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जब शराब की बात आती है, तो वाइन को हमेशा ही हेल्थ के लिए एक अच्छा ऑप्शन माना जाता है। दरअसल, इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं और इसलिए यह कहा जाता है कि अगर वाइन का सेवन किया जाता है, तो इससे व्यक्ति की हार्ट हेल्थ अच्छी रहती है। शायद यही कारण है कि कुछ लोग नियमित रूप से वाइन का सेवन करते हैं। यकीनन एंटी-ऑक्सीडेंट की उपस्थिति वाइन को एक बेहतर विकल्प बनाती है, लेकिन फिर भी आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यह एक अल्कोहल ही है और इसलिए इसके कुछ नकारात्मक दुष्प्रभाव हैं जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए। हो सकता है कि सभी लोगों को इसके बैड इफैक्ट्स बॉडी पर अनुभव न करें लेकिन कुछ के लिए यह अधिक गंभीर हो सकता है। इसलिए, आपको बेहद ही सीमित मात्रा में इसे लेना चाहिए। साथ ही, नियमित रूप से भी इसका सेवन करने से बचें। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको उन संकेतों के बारे में बता रहे हैं, जो यह दर्शाते हैं कि आपको वाइन पीना तुरंत बंद कर देना चाहिए-
सांस लेने में समस्या होना
जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि शराब अस्थमा संबंधी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर कर सकती है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि वाइन में सल्फाइट्स होते हैं, जिन्हें प्रिजर्वेटिव के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और एक्सपर्ट का मानना है कि यह ट्रिगर का कारण हो सकता है। वाइन में मौजूद सैलिसिलेट के कारण भी वाइन से एलर्जी हो सकती है। इसलिए, अगर आपको वाइन पीने के बाद सांस से जुड़ी समस्या हो रही है तो बेहतर होगा कि आप अपने वाइन के गिलास को होंठों से लगाने की जगह टेबल पर ही छोड़ दें।
बार-बार सिरदर्द का अनुभव होना
वाइन सिरदर्द का कारण भी बन सकती है और अक्सर लोग यह सोचकर इसे अनदेखा कर देते हैं कि यह हैंगओवर के लक्षणों में से एक है। वाइन से होने वाले बार-बार होने वाले सिरदर्द सिर्फ सल्फाइट्स के कारण नहीं होते हैं। हार्वर्ड हेल्थ के अनुसार, वाइन पीने वाले कुछ लोगों में एक विशेष एंजाइम की कमी हो सकती है जिसका कार्य छोटी आंत में हिस्टामाइन को पचाना है। रेड वाइन में हिस्टामाइन अधिक पाया जाता है और यह अंगूर की खाल में पाया जाने वाला एक यौगिक है। वाइन के कारण, वे एंजाइम सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं और इससे रक्त में हिस्टामाइन का स्तर बढ़ जाएगा। हिस्टामाइन का उच्च स्तर रक्त वाहिकाओं को फैला सकता है और सिरदर्द पैदा कर सकता है।
चक्कर और सिर में दर्द महसूस होना
कुछ लोगों को वाइन पीने के बाद केवल हल्का सिर में दर्द नहीं होता है, बल्कि चक्कर भी आ सकता है। खासतौर से, अगर आप अधिक वाइन का सेवन करते हैं तो ऐसा होना आम है। इसमें मुख्य लक्षण मतली और बेहोशी की भावना महसूस करना है। अधिकतर लोग इस संकेत को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है तो बेहतर होगा कि आप वाइन पीना अवॉयड ही करें।
आपको शायद जानकर हैरानी हो, लेकिन वाइन आपकी स्किन पर भी अपना इफेक्ट डाल सकती है। अल्कोहल फ्लश रिएक्शन किसी व्यक्ति के चेहरे पर होने वाली प्रतिक्रिया है। इसे रेड फेस भी कहा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह व्यक्ति के अल्कोहल के सेवन को सहन करने में असमर्थता के कारण होता है। ऐसे लोग अल्कोहल को डाइजेस्ट नहीं कर पाते हैं। इसके अन्य लक्षणों में मतली, निम्न रक्तचाप, माइग्रेन और अस्थमा प्रतिक्रियाएं शामिल हैं। यह समस्या कैंसर से भी जुड़ी हुई है। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण है तो तुरंत वाइन पीना बंद कर दें।
