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हम सभी जानते हैं कि शादी के बाद एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने से आपका रिश्ता प्रभावित होता है। ये सभी चीज़ें लोगों के मन में शादी के प्रति घृणा पैदा करती हैं। जब हम ऐसी घृणास्पद गतिविधियों में शामिल होते हैं तो हम इस बारे में चिंता करते हैं कि समाज के लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे?
जब आप एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में रहते हैं तो कई कारण ऐसे भी हैं जो गलत होते हैं। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का मतलब है कि आप किसी और से भावनात्मक और शारीरिक संतुष्टि पाने के लिये खोज करते हैं, जिसकी आपको शादी से पहले उम्मीद थी।
हम सब उन प्रभावों के बारे में जानते हैं जो हमेशा समाज में रहे हैं। लेकिन विवाह को प्रभावित करने वाले अन्य प्रभाव क्या हैं? बड़े प्रभाव क्या हैं जिन्हें हम महसूस तक नहीं करते हैं? यह आलेख उन कारणों पर आधारित है जो सामने दिखाई नहीं देते हैं। अगर आप शादीशुदा हैं और आप एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करते हैं तो यह धोखा देने का सबसे बड़ा कारण है। विवाह के लिये एक अतिरिक्त वैवाहिक मामला (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) एक बुरा सपना क्यों है?
1. भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है
जब किसी शादीशुदा जोड़े में से एक साथी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करता है तो दूसरा साथी भावनात्मक रूप से प्रभावित होता है। कभी-कभी भावनात्मक झटका इतना बुरा होता है कि आप साथी का सामना तक नहीं कर पाते हैं।
यह साथी के दिमाग में डर को पैदा करता है। एक्स्ट्रा मैरिटल किसी भी शादी के लिये एक विनाश है। इंसान जब टूट जाता है तो वह भावनाओं को हटा देता है और डिप्रेशन में चला जाता है। यह एक शोध से पता चला है कि आमतौर पर यह उन कपल के साथ सबसे ज़्यादा देखा जाता है जो अपने साथी से बहुत अधिक जुड़े हुए और उन पर निर्भर होते हैं।
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करने वाला साथी दूसरे साथी का विश्वास तोड़ देता है। एक बार साथी को आपके दूसरे रिश्ते के बारे में पता चल जाता है, तो साथी का विश्वास आप पर खत्म हो जाता है। धोखेबाज साथी पर वापस से विश्वास करना मुश्किल हो जाता है।\
3. आत्म-सम्मान कम हो जाना
धोखेबाज़ साथी ने अपना आत्म-सम्मान खो दिया है और पछतावा भरा हुआ है। दूसरा साथी धोखेबाज़ साथी के लिये अपने प्यार को खत्म कर देता है। अपराध उनके लिये असली हो जाता है और उनके लिये स्थिति को समझना मुश्किल हो जाता है। वे अंततः स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं लेकिन आत्म-सम्मान के नुकसान को भरने में काफी समय लगता है।
4. पारिवारिक बंधनों को तोड़ता है
जो धोखाधड़ी करता हैं उन्हें महसूस होता है कि परिवारवाले उनसे दूर हो रहे हैं। जिस घर को आपने अपनी शादी और परिवार के प्यार से बनाया था वो अब टूट रहा है। यह अफेयर आपके साथी और परिवार के बीच बंधन को तोड़ता है। फिर व्यक्ति पारिवारिक संबंध में खुश नहीं रह पाता है। वह परिवार के प्रति विश्वास खो देता है और यह केवल आपके अफेयर की वजह से होता है।
5. दिशानिर्देश को धुंधला कर देना
जब कोई साथी अपने पार्टनर को धोखा देने के बारे सोचता है तो वह उसे बचाने की कोशिश करते हैं। उन्हें जब दर्द होता है, तब उन्हें महसूस होता है कि उनका वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंध इस वजह से बर्बाद हो गया था। इससे उनमें धुंधला अभिविन्यास दिखने लगता है। यह शादी में सबसे बड़े दुस्वप्न में से एक है। धोखेबाज़ साथी के साथ अलग-अलग तरीकों की भावना जो एक बार सपोर्टिव थी लेकिन अब भयानक हो जाती है।
