Wednesday, 09 July 2025

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मौली क्या है, क्यों है इसका इतना धार्मिक महत्व......

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येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल।। मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: कहते हैं।

मौली का अर्थ : 'मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
 
मौली बांधने का मंत्र :
‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
 
कैसी होती है मौली? : मौली कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती है जिसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।
 
कहां-कहां बांधते हैं मौली? : मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है।
 
 
मौली बांधने के नियम...
*शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है।

*कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

*मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
 
कब बांधी जाती है मौली? :
*पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।

*हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें।

*प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती है।
 
* मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है।
 
* किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी बांधते हैं।

* किसी देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए भी बांधते हैं।

* मौली बांधने के 3 कारण हैं- पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक।

* किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।* में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।
* इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है।
 
संकटों से रक्षा करती है मौली..
 
मौली करती है रक्षा : मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।
 
इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
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परवरदिगार का अनमोल तोहफा शबे कद्र की रात...

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रमजान के पाक महीने में गुजार बंदे पहली रात से ही अपने माबूद (पूज्य) को मनाने, उसकी इबादत करने मे जुट जाते हैं। इन नेक बंदों के लिए परवरदिगार का अनमोल तोहफा है। कुरआन में इसे हजार महीनों से श्रेष्ठ रात बताया गया है। जिसकी बाबत हजरत मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया कि शब-ए-कद्र अल्लाह ताला ने मेरी उम्मत (अनुयायी) को अता फरमाई है, (यह) पहली उम्मतों को नहीं मिली। इसकी एक वजह यह भी है कि पिछली उम्मतों की उम्र काफी होती थी। वह लोग बरसों तक लगातार अपने रब की इबादत किया करते थे।
 
के साथियों ने जब उन लोगों की लंबी इबादतों के बारे में सुना तो उन्हें रंज हुआ कि इबादत करने में वह उन लोगों की बराबरी नहीं कर सकते, सो उसके बदले में यह रात अता यानी प्रदान की गई, जिसमें इबादत करने का बड़ा भारी सवाब है। श्रद्घा और ईमान के साथ इस रात में इबादत करने वालों के पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। आलिमों का कहना है कि जहां भी पिछले गुनाह माफ करने की बात आती है वहां छोटे गुनाह बख्श दिए जाने से मुराद होती है। दो तरह के गुनाहों कबीरा (बड़े) और सगीरा (छोटे) में, कबीरा गुनाह माफ कराने के लिए खुसूसी तौबा लाजमी है। इस यकीन और इरादे के साथ कि आइंदा कबीरा गुनाह नहीं होगा।
 
रमजान में महीने भर तौबा के साथ मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं ताकि इंसान के सारे गुनाह धुल जाएं और सारी दुनिया का वाली (मालिक) राजी हो जाए। रसूलुल्लाह ने शब-ए-कद्र के लिए रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29 रात बताई। इन रातों में रातभर मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं। जिनमें निफिल नमाजें पढ़ना, कुरआन पढ़ना, मुख्तलिफ तसबीहात (जाप) पढ़ना वगैरा अहम है। निफिल अनिवार्य नमाज नहीं है। यह रब को राजी करने के लिए पढ़ी जाती है।
 
हजरत मुहम्मद साहब उनके साथी और दीगर बुजुर्ग हस्तियां अनिवार्य नमाजों के साथ दिन विशेषतः रातों में निफिल नमाजों में मशगूल रहा करते थे। रमजान में यह नमाजें खुसूसी तवज्जो के साथ पढ़ी जाती हैं। अनिवार्य नमाजों के अलावा इन नमाजों में पूरा कुरआन पढ़ने की परंपरा आज भी जारी है। इतने शौक और लगन के साथ कि शब-ए-कद्र वाली पांच रातों के साथ ही दीगर पांच रातें (22, 24, 26, 28, 30) भी इबादत में गुजार दी जाती हैं।
 
