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हमने अपने कई लेखों के माध्यम से भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ी कई रोचक बातें आपके सामने प्रस्तुत की है। आज हम आपको ऐसी ही एक और रोमांचित कर देने वाली घटना के बारे में बताएंगे। जी हाँ, आपने भगवान शिव की संतानों और उनकी पत्नियों के बारे में तो पढ़ा ही होगा किंतु महादेव की बहन के बारे में शायद ही आपने सुना हो। तो चलिए जानते हैं क्या है भोलेनाथ की इस बहन की कहानी।
देवी पार्वती रहती थी गुमसुम
जैसा कि हम सब जानते हैं कि देवी पार्वती ने महादेव से विवाह करने के लिए सभी सुखों और सुविधाओं का त्याग कर दिया था। भोलेनाथ से विवाह के पश्चात देवी पार्वती उनके साथ कैलाश पर आकर रहने लगी थीं। यूँ तो माता बहुत प्रसन्न थी किन्तु उन्हें वहां बहुत ही अकेलापन महसूस होता था चूँकि शिव जी ज़्यादातर समय अपने ध्यान में ही लीन रहते थे इसलिए माता के साथ कोई बातचीत करने के लिए वहां मौजूद नहीं था। वे हमेशा सोचती कि यदि उनकी कोई ननंद होती तो वे दोनों खूब गप्पे लड़ाते और उनका समय भी आसानी से व्यतीत हो जाता लेकिन वे इस बात से भली भांति परिचित थीं कि शिव जी अजन्मे हैं इसलिए उनका कोई भाई या बहन नहीं हो सकता। यही सोचकर वे अपने दिल की बात अपने पति से नहीं कह पा रही थीं।
शिव जी ने पढ़ ली उनके मन की बात
भले ही माता पार्वती अपने दिल की बात महादेव से न कह पा रही हों लेकिन भगवान तो अन्तर्यामी हैं उन्होंने फौरन ही सब कुछ जान लिया। तब शिव जी ने देवी पार्वती से उनकी परेशानी का कारण पूछा। माता से रहा न गया और उन्होंने महादेव को सारी बात बतायी। देवी शिव जी से बोलीं कि सभी स्त्रियों की ननंद होती है यदि उनकी भी कोई ननंद होती तो कैलाश पर उनका भी मन लगा रहता। यह सुनकर भोलेनाथ मुस्कुराए और उन्होंने देवी से पूछा कि क्या उनकी ननंद से बन पाएगी। इस पर पार्वती जी बोलीं क्यों नहीं, ननंद भी तो सखी के समान होती है।
भोलेनाथ की माया से उत्पन्न हुई असावरी देवी
देवी पार्वती की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव ने अपनी माया से एक देवी उत्पन्न की जिन्हें असावरी के नाम से जाना जाता है। यह थीं भोलेनाथ की बहन और देवी पार्वती की ननंद। जब माता पार्वती को इस बात का पता चला कि असावरी देवी उनकी ननद है तो वे बहुत प्रसन्न हुईं।
ऐसी थीं असावरी देवी
भोलेनाथ की माया से उप्तन्न हुई उनकी यह बहन काफी मोटी थी और उनके पैरों में बड़ी बड़ी दरारें थी, फिर भी ननद के आने से देवी पार्वती बेहद खुश थीं और उनकी सेवा सत्कार में लग गयीं। असावरी देवी स्नान करने गईं तब पार्वती जी उनके लिए खाना बनाने लगीं। जब वे स्नान करके लौटीं तो सारा भोजन चट कर गयीं, इतना ही नहीं उन्होंने पार्वती जी का पूरा का पूरा भोजन भण्डार ही खाली कर डाला और भोलेनाथ के भोजन के लिए कुछ भी नहीं बचा। यह देख पार्वती जी बहुत दुखी हुईं। अब असावरी देवी ने अपनी भाभी से वस्त्र मांगे किंतु पार्वती जी के दिए हुए वस्त्र उन्हें छोटे पड़ गए तब पार्वती जी उनके लिए दूसरे वस्त्रों के इंतज़ाम में लग गयी।
जब असावरी देवी ने पार्वती जी को छिपा लिया
एक दिन असावरी देवी को मज़ाक सूझा और उन्होंने पार्वती जी को अपने पैरों की दरारों में छिपा लिया। तभी भोलेनाथ पार्वती जी को ढूंढते हुए असावरी देवी के पास पहुंचे और उनसे पूछने लगे कि उन्होंने पार्वती जी को देखा, इस पर उन्होंने भोलेनाथ से झूठ कह दिया कि उन्हें इस बारे में नहीं पता। तब शिव जी असावरी देवी से बोले कि कहीं यह उनकी कोई शरारत तो नहीं किन्तु असावरी देवी साफ़ मुकर गयीं। उसके बाद जैसे ही उन्होंने अपना पैर ज़मीन पर पटका देवी पार्वती उसमें से निकल कर बाहर गिर गयी।
क्रोधित हो गयी पार्वती जी
असावरी देवी की इस हरकत से देवी पार्वती बहुत क्रोधित हो उठी और शिव जी से कहा कि उनसे बड़ी भूल हो गई कि उन्होंने एक ननंद की इच्छा की। पार्वती जी ने शिव जी से आग्रह किया कि वे फ़ौरन असावरी देवी को ससुराल भेज दें। तब महादेव ने अपनी बहन को हमेशा के लिए कैलाश से विदा कर दिया।
