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गंभीर हृदय रोगों के मरीज, जिन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण इस प्रक्रिया में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उनके लिए 'हार्टमैट-3' थेरेपी एक वरदान साबित हुआ है. हार्टमैट-3 का प्रयोग दुनियाभर के 26 हजार से ज्यादा रोगियों पर किया गया, जिसमें से 14 हजार रोगी अपना जीवन सकुशल जी रहे हैं. मैक्स अस्पताल के हार्ट ट्रांसप्लांट और एलवीएडी प्रोग्राम विभाग के निदेशक डॉ. केवल किशन का कहना है, "जिन मरीजों का पल्मोनेरी प्रेशर बढ़ा होता है या जो रोगी लंबे समय तक ट्रांसप्लांट का इंतजार नहीं कर सकते, उनके लिए हार्टमैट-3 डेस्टिनेशन थेरेपी के लिए बेहतर है. इसके अलावा एलवीएडी 65 साल से ज्यादा उम्र के रोगियों के लिए उपयुक्त है, जिनके लिए हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह नहीं दी जाती. उनके लिए काफी फायदेमंद है."
एलवीएडी के ब्रांड में सबसे आम 'हार्टमैट' है, जिसे अमेरिका की कंपनी सेंट जूडस मेडिकल ने बनाया है और पिछले साल एबॉट हेल्थकेयर ने लिया है. हार्टमैट के वर्जन पिछले दो साल से उपलब्ध है. इसके अलावा 'हार्टमैट 2' को ज्यादातर ब्रिज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जो कि हार्ट ट्रांसप्लांट तक अस्थायी तौर पर लगाया जाता था और यह लंबे समय तक चलता था जिसे हृदयरोग विशेषज्ञ डीटी (डेस्टिनेशन थेरेपी) का नाम देते हैं.
रामप्रसाद गर्ग (63) को साल 2009 में गंभीर हार्ट अटैक आया था. इसके बाद से रामप्रसाद का दिल दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था. कुछ महीनों बाद रामप्रसाद को खाना पचाने में भी दिक्कत होने लगी. बेड पर लेटने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती थी. रामप्रसाद को 4 मई, 2016 को 'हार्टमैट 3' प्रत्यारोपित किया गया और एक महीने बाद डॉक्टरों ने निर्णय लिया कि यह उनके लिए बेहतर इलाज है.
उस समय रामप्रसाद भारत के पहले और एशिया के दूसरे एलवीएडी इम्प्लांट कराने वाले व्यक्ति बने. उन्हें कुछ समय तक अस्पताल में रखकर रिहेबिटेशन किया गया, जहां मेडिकल टीम ने सुनिश्चित किया कि वह आराम से चल सके और कुछ कदम चढ़ सके. तीन हफ्ते बाद रामप्रसाद को अस्पताल से छुट्टी मिली तो उनकी पूरी जिंदगी ही जैसे बदल गई थी. आज वह बहुत ही सामान्य जिंदगी बिता रहे हैं.
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कैंसर एक अनुवांशिक बीमारी है, तो आपको यह पता होना चाहिए कि सभी प्रकार के कैंसर में 70 से 90 फीसदी तक के मामले लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय कारक से जुड़े होते हैं.
कैंसर का इलाज बहुत मंहगा होता है. इसी वजह से आजकल बाज़ारों में इस बीमारी से लड़ने के लिए कई तरह के कैंसर बीमा मौजूद हैं. जिसे हर महीने सिर्फ एक छोटी-सी रकम देकर लिया जा सकता है. ये बीमा पॉलिसी कैंसर के हर स्टेज को कवर कर मुआवजा देती है. लेकिन अब सवाल यह आता है कि कैंसर बीमा लेने की सलाह क्यों दी जाती है? आखिर क्यों हर व्यक्ति को यह बीमा लेना चाहिए?
तो बता दें, डब्ल्यूएचओ (World Health Organization) का अनुमान है कि प्रत्येक भारतीय परिवार में कम से कम कैंसर का एक मरीज होगा, जबकि कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार हर छह या आठ में से एक भारतीय कभी ना कभी कैंसर की चपेट में आएगा. वहीं, इसी संस्था कि एक और रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कैंसर की दर फिलहाल सर्वाधिक उच्च स्तर पर है, जो 2017 में 15 लाख थी और साल 2020 में बढ़कर 17.3 लाख होने की उम्मीद है.
वहीं, कैंसर पर अनुसंधान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी ने भारत को अधिकतम 'हेमाटोलॉजिकल कैंसर मरीजों' में तीसरे नंबर पर रखा है. अगर आपका यह मानना है कि कैंसर एक अनुवांशिक बीमारी है, तो आपको यह पता होना चाहिए कि सभी प्रकार के कैंसर में 70 से 90 फीसदी तक के मामले लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय कारक से जुड़े होते हैं.
कैंसर बीमा योजना क्या है?
पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के एसोसिएट निदेशक और क्लस्टर प्रमुख संतोष अग्रवाल का कहना है, "कैंसर बीमा योजना एक निश्चित लाभ योजना है, जिसमें बीमित व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता के बिना बीमाधारक को बीमा राशि का भुगतान किया जाता है. कैंसर बीमा प्लान सभी स्टेज के कैंसर को कवर करता है तथा हर स्टेज पर मुआवजा प्रदान करता है. इसके अलावा ये योजनाएं माइनर स्टेज कैंसर, मल्टीपल असंबद्ध कैंसर दावे और माइनर लाइफ कवर जैसे अतिरिक्त लाभ भी प्रदान करते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कैंसर बीमा योजना आपकी बीमारी के इलाज के दौरान आपकी संपत्ति और बचत की रक्षा करने का सबसे अच्छा तरीका है."
