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आजकल के इस मॉडर्न ज़माने में नमस्कार करना या फिर किसी को झुककर चरण स्पर्श करना तो जैसे हमारी नयी पीढ़ी के लिए बस औपचारिकता मात्र ही रह गयी है लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो इस ज़माने में भी नमस्कार करने को किसी का सम्मान करना मानते हैं। इन्हीं में से कुछ लोग साष्टांग दंडवत प्रणाम को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। साष्टांग नमस्कार भी नमस्कार का ही एक रूप है जिसमें शरीर के सभी अंग ज़मीन को छूते हैं। आमतौर पर इस नमस्कार को दण्डकार नमस्कार और उद्दंड नमस्कार भी कहा जाता है। यहां दंड का अर्थ होता है डंडा इसलिए इस प्रणाम को करने के लिए व्यक्ति ज़मीन पर बिल्कुल डंडे के समान लेट जाता है।
ऐसी मुद्रा के पीछे का मतलब होता है कि जिस प्रकार ज़मीन पर गिरा हुआ डंडा बिल्कुल अकेला और मजबूर होता है वैसे ही मनुष्य भी दुखी और लाचार है। इस वजह से ही वह भगवान की शरण में आया है और उनसे मदद के लिए प्रार्थना कर रहा है। ऐसे नमस्कार करके वह ईश्वर तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करता है। कुछ मायनों में इस नमस्कार का मतलब होता है अपने अहंकार का त्याग करना। कहते हैं जब हम खड़े होकर ज़मीन पर गिर जाते हैं तब हमें चोट लगती है, ठीक वैसे ही बैठे बैठे भी गिरने पर हम चोटिल हो जाते है किन्तु साष्टांग नमस्कार में गिरने और चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं होती। साष्टांग नमस्कार से मनुष्य के अंदर विनम्रता के भाव आते हैं। जब कोई दूसरा हमारा सिर झुकाता है तो इससे हमारा अपमान होता है किन्तु जब हम स्वयं अपना सिर झुकाते हैं तो वह हमारे लिए सम्मान की बात होती है।
हिंदू धर्म में नमस्कार का बड़ा ही महत्व होता है। हम अकसर अपने से बड़ों या फिर किसी संत पुरुष के आगे झुककर उन्हें नमस्कार करते हैं। हिंदू धर्म में नमस्कार करना यानी सम्मान देना होता है। जब हम किसी के आगे अपना सिर झुकाते हैं तो वह इंसान हमारा आभार स्वीकार करता है और ईश्वर से हमारे लिए सुख और समृद्धि की कामना करता है।
साष्टांग नमस्कार में आपके शरीर के आठ अंग ज़मीन को टच करते हैं। वो आठ अंग होते हैं छाती, सिर, हाथ, पैर के पंजे, घुटने, शरीर, दिमाग और वचन। आमतौर पर यह नमस्कार पुरुष ही करते हैं।
सबसे पहले दोनों हाथ छाती से जोड़कर कमर से झुके फिर पेट के बल लेटकर दोनों हाथ ज़मीन पर टिकाएं। उसके बाद पहले दायां फिर बायां पैर पीछे की ओर ले जाकर तानकर बिल्कुल सीधे लेट जाएं। आप ऐसे लेटें कि आपकी छाती, हथेलियां, घुटने और पैरों की उंगलियाँ ज़मीन पर टिक जाएं। अब दोनों आँखें बंद कर लें और सच्चे मन से ईश्वर को याद करें।
शास्त्रों के अनुसार औरतों को यह नमस्कार करने की मनाही होती है क्योंकि इस मुद्रा में उनके स्तन और गर्भाशय ज़मीन को छूते हैं। ज़ाहिर है महिलाएं बच्चे को स्तनपान कराती है और उनके गर्भ में नया जीवन पलता है इसलिए इनके इन अंगो को ज़मीन पर स्पर्श नहीं कराना चाहिए।
ऐसे में महिलाएं पंचांग नमस्कार कर सकती हैं। इस नमस्कार में स्त्रियों को अपनी हथेलियों के साथ-साथ घुटनों को भी ज़मीन से छूना पड़ता है।
साष्टांग नमस्कार केवल ईश्वर की शरण में जाकर उन्हें याद करना ही नहीं होता बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। जी हाँ, इस नमस्कार से हमारे स्पाइन में लचीलापन और सुधार आता है। इससे मांसपेशियां पूरी तरह से खुल जाती हैं साथ ही पैरों, कन्धों और माँसपेशियों में मज़बूती भी आती है। इस मुद्रा से मनुष्य के अंदर सकारात्मकता आती है और उसके अहंकार का भी नाश हो जाता है। इतना ही नहीं वह खुद को ज़मीन से जुड़ा हुआ भी महसूस करने लगता है।
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