पैगंबर साहब के एक साथी ने शब-ए-कद्र के बारे में पूछा तो आपने बताया कि वह रमजान के आखिर अशरे (दस दिन) की ताक (विषम संख्या) रातों में है। आप ने शब-ए-कद्र पाने वालों को एक मख्सूस दुआ भी बताई। जिसका मतलब है 'ऐ अल्लाह तू बेशक माफ करने वाला है और पसंद करता है माफ करने को, बस माफ कर दे मुझे भी।' रमजान में खुदा की रहमत पूरे जोश पर होती है। यानी हजार महीनों से बेहतर रात। इस रात में कुरआन उतारा गया और इसी शब में अनगिनत लोगों को माफी दी जाती है इसीलिए पूरी रात जागकर इबादतें की जाती हैं।
 
खासकर शब-ए-कद्र में यह कई गुना बढ़ जाती है। गुनाहगारों के लिए तौबा के जरिए पश्चाताप करने का और माफी मांगने का अच्छा मौका होता है। छोटी-सी इबादत जरा सी नेकी पर ढेरों सवाब मिलता है। इस रात से पहले वाले दिन का रोजा हमारे यहां बड़ा रोजा कहलाता है, जिसकी रात शबे-कद्र होती है। 
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अब अपनी फिंगरप्रिंट से जानिए अपना व्‍यक्‍तित्‍व.....

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किसी भी इंसान के व्‍यक्‍तित्‍व के बारे में जानने के कई तरीके हैं। किसी व्‍यक्‍ति के बाहरी एवं शारीरिक बनावट से भी उसके व्‍यवहार और स्‍वभाव के बारे में गहरे राज़ पता किए जा सकते हैं। आज इस लेख के ज़रिए हम आपको विभिन्‍न तरीके की फिंगरप्रिंट्स के बार में बताने जा रहे हैं। ये विभिन्‍न तरह की फिंगरप्रिंट्स किसी भी तरह के इंसान के व्‍यक्‍तित्‍व के राज़ खोल सकती हैं। विज्ञान की मानें तो मुख्‍य तौर पर 3 तरह के फिंगरप्रिंट होते हैं और इनकी विभिन्‍नता से आप किसी इंसान के व्‍यक्‍तित्‍व एवं पर्सनैलिटी के बारे में जान सकते हैं। लेकिन इसकी शुरुआत करने से पहले ये जान लेते हैं कि आपका कौन-सा फिंगरप्रिंट है।

लूप्‍स फिंगरप्रिंट

अगर आपकी उंगलियों में लूप्‍स हैं तो इसका मतलब है कि आप उदार हैं। इस तरह के फिंगरप्रिंट वाले लोग बहुत दयालु और शांत होते हैं। ये संतुलित व्‍यक्‍तित्‍व वाले होते हैं। आप दूसरों का आदर और सम्‍मान करने वाले होते हैं। आप आसानी से दोस्‍त बना लेते हैं और आपके कुशल व्‍यवहार के कारण ही लोग आपके प्रति आकर्षित होते हैं।

स्‍वर्ल टाइप

अगर आपके स्‍वर्ल टाइप फिंगरप्रिंट हैं तो आपको गुस्‍स बहुत जल्‍दी आता है। इन लोगों को क्रोध बहुत आता है और ये बात-बात पर बिगड़ पड़ते हैं। वहीं दूसरी ओर ये आपके साफ दिल का भी संकेत देता है। आप कड़वी यादों को संजोकर रखने वालों में से नहीं हैं। आपके दिल में जो भी होता है कह देते हैं। दूसरों की पीठ पीछे बोलना आपकी आदत नहीं है।

कर्व टाइप

अगर आपकी उंगलियों पर कर्व हैं तो आप थोड़े से तुनकमिजाजी हो सकते हैं। इस तरह के फिंगरप्रिंट वाले लोग आत्‍मविश्‍वासी और ऊर्जा से भरपूर होते हैं। तो अगर आपके फिंगरप्रिंट इस तरह के हैं तो आप जिद्दी हो सकते हैं और अपनी बात पर अड़े रहने वालों में से हो सकते हैं। आप जिस पर भी भरोसा करते हैं वो आपको धोखा दे देता है। इसके अलावा अन्‍य और प्रकार के भी फिंगरप्रिंट्स होते हैं। तो चलिए उनके बारे में भी जान लेते हैं।

