Sunday, 19 October 2025

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World Senior Citizens Day 2018 : उम्र से जुड़ी मैक्यूलर डिजनरेशन (एएमडी) का समय पर इलाज न कराने से बुजुर्गों को अंधापन भी हो सकता है......

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एएमडी जैसी रेटिना से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण लोगों में जानकारी के अभाव के साथ लक्षणों की पहचान न कर पाना है, जिसकी वजह से बुजुर्गों की आंखों की रोशनी बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाती है.

बुजुर्गों में में शारीरिक क्षमता कम होने के साथ उम्र से जुड़े कई रोग भी घेर लेते हैं. इसमें सबसे गंभीर आंखों की बीमारियां है क्योंकि रेटिना की बीमारियों, जैसे उम्र से जुड़ी मैक्यूलर डिजनरेशन (एएमडी) का समय पर इलाज न कराने से बुजुर्गों को अंधापन भी हो सकता है. अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस (World Senior Citizens Day 2018) के मौके पर लोगों को यह बताना महत्वपूर्ण है कि एएमडी ग्रस्त रोगियों में डिप्रेशन का स्तर सामान्य बुजुर्गों और अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्गों के मुकाबले काफी ज्यादा है. वैज्ञानिकों ने उम्र से जुड़े मैक्यूलर डिजनरेशन से जुड़े डिप्रेशन, विजअल एक्यूटी, कोमोरबिडी एंड डिसएब्लेटी और उम्र से जुड़े मैक्यूलर डिजनरेशन का विजन पर पड़ने वाली कार्यक्षमता के इफेक्ट्स ऑफ डिप्रेशन की दिशा में रिसर्च की तो पाया कि एक तिहाई एएमडी रोगी डिप्रेशन में थे. गौरतलब है कि हर साल 21 अगस्‍त को वर्ल्‍ड सीनियर सिटिजन डे मनाया जाता है.

एएमडी को साधारण भाषा में समझा जाए तो जिस तरह कैमरे में मौजूद फिल्म पर तस्वीर बनती है, ठीक उसी तरह से हमारी आंखों के रेटिना में तस्वीर बनती है. अगर रेटिना खराब हो जाए तो आंखों की रोशनी जा सकती है. इस बीमारी में मैक्यूल (रेटिना के बीच के भाग में) असामान्य ब्लड वैसेल्स बनने लगते हैं जिससे नजर प्रभावित होती है और इससे बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.

मैक्यूला के क्षतिग्रस्त होने पर इसे दोबारा ठीक करना मुमकिन नहीं है. इससे दुनियाभर में करीब 8.7 फीसदी लोग अंधेपन का शिकार होते हैं. उम्र से जुड़ी मैक्यूलर डिजनरेशन (एएमडी) का समय पर इलाज न कराने से बुजुर्गों को अंधापन भी हो सकता है.एएमडी जैसी रेटिना से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण लोगों में जानकारी के अभाव के साथ लक्षणों की पहचान न कर पाना है, जिसकी वजह से बुजुर्गों की आंखों की रोशनी बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाती है.

इस बारे में एम्स के पूर्व चीफ एवं सीनियर कंस्लटेंट विटरियोरेटिनल सर्जन और ऑल इंडिया कोलेजियम ऑफ ओपथालमोलोजी के प्रेजिडेंट डॉ. राजवर्धन आजाद कहते हैं, 'रेटिनल बीमारियों जैसे कि एएमडी में धुंधला या विकृत या देखते समय आंखों में गहरे रंग के धब्बे दिखना, सीधी दिखने वाली रेखाएं लहराती या तिरछी दिखना लक्षण हैं. आमतौर पर रेटिनल बीमारियों की पहचान नहीं हो पाती क्योंकि इसके लक्षणों से दर्द नहीं होता और एक आंख दूसरी खराब आंख की क्षतिपूर्ति करती है. यह तो जब एक आंख की रोशनी बहुत ज्यादा चली जाती है और मरीज एक आंख बंद करके देखते है तो पता चलता है कि उनकी आंख में समस्या है. इसलिए इसके लक्षणों को समझना जरूरी है और इसकी पहचान करके विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि आंखों की रोशनी को बचाया जा सके.'

 एक तरफ बढ़ती उम्र का असर तो दूसरी तरफ बच्चों का अपने करियर और कामों में व्यस्त होने से बुजुर्ग खुद को बोझ समझने लगते है. ऐसे में अगर एएमडी के कारण आंखों की रोशनी चले जाए तो उन्हें परिवार पर या उनकी देखभाल करने वालों पर आश्रित रहना पड़ता है. एएमडी ग्रस्त बुजुर्गों को अपने दिन का काफी समय अकेले गुजारना पड़ता है और इस स्थिति में सही तरीके से न देख पाना उन्हें धीरे-धीरे डिप्रेशन तक ले जाता है. इसलिए डिप्रेशन से बचने के लिए यह बहुत जरूरी है कि बुजुर्ग अपनी आंखों का खास ख्याल रखें और डॉक्टर द्वारा बताए गए किसी भी लक्षण के महसूस होने पर इसे उम्र से जुड़ी समस्या मानकर न बैठे रहे बल्कि तुरंत विशेषज्ञ से मिलें.

