Wednesday, 09 July 2025

All Categories

2351::/cck::

अधिमास के कारण इस बार सावन 18 दिन लेट से 28 जुलाई से शुरू होगा। हालांकि अच्छी बात यह है कि इस बार सावन पूरे 30 दिन का रहेगा।..... 

::/introtext::
::fulltext::

इस साल सावन महीने का लोगों को थोड़ा ज्यादा इंतजार करना होगा। अधिमास के कारण इस बार सावन 18 दिन लेट से 28 जुलाई से शुरू होगा। हालांकि अच्छी बात यह है कि इस बार सावन पूरे 30 दिन का रहेगा। इसका समापन 26 अगस्त को रक्षाबंधन के पर्व के साथ होगा। हालांकि यह श्रावण मास की तिथि 27 जुलाई को ही लग जाएगी लेकिन इसे उदया तिथि से ही शुरू माना जाएगा। इसलिए इसकी शुरुआत 28 जुलाई से ही मानी जाएगी। इस बार सावन में चार सोमवार होंगे। पहला सावन का सोमवार 30 जुलाई 2018 को पड़ेगा। इस मौके पर हम आपको कुछ ऐसी चीजें बात रहे है जो भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं, अगर इस सावन में आप घर पर ये चीजें लेकर आते है तो निश्चित रूप से शिव की कृपा मिलेगी।

19 साल बन रहा है दुलर्भ संयोग

इस साल का सावन का महीना बहुत खास रहने वाला है क्योंकि 19 साल बाद एक दुर्लभ संयोग बना है। इस बार सावन का महीना 28 या 29 दिनों का नहीं रहेगा बल्कि पूरे 30 दिनों तक चलेगा। ऐसा संयोग 19 साल बाद बन रहा है। दरअसल इस बार का सावन 30 दिनों का होने के पीछे अधिकमास पड़ने के कारण हुआ है। 

भस्‍म

पहले सोमवार को या किसी भी सावन के सोमवार को शिव मूर्ति के साथ यदि भस्म रखते हैं तो शिव कृपा मिलेगी।

रुद्राक्ष

ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी। इसलिए यदि आप इसे सावन के सोमवार को घर में लाते हैं और घर के मुखिया के कमरे में रखते हैं तो भगवान शिव ना केवल रुके हुए काम को पूरा करते हैं, बल्कि इससे आर्थिक लाभ भी होता है। और खूब तरक्‍की भी मिलती है।

गंगा जल

भगवान शंकर ने गंगा मां को अपनी जटा में स्थान दिया था। इसलिए यदि आप सावन के सोमवार को गंगाजल लाकर घर की किचन में रखते हैं तो घर में सम्पन्नता बढ़ेगी और तरक्की व सफलता मिलती है।

चांदी के नंदी

जिस प्रकार घर में चांदी की गाय रखने का महत्व है उसी प्रकार चांदी के नंदी घर में रखने का भी खास महत्व है। अपनी तिजारी या अलमारी में जहां आप पैसे या गहने रखते हैं, वहां चांदी के नंदी रखें। इससे आपको धन लाभ होगा और आपकी आर्थिक सम्पन्नता बढ़ेगी और इनकी सुरक्षा भी होगी।

डमरू

यह शिव का पवित्र वाद्य यंत्र है। इसकी पवित्र ध्वनि से आसपास से समस्त नकारात्मक शक्तियां दूर भागती है। आरोग्य के लिए भी डमरू की ध्वनि असरकारक मानी गई है। सावन मास के प्रथम दिन लाकर रखें और अंतिम दिन किसी बच्चे को यह डमरू उपहार में दें।

चांदी या तांबे का त्रिशूल

घर के हॉल में चांदी या तांबे का त्रिशूल स्थापित करके आप घर की सारी नेेगेटिव एनर्जी खत्म कर सकते हैं. इस बार सावन में इसे जरूर लाएं। 

::/fulltext::

2338::/cck::

 मन को पूरी तरह से तैयार करना बेहद जरूरी है।..... 