अल्‍नर लूप

अगर आपके फिंगरप्रिंट्स पर अल्‍नर लूप्‍स हैं तो आपके व्‍यवहार में विभिन्‍नता पाई जाती है। इसमें छोटी अंगुली त्रिकोण बिंदु के साथ पानी की तरह बहती हुई दिखती है। अगर आपका फिंगरप्रिंट ऐसा है तो आप उन लोगों में से एक हैं जो बहुत कुशल और अपने ही शेड्यूल से चलने वाले होते हैं। इसके अलावा आप अपने आसपास की खबर रखने मे निपुण होते हैं। आप आज में जीना पंसद करते हैं और यही आपको एकदम खास और हटकर बनाता है।

रेडिएल लूप

अगर आपका रेडिएल लूप है तो आप बहुत आत्‍मनिर्भर रहने वाले इंसान हैं। इसमें रेखाओं का प्रवाह अंगूठे ही तरफ होता है। आप अपनी सोच के मुताबिक चलते हैं और विपरीत चीज़ों से जुड़े सवाल करने में बिलकुल भी हिचकिचाते नहीं हैं।

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ये आठ आत्माएं आज भी करती हैं धरती पर वास....

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भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि इस दुनिया में कुछ भी अमर नहीं होता जो भी संसार में आया है उसे एक न एक दिन वापस जाना ही है। अच्छे कर्म केवल मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलवाते हैं लेकिन उसे अमर नहीं बनाते। इस संसार में कई बुरी आत्माओं और असुरों ने मृत्यु पर जीत हासिल करने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन उनके हाथ सिर्फ असफलता लगी। ठीक उसी प्रकार कुछ देवता और पवित्र आत्माओं ने भी प्रयास किया और कुछ को अमर होने का वरदान प्राप्त हुआ। जी हाँ कहते हैं कुल आठ आत्माएं हैं जो आज भी अमर हैं और इस संसार में हमारे साथ वास करती हैं। इन आठ आत्माओं को अष्ट चिरंजीवी कहा जाता है। इन आठ आत्माओं के नाम इस प्रकार है बजरंगबली, भगवान परशुराम, ऋषि वेदव्यास, ऋषि कृपाचार्य, अश्वथामा और विभीषण। हालांकि इनमें से सभी देवता नहीं है, इस सूची में कुछ राक्षस भी शामिल हैं। आज हम उन्हीं अमर आत्माओं के बारे में बात करने जा रहे हैं। आइए जानते हैं उन आठ आत्माओं के विषय में।

अश्वत्थामा

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र है। इन्होंने महाभारत में पांडवों की ओर से कौरवों के साथ युद्ध किया था। युद्ध के दौरान क्रोध में आकर अर्जुन और अश्वत्थामा ने कौरवों पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया था। ब्रह्मास्त्र में वह शक्ति होती है जिससे पूरा संसार भस्म हो सकता है। तब महिर्षि वेद व्यास ने उन्हें आज्ञा दी कि वे दोनों अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लें। व्यास की आज्ञा का पालन करते हुए अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया किन्तु अश्वत्थामा ऐसा करने में असफल रहें। क्योंकि उनके पिता से यह विद्या उन्हें नहीं प्राप्त हुई थी। साथ ही वे अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग केवल एक बार ही कर सकते थे बार बार नहीं। इस बात से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दे दिया कि उन्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी और उनकी आत्मा सदैव पृथ्वी पर भटकती रहेगी। कहते हैं श्री कृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के एक शिव मंदिर में आज भी अश्वत्थामा महादेव की पूजा करने आते हैं।

हनुमान जी

कहते हैं त्रेता युग में श्री राम की मदद करने के लिए स्वयं शिव जी ने हनुमान रूप में धरती पर जन्म लिया था। हनुमान जी उन आठ लोगों में शामिल हैं जिन्हें अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। उन्हें यह वरदान श्री राम और माता सीता ने दिया था। कहते हैं कलयुग में बजरंबली गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं इस पर्वत पर बजरंबली का एक मंदिर भी बना हुआ है।

