Sunday, 22 December 2024

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प्राणियों का संपूर्ण शरीर है। रंग चिकित्सा उन रंगों को संतुलित कर देती है जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है।......

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प्राणियों का संपूर्ण शरीर है। शरीर के समस्त अवयवों का रंग अलग-अलग है। शरीर की समस्त कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग रुग्ण (बीमार) होता है तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। रंग चिकित्सा उन रंगों को संतुलित कर देती है जिसके कारण रोग का निवारण हो जाता है।
 
शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं अपितु शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी।
 
सूर्य की रश्मियों में 7 रंग पाए जाते हैं- 
1. लाल, 2. पीला, 3. नारंगी, 4. हरा, 5. नीला, 6.आसमानी, 7. बैंगनी
 
उपरोक्त रंगों के तीन समूह बनाए गए हैं -
 
1. लाल, पीला और नारंगी
2. हरा
3. नीला, आसमानी और बैंगनी


 
 
प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।
 
नारंगी रंग की दवा के प्रयोग
कफजनित खाँसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।
 
हरे रंग की दवा के प्रयोग
खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंशी, दाद, खुजली आदि में गुणकारी साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आँखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप सिरदर्द आदि में लाभदायक है।
 
नीले रंग की दवा के प्रयोग
शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुँचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दाँत दर्द, मुँह में छाले, पायरिया घाव आदि चर्म रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुँचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुँचाता है।
 
यह चिकित्सा जितनी सरल है उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएँ हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।
 
दवाओं की निर्माण की विधि
जिस रंग की दवाएँ बनानी हों, उस रंग की काँच की बोतल लेकर शुद्ध पानी भरकर 8 घंटे धूप में रखने से दवा तैयार हो जाती है। बोतल थोड़ी खाली होनी चाहिए व ढक्कन बंद होना चाहिए। इस प्रकार बनी हुई दवा को चार या पाँच दिन सेवन कर सकते हैं। नारंगी रंग की दवा भोजन करने के बाद 15 से 30 मिनट के अंदर दी जानी चाहिए। हरे तथा नीले रंग की दवाएँ खाली पेट या भोजन से एक घंटा पहले दी जानी चाहिए। दवा की मात्रा- प्रत्येक रंग की दवा की साधारण खुराक 12 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले व्यक्ति के लिए 2 औंस यानी 5 तोला होती है। कम आयु वाले बच्चों को कम मात्रा देनी चाहिए। आमतौर पर रोगी को एक दिन में तीन खुराक देना लाभदायक है।
 
सफेद बोतल के पानी पर किरणों का प्रभाव
सफेद बोतल में पीने