::/introtext::
::fulltext::
सबसे पहले मन को पूरी तरह से तैयार करना बेहद जरूरी है। अगर उपवास केवल एक ही दिन रखना है तो इसके लिए कोई विशेष तैयारी करने की कोई जरूरत नहीं है। बस उपवास के दो तीन दिन पूर्व से भोजन में फल और सब्जियां ज्यादा लेनी शुरू कर दें। हां अगर उपवास ज्यादा दिनों तक रखने हैं तो इसके लिए आपको अवश्य ही विशेष तैयारी कर लेनी चाहिए। उपवास रखने के दो-तीन दिन पूर्व से ज्यादा अन्न खाना शुरू कर दें और भोजन के साथ सब्जियां और फल भी ज्यादा लेने पड़ेंगे। उपवास से एक-दो दिन पूर्व एक वक्त रोटी, सलाद और सब्जी और दूसरे वक्त फलों का सेवन करें।
 
एक से तीन दिन पूर्व फलाहार, एक से तीन दिन रसाहार, एक से तीन दिन नींबू पानी और शहद पर रहें। दो-तीन दिन लगातार संतरे के रस का सेवन करने के पश्चात्‌ सीधे तौर पर उपवास पर आना ठीक रहता है। उपवास काल में उपवासकर्ता का मल सूख जाता है। उपवास करने से पूर्व शंखप्रक्षालन, चौलाई त्रिफला, आँवला, पालक के सूप, नाशपाती या करेले के रस के सेवन से पेट का साफ करना ठीक रहता है।
 
इन बातों पर ध्यान दें
 
- उपवास के बीच सुबह-शाम प्राणायाम करना ठीक रहता है। 
- उपवास काल में शारीरिक और मानसिक आराम को भी पूरी तरजीह देनी चाहिए।
- उपवास काल में मौन व्रत रखना भी श्रेष्ठ रहता है।
- स्थिति के अनुसार उपवास काल में स्पंज बाथ, मिट्टी की पट्टी, एनिमा, धूपस्नान, मालिश, सूखा व गीला घर्षण स्नान, भ्रमण करना, आसन, कुंजर आदि चिकित्सा का सहारा लेना ठीक रहता है।
- अगर आप ज्यादा दिनों तक लगातार उपवास रखने की सोच रहे हैं तो ऐसे में याद रखें कि उपवास के शुरू में तीन-चार दिनों तक भूख का अहसास होता है। ऐसी हालत में नींबू-पानी, शहद या केवल दो-तीन गिलास पानी पीने से ही पेट की क्षुधा मिट जाया करती है।
- निर्जल उपवास कभी भी नहीं रखना चाहिए।
- याद रखो कि पानी नहीं पीने से शरीर के अन्दर मौजूद अपशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं जिससे शरीरअनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। ऐसे में पेशाब में जलन, पेट में जलन, कब्ज, संक्रमण, बदबूदार पसीना आदि की समस्याएं पैदा हो जाया करती हैं। एक साथ पानी न पीकर एक-एक घंटे बाद एक गिलास पानी में नींबू निचोड़कर उसका सेवन करना ठीक रहता है।
 
उपवास रखते वक्त इस बात का भी ध्यान रखें कि उपवास काल में ज्यादा वक्त तक भूखे पेट नहीं रहना चाहिए। अगर आप उपवास काल में भोजन नहीं करते हैं तो सुबह के समय दूध जरूर पीना चाहिए। दोपहर के वक्त फल या जूस ले सकते हैं। शाम के समय चाय पी सकते हैं। रात्रि में फलों की सलाद का सेवन कर सकते हैं। अगर आप उपवास काल में केवल एक बार भोजन कर लेते हैं तो आपको ज्यादा मात्रा में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए।
::/fulltext::

2281::/cck::

ज्योतिष का सबसे अधिक घातक, अशुभ और दुष्ट योग है 'यमघंटक', नहीं करें इसमें मंगल कार्य.....

::/introtext::
::fulltext::
मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने गए इन योगों का निर्धारण करने के कुछ नियम बताए हैं, जहां पर इन के होने की स्थिति को बताया गया है। अशुभ योगों को देखने के लिए भी इन्हीं तथ्यों के आधार पर पता किया जा सकता है। ज्योतिष के सबसे अशुभ योगों में योग भी है। इस योग में शुभ कार्य वर्जित होते हैं अर्थात इस योग में व्यक्ति के किए गए शुभ कार्यों में असफलता की आशंका बढ़ जाती है। इस योग में शुभ एवं मांगलिक कामों को न करने की बात कही गई है।
 
ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य को करने हेतु शुभ योग-संयोगों का होना आवश्यक होता है। शुभ समय का चयन तिथि, नक्षत्र, चंद्र स्थिति, योगिनी दशा और ग्रह स्थिति के आधार पर किया जाता है। मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने गए इन योगों का निर्धारण करने के कुछ नियम बताए हैं, जहां पर इनके होने की स्थिति को बताया गया है। अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना चाहिए। यात्रा, बच्चों के लिए किए जाने वाले शुभ कार्य तथा संतान के जन्म समय में भी इस योग का विचार किया जाता है और यदि योग उपस्थित हो तो यथासंभव, कार्यों को टालना उचित है, संतान जन्म तो ईश्वरीय देन है परंतु यदि यमघटंक योग हो तो विद्वान ब्राह्मणों से इसकी शांति करवानी चाहिए।
 
वशिष्ठ ऋषि द्वारा फलित ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि दिवसकाल में यदि यमघंटक नामक दुष्ट योग हो तो हो सकता है, परंतु साथ ही रात्रिकाल में इसका फल इतना अशुभ नहीं माना जाता है।
 
तो आइए, समझते हैं कि कब और कैसे बनता है :-
 
* रविवार के दिन जब मघा नक्षत्र का संयोग बनता है तो यमघंटक योग का निर्माण होता है।
 
* सोमवार का दिन हो और उस दिन विशाखा नक्षत्र होने पर इस योग से यमघंटक योग का निर्माण होता है।
 
* मंगलवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र का संयोग होने पर यमघंटक योग की स्थिति उत्पन्न होती है।

* बुधवार के दिन जब मूल नक्षत्र का संयोग होने पर इस योग का निर्माण माना जाता है।
 
* बृहस्पतिवार के दिन यदि कृतिका नक्षत्र का मिलान हो जाने पर यमघंटक नक्षत्र बनता है।
 
* शुक्रवार के दिन अगर रोहिणी नक्षत्र का उदय होता है तो यह भी यमघंटक की स्थिति होती है।
 
* शनिवार के दिन अगर हस्त नक्षत्र की स्थिति बनती है तो यह स्थिति भी इसी योग का निर्माण करती है।
 
परंतु रात्रिकाल में यमघंटक योग इतना अशुभ नहीं माना जाता है। वैसे शुभ कार्यों के प्रारंभ में भद्रा काल से बचना चाहिए और चर, स्थिर लग्नों का ध्यान रखना चाहिए।
 
::/fulltext::

2238::/cck::

को भी कहते हैं। विश्‍वकर्मा देवताओं के तो मय दानव असुरों के वास्तुकार थे।.....

::/introtext::
::fulltext::
को भी कहते हैं। विश्‍वकर्मा देवताओं के तो मय दानव असुरों के वास्तुकार थे। मय दानव हर तरह की रचना करना जानता था। मय विषयों का परम गुरु है। राजा बलि रसातल तो मय दानव तलातल का राजा था। सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। पुराणों अनुसार पाताल लोक के निवासियों की उम्र हजारों वर्ष की होती है। के उत्तरकांड के अनुसार माया दानव, कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति का पुत्र और सम्राट की पत्नी मंदोदरी का पिता था। इसकी दो पत्नियां- हेमा और रंभा थीं जिनसे पांच पुत्र तथा तीन कन्याएं हुईं। रावण की पत्नी मंदोदरी की मां हेमा एक अप्सरा थी और उसके पिता एक असुर। अप्सरा की पुत्री होने की वजह से मंदोदरी बेहद खूबसूरत थी, साथ ही वह आधी दानव भी थी।
 
मय दावन की शक्ति : मयासुर एक खगोलविद भी था। कहते हैं कि 'सूर्य सिद्धांतम' की रचना मयासुर ने ही की थी। खगोलीय ज्योतिष से जुड़ी भविष्यवाणी करने के लिए ये सिद्धांत बहुत सहायक सिद्ध होता है। मय दानव के पास एक विमान रथ था जिसका परिवृत्त 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिए लगे थे। इस विमान का उपयोग उसने देव-दानवों के युद्ध में किया था। देव- दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है, जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं।

मयासुर के निर्माण कार्य : ऐसा माना जाता है कि वह इतना प्रभावी और चमत्कारी वास्तुकार था कि अपने निर्माण के लिए वह पत्थर तक को पिघला सकता था। मयासुर ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर प्रसिद्धि हासिल की थी। रामायण के उत्तरकांड के अनुसार रावण की खूबसूरत नगरी, लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था लेकिन यह भी मान्यता है कि लंका की रचना स्वयं रावण के श्वसुर और बेहतरीन वास्तुकार मयासुर ने ही की थी।मैसूर,मंदसौर और मेरठ उसी के मान मे अपभ्रंष है। माया दानव ने सोने, चांदी और लोहे के तीन शहर जिसे त्रिपुरा कहा जाता है, का निर्माण किया था। त्रिपुरा को बाद में स्वयं भगवान शिव ने ध्वस्त कर दिया था। तारकासुर के लिए माया दानव ने इस तीनों राज्यों, त्रिपुरा का निर्माण किया था। तारकासुर ने ये तीनों राज्य अपने तीनों बेटों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली को सौंप दिए थे।
 
माया सभ्यता का जनक : मायासुर को दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता का जनक भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो जानकारियां और विलक्षण प्रतिभा माया दानव के पास थी, वही माया सभ्यता के लोगों के पास भी थी। कहते हैं कि अमेरिका के प्रचीन खंडहर उसी के द्वारा निर्मित हैं। अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि का पाया जाने इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि प्रचीनकाल में अमेरिका में भारतीय लोगों का निवास था। इसके बारे में विस्तार से वर्णन आपको भिक्षु चमनलाल द्वारा लिखित पुस्तक 'हिन्दू अमेरिका' में चित्रों सहित मिलेगा।

इंद्रप्रस्थ का निर्माता : में उल्लेख है कि मय दानव ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नामक नगर की रचना की थी। यह भी कहा जाता है कि उसने द्वारिका के निर्माण में भी विश्‍वकर्मा का सहयोग किया था। खांडव वन के दहन के समय अर्जुन ने मय दानव को अभयदान दे दिया था। इससे कृतज्ञ होकर मय दानव ने अर्जुन से कहा, 'हे कुन्तीनंदन! आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है अतः आप आज्ञा दें, मैं आपकी क्या सेवा करूं?'
 
अर्जुन ने उत्तर दिया, 'मैं किसी बदले की भावना से उपकार नहीं करता, किंतु यदि तुम्हारे अंदर सेवा भावना है तो तुम श्रीकृष्ण की सेवा करो।' मयासुर के द्वारा किसी प्रकार की सेवा की आज्ञा मांगने पर श्रीकृष्ण ने उससे कहा, 'हे दैत्यश्रेष्ठ! तुम युधिष्ठिर की सभा हेतु ऐसे भवन का निर्माण करो जैसा कि इस पृथ्वी पर अभी तक न निर्मित हुआ हो।' मयासुर ने कृष्ण की आज्ञा का पालन करके एक अद्वितीय नगर और उस नगर में एक भवन का निर्माण कर दिया। इसके साथ ही उसने पाण्डवों को देवदत्त शंख, एक वज्र से भी कठोर रत्नजटित गदा तथा मणिमय पात्र भी भेंट किया। यह भी कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी मय दानव ने बनाया और बसाया था। सवाल यह है कि रामायण काल के मय दानव का महाभारत काल में होना कैसे संभव है।
::/fulltext::
R.O.NO.13286/4 Advertisement Carousel
R.O.NO.13286/4 Advertisement Carousel

 Divya Chhattisgarh

 

City Office :-  Infront of Raj Talkies, Block - B1, 2nd Floor,

                              Bombey Market, GE Road, Raipur 492001

Address     :-  Block - 03/40 Shankar Nagar, Sarhad colony, Raipur { C.G.} 492007

Contact      :- +91 90099-91052, +91 79873-54738

Email          :- Divyachhattisgarh@gmail.com

Visit Counter

Total890731

Visitor Info

  • IP: 216.73.216.52
  • Browser: Unknown
  • Browser Version:
  • Operating System: Unknown

Who Is Online

1
Online

2025-07-09