महाबलि

महाबलि असुरों का राजा था। उसे ब्रह्मांड की पूरी संपत्ति में से एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लेने का बहुत अभिमान हो गया था। उसने एक समारोह का आयोजन किया जिसमें उसने सभी दिव्य और पवित्र आत्माओं को आमंत्रित किया। साथ ही यह ऐलान किया कि समारोह में मौजूद सभी की एक इच्छा को वह पूरा करेगा। भगवान विष्णु ने अपना पांचवां अवतार वामन के रूप में लिया था। अपने इस अवतार में उन्होंने एक बौने ऋषि का रूप धारण किया था। जब महाबलि उनके समीप पहुंचा और उनसे उनकी इच्छा पूछी तो ऋषि वामन ने उससे अपने तीन कदमों के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। इस बात को सुनकर महाबलि ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और उसने ऋषि वामन को अपने तीन पगों के बराबर की भूमि लेने के लिए कहा। इतना सुनते ही ऋषि वामन ने एक विराट रूप धारण कर लिया और पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनो लोकों को अपने कदमों से नाप लिया। बाद में ऋषि वामन ने महाबलि के उदार स्वभाव से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया, साथ ही उसे अमर होने का भी वरदान दिया।

भगवान परशुराम

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से भगवान परशुराम के तौर पर छठे अवतार के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। बचपन में परशुराम का नाम राम था लेकिन शिव जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें एक फरसा दिया था जिसके बाद वे राम से परशुराम कहलाने लगे। उन्होंने सभी क्षत्रिय राजाओं का वध करके धरती से पाप और बुराई का नाश कर दिया था। परशुराम ने अहंकारी और दुष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार कर किया था। तब महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका था। बाद में परशुराम पृथ्वी छोड़कर महेन्द्रगिरि पर्वत पर चले गए थे। वहां उन्होंने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की जिसके कारण आज उस स्थान को उनका निवास्थल कहा जाता है। परशुराम ने श्री राम से पहले जन्म लिया था लेकिन चिरंजीवी होने के कारण वे उस वक़्त भी जीवित थे।

विभीषण

विभीषण असुरों के खानदान से था। वह लंका पति रावण का भाई था। रावण जिसने सीता जी का अपहरण किया था, विभीषण को अपना भाई समझ कर अपनी ही मृत्यु का रहस्य उसके सामने उजागर कर दिया था। उसने कई बार रावण को चेतावनी दी की वह पाप का मार्ग छोड़ दे और श्री राम की उपासना करने लगे किन्तु रावण बहुत ही अहंकारी था उसने अपने भाई की एक न सुनी। असुरों के परिवार से होने के बावजूद विभीषण एक पवित्र आत्मा था इसलिए उसने पाप और अहिंसा का मार्ग छोड़ कर श्री राम की सेवा को चुना और हमेशा सत्य का ही साथ दिया। उसने श्री राम को रावण की मृत्यु से जुड़ा रहस्य बताया जिससे प्रसन्न होकर श्री राम ने उसे अमर होने का वरदान दिया था।

वेद व्यास

ऋषि वेद व्यास ने ही चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद), सभी 18 पुराणों, महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना की थी। ये ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए। कहते हैं व्यास की माता ने बाद में शान्तनु से विवाह कर लिया था, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य। मान्यताओं के अनुसार वेद व्यास भी कई युगों से जीवित है।

कृपाचार्य

कृपाचार्य एक ऋषि होने के साथ साथ गुरु भी थे। उन्होंने महाभारत में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। वे ऋषि गौतम के पौत्र और ऋषि शरद्वान के पुत्र थे क्योंकि उन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त था इसलिए युद्ध में उनकी मृत्यु नहीं हुई और वे उन अठारह लोगों में से एक थे जो युद्ध के बाद जीवित बचे थे।

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