गोमती चक्र का नाम हम सबने सुना है। तंत्र शास्त्र से लेकर वास्तु शास्त्र तक सभी ने इसके विशेष फायदे बताए हैं। आइए जानते हैं, गोमती चक्र के यह 5 चमत्कारी टोटके जो आपके जीवन की दिशा बदल देंगे। गोमती चक्र गोमती नदी में पाए जाने वाले अल्पमोली कैल्शियम मिश्रित पत्थर होते हैं। इनके एक तरफ उठी हुई सतह होती है, और दूसरी तरफ चक्र होता है। इन चक्रों को विष्णु-लक्ष्मी जी का प्रतीक माना जाता है।
धर्म और त्योहार हम लोगों को एकजुट कर देते हैं। धर्म का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये हमें सच्चाई और निष्ठा का मार्ग दिखाता है। धार्मिक रीतियों को लेकर हर व्यक्ति अपनी सहनशक्ति के अनुसार इनका पालन करता है। किसी भी धर्म में रीतियों को मानने के लिए मजबूर नहीं किया गया है और ये हमारी मर्ज़ी है कि हमें अपने धर्म की रीतियों को मानना है या नहीं। सभी धर्म एक जैसे ही हैं बस उनके रिवाज़ अलग हैं। दुनियाभर में मनाए जाने वाले त्योहारों में मुस्लिमों के भी कुछ त्योहार हैं जो वो बड़ी धूमधाम और उत्साह से मनाते हैं। मुस्लिम धर्म के लोगों की भी अपनी कुछ रीतियां है जिनका वो पालन करते हैं। मुस्लिमों का सबसे प्रमुख त्योहार ईद-उल-फितर है जो हर साल मनाया जाता है। इस साल इसका जश्न 16 जून यानि आज पूरे देशभर में मनाया जा रहा है। ये त्योहार चांद से जुड़ा हुआ है इसीलिए ईद के दिन चांद का बहुत महत्व होता है। अाप मुस्लिम हैं या नहीं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन आपको ईद के चांद के महत्व के बारे में पता होना चाहिए। मुस्लिमों के लिए चंद्रमा बहुत ज़्यादा महत्व रखता है और ये उनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है क्योंकि इससे उनकी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण दिन की शुरुआत होती है। तो चलिए जानते हैं ईद के चांद के बारे में –
मुस्लिम धर्म के अनुयायी विशेष पंचांग को मानते हैं जो कि चंद्रमा की उपस्थिति और अवलोकन द्वारा निर्धारित किया गया है। रमादान के 29 दिनों के बाद ईद का चांद नज़र आता है। इस महीने की शुरुआत और अंत में चांद को देखा जाता है।
रमदान के महीने का खत्म होना भी मुस्लिमों के लिए बहुत महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। मुस्लिम धर्म के लोग इस दिन बड़ी बेसब्री से आसमान में चांद के निकलने का इंतज़ार करते हैं। 29 दिन के रमज़ान महीने के पूरा होने के बाद चांद दिखाई देता है। अगर बादल हो तो उस दिन पृथ्वी के कुछ हिस्सों में चांद दिखाई नहीं दे सकता है लेकिन इससे इस दिन का महत्व कम नहीं होता है। इस दिन मुस्लिम अनुयायी चाहे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना हो वो चांद का दीदार ज़रूर करते हैं। पहले दिन से रमज़ान के 29वें दिन के बाद ईद का त्योहार मनाया जाता है।
रमादान के महीने में मुस्लिम धर्म के लोग 29 दिन तक रोज़ा रखते हैं और ये बहुत मुश्किल होता है। लोग रोज़ा रखने से सेहत को होने वाले फायदों पर यकीन रखते हैं और मुस्लिमों में इस परंपरा को बहुत शुभ माना जाता है। रमादान के महीने में 29वें दिन चांद देखकर रोज़ा तोड़ा जाता है।
दुनियाभर के मुसलमान ईद का त्योहार बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। रमादान के महीने में रोज़ा रखने के बाद मुसलमान ईद का त्योहार बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। ईद पर चांद देखने का महत्व बढ़ता जा रहा है और इस दिन त्योहार रात को मनाया जाता है। रमादान की शुरुआत से ही मुस्लिम लोग 29वें दिन चांद के निकलने का इंतज़ार करने लगते हैं।
इस्लाम में चांद के दीदार को बहुत महत्व दिया गया है और ये इस्लामिक महीने रमज़ान के अंत और शव्वाल के शुरु होने का प्रतीक है। चंद्रमास की शुरुआत में नया चांद देखा जाता है और ईद का चांद मुसलमानों में बहुत महत्व रखता है।
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