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आपने पथरी रोग के बारे में सुना ही होगा कि किस तरह से इसमें असहनीय दर्द होता हैं और यह काफी तकलीफदेह होता हैं। इस रोग में धीरे-धीरे पेशाब गाढा होता जाता हैं। शुरू में बने छोटे-छोटे दाने बढ़ते हुए बड़े हो जाते हैं और पथरी का रूप ले लेते हैं। लोग ऑपरेशन को ही इसका बीमारी का इलाज मानते हैं। लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे घरेलू उपाय बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से पथरी को मिटाया जा सकता हैं। तो आइये जानते हैं इन घरेलू उपचार के बारे में।
* नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।
* 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।
* पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
* आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।
* जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।
* सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा।
* मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पीजिए। पथरी निकल जाएगी।
* चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए। हो सके कोल्ड्रिंक ज्यादा मात्रा में पीजिए।
* तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।
* जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
* बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।
* आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जाती है। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा।
वाशिंगटन: वैज्ञानिकों के अनुसार जीका वायरस के प्रकोप से बचने के लिए शुरूआती दौर में मनुष्य पर क्लीनिकल ट्रायल में एक डीएनए आधारित जीका वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है. जीएलएस-5700 टीके में सिंथेटिक डीएनए निर्देश होते हैं जो विशेष जीका वायरस एंटीजन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम करते हैं. अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि जीका वायरस मच्छरों के काटने से होने वाला संक्रमण है जिससे जन्म के समय बच्चों में विकृतियां होने की आशंका होती है और वयस्कों में तंत्रिका तंत्र संबंधी जटिलताएं होती हैं.
जीका वायरस 2015 और 2016 में ब्राजील, कैरेबियन और दक्षिण अमेरिका से फैला था. हालांकि इस संक्रमण का अभी कोई स्वीकृत टीका या उपचार उपलब्ध नहीं है. यह पहला अध्ययन है जो दिखाता है कि डीएनए का टीका इस वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित कर सकता है जिसमें प्रतिकूल प्रभाव कम से कम होते हैं. इससे टीके के और अधिक क्लीनिकल ट्रायल के रास्ते खुल रहे हैं.
नई दिल्ली: Zika Virus: जयपुर में 22 लोगों में जीका वायरस का संक्रमण पाया गया है. इस वायरस की चपेट में आने वाला बिहार का एक स्टूडेंट भी है, जो जयपुर में पढ़ाई करता है. यही स्टूडेंट एग्ज़ाम देने के लिए बिहार गया था. इसी वजह से बिहार सरकार ने भी अपने सभी 38 जिलों में इस जीका वायरस के लक्षणों से पीड़ित लोगों पर खास निगरानी रखने को कहा है. वहीं, भारत के जयपुर के अलावा यह वायरस अभी तक 86 देशों में भी फैल चुका है. जयपुर से पहले जीका वायरस फैलने की खबरें अहमदाबाद से आईं थी. लेकिन फिलहाल जयपुर के लोग कड़ी निगरानी में हैं और स्वास्थ्य मंत्रालय भी इस वायरस को लेकर सतर्क हो चुका है. अब समय है कि आप भी इस जीका वायरस को लेकर जानकारी रखें, कि आखिर ये है क्या और किस वजह से फैल रहा है. साथ ही यहां जानिए कि जीका वायरस के लक्षण और इलाज क्या हैं.
जीका वायरस कैसे फैलता है?
यह वायरस डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की ही तरह मच्छरों से फैलता है. यह एक प्रकार का एडीज मच्छर ही है, जो दिन में सक्रिय रहते हैं. अगर यह मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काट लेता है, जिसके खून में वायरस मौजूद है, तो यह किसी अन्य व्यक्ति को काटकर वायरस फैला सकता है. मच्छरों के अलावा असुरक्षित शारीरिक संबंध और संक्रमित खून से भी जीका बुखार या वायरस फैलता है.
जीका वायरस के लक्षण?
जीका वायरस से संक्रमित कई लोग खुद को बीमार महसूस नहीं करते. लेकिन इसके आम लक्षण डेंगू बुखार की ही तरह होते हैं. जैसे थकान, बुखार, लाल आंखे, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और शरीर पर लाल चकत्ते.
जीका वायरस से क्या है खतरा?
यह वायरस इतना खतरनाक है कि अगर किसी गर्भवती महिला को हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी यह बुखार हो सकता है. जिस वजह से बच्चे के सिर का विकास रूक सकता है और वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन भी फैल सकता है. वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन में स्किन रैशेज़ या दाग, पीलिया, लिवर से जुड़ी बीमारियां, अंधापन, दिमागी बीमारी, ऑटिज़्म, सुनने में दिक्कत और कई बार बच्चे की मौत भी हो सकती है. वहीं, वयस्कों में जीका वायरस गुलैन-बैरे सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती हैं, इस वजह से शरीर में कई दिक्कतों की शुरुआत होती है.
जीका वायरस का इलाज?
इस वायरस का कोई टीका नहीं है, न ही कोई उपचार है. इस संक्रमण से पीड़ित लोगों को दर्द में आराम देने के लिए पैरासिटामॉल (एसिटामिनोफेन) दी जाती है.
जीका वायरस से बचने के लिए क्या करें?
जीका वायरस को फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए वही उपाय हैं जो आप डेंगू से बचने के लिए करते आए हैं. जैसे मच्छरदानी का प्रयोग, पानी को ठहरने नहीं देना, आस-पास की साफ-सफाई, मच्छर वाले एरिया में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरों को मारने वाली चीज़ों का इस्तेमाल और खून को जांचे बिना शरीर में ना चढ़वाना.
जीका वायरस का इतिहास क्या है?
इसका संबंध अफ्रीका के जिका जंगल से है. जहां से 1947 में अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पीले बुखार पर रिसर्च करने रीसस मकाक (एक प्रकार का लंगूर) को लाए. इस लंगूर को हुए बुखार की जांच की गई, जिसमें पाए गए संक्रामक घटक (Infectious component) को जगंल का ही नाम 'जिका' दिया गया. इसके 7 साल बाद 1954 में नाइजीरिया के एक व्यक्ति में यह वायरस पाया गया. इस वायरस के ज्यादा मामले पहली बार 2007 में अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिले. और अब 2018 में राजस्थान के जयपुर में जीका वायरस के 22 मामले सामने आए हैं.
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