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खास बातें
अक्सर आपने महिलाओं से सुना होगा कि रात में सोते समय उनकी नींद खुल जाती है पैर में तेज दर्द होने के कारण. जिसके चलते वह पूरी रात सो नहीं पाती हैं. ऐसे में उनका पूरा दिन थकावट और चिड़चिड़ेपन में गुजरता है. जिसके चलते उन्हें डार्क सर्कल आंखों के नीचे और दाने दाने भी चेहरे पर निकल आते हैं. ऐसे में सावधानी बरतने की जरूरत होती है. ताकि किसी गंभीर बीमारी का शिकार ना हों. यहां पर हम आपको कुछ घरेलू उपाय (Home remedy) बता रहे हैं जो दर्द दूर करने में अच्छे साबित होते हैं.
पैर दर्द से ऐसे पाएं छुटकारा
सरसों को तेल
अगर आपको पैर में दर्द हो रहा है तो सरसों के तेल की मालिश करें अपने पैरों में. इससे निजात तुरंत मिल जाएगा. यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला नुस्खा है.
सेब का सिरका
एप्पल साइडर विनेगर पैरों के दर्द को कम करने में सहायक होता है. इस तेल में एनाल्जेसिक प्रॉपर्टीज़ पाई जाती है, जो सूजन और दर्द को कम करता है. बस आपको दो चम्मच सिरके में शहद मिलाकर खाली पेट पी लेना है. ऐसा करने से दर्द में तुरंत राहत मिलेगा.
मेथी
मेथी भी दर्द से राहत देने में कारगर है. बस आपको एक चम्मचम मेथी रात भर भिगोकर रख देना है. फिर इसे सुबह में खा सकते हैं. ऐसा करने से आपको पैर के दर्द में राहत मिलेगी.
योगा
इसके अलावा योगा करने से भी आपको पैरों के दर्द में बहुत आराम मिलेगा. योग करने से शरीर में रक्त संचार अच्छा होता है और शरीर में लचक आती है. इस दर्द को कम करने के लिए आप नियमित उंड एंगल, डॉल्फिन, ईगल या एक्सटेंडेड साइड एंगल जैसे योग कर सकती हैं.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.
क्या आप डायबिटीज के मरीज है, क्या आपका शुगर लेवल बहुत प्रयास के बाद भी कंट्रोल में नहीं आ पा रहा। तो परेशान ना हो, क्यूंकि यहां हम आपको उन प्रभावकारी पत्तियों के बारे में बताने वाले है ,जिनका प्रतिदिन सेवन करने से आप नेचुरली शुगर लेवल कंट्रोल कर सकते है।
डायबिटीज क्यूं बढ़ती है
देखा जाए तो शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण ही ब्ल।ड शुगर लेवल ज्यादा होता है। ऐसे में वो चीजें खानी चाहिएं जो इंसुलिन को बनाए रख सकें। दरअसल लो ग्ला इसेमिक इंडेक्से वाले फूड और रफेज खाने से भी इंसुलिन पर असर पड़ता है। तो वहीं कुछ ऐसी नेचुरल चीजें भी हैं जो इंसुलिन बढ़ाने का काम करती हैं। कुल मिलाकर जरूरी ये है कि समय रहते शुगर को कंट्रोल किया जाए। नहीं तो ये यह एक ऐसी बीमारी है, जो दूसरी अन्य बीमारियों का कारण भी बनती है। डायबिटीज किडनी, हृदय, आंखों, त्वचा और दिमाग पर भी असर डालती है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों को अपना ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रखना बहुत जरूरी होता है। जिसमें आपकी मदद करेगी इन दो पत्तियों का सेवन। जी हां, ये दो पत्तियां शुगर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है।