कैंसर बीमा योजना का कौन-सा प्लान बेहतर?
उन्होंने आगे कहा कि कैंसर बीमा योजना खरीदते वक्त अधिकतम बीमित राशि वाली योजना ही खरीदनी चाहिए. साथ ही संपूर्ण बीमित राशि के विवरण को समझना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हर तरह के कैंसर के इलाज का तरीका अलग-अलग होता है. अधिकतम बीमित राशि से बीमाधारक अपनी पूरी जिंदगी के बचत को खर्च किए बिना नवीनतम तकनीक के साथ सबसे अच्छा कैंसर उपचार प्राप्त कर सकता है.
उन्होंने कहा, "भारत में इलाज की लागत को देखते हुए कम से कम 20-25 लाख रुपये का प्लान खरीदना अच्छा रहेगा."
कैंसर बीमा योजना का समय?
अग्रवाल ने कहा कि कैंसर बीमा प्लान लेते वक्त इसकी प्रतीक्षा अवधि पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इस अवधि से पहले बीमा का दावा नहीं कर सकते. इसलिए ऐसी पॉलिसी खरीदें, जिसकी प्रतीक्षा अवधि कम से कम हो. समान्यत: अधिकतम बीमा योजनाओं की प्रतीक्षा अवधि 180 दिन से 365 दिन के बीच होती है.
उन्होंने कहा कि कैंसर बीमा प्लान के अंतर्गत कैंसर के सभी चरणों में बीमित राशि का भुगतान किया जाता है, जोकि शुरुआती चरण में 20 से 25 फीसदी होता है, तथा एडवांस स्टेज में 100 फीसदी किया जाता है, हालांकि कई पॉलिसियों में बीमित राशि का 150 फीसदी तक भुगतान किया जाता है.
कब नहीं ले सकते कैंसर बीमा?
अग्रवाल ने बताया कि कुछ स्थितियों में कंपनियां कैंसर का बीमा नहीं करती है, जिसमें अगर बीमा लेने से पहले से कैंसर हो, त्वचा कैंसर हो, यौन संक्रमित बीमारियां, एचआईवी, या एड्स के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से हुआ कैंसर, किसी जन्मजात कारण के हुआ कैंसर, जैविक, परमाणु या रासायनिक प्रदूषण से हुआ कैंसर, विकिरण या रेडियोधर्मिता के संपर्क में आने से हुआ कैंसर शामिल है.
::/fulltext::नारियल का पानी पीने में जितना स्वादिष्ट लगता है, उससे भी कई ज्यादा इसके फायदे होते हैं। नारियल पानी सेहत व सौन्दर्य दोनों के ही लिए बेहद फायदेमंद होता है। आइए जानते हैं नारियल के पानी को पीने के लाभ-
क्या है थाइरॉयड (What is Thyroid): आज जिस जीवनशैली में हम जी रहे हैं उसमें थायराइड एक आम समस्या बनी हुई है. दरअसल (Thyroid) गले में स्थित एक ग्रंथि है, जो थायरोक्सिन नामक हार्मोन बनाती है. यह हार्मोन चयापचय प्रक्रिया को सही रखने में मददगार होता है. तो आप समझ सकते हैं कि अगर थायरॉइड ग्रंथि सही से काम कर रही है तो यह आपके मेटाबॉलिज्म यानी भोजन को ऊर्जा में बदलने के काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकते हैं. लेकिन जैसे ही थायरॉइड हार्मोन कम या ज्यादा होना शुरू होता है हमारे शरीर में तमाम दिक्कते होंने लगती हैं.
अश्वगंधा थाइरॉयड में फायदेमंद है
थायराइड के प्रकार (Types of Thyroid):
थायराइड दो तरह का होता है. पहला थायरोक्सिन हार्मोन हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) जिसकी कमी की बच्चों में बौनापन और वहीं बड़ों में सबकटॅनेअस चरबी बढ़ जाती हैं. दूसरी तरह के थायराइड (हायपरथायरोडिज्म) में गण्डमाला होने का खतरा बना रहता है. अश्वगंधा और दूध के भी कई सेहत से जुड़े कई लाभ हैं.
क्यों होता है थायराइड (Thyroid Diseases - Causes)
थायरोक्सिन की निष्क्रियता के कारण हाइपोथायरायडिज्म हो सकता हैं. आयोडीन की कमी के कारण थकान, सुस्ती हो सकती है. इसकी वजह होता है हार्मोनल असंतुलन. इसका अगर इलाज न किया जाए तो यह मायक्झोएडेमा पैदा कर सकता है. इसमें स्किन और ऊतकों में सूजन की शिकायत हो सकती है.
अश्वगंधा से करें थायराइड का इलाज ( Ashwagandha for Thyroid Health )
ऐसा कौन सा रोग है जिसका उपचार आयुर्वेदिक में नहीं... तो चलिए आपको बताते हैं कि किस तरह आप आयुर्वेद के इस्तेमाल से थायराइड का इलाज कर सकते हैं. इसके लिए आपको इस्तेमाल में लाना होगा अश्वगंधा. अश्वगंधा से दोनों ही तरह के थायराइड में फायदा उठाया जा सकता है.
अश्वगंधा के फायदे - ( Ashwagandha Benefits)