अकेलापन एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की ही देन है। यह आपको अपने दिमाग के गहरे कोने के कमरे में डाल देता है और आपको बंद कर देता है। धोखाधड़ी करने वाले साथी के पास से खुशी चली जाती है और अकेलापन रह जाता है। अकेलापन साथी के जीवन को सूना बना देता है। परामर्श और इच्छाशक्ति ये दो सहायताएं हैं, जिनपर वे भरोसा करते हैं। कुछ कारणों के दुरुपयोग की वजह से आपका जीवन भयावह चरण में समाप्त होता है।
ये 6 प्रमुख कारण हैं जिसकी वजह से शादी के बाद एक्स्ट्रा मेटेरियल अफेयर एक दुस्वप्न साबित होता है।
::/fulltext::मध्य भारत का ग्वालियर शहर बहुत घना बसा हुआ है. इसी शहर के बीच स्थित पठारी इलाक़े में एक क़िला बड़ी शान-ओ-शौक़त के साथ सिर उठाए खड़ा दिखता है. आठवीं सदी में बना ग्वालियर का क़िला देश के सबसे बड़े क़िलों में से एक है. इस क़िले के कंगूरों, मीनारों, दीवारों की महीन चित्रकारियों और गुम्बदों से घिरा एक छोटा सा मंदिर है. नौवीं सदी में बना ये मंदिर चट्टान को काटकर बनाया गया है. इसे चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है. ये भारत के दूसरे प्राचीन मंदिरों की ही तरह की बनावट वाला है. लेकिन, इसकी एक ख़ूबी ऐसी है जो चतुर्भुज मंदिर को अनूठा बनाती है.
ये है ज़ीरो का ग्राउंड ज़ीरो. पूरी दुनिया में ये मंदिर वो सब से पुरानी जगह है, जहाँ पर शून्य उकेरा हुआ मिला है. मंदिर में नौवीं सदी के एक शिलालेख में 270 अंकित है. ये दुनिया का सबसे पुराना शून्य है. गणित और विज्ञान के लिहाज़ से शून्य का आविष्कार बहुत बड़ी कामयाबी थी. आज की तारीख़ में दुनिया की हर तरक़्क़ी की बुनियाद इसी शून्य पर टिकी हुई है. गणित हो, प्रमेय हो, भौतिकी हो या इंजीनियरिंग, आज के दौर की हर तकनीक की शुरुआत इसी शून्य से मुमकिन हुई है.
लेकिन, भारतीय संस्कृति में ऐसी क्या ख़ास बात है, जिसने इतने महत्वपूर्ण आविष्कार को जन्म दिया, जो आधुनिक भारत और आधुनिक दुनिया की बुनियाद बना?
शून्य से शून्य तक
मुझे एक भारतीय पौराणिक विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक का सुनाया हुआ एक क़िस्सा याद आता है. ये क़िस्सा पटनायक ने टेड टाक्स के दौरान सुनाया था, जो सिकंदर महान से जुड़ा हुआ है. जब दुनिया जीतते हुए सिकंदर भारत पहुंचा, तो उसकी मुलाक़ात एक नागा साधु से हुई. पूरी तरह से नग्न वो साधु बहुत अक़्लमंद इंसान था. वो शायद एक योगी था. वो योगी एक चट्टा पर बैठा हुआ आसमान को ताक रहा था.
सिकंदर महान ने उस योगी से पूछा, "आप क्या कर रहे हैं?"
योगी ने सिकंदर को जवाब दिया, "मैं शून्य का तजुर्बा कर रहा हूं. तुम क्या कर रहे हो?"
सिकंदर ने कहा कि, "मैं दुनिया जीत रहा हूं."
इसके बाद वो दोनों हंसने लगे. शायद वो दोनों मन में सोच रहे थे कि सामने वाला शख़्स कितना बड़ा मूर्ख है. अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहा है.
ये क़िस्सा ग्वालियर के क़िले में स्थित मंदिर में शून्य अंक उकेरे जाने से बहुत पहले का है. लेकिन उस नागा साधु का शून्य में ध्यान लगाने का सीधा ताल्लुक़ ज़ीरो के आविष्कार से है. दूसरी सभ्यताओं के बरक्स, भारतीय संस्कृति में शून्य को लेकर लंबा-चौड़ा दर्शन मौजूद है. भारतीय संस्कृति में ध्यान और योग जैसे तरीक़ों से मस्तिष्क को ख़ाली करने का तरीक़ा निकाला गया.
