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गरियाबंद. गरियाबंद से काम की तलाश में गए मजदूरों को एक बार फिर बंधक बनाने का मामला सामने आया है. इस बार देवभोग के सौ से ज्यादा मजदूरों को बंधक बनाया गया है, इसमें महिलाएं और 50 से ज्यादा बच्चों के शामिल होने की जानकारी मिल रही है.
तेलंगाना के वारंगल जिले के भूपलपल्ली गांव में इन्हें बंधक बनाया गया है. बंधकों ने एक वीडियो बनाकर अपने घरवालों को भेजकर इसकी जानकारी दी है. बंधकों ने ठेकेदार पर दिन-रात काम करवाने का भी आरोप लगाया है, वहीं मामले की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन भी हरकत में आ गया है. मामले की जानकारी मिलते ही देवभोग एसडीएम ने असलियत जानने के लिए एक टीम पीड़ित लोगों के गांव रवाना कर दिया है, साथ ही सूचना सही होने और बंधकों को जल्द से जल्द छुड़ाने का दावा भी किया है.
::/fulltext::महासमुंद. शहर के सुमीत ग्रुप के कपड़ा दुकान और ज्वेलर्स की दुकान में आयकर विभाग ने छापा मारा है. आयकर विभाग की दो टीम ने बस स्टैंड स्थित सुमीत कपड़ा बाजार और सदर बाजार स्थित ज्वेलर्स आभूषण में छापेमार कार्रवाई कर रही है. विभाग की टीम दुकानों में खाते की जानकारी खंगाल रही है. इन सब की जानकारी टीम द्वारा अभी मीडिया से गोपनीय रखी गई है.
::/fulltext::रायपुर, 31 जनवरी 2019। कलेक्टरों के ट्रांसफर पर से चुनाव आयोग के ब्रेक का रास्ता निकाल लिया गया है। किसी भी दिन कलेक्टरों की जंबो लिस्ट निकल सकती है। संकेत हैं, 27 में से एक दर्जन से अधिक कलेक्टरों को सरकार बदलेगी। इससे पहिले सरकार बदलने के बाद दिसंबर में आधा दर्जन कलेक्टर बदले जा चुके हैं।
दरअसल, चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण तक डीआरओ, एआरओ का ट्रांसफर न करने कहा था। इससे भ्रम यह हुआ कि अब अगर ट्रांसफर किया गया तो पहले आयोग के पास तीन अफसरों का पेनल भेजना होगा। आयोग वहां से टिक लगाकर ओके करेगा। लिहाजा, 12 जिलों के कलेक्टरों को बदलने के लिए 36 अफसरों के नाम भेजने पड़ते। और, यह संभव नहीं था। क्योंकि, एक तो इतने अफसर मिलना मुश्किल था और अगर 36 नाम भेज दिए तो क्या पता आयोग किस नाम पर मुहर लगा देता। लेकिन, अब पता चला है सिर्फ आचार संहिता प्रभावशील होने के दौरान पेनल भेजने की बाध्यता होती है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान राज्य निर्वाचन पदाधिकारी की सहमति काफी है। आखिर, बिलासपुर नगर निगम आयुक्त सौमिल चौबे और अंबिकापुर के डिप्टी कलेक्टर प्रभाकर पाण्डेय का बिलासपुर ट्रांसफर हुआ ही। जबकि, दोनों एआरओ थे।
पता चला चला है, कलेक्टरों की लिस्ट बननी शुरू हो गई है। दो-चार दिन में कभी भी इसे जारी की जा सकती है। लिस्ट में रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव जिले का नाम सबसे उपर है। रायपुर का तो वैसे भी एक्सीडेंटल केस था। बसव राजू को प्रतिनियुक्ति पर होम कैडर जाने के लिए भारत सरकार ने अनुमति दे दी थी। राज्य सरकार से भी वे रिलीव होने ही वाले थे। इस बीच ओपी चौधरी के इस्तीफा देने के बाद उनकी जगह नए कलेक्टर की कवायद शुरू हो गई थी। राज्य सरकार ने तीन अफसरों का पेनल आयोग को भेजा उसे आयोग ने लौटाते हुए और अफसरों के नाम मांग लिए। दूसरे पैनल में सरकार ने बसव राजू का नाम तीसरे नम्बर पर रखकर भेज दिया कि उपर वाले का हो जाएगा। मगर आयोग ने तीसरे नम्बर पर बसव के नाम को ओके कर दिया। इस तरह गृह प्रदेश जाते-जाते बसव यहां फंस गए। समझा जाता है, सरकार अपने किसी पंसदीदा आईएएस को राजधानी की कमान सौंपना चाहेगी। हिट लिस्ट में दुर्ग का नाम वैसे सबसे उपर था। पता नहीं, वे पहली लिस्ट में कैसे बच गए। जबकि, दुर्ग सीएम का गृह जिला है। धमतरी कलेक्टर सी प्रसन्ना का भी लंबा समय हो गया है। धमतरी में भी नए कलेक्टर पोस्ट किए जाएंगे।
2011 बैच भी लंबे समय से कलेक्टर बनने का इंतजार कर रहा है। नीलेश क्षीरसागर से इस बैच का खाता खुला है। डायरेक्ट और प्रमोटी को मिलाकर इस बैच में आठ से अधिक आईएएस हैं।
हालांकि, लिस्ट निकालने में सरकार को इसलिए भी दिक्कत जाएगी कि विधानसभा चुनाव की दृष्टि से जातीय और सामुदायिक हिसाब से पिछली सरकार ने कलेक्टरों की पोस्टिंग की थी। चुनाव के बाद जाहिर है, वे सभी बदलते। लेकिन, सरकार बदल गई। अब अगर नई सरकार उन्हें कंटीन्यू करती है तो होगा कि पुरानी सरकार के कलेक्टरों को सरकार नहीं बदल रही। और, उन्हें बदलेगी तो संबंधित समुदायों को दिक्कत होगी।
बहरहाल, सूत्रों का कहना है, पहुना में कलेक्टरों की लिस्ट बननी शुरू हो गई है। लिस्ट को राज्य निर्वाचन पदाधिकारी सुब्रत साहू के पास भेजा जाएगा। जाहिर है, उनसे सहमति मिलने में कोई दिक्कत होगी नहीं। वैसे आयोग ने भी राज्य सरकारों से कह दिया है कि 28 फरवरी के बाद किसी कलेक्टर को न बदलें। इसलिए, सरकार अब इसमें देरी नहीं करना चाहेगी।