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कुछ भी ठंडा या गर्म खाने पर दांतों में झनझनाहट होने लगती है, खट्टा या मीठा लगने पर अचानक से झनझनाहट होने को ही दांतों की सेंसिटिविटी कहते हैं। उम्र के साथ और गलत खानपान की वजह से अक्सर दांतों की समस्याएं घेर लिया करती है। जिस वजह से कैविटी, मसूड़ों में ढ़ीलापन और सेंसेटिविटी जैसी समस्याएं होने लगती है।
अगर आपको लगातार झनझनाहट की समस्या होती है तो हो सकता है कि आपके दांतों पर लगी कोटिंग (इनेमल) के घिस गई हो। इनेमल दांतों का सुरक्षा कवच होती है जो दांतो को कठोर चीजों से सुरक्षा प्रदान करती है। दांतों के अंदर छोटी-छोटी नसें दर्द होने लगती हैं। ठंड़ा या गर्म लगने की वजह से झनझनाहट बढ़नी शुरू हो जाती है।
मसूड़ों के ढीले पड़ जाने से और लगातार दांते के टूट-फूट जाने से डेंटाइन खुल जाती हैं। जिसकी वजह से दांतों में सेंसिटीविटी बढ़ने लगती है।
कैविटी और दांतों की सड़न
जब कैविटी की वजह से दांतों की सड़न नसों तक पहुंच जाए तो समस्या बढ़ने लगती है। कई बार दांत कमजोर होने की वजह से टूटने भी लगते हैं।
दांतों के साथ छेड़छाड़
कुछ लोग टूथपिक, फ्लॉस या फिर गलत तरीके टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं। इनसे दांत और मसूड़े कमजोर होने लगते हैं। जिससे धीरे-धीरे डेंटाइन को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है।
ज्यादा मीठा खाने से
मीठे का ज्यादा सेवन और कुछ प्रोसेस्ड फूड्स का लगातार सेवन करने से इनेमल को नुकसान पहुंचने लगता है। बैलेंस डाइट,कच्ची सब्जियां,फलों का सेवन करें।
डेंटल कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट
कुछ लोग दांतों का पीलापन दूर करने के लिए वाइटिंग और डेंटल कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट अपनाते हैं। जिससे दांतों सेंसिटिव हो सकते हैं।
काले तिल दांतों के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। दिन में दो बार एक-एक चम्मच काले तिल को चबाने से सेंसिटिविटी में फायदा होता है।
नारियल तेल
वर्जिन नारियल तेल को अपने मुंह में 15 से 20 मिनट तक भरकर रख दें। इसके बाद मुंह से तेल को निकालकर कूल्हा कर लें और ब्रश कर लें।
तिल, सरसों और नारियल का तेल
तिल, सरसों का तेल और नारियल का तेल एक-एक चम्मच करके अच्छी तरह मिला लें। अब इस तेल से दांतों और मसूड़ों की मसाज करें। उसके बाद गुनगुने पानी से मुंह साफ कर लें। कुछ दिन ऐसा करें असर आपको खुद ब खुद नजर आने लगेगा।
दही
रोजाना एक कटोरी दही का सेवन करें, ये आपके दांतों के इनेमल का घिसने से रोकता है और आपके दांतों को झनझनाहट की समस्या से बचाता है।
नमक और सरसो का तेल
नमक और सरसों के तेल से मसाज करना भी फायदेमंद होता है। आज भी हमारे गांवों में आधी से ज्यादा आबादी दांतों को स्वस्थ रखने के लिए नमक और सरसो के तेल से मंजन करते हैं। इससे कैविटी की समस्या नहीं होती है ओर मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं। आप चाहें तो सिर्फ सरसों के तेल से भी दांतों और मसूड़ों की मसाज कर सकते हैं।
::/fulltext::न्यूयॉर्क (वीएनएस/आईएएनएस)| एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषित वायु क्रॉनिक किडनी डिजीज(सीकेडी) के खतरे को बढ़ा सकता है और यह तब होता है जब किसी व्यक्ति का गुर्दा खराब हो जाए या गुर्दा खून को सही तरीके से शुद्ध करने में सक्षम न हो। इस अध्ययन में भारतीय मूल के एक अध्ययनकर्ता भी शामिल है। अध्यन में बताया गया है कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से ग्रसित लोगों में सीकेडी के विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है। पीएम2.5 के अलावा प्रदूषित वायु में सीसा, पारा और कैडमियम जैसे भारी धातु मौजूद होते हैं। अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहने वाले रोगियों को एहतियात बरतने की सलाह दी है। प्रमुख अध्ययनकर्ता जेनिफर ब्रेग-ग्रेशम ने कहा, `उसी तरह धूम्रपान, प्रदूषित वायु में हानिकारक विषैला पदार्थ सीधे गुर्दे को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा, `गुर्दे के जरिए बड़ी मात्रा में खून प्रवाहित होता है, और अगर कोई भी चीज परिसंचरण तंत्र को हानि पहुंचाती है तो गुर्दा सबसे पहले इससे प्रभावित होता है।
इससे पहले के अध्ययन से पता चला था कि वायु प्रदूषण से श्वसन संबंधी समस्या जैसे अस्थमा, मधुमेह की स्थिति बिगड़ना और अन्य गंभीर बिमारी होती है। पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में इस मामले में कई पूर्व अध्ययनों की जांच की गई है।
सह-अध्ययनकर्ता राजीव सरण ने कहा, `अगर आप कम आबादी वाले क्षेत्र से घनी आबादी वाले क्षेत्र की तुलना करें तो, आप घनी आबादी वाले क्षेत्र में क्रॉनिक किडनी डिजीज की समस्या से ग्रस्त ज्यादा लोगों को पाएंगे।`