गुड़मार की पत्तियों का उपयोग खासकर औषधीय दवाओं पर ज्यादा किया जाता है। गुड़मार डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। खास बात ये है कि ये टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज दोनों में ही अत्यधिक प्रभावी है। यह शरीर में इंसुलिन बढ़ाकर ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। इतना ही नहीं कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में भी इसका बहुत बड़ा रोल हो सकता है। इसके अलावा गुड़मार की पत्तीइ डेंगू-मलेरिया के इलाज में भी इफेक्टिव मानी जाती है। इसे खाने के बाद गुड़ या चीनी की मिठास का अहसास नहीं होता है। दरअसल ये गुड़ की तरह मीठी तो होती हैं, लेकिन इसे खाने से मीठे की तलब खत्मी हो जाती है। अगर आप रोज इसे कच्चा, खाने लगें तो ये आपके टेस्ट बड पर शुगर रिसेप्टर्स को ब्लॉक कर सकती है। फिर इसे खाने वाले को मीठा खाना पसंद नहीं आता।
गुड़मार के पत्तों को रोजाना सुबह खाली पेट चबाने से विशेष लाभ मिलता है। आप चाहे तो बाजार में मिलने वाले गुड़मार के लिक्विड और पाउडर को भी पानी के साथ ले सकते है।
सदाबहार की पत्तियां और फूल
आयुर्वेद में सदाबहार की पत्तियों का सेवन कई गंभीर शारीरिक समस्याओं में उपयोगी माना गया है। खासकर डायबिटीज में सदाबहार की पत्तियों को रामबाण माना जाता है। दरअसल इसकी पत्तियों में एल्कलॉइड नामक तत्व शरीर में इंसुलिन के निर्माण के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा शरीर में वात और कफ दोष को दूर करने के लिए सदाबहार की पत्तियों का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। ऐसे में ये ना सिर्फ डायबिटीज बल्कि बीपी, गले में इंफेक्शन, कैंसर, स्किन और किड़नी में स्टोन जैसी परेशानियों से भी निजात दिलाने में मददगार है।
आप सदाबहार की पत्तियों या फूल को यूं ही कच्चा चबा कर खा सकते हैं या इसे सूखा कर पाउडर बना लें और इसे गुनगुने पानी के साथ लें।
कई बार जब व्यक्ति बीमार होता है तो उसे जल्द ठीक करने के लिए डॉक्टर अन्य दवाओं के साथ एंटी-बायोटिक लेने की भी सलाह देते हैं। ब्रोंकाइटिस जैसी स्वास्थ्य समस्या होने पर एंटी-बायोटिक का सेवन लाभकारी माना जाता है। हालांकि, एंटी-बायोटिक लेने का अपना एक कोर्स होता है और उसे हमेशा ही पूरा करने की सलाह दी जाती है।
कब लेनी चाहिए एंटी-बायोटिक दवाएं
एंटीबायोटिक्स शक्तिशाली दवाएं हैं जिन्हें बैक्टीरिया को मारने के लिए डिज़ाइन किया गया है। लेकिन कुछ लोग सामान्य सर्दी या फ्लू जैसे वायरस के खिलाफ भी एंटीबायोटिक का सेवन करते हैं। जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह वास्तव में कुछ नुकसान कर सकता है। जब आप कॉमन कोल्ड या फ्लू आदि के लिए एंटीबायोटिक्स लेते हैं, तो यह एंटीबायोटिक प्रतिरोध का कारण बनता है। इतना ही नहीं, ऐसा करने से शरीर के सभी गैर-हानिकारक बैक्टीरिया भी एंटी-बायोटिक के संपर्क में आ जाते हैं।
एंटीबायोटिक्स कैसे काम करते हैं?
एंटीबायोटिक्स आमतौर पर दो प्रकार के होते हैं- बैक्टीरियोस्टेटिक और जीवाणुनाशक। बैक्टीरियोस्टेटिक एंटीबायोटिक्स, जैसे एज़िथ्रोमाइसिन और डॉक्सीसाइक्लिन, बैक्टीरिया के विकास को रोकते हैं। जीवाणुनाशक एंटीबायोटिक्स, जैसे एमोक्सिसिलिन और सेफैलेक्सिन, बैक्टीरिया को ही मार देते हैं।
इन एंटी-बायोटिक्स को डॉक्टर आपकी बीमारी के आधार पर ही देते हैं। आमतौर पर, बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर ही एंटी-बॉयोटिक देने की सलाह दी जाती है।
एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स की अवधि कैसे निर्धारित होती है?
