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क्या आप डायबिटीक (diabetic) हैं? अगर हां, तो बहुत से लोग आपको यह सलाह देते होंगे कि आप आलूओं से दूरी बना कर रखें. डायबिटीक या मधुमेह से पीड़ित लोगों को कम आलू खाने की सलाह दी जाती है. इसके पीछे कारण भी है. आलू में काफी मात्रा में ग्लाइकेमिक एसिड (high glycaemic index) होता है. हाई ग्लाइकेमिक खाना जल्दी मेटाबोलाइज्ड होता है और शुगर लेवल को बढ़ा देता है. लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप अपने खाने से आलू या मीठी चीजों को हटा ही दें. शकरकंदी या शकरकंद (Sweet potatoes, shakarkandi) को आप अपने खाने में शामिल कर ब्लड शुगर (blood sugar levels) को नियंत्रित कर सकते है. यह मधुमेह से पीडि़त लोगों के लिए शकरकंदी के कई फायदे हैं (Sweet potatoes, shakarkandi benefits for diabetic in Hindi). एक नजर इन्हीं पर-
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के मुताबिक शकरकंदी में फाइबर और विटामिन ए, विटामिन सी और जिंक जैसे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं. शकरकंदी (Sweet potatoes) में विटामिन बी, आयरल, पोटैशियम, मैग्नेशियम भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं. डायबिटीज मेटाबॉलिक रोगों (metabolic diseases) में से एक है. जो खून में अधिक शुगर (high blood glucose) होने के चलते होती है. डायबिटीज (Diabetes) को सही आहार (proper diet) और व्यायाम (physical activity) या दवाओं (oral medications) से नियंत्रित किया जा सकता है. डायबिटीज से पीड़ित लोगों को अक्सर फाइबर से भरपूर खाना खाने की सलाह दी जाती है. और शकरकंद या शकरकंदी इसमें एकदम फिट बैठती है.
'Healing Foods' नाम की डीके पब्लिकेशन की किताब के अनुसार शकरकंदी डायबिटीज में काफी सहायक हैं. वे आपके ब्लड शुगर को बार-बार ऊपर नीचे (fluctuate) होने से बचाती हैं. स्वीट पटेटो (Sweet potatoes) में ऐसे स्लो कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं जो ब्लड शुगर को एकदम से नहीं बढ़ाते.
कंसलटेंट न्यूट्रिशियनिस्ट डॉ. रुपाली दत्ता के अनुसार यह मिथ है कि स्टार्च फूड (starchy foods) को डायबिटीज रोगी के आहार से दूर रखना चाहिए. जबकि यह जरूरी है. यह पोर्शन कंट्रोल का काम करता है इसलिए इसे खाने में एड करना जरूरी है. क्योंकि यह पोषण से भरा आहार है इसिलए आपको इससे अच्छी कैलोरी मिलेंगी. शकरकंदी में 109 Kcal/100 ग्राम होता है और 24 ग्राम कार्ब होते हैं. यह मिठे (dessert option) का एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है.
::/fulltext::छोटे बच्चों में इम्यूनिटी सिस्टम का विकास पूरी तरह न हो पाने के कारण सर्दी, जुकाम जैसी बीमारियां उन्हें बड़ी आसानी से अपना शिकार बना लेती हैं. ऐसा कई तरीकों से हो सकता है, जैसे कुछ ठंडा खा लेना या फिर मौसम का बदलना वगैरह. ऐसे में ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर के पास ले जाने में भलाई समझते हैं, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो घरेलू नुस्खों को ही तवज्जोह देते हैं. छोटे बच्चों में खांखी या जुखाम होने पर अक्सर लोग कुछ शहद चटाते हैं. (Honey To Infants To Relieve Cough). जबकि डॉक्टर ऐसा करने से मना करते हैं. तो सवाल यह उठता है कि infant को शहद चटाना कितना सही है और कितना गलत. जानें इसपर विशेषज्ञों की क्या राय है.
