रेड ब्लड सेल्स ही फेफड़ों से आक्सीजन को टिसूज़ और सेल्स तक ले जाती हैं। आयरन की कमी इसका बड़ा कारण होता है। महिलाओं मे आयरन की कमी सबसे ज्यादा होती है। एनीमिया होने पर आप थका हुआ महसूस करते हैं। हार्ट बीट का बढ़ना, सीने मे दर्द और सिर दर्द जैसी परेशानिया शुरू हो जाती हैं। आप को डॉक्टर से सलाह लेकर अपना ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए जिससे सही स्थिति का अंदाजा हो सके।
जब एक शिशु जन्म लेता है, तभी से माता-पिता नवजात को डायपर लगाना शुरू कर देते हैं और यह डायपर लगाने का सिलसिला एक से दो साल तक यूं ही चलता रहता है। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि बेबी को डायपर पहनाना अधिक सुविधाजनक है और इसे पहनाने के बाद लंबे समय तक बच्चे को मैनेज किया जा सकता है। लेकिन बहुत कम पैरेंट्स को इस बात की जानकारी होगी कि इन डायपर का अधिक इस्तेमाल बच्चे की सेहत पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। दरअसल, इन्हें बनाते समय कई तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है और जब बच्चा इनके संपर्क में आता है, तो इससे उसकी स्किन भी इसका असर पड़ता है। तो चलिए आज इस लेख में हम डायपर में इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स और उनके हानिकारक प्रभावों के बारे में बात कर रहे हैं-
परीक्षण में आया सामने
अधिकतर पैरेंट्स डिस्पोजेबल डायपर खरीदना पसंद कतरते हैं, लेकिन इनमें केमिकल्स का बहुत अधिक इस्तेमाल किया जाता है। फ्रांस की ANSES नामक एक एजेंसी ने डिस्पोजेबल डायपर के सबसे अधिक बिकने वाले ब्रांडों का परीक्षण किया और पूरे यूरोप में बिकने वाले कई ब्रांड्स के डायपर में "बहुत गंभीर व खतरनाक" रसायन पाए गए। अधिकांश रसायन हार्मोन को बाधित करते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें बेबी के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता है।
डायपर बनाते समय कई केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें थैलेट्स प्रमुख है। यह एक ऐसा रसायन है, जो नमी पाकर डायपर से मुक्त हो जाता है और फिर बच्चे की स्किन से इसका संपर्क होता है। जब यह लगातार स्किन के संपर्क में रहता है तो इससे बच्चे को कैंसर से लेकर किडनी की समस्याएं, अंतःस्रावी (हार्मोन) में व्यवधान, रिप्रोटॉक्सिक प्रभाव (प्रजनन क्षमता को प्रभावित करना) फर्टिलिटी इश्यूज़, न्यूरो डेवलपमेंट इश्यू, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर, डायबिटीज़ और ऑटिज़्म जैसी कई तरह की बीमारियां होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यह माना है कि बच्चे विशेष रूप से रसायनों के प्रति संवेदनशील होते हैं। इसलिए, उन्हें किसी भी तरह के केमिकल में कम से कम संपर्क में लाने की कोशिश करनी चाहिए
डायपर में इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स तो बच्चों को नुकसान पहुंचाते ही हैं। साथ ही साथ इससे अन्य भी कई नुकसान होते हैं। मसलन-
• डायपर एलर्जी का कारण बन सकता है। कुछ डायपर बनाने वाली कंपनियां अक्सर डायपर बनाने में सिंथेटिक फाइबर, डाई या अन्य कठोर रासायनिक उत्पादों का उपयोग करती हैं। जो बच्चे की संवेदनशील त्वचा पर एलर्जी का कारण बन सकते हैं।
• डायपर का अधिक इस्तेमाल शिशुओं में डायपर रैशेज की वजह भी बन सकता है। गीले गंदे डायपर में बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं और इससे रैशेज हो सकते हैं।
• डायपर एक ऐसी सामग्री से बने होते हैं जो आपके बच्चे के मूत्र को अवशोषित करने की अनुमति देती है। वह बच्चे के डायपर के अंदर हवा के आसान प्रवाह में बाधा डाल सकता है, जिससे बैक्टीरिया और अन्य कीटाणुओं पनपने लगते हैं। जिससे बच्चे को इंफेक्शन होने की संभावना भी बनी रहती है।
• जो बच्चे अधिकतर समय डायपर पहनते हैं, उन्हें टॉयलेट- ट्रेनिंग में भी समस्या होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिशुओं को डायपर में पेशाब करने और शौच करने की आदत हो जाती है। ऐसे में जब पैरेंट्स बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देने की कोशिश करते हैं, तो इससे समस्या होती है।