हर एंटी-बायोटिक को लेने का एक निश्चित समय होता है और उसी के आधार पर उसका सेवन किया जाना चाहिए। कभी-कभी डॉक्टर पांच दिनों के लिए एंटीबायोटिक लेने के लिए कहते हैं, तो कभी-कभी यह अवधि 14 दिनों तक की भी हो सकती है। उपचार कई कारकों के आधार पर भिन्न होते हैं, और एंटीबायोटिक उपचार की अवधि कुछ ऐसी होती है जिसे चिकित्सकों और शोधकर्ताओं द्वारा लगातार पुनरीक्षित किया जाता है। कुछ संक्रमण होने पर एक तय समय के लिए ही एंटी-बायोटिक लिया जाना आवश्यक होता है, तो कभी आपकी बीमारी भी एंटी-बायोटिक कोर्स के आधार की वजह बनती है। एक अन्य महत्वपूर्ण निर्धारण कारक यह है कि आपको अन्य पुरानी स्वास्थ्य समस्याएं क्या हैं, जैसे अस्थमा, मधुमेह, या हृदय रोग।
एंटीबायोटिक कोर्स को हमेशा की कंप्लीट करने की सलाह दी जाती है। इसके दो कारण हैं- सबसे पहले तो हेल्थ केयर प्रोवाइडर ने आपको पूरी तरह से स्वस्थ करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स को सलेक्ट किया। ऐसे में आपको उसे पूरा करना चाहिए। और दूसरा कारण है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस।
दरअसल, जब आप अपने एंटी-बायोटिक कोर्स को पूरा करते हैं तो ऐसे में आप अपनी बीमारी के लिए जिम्मेदार सभी जीवाणुओं को मारने में सक्षम हो जाते हैं। वहीं, अगर आप कोर्स बीच में छोड़ते हैं तो आप बैक्टीरिया के एक छोटे हिस्से को अपने शरीर में रहने देते हैं और उस बैक्टीरिया में प्रतिरोध को मजबूत करने, बदलने और विकसित करने की क्षमता होती है। ऐसे में आप भले ही आप कुछ दिनों के बाद बेहतर महसूस कर रहे हों, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको बीमार करने वाले सभी बैक्टीरिया वास्तव में अभी तक चले गए हैं।
खास बातें
Vitamin D Deficiency Causes: विटामिन डी एक बहुत ही जरूरी विटामिन है जिसकी कमी हमारे मानसिक स्वास्थ्य तक को प्रभावित करती है. कम विटामिन डी लेवलऑस्टियोपोरोसिस, फ्रैक्चर, बोन डेंसिटी की कमी, रिकेट्स सहित कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ा सकता है. विटामिन डी की कमी का कारण एक नहीं बल्कि कई हैं. विटामिन डी को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर और ऑटोइम्यून स्थितियों जैसे मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी बीमारियों से बचाव के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है. हमें अपनी त्वचा से विटामिन डी (Vitamin D) प्राप्त होता है जो सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर बनता है. इसके साथ ही विटामिन डी के स्रोतों में अंडे, फैटी फिश, पनीर, सोया दूध जैसी चीजें भी शामिल हैं.
विटामिन डी की कमी के प्रमुख कारण
धूप की कमी: आजकल कई लोगों में विटामिन डी की कमी बढ़ गई है. विटामिन डी के लिए कम आहार स्रोत हैं और लोगों को पर्याप्त धूप नहीं मिल रही है. खासकर सुबह के समय पर्याप्त धूप लेना जरूरी है क्योंकि हमारी त्वचा को विटामिन डी के निर्माण के लिए इसकी जरूरत होती है.
शरीर में सल्फर की कमी: यह एक प्रमुख खनिज है जो आपके शरीर के प्रोटीन का हिस्सा है और यह कई शारीरिक प्रक्रियाओं में मदद करता है.
लो मैग्नीशियम लेवल: ये खनिज विटामिन डी की सक्रियता में मदद करता है. हड्डियों की ग्रोथ और रखरखाव को प्रभावित करने के लिए कैल्शियम और फॉस्फेट होमियोस्टेसिस को कंट्रोल करने में मदद करता है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, विटामिन डी को मेटाबोलाइज करने वाले सभी एंजाइमों को मैग्नीशियम की जरूरत होती है, .जो लीवर और किडनी में एंजाइमेटिक रिएक्शन में एक कोफेक्टर के रूप में कार्य करता है.
शरीर में अतिरिक्त चर्बी: मोटापा भी विटामिन डी की कमी का कारण बन सकता है. मोटे लोगों के पास जैवउपलब्ध विटामिन डी 50 प्रतिशत कम होता है.
कम बोरॉन लेवल: बोरॉन सक्रिय विटामिन डी के आधे जीवन को बढ़ाता है. यह आपके शरीर में विटामिन डी के साथ काम करता है. विटामिन डी कैल्शियम के अवशोषण और हड्डियों के रखरखाव में मदद करता है.
कम विटामिन K: विटामिन k बोन मिनरल पर विटामिन डी के प्रभाव को बढ़ाता है. वे कैल्शियम मेटाबॉलिज्म में एक साथ काम करते हैं.
पर्याप्त विटामिन डी वाले फूड्स न खाना: अंडे, डेयरी, मछली, पनीर, पालक, भिंडी या सफेद बीन्स जैसे विटामिन डी फूड्स का पर्याप्त सेवन नहीं करने से भी विटामिन डी की कमी हो सकती है.
विटामिन डी की कमी के लक्षण