वैसे भी भारत में आजकल कई आधुनिक तकनीकें मौजूद हैं, जिसकी मदद से आंखों का बेहतरीन इलाज किया जा सकता है. कई मामलों में तो देखा गया है कि एएमडी के इलाज कराने से बीमारी की गति को धीमा या रोका जा सकता है. देश में कई विकल्प जैसे कि लेजर फोटोकॉग्यूलेशन, एंटी वीईजीएफ (वास्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन और लेजर व एंटी वीईजीएफ का कॉम्बीनेशन इलाज है.

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tangled-legs : इस तरह बैठना देखने में काफी अजीब लगता है, लेकिन शायद खतरनाक नहीं है.....

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नई दिल्ली: ऊपर वाली तस्वीर देखकर सबसे पहले दिमाग में आता है कि हम खुद भी इसी तरह बैठने की कोशिश ज़रूर करेंगे... या हो सकता है, आप इस वक्त यह ख़बर पढ़ते-पढ़ते भी यही कोशिश कर रहे हों...

यह तस्वीर न्यूयार्क सबवे में खींची गई थी, जिसमें एक अज्ञात महिला अपनी टांगों को बेहद अविश्वसनीय तरीके से एक-दूसरे में उलझाकर बैठी दिखाई दे रही है... इस तस्वीर को Imgur पर 29 मई को अपलोड किया गया था, और इसके साथ लिखा था, "माफ कीजिए, क्या आप इस तरह बैठने से परहेज़ करेगी...? शुक्रिया..."

Excuse me would you mind not sitting like that please? Thank you.

अब इन उलझी टांगों की यह तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो चुकी है, और देखने वाले इस अज्ञात महिला की टांगों के लोच (लचक) को देख-देखकर हैरान हो रहे हैं... Imgur पर डाली गई इस पोस्ट को अब तक 800,000 बार देखा जा चुका है...



उधर, माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर बहुत-से लोगों ने खुद भी इसी तरह बैठने की कोशिश की, और कुछ ने ऐसे लोगों को ढूंढ निकाला, जिन्होंने इस कोशिश में कामयाबी हासिल की...

यह देखने में काफी अजीब लगता है, लेकिन शायद खतरनाक नहीं है, सो, अब आप भी घर पर ऐसा ही करने की कोशिश कीजिए, और अगर कामयाबी मिल जाए, तो

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लोग कभी अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन को सही से साफ नहीं करते हैं. इस वजह से इसपर कीटाणु समय दर समय बैठते रहते हैं.....

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शोध के अनुसार मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले 35 फीसदी से ज्यादा लोग कभी अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन को सही से साफ नहीं करते हैं. इस वजह से इसपर कीटाणु समय दर समय बैठते रहते हैं.

 
 
नई दिल्ली: आप अगर ऐसा सोचते हैं की आपके टॉयलेट की सीट सबसे ज्यादा गंदी है तो आपको एक बार अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन को देखने की जरूरत है. दरअसल, कुछ दिन पहले ही एक शोध में यह बता यह पता चला है कि आपके मोबाइल फोन की स्क्रीन पर आपके टॉयलेट सीट से भी कीटाणु होते हैं. इस लिहाज से यह टॉयलेट सीट से भी ज्यादा गंदी है. शोध में बताया गया है कि मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले 35 फीसदी से ज्यादा लोग कभी अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन को सही से साफ नहीं करते हैं. इस वजह से इसपर कीटाणु समय दर समय बैठते रहते हैं.
 
Image result for टॉयलेट सीट से भी ज्यादा गंदी है आपके मोबाइल फोन की स्क्रीन

शोध में बताया गया है कि शोध के दौरान दौरान जिन मोबाइल फोन को जांचा गया उनमें औसतन सभी फोन टॉयलेट सीट से तीन गुणा ज्यादा गंदे मिले. शोध के अनुसार हर 20 में से एक मोबाइल फोन उपभोक्ता हर छह महीने में एक बार ही अपन फोन की स्क्रीन को साफ करता है.इस शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने आईफोन, सैमसंग और गूगल के फोन के स्क्रीन की जांच की. इस दौरान पता चला कि फोन का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता अपने फोन के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं है.यही वजह है कि बाजार में फोन की स्क्रीन साफ करने के लिए तमाम उत्पाद उपलब्ध होने के बाद भी वह उनका इस्तेमाल नहीं करते हैं. शोध में बताया गया कि अगर समय रहते फोन उपभोक्ता अपनी इन आदतों को नहीं बदलते हैं तो उन्हें आगे इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. 
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