पोषण विशेषज्ञ रूपाली दत्ता की माने तो यह बिल्कुल सही है कि कफ़ को खत्म करने के लिए शहद पारंपरिक नुस्खा है, लेकिन क्या हर घरेलू नुस्खा बच्चों पर आजमाया जा सकता है यह सोचने की जरूरत है. कोई भी चीज बच्चों को महज इसलिए खाने के लिए नहीं दी जा सकती क्योंकि वह जड़ी बूटी (organic baby food) या घरेलू नुस्खा है. बच्चों पर हर उस चीज का असर देखने को मिलता है जो भी वो खाते हैं. इसलिए शहद को बच्चों के लिए इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि कहीं बच्चे को शहद से एलर्जी तो नहीं. 6 माह से ( (6 month baby food chart) छोटे किसी भी बच्चे को शहद देना सही नहीं है. 6 महीने से 1 साल की (9 month baby food chart) उम्र के बीच जब बच्चे को आप बेबी फूड देना शुरू करते हैं तब आप उसके कफ़ के लिए शहद का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन ऐसे में शहद की मात्रा और गुणवत्ता दोनों का ही पूरा ध्यान रखा जाए.
हीरानन्दानी हॉस्पिटल में पीडियाट्रिशन के तौर पर कार्यरत डॉ. सुभाष राव का कहना है कि दो साल से अधिक आयु के हर बच्चे को कफ़ ठीक करने के लिए शहद दी जा सकती है. शहद की चिकनाहट गले के रुखेपन से आराम प्रदान करती है. इसके अलावा शहद में एंटी-इंफेक्टिव गुण भी होते हैं. जिससे बच्चे को काफी फायदा मिलता है. शहद में कई गुण होने के बावजूद कई बार उसके अंदर बैक्टीरिया के बीजाणु पाए जाते हैं जिन्हें क्लोसट्रिडियम बोटुलिनम कहा जाता है. जोकि एक खास तरीके की फूड प्वाइजनिंग का कारण बन सकता है. हालांकि बड़े लोगों पर इसका कोई खास असर नहीं होता क्योंकि उनका पाचन तंत्र काफी मजबूत होता है लेकिन छोटे बच्चों के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
कच्ची शहद में भले ही स्वास्थ्यवर्धक गुण होते होंगे लेकिन 6 माह (baby food after 6 months) से कम के बच्चों के लिए इसके उतने ही बुरे प्रभाव हो सकते हैं. तो 6 माह से कम आयु के बच्चों पर ये घरेलू नुस्खा आजमाने से बेहतर है कि आप एक पीडियाट्रिशन से संपर्क करें.
::/fulltext::बुखार में इस्तेमाल होने वाले एक्लोफिनैक और पैरासिटामॉल सॉल्ट की जो टैबलेट जेनेरिक में 5 रुपये 70 पैसे का है, ब्रांड के नाम पर कंपनियां उसके लिए 23-30 रुपये तक वसूल लेती हैं. जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले कई गुना तक सस्ती हैं.
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने जब पिछले दिनों 328 फिक्स डोज कंबीनेशन यानी एफडीसी दवाओं पर रोक लगाई तो इस पर काफी बवाल मचा. कुछ दवा निर्माता कंपनियां कोर्ट भी पहुंच गईं और सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले ही सैरीडॉन समेत तीन दवाओं पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया. एफडीसी वो दवाएं हैं जो दो या दो से अधिक दवाओं के अवयवों (सॉल्ट) को मिलाकर बनाई जाती हैं. सरकार और विशेषज्ञों का तर्क है कि ये दवाएं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. दूसरी तरफ, कंपनियां एफडीसी या अन्य ब्रांडेड दवाओं के लिए सामान्य से कहीं ज्यादा पैसे भी वसूलती हैं. सरकार इसके बरक्स जन औषधि केंद्र के जरिये जेनेरिक दवाओं को प्रमोट करने में लगी है.
जेनेरिक यानी वो दवाइयां जो किसी ब्रांड की तो नहीं हैं, लेकिन सॉल्ट और फायदे ब्रांडेड जितने ही हैं, लेकिन जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों के दाम में जमीन-आसमान का अंतर है. मसलन बुखार में इस्तेमाल होने वाले एक्लोफिनैक और पैरासिटामॉल सॉल्ट की जो टैबलेट जेनेरिक में 5 रुपये 70 पैसे का है, ब्रांड के नाम पर कंपनियां उसके लिए 23-30 रुपये तक वसूल लेती हैं. इसी तरह एक्लोफिनैक के 3 रुपये 84 पैसे के टैबलेट के लिए 32.50 तक वसूला जाता है. कैंसर आदि की दवाओं के रेट में तो चार से पांच गुना ज्यादा का अंतर है. सरकार ने खुद जन औषधि केंद्र की वेबसाइट पर जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दाम में अंतर की सूची जारी की है.