हिंदू और बौद्ध, दोनों ही धर्मों में शून्य के सिद्धांत और इससे जुड़ी शिक्षाएं मिलती हैं. नीदरलैंड के ज़रओरिगइंडिया फ़ाउंडेशन के डॉक्टर पीटर गोबेट्स ज़ीरो प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं. ये फाउंडेशन शून्य की उत्पत्ति से जुड़ी हुई रिसर्च कर रही है. उन्होंने एक लेख में शून्य के आविष्कार को लेकर लिखा है कि, "गणित के शून्य की उत्पत्ति बौद्ध दर्शन के शून्यता के सिद्धांत से हुई मालूम होती है. इस सिद्धांत के मुताबिक़ इंसान के मस्तिष्क को विचारों और प्रभावों से मुक्त किया जाता है."
यही नहीं प्राचीन काल से ही भारत में गणित को लेकर ज़बरदस्त दिलचस्पी रही है. प्राचीन काल के भारतीय गणितज्ञ बड़े-बड़े अंकों में गणनाएं करते थे. ये गणनाएं अरबों-खरबों से लेकर पद्म और शंख तक जाती थीं.
जबकि प्राचीन ग्रीक सभ्यता के लोग दस हज़ार की संख्या से आगे नहीं बढ़ सके. प्राचीन भारतीय दर्शन में अनंत की गणना भी अलग थी. हिंदू ज्योतिषी और गणितज्ञ आर्यभट्ट (जन्म- ईस्वी 476) और ब्रह्मगुप्त (जन्म- ईस्वी 598) के बारे में मशहूर है कि उन्होंने ही आधुनिक दशमलव सिस्टम और ज़ीरो के इस्तेमाल की बुनियाद रखी. हालांकि ग्वालियर के क़िले में स्थित मंदिर में अंकित शून्य को दुनिया में ज़ीरो की सबसे पुरानी मिसाल कहा जाता है. लेकिन, तक्षशिला से जुड़ी प्राचीन भारतीय बख़्शाली पांडुलिपि में भी शून्य दर्ज हुआ पाया गया है.
इस पांडुलिपि के बारे में हाल ही में पता चला है कि ये तीसरी या चौथी सदी की रचना है. अब इसे ही दुनिया में शून्य की सबसे पुरानी मिसाल माना जाता है. ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर मार्कस ड्यू सोटोय ने यूनिवर्सिटी की वेबसाइट में लिखा है कि, "शून्य की एक अंक के तौर पर कल्पना, गणित के इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि है. इसकी शुरुआत हम बख्शाली की पांडुलिपि में दर्ज बिंदु से देखते हैं. आज हमें ये पता है कि भारत के प्राचीन गणितज्ञों ने तीसरी सदी में ही गणित के विचार का ऐसा बीज रोपा था, जो आज आधुनिक दुनिया की बुनियाद है. इन खोजों से साफ़ है कि प्राचीन काल में भारतीय उप-महाद्वीप में गणित की विधा ख़ूब फल-फूल रही थी."
ज़ीरो का आविष्कार भारत के सिवा किसी और देश में क्यों नहीं हुआ, इसकी भी बहुत दिलचस्प वजहें हैं. एक विचार तो ये है कि बहुत सी सभ्यताओं में शून्य को लेकर ख़यालात अच्छे नहीं थे. जैसे कि यूरोप में ईसाइयत के शुरुआती दिनों में धर्मगुरुओं ने ज़ीरो के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. उनका मानना था कि ईश्वर ही सब कुछ है, ऐसे में जो अंक शून्यता की नुमाइंदगी करे, वो शैतानी होता है. तो भारत के आध्यात्मिक ज्ञान का शून्य के आविष्कार से गहरा नाता है. अध्यात्म ने ही ध्यान को जन्म दिया, जिससे आगे चल कर ज़ीरो का आविष्कार हुआ.
प्राचीन भारत के एक और ज्ञान का आधुनिक दुनिया से गहरा ताल्लुक़ है. ये हैं जुड़वां नंबर या बाइनरी नंबर. शून्य की परिकल्पना जुड़वां अंकों की बुनियाद है. और ये बाइनरी नंबर ही आधुनिक कंप्यूटर की आधारशिला हैं.
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