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नई दिल्ली: संत कबीर दास ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया लेकिन जीवन का अंतिम समय मगहर में बिताया था. मगहर संत कबीर नगर जिले में छोटा सा कस्बा है. मगहर के बारे में कहा जाता था कि यहां मरने वाला व्यक्ति नरक में जाता है. कबीर दास ने इस प्रचलित धारणा को तोड़ा और मगहर में ही 1518 में देह त्यागी. मगहर के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि कबीर ने अपनी रचना में इसका उल्लेख किया है, ''पहिले दरसन मगहर पायो, पुनि कासी बसे आई'' यानी काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा.
कबीर का अधिकांश जीवन काशी में व्यतीत हुआ. वे काशी के जुलाहे के रूप में ही जाने जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद कबीर दास के शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था. हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से. ऐसा कहा जाता है कि जब उनके शव पर से चादर हटाई गई, तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा. बाद में आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने. मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया.
मगहर में कबीर की समाधि है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मगहर में आज कबीर दास की समाधि पर चादर चढाई और पुष्प अर्पित किये. उसके बाद उन्होंने 24 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली संत कबीर अकादमी का शिलान्यास किया.
शिलान्यास के बाद मोदी ने एक जनसभा में कहा कि, कबीर अपने कर्म से वन्दनीय हो गये. कबीर धूल से उठे थे लेकिन माथे का चंदन बन गये.
बाबा अमरनाथ यात्रा के लिए बुधवार को पहला जत्था रवाना हो चुका है।
बाबा अमरनाथ यात्रा के लिए बुधवार को पहला जत्था रवाना हो चुका है। इससे पहले 'पहले आओ-पहले पाओ' की तर्ज पर 1 मार्च से रजिस्ट्रेशन शुरू हुए थे। यात्रा 26 अगस्त तक चलेगी। मौसम और आतंकी हमलों की चुनौतियों को देखते हुए श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने पुख्ता बंदोबस्त किए हैं। एक नजर यात्रा से जुड़ी जरूरी बातों पर -
रजिस्ट्रेशन: www.shriamarnathjishrine.com से रजिस्ट्रेशन फॉर्म डाउनलोड किए जा सकते हैं। फॉर्म के साथ अधिकृत डॉक्टर का हेल्थ सर्टिफिकेट और चार पासपोर्ट साइज फोटो (तीन यात्रा परमिट के लिए और एक आवेदन फॉर्म के लिए) जरूरी हैं। यह पूरी तरह फ्री है। अधिकांश लोग ग्रुप में रजिस्ट्रेशन करवाते हैं। ग्रुप रजिस्ट्रेशन में कम से कम 5 यात्री होना जरूरी है। ग्रुप रजिस्ट्रेशन के लिए 150 रुपए शुल्क रखा गया है। इसमें डाक खर्च शामिल नहीं है। अब तक करीब एक लाख लोग रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं।
कौन नहीं कर सकते यात्रा: 13 वर्ष से कम या 75 वर्ष से ऊपर के नागरिक। छह सप्ताह से ज्यादा गर्भ वाली महिलाएं।
रूट: यात्रा के दो रूट हैं- बालटाल और चंदनवाड़ी। दोनों रूट पर एक साथ यात्रा चलेगी। रोजाना 7500-7500 श्रद्धालुओं को दोनों रूटों से रवाना किया जाएगा। हालात देखते हुए इस संख्या में बदलाव होता रहता है। बालटाल और चंदनवाड़ी तक बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। आगे का सफर पैदल तय करना होगा।
कैसे पहुंचे: पहला रूट - जम्मू से पहलगाम (315 किमी) और पहलगाम से चंदनवाड़ी (16 किमी) का रास्ता टैक्सी या बस से तय किया जा सकता है। इसके बाद का करीब 28 किमी का सफर पैदल तय करना होगा।