वैसे तो एक शिशु के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम आहार माना गया है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, मां के दूध से उसकी भूख नहीं मिटती और ऐसे में उसे फीड कराने के लिए मां बोतल का सहारा लेती है। इसके अलावा भी ऐसे कई कारण होते हैं, जिसके कारण मां बच्चे को बोतल से फीड करवाती है। वैसे तो बच्चे को बोतल से दूध पिलाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अगर बोतल को अच्छी तरह से क्लीन व डिसइंफेक्ट ना किया जाए तो इससे बच्चे के संक्रमित होकर बीमार होने की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है। दरअसल, जब बच्चे को बोतल से दूध पिलाया जाता है तो बोतल में छोटे-छोटे कीटाणु फंस जाते हैं और अगर उसे स्टेरलाइज ना किया जाए तो इससे बच्चे को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि नवजात शिशु रोगाणु, बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीवों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, इसलिए यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि उन्हें बच्चे की दूध की बोतल को क्लीन करने व स्टेरलाइज करने का सही तरीका पता होना चाहिए। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको बेबी की दूध की बोतल को क्लीन करने का सही तरीका बता रहे हैं-
उबले हुए पानी की मदद से बोतल को क्लीन करना
इस तरीके को अपनाने के लिए आप सबसे पहले बच्चे की बोतल को खोलें और उसे सभी भागों को अलग करें। अब उन्हें एक बड़े पैन में एक साथ रखें। अब पैन को पानी से भरें ताकि बोतल के सभी हिस्से पानी में अच्छी तरह से डूब जाएं। इसके बाद, गैस को पानी को उबलने दें। इस उबलते पानी में बोतल को 5 मिनट तक रखें। पानी ठंडा होने पर बोतल के हिस्सों को निकाल लें। अब इन्हें दूसरे ठंडे पानी से धो लें और बोतल के हिस्सों को हवा में सूखने दें। सुनिश्चित करें कि शिशु को दूध पिलाने के लिए बोतल का इस्तेमाल करने से पहले सभी हिस्से पूरी तरह से सूख चुके हों
यह भी एक तरीका है बच्चे की बोतल को डिसइंफेक्ट करने का। इसके लिए आप ब्लीच की मदद लें। सबसे पहले आप 10-12 कप पानी में 2 चम्मच ब्लीच मिलाएं। अब बोतल को खोलें, सभी भागों को अलग करें और उन्हें ब्लीच पानी में डालें। इसे 5 मिनट तक इस पानी में रहने दें। बोतल के सभी हिस्से सही तरह से साफ हो, इसके लिए आप बोतल क्लीनर का उपयोग भी कर सकते हैं। इसके बाद बोतल को सामान्य पानी से साफ न करें अन्यथा बोतल में कीटाणु फिर से हो सकते हैं। उपयोग करने से पहले बोतल को हवा में सूखने दें।
अगर आप चाहते हैं कि बोतल से दूध पीने से बच्चे को कोई परेशानी या हेल्थ प्रॉब्लम ना हो तो ऐसे में आप सबसे पहले अपने नवजात शिशु के लिए एक अच्छी गुणवत्ता की बोतल चुनें।
नवजात शिशु को बोतल से दूध पिलाने के बाद बचे हुए दूध को कभी भी बोतल में ऐसे ही ना छोड़ें। हर बार इस्तेमाल के बाद आप बचे हुए दूध को बोतल से निकालें और उसे तुरंत साफ करें। इसके अलावा आप दिन में एक बार बच्चे की बोतल को उपर दिए गए तरीकों की मदद से स्टेरलाइज जरूर करें।
इसके अलावा आप बोतल और उसके अन्य हिस्सों को गर्म और साबुन के पानी से भी धो सकते हैं। आप इसे साफ करने के लिए ब्रश का उपयोग करते हैं और फिर उन्हें हवा में सूखने के लिए छोड़ दें। हमेशा यह सुनिश्चित करें कि आप उन्हें नियमित रूप से साफ करें।
उपरोक्त दिए गए तरीकों के अलावा, अगर आप चाहें तो बेबी की बोतल को क्लीन करने के लिए मिलने वाले स्टेरलाइजर की मदद भी ले सकते हैं। आप अपनी जरूरत व बच्चे की बोतल के साइज के अनुसार स्टेरलाइजर को खरीद सकते हैं।
एक समय था जब बच्चों के लिए सबसे पौष्टिक दूध को माना जाता था और बच्चे दिन भर से दो से तीन ग्लास दूध की पी जाते थे। लेकिन अब बच्चों का टेस्ट बदल चुका है, अब उन्हें हर चीज में फलेवर चाहिए। और इसी बात को ध्यान में रखते हुए पेरेंटस अपने बच्चों को दूध में कॉफी मिलाकर दे देते है। जिसका टेस्ट अधिकांश बच्चों को पसंद भी खूब आता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या बच्चों को कॉफी पिलाना सही है, क्या इसे पिलाने से बच्चों को छोटी उम्र में ही कॉफी की लत लग सकती है, क्या इसके कोई साइड इफेक्ट है, अगर आपके मन में भी इस तरह के सवाल है तो यहां हम आपको बताएंगे कि बच्चों को कॉफी पिलाने के क्या साइडइफेक्ट हो सकते है और किस उम्र से बच्चों को कॉफी देना चाहिए?
क्या बच्चों को कॉफी पिलाकर आप सही कर रहे है ?
जी नहीं, कॉफी का सेवन बच्चों को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है। इससे उन्हें कई तरह की शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। रिसर्च में ये बात सामने आई है कि कॉफी पीने से बच्चों की नींद प्रभावित होती है। जो ना सिर्फ उनके वजन को बल्कि उनके शारीरिक विकास पर भी असर ड़ालती। ऐसा भी माना गया है कि जो बच्चे कॉफी पीते है, वे डिप्रेशन का भी शिकार हो सकते हैं । ऐसे में भलाई इसी में है कि, बच्चों को कॉफी पीने के लिए ना दी जाए।
- कैफीन का सेवन करने से कैल्सियम कम हो जाता है, जिससे हडडियों को नुकसान पहुंच सकता है। कॉफी ना सिर्फ शरीर में कैल्सियम का लेवल कम करती है, बल्कि इससे बच्चे का शारीरिक विकास भी बाधित होता है।
- जो बच्चे छोटी उम्र में ही कॉफी का सेवन करने लगते है, उन्हें पर्याप्त भूख नहीं लगती। जबकि भोजन बच्चे के शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
- एक शोध के अनुसार, जो बच्चे कॉफी का सेवन करते है उन्हें एकाग्रता में कमी और घबराहट जैसी समस्याएं हो सकती है। क्यूंकि कैफीन की हेवी डोज बच्चे के नर्वस सिस्टम पर असर ड़ालती है।
- बच्चों के विकास के लिए पर्याप्त नींद आवश्यक है, लेकिन कैफीन का सेवन करने से बच्चे की नींद उड़ सकती है।
- कॉफी में कैफीन की अधिक मात्रा शरीर में उत्तेजना पैदा कर सकती है, ऐसे में बच्चा उसे बार-बार पीने की जिद कर सकता है और ये जिद कुछ ही दिनों में लत में बदल जाती है। जो इतनी आसानी से छूटती।
- चूंकि कॉफी में शुगर की मात्रा ज्यादा होती है, इस कारण कॉफी पीने वाले बच्चों को दांतों से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। दरअसल ये मुंह में बैक्टीरिया को बढ़ा देता है। जो एसिड बढ़ाकर दांतों के इनेमल को नष्ट कर देता हैं, जिससे बच्चे के दांत सड़ने लगते है।
- कॉफी के सेवन से बच्चा डिहाइइ्रेशन का शिकार भी हो सकता है, क्यूंकि इसे पीने के कारण कारण बच्चों को बार-बार पेशाब आता है, जिससे शरीर में पानी की कमी भी हो सकती है।
- एक रिसर्च में ये बात भी सामने आई है जो बच्चे लगातार कॉफी का सेवन करते है, उनमें डायबिटीज होने का खतरा बढ़ सकता है।
अगर आपके बच्चे की उम्र 12 वर्ष से अधिक है तो आप उसे कॉफी दे सकते है। लेकिन याद रखें इसकी मात्रा 100 मिलीग्राम यानि एक कप से ज्यादा ना हो। वहीं अगर आपके बच्चे की उम्र 12 साल से कम है, तो कॉफी पीना उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
मधुमेह एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या है, जिससे आज के समय में अधिकतर लोग परेशान हैं। यह एक क्रॉनिक डिसीज है, जिसमें ब्लड में ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है और यह अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है। इस समस्या को मैनेज करने के लिए अपने आहार पर ध्यान देना विशेष रूप से आवश्यक है।
आमतौर पर, मधुमेह पीड़ित व्यक्ति को ऐसे फूड का सेवन करने की सलाह दी जाती है, जिनका जीआई लेवल कम हो। मधुमेह रोगी अमूमन अपने फूड विकल्पों को लेकर अधिक सतर्क रहते हैं, क्योंकि उच्च मात्रा में कार्ब्स अंततः मेटाबोलाइज़ होने के बाद चीनी में बदल जाते हैं। ऐसे रोगियों को कटहल और जामुन जैसे खाद्य पदार्थ का सेवन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन आपको अपनी डाइट में शलजम को भी जरूर शामिल करना चाहिए। इसमें कई तरह के विटामिन व मिनरल्स जैसे मैंगनीज, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम और तांबा आदि पाऐ जाते हैं। साथ ही, यह पॉलीफेनोल्स, एंटीऑक्सिडेंट, पॉलीन्यूट्रिएंट्स का भंडार है। तो चलिए आज जानते हैं कि मधुमेह रोगियों के लिए शलजम का सेवन क्यों अच्छा है-
हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव
शलजम को मधुमेह रोगियों के लिए आदर्श माना जाता है क्योंकि इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर होता है। फाइबर की अधिकता के कारण यह रक्तप्रवाह में अवशोषित ग्लूकोज की मात्रा को कम करने में मदद करता है। साथ ही, यह प्रभाव सीधे ग्लूकोज के स्तर को बढ़ने से रोकता है। सॉल्यूबल फाइबर ग्लाइसेमिक नियंत्रण में सुधार करते हैं और टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में प्लाज्मा लिपिड एकाग्रता को कम करते हैं। इसके अलावा, फाइबर में उच्च होने के कारण यह आपके पेट को लंबे समय तक भरा हुआ रखता है और आपको फुलनेस का अहसास करवाता है, जिससे आप अतिरिक्त कैलोरी का सेवन करने से बचते हैं।
डायबिटीज की कॉम्पलीकेशन को करे कम
शलजम में एक एक्टिव पोटेंशियल कंपाउड पाया जाता है, जो इंसुलिन डिग्रेडिंग एंजाइम (आईडीई) के प्रभाव को रोकता है जो मधुमेह की कॉम्पलीकेशन को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
शुगर लेवल को करे मैनेज
इसके अलावा, पाया जाने वाला एक अन्य संभावित यौगिक काम्फेरोल है जो रक्त में रिस्टोर होने के बजाय ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने के लिए मांसपेशियों में ग्लूकोज के अवशोषण को बढ़ाता है। जिससे ब्लड में शुगर लेवल एकदम से स्पाइक नहीं करता है। साथ ही, शलजम में मौजूद क्वेरसेटिन ब्लड शुगर लेवल को कम करता है और इंसुलिन सेंसेटिविटी में भी सुधार करता है।
अगर आप मधुमेह रोगी हैं तो आप शलजम को कई अलग-अलग तरीकों से अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं जैसे-
शलजम और जुकीनी का सूप - यह डिलिशियस व पौष्टिक गर्म सूप पीने में काफी अच्छा लगता है और आपको एक फुलनेस का अहसास करवाता है। आप इसमें अपनी इच्छा व टेस्ट के अनुसार कुछ मसालों को एड कर सकते हैं।
अदरक के साथ रोस्टेड शलजम - शलजम को नमक के साथ 2-3 मिनट तक उबालें। फिर इसे छानकर फ्राई पैन में तिल का तेल, अदरक, काली मिर्च और हल्का सा नमक डालकर भूनें। हल्की भूख लगने पर शलजम को इस तरह से बनाना एक अच्छा विचार हो सकता है।
शलजम से मिलते हैं यह भी फायदे
शलजम मधुमेह रोगियों के लिए तो लाभदायक है ही, साथ ही साथ इससे अन्य भी कई लाभ मिलते हैं। जैसे-
• शलजम लीवर को हेल्दी बनाए रखने में मददगार है। शलजम में विटामिन सी, फ्लेवोनोइड्स होते हैं जो लीवर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने में मदद करते हैं।
• शलजम में पोटेशियम और कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है, जिसके कारण यह हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लंबे समय में ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी को रोकने में भी मददगार है।
• शलजम कैंसर के खतरे को भी कम करने में मददगार है। शलजम में ग्लूकोसाइनोलेट्स जैसे शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो टॉक्सिन्स को बाहर निकालते हैं। साथ ही, ट्यूमर कोशिकाओं को रोकने में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।
• शलजम में पर्याप्त मात्रा में ल्यूटिन होता है, एक कैरोटीनॉयड जो आंखों के टिश्यू की रक्षा करता है और दृष्टि में सुधार करता है।
• यदि आप फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले सभी खतरों का मुकाबला करना चाहते हैं तो शलजम का सेवन करना आपके लिए अच्छा रहेगा।
• शलजम में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए इसे पाचन तंत्र के लिए भी काफी अच्छा माना जाता है। फाइबर वजन प्रबंधन और पाचन संबंधी बीमारियों जैसे दस्त, कब्ज, सूजन आदि के इलाज में कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।