नोट : जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दाम में अंतर को इस लिंक पर देख सकते हैं.
कहां से ले सकते हैं जेनेरिक दवाएं : केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से जेनेरिक दवाएं ली जा सकती हैं. सभी राज्यों के जिलों और प्रमुख शहरों में जन औषधि केंद्र खोले गए हैं. दिल्ली की बात करें तो यहां 41 स्टोर हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश में 472 स्टोर खुल चुके हैं. केंद्र सरकार लगातार नए केंद्र खोल रही है. पिछले दिनों खबर आई थी कि देशभर के पेट्रोल पंप और रेलवे स्टेशन पर भी जन औषधि केंद्र खोलने की तैयारी है. आप अपने नजदीकी स्टोर की जानकारी इस लिंक से ले सकते हैं.
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सर्दी हो या गर्मी अक्सर कुछ लोगों की नाक सूख जाती है और इस वजह से उन्हें तकलीफ होने लगती है। नाक सूखना हालांकि कोई बीमारी नहीं है लेकिन नाक सूखने की वजह से असहज लगने लगता है और एक हल्की सी चुंभन होने लगती है। नाक के सूखेपन की वजह से साइनस या ज्यादा तेज सिरदर्द होने की समस्या हो जाती है। एक समस्या यह भी है कि नाक के सूखेपन के कारण सांस लेने में परेशानी आती है।
नाक के सूखने की अवस्था में नाक के अंदर श्लेष्म जैसी एक परत जम जाती है। नाक सूखने की समस्या ज्यादातर गर्मियों में दिखाई पड़ती है। इस समस्या से बचाव के लिए आज हम आपको कुछ उपाय बता रहें हैं, आइये जानते हैं इन उपायों के बारे में।
गर्मी के मौसम में शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस कारण नाक सूखने की परेशानी पैदा हो जाती है। इस समस्या से बचाव के लिए आप प्रतिदिन भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करें। गर्मी के मौसम में पानी की सही मात्रा का सेवन करने से अन्य कई समस्याओं से भी बचा जा सकता है।
अपने बैडरूम में ड्राई मिस्ट ह्यूमिडफायर लगाकर सोने से आपके कमरे में नमी को बढ़ाने में मदद मिलती है, जो आपके नासिका मार्ग को राहत प्रदान करती है। इसलिए सूखी नाक की समस्या होने पर अपने कमरे के बीच में ह्यूमिडफायर को रखें।
नाक की अंदर की परत में थोड़ी सी मात्रा में पेट्रोलियम जैली लगाने के लिए अपनी उंगलियों का प्रयोग करें। यह उपाय न केवल आपकी नाक को नमी को बनाये रखने के लिए अच्छा हैं, बल्कि सुरक्षित रूप से थोड़ी मात्रा में आपके पेट द्वारा नियंत्रित किया जाता है। लिप बाम का उपयोग भी इसी रूप में अच्छी तरह से काम करता है।
अगर आप सूखी नाक की समस्या से परेशान हैं तो आपके लिए नेजल स्प्रे बेहतर ऑप्शन हो सकता है। यह नाक का मार्ग गीला करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अगर आप इसका बहुत ज्यादा यूज करेंगे तो नाक सूखने लगेगी और श्लेष्मा झिल्ली यानि म्यूकस मेम्ब्रेन को नुकसान पहुंचेगा।
स्टीम ट्रीटमेंट भी सूखी नाक से राहत देने में आपकी मदद कर सकती है। स्टीम लेने के लिए आप स्टीम स्टीमर से ले सकते हैं या फिर किसी बड़े बर्तन में पानी गर्म करके भाप ले सकते हैं। भाप लेने से पहले सिर को तौलिए से ढक लें और जितनी देर बर्दाश्त हो, भाप लें।
नारियल तेल लगाने से नाक का सूखापन दूर होता है और नाक की कोशिकाओं के बीच के अंतराल के दर्द को दूर करने में मदद मिलती है। लेकिन ध्यान रहे कि दूसरे उपायों की तरह इसे भी ज्यादा न करें। एक दिन में नारियल तेल की कुछ बूंदें ही सूखी नाक के लक्षणों को कम करने के लिए काफी हैं।