दूसरा रूट - यह थोड़ा मुश्किल है। इसमें जम्मू से श्रीनगर (262 किमी) होते हुए बालटाल (61 किमी) पहुंचा जा सकता है। इसके बाद 14 किमी की चढ़ाई वाला हिस्सा ट्रैकिंग करते हुए पार करना होता है।
खान-पान का बंदोबस्त: पूरे रास्ते चाय स्टाल और छोटे रेस्त्रां हैं। श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे अपने साथ बिस्किट, टॉफी जैसी चीजें लेकर चलें। ठंड से बचाने के लिए लकड़ी या गैस भी सहज उपलब्ध है।
नहीं चलेंगे मोबाइल: यात्रा के दौरान मोबाइल नहीं चलेंगे। आतंकी हमलों से बचने के लिए मार्ग पर 20 जैमर लगाए गए हैं।
एक लाख का बीमा: श्राइन बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार हर रजिस्टर्ड यात्री का एक लाख रुपए का बीमा है।
खुद को यूं करें तैयार: बाबा अमरनाथ के दर्शक की इच्छा रखने वालों को एक माह पहले से तैयारी शुरू कर देना चाहिए। श्रद्धालु एक माह पहले से सुबह और शाम चार से पांच किमी पैदल करना शुरू कर दें। शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने वाले प्राणायाम करें।
ये सामान लेना न भूलें: गर्म कपड़े, छोटा छाता जिसे बेल्ट से सिर पर लगाया जा सके, विंडचीटर, रेनकोट, वाटरप्रूफ ट्रैकिंग जूते, टॉर्च, छड़ी, मंकी कैप, ग्लब्स, जैकेट, ऊन के मोजे, वाटरप्रूफ ट्राउजर।
महिलाओं के लिए खास: यात्रा में शामिल होने वाली महिलाओं को साड़ी नहीं पहनने की सलाह दी गई है। उनके लिए सलवार कमीज, पैंट-शर्ट अथवा ट्रैक सूट सुविधाजनक रहेंगे।
31 जनवरी 2018 को इस साल का सबसे पहला चंद्र ग्रहण लगा था जिसके बाद 27 जुलाई 2018 को दूसरा चन्द्र ग्रहण लगने जा रहा है। यह इस साल का नहीं बल्कि पूरे 21वीं सदी का सबसे बड़ा और पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। अगर जानकारों की मानें तो यह विशेष संयोग करीब 104 साल बाद बन रहा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को पड़ने वाला यह खास चंद्रग्रहण करीब 1 घंटा 43 मिनट तक रहने वाला है। यह ग्रहण भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी दिखाई देगा जैसे दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, आस्ट्रेलिया और यूरोप। इस बार यह ब्लड मून होगा। यह ग्रहण 31 जनवरी के ग्रहण से करीब 40 मिनट ज़्यादा लम्बा होगा। आषाढ़ पूर्णिमा ग्रहण प्रारंभ होने के तीन प्रहर यानी 9 घंटा पहले ही सूतक लग जाएगा इसलिए कुछ बातों का आपको विशेष ध्यान रखना होगा। इस बार यह ग्रहण कुछ ख़ास होने वाला है जिसका प्रभाव सभी 12 राशियों पर शुभ अशुभ दोनों ही रूपों से पड़ने वाला है।
इस लेख में हम आपको चंद्र ग्रहण से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देंगे तो चलिए जानते हैं क्यों है खास यह चन्द्र ग्रहण।
ब्लड मून चन्द्र
ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया के कारण पृथ्वी से चाँद पूरी तरह काला दिखाई देता है। वही कुछ समय के लिए यह पूरा लाल हो जाता है इसलिए इसे ब्लड मून कहते हैं। वैसे तो साल में दो बार चन्द्रमा पूरा दिखाई देता है दूसरी बार जब चाँद दिखाई पड़ता है तो उसे ब्लू मून कहते हैं।
क्या है चन्द्र ग्रहण
1. सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने के कारण सूर्य की पूरी रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है तब इसे चंद्रग्रहण कहते हैं।
2. सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा का एक सरल रेखा में होना चंद्रग्रहण की स्थिति बनाता है।
3. चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा की रात में ही होता है। एक साल में कम से कम तीन बार पृथ्वी के उपछाया से चाँद गुजरता है और तब चंद्र ग्रहण लगता है।
4. चंद्रग्रहण भी आंशिक और पूर्ण दोनों होता है।
सूतक काल में बरती जाने वाली सावधानियां
1. हो सके तो घर से बाहर बिल्कुल न निकलें। वैसे बच्चों और बुजुर्गों के लिए कोई खास नियम नहीं होता लेकिन फिर भी इस दौरान घर से बाहर निकलने से बचें।
2. देवी देवताओं की मूर्तियों को ढक कर ही रखें। भूल कर भी उन्हें स्पर्श न करें।
3. इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है।
4. गर्भवती स्त्रियों को अपना ख़ास ध्यान रखना चाहिए। अगर आप गर्भवती हैं तो घर से बाहर न निकले इसके अलावा कटाई, सिलाई, बुनाई आदि जैसे कार्य बिल्कुल न करें।
5. खाना, पीना, नाखून काटना आदि जैसे कार्यों को इस दौरान वर्जित माना गया है।
6. कुंवारी कन्याएं ग्रहण के दौरान यदि घर से बाहर निकलती है या फिर चंद्रमा देखती है तो उनके विवाह में कई प्रकार की बाधाएं आती हैं।
7. बचे हुए खाने में या फिर खाने पीने की सभी चीज़ों में तुलसी के पत्ते ज़रूर डाल दें।
इन राशियों पर पड़ेगा शुभ प्रभाव
मेष: मेष राशि वालों पर इस ग्रहण का प्रभाव शुभ रहेगा। आपको किसी बड़ी परेशानी से छुटकारा मिल जाएगा। साथ ही आपको सभी चिंताओं से भी मुक्ति मिल जाएगी।
सिंह: इस राशि के जातकों को अपने सभी प्रयासों में सफलता मिल जाएगी साथ ही आपके मान सम्मान में भी वृद्धि होगी।
वृश्चिक: यह ग्रहण वृश्चिक राशि वालों के लिए बेहद शुभ है। आपको कोई शुभ समाचार की प्राप्ति हो सकती है।
मीन: मीन राशि वालों को किसी बड़ी मानसिक चिंता से मुक्ति मिल जाएगी और आपको धन लाभ होने का भी योग है।
इन राशियों के लिए यह ग्रहण है अशुभ
मिथुन: मिथुन राशि वालों के लिए यह ग्रहण अशुभ रहने वाला है। कोई शारीरिक कष्ट होने की संभावना है।
तुला: इस राशि के जातकों को सावधान रहने की ज़रुरत है। आप किसी भी तरह के वाद विवाद से बचें नहीं तो आपको अपमान सहना पड़ सकता है।
मकर: आपकी मानिसक चिंता बढ़ेगी साथ ही आपको धन हानि होने की सम्भावना है।
कुम्भ: अपने छुपे हुए दुश्मनों से सावधान रहे क्योंकि आपके खिलाफ कोई बड़ी साज़िश रची जा सकता है। साथ ही आपको व्यापार में भी कोई भारी नुकसान हो सकता है।
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भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई। जैसे, वानर, गरूड़, रीछ आदि। माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मानव की काया विशालकाय होती थी। मनुष्य की ऊंचाई 21 फिट के लगभग थी।
वानर जाति : वानर को बंदरों की श्रेणी में नहीं रखा जाता था। 'वानर' का अर्थ होता था- वन में रहने वाला नर। ऐसे मानव जिनकी पूंछ होती थी और जिनके मुंह बंदरों जैसे होते थे। वे मानव भी सामान्य मानवों के साथ घुल-मिलकर ही रहते थे। उन प्रजातियों में 'कपि' नामक जाति सबसे प्रमुख थी। जीवविज्ञान शास्त्रियों के अनुसार 'कपि' मानवनुमा एक ऐसी मुख्य जाति है जिसके अंतर्गत छोटे आकार के गिबन, सियामंग आदि आते हैं और बड़े आकार में चिम्पांजी, गोरिल्ला और ओरंगउटान आदि वानर आते हैं। इस कपि को साइंस में होमिनोइडेया (hominoidea) कहा जाता है।
हनुमानजी वानरों की कपि जाति से थे। भारत के दंडकारण्य क्षेत्र में वानरों और असुरों का राज था। हालांकि दक्षिण में मलय पर्वत और ऋष्यमूक पर्वत के आसपास भी वानरों का राज था। इसके अलावा जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, मलेशिया, माली, थाईलैंड जैसे द्वीपों के कुछ हिस्सों पर भी वानर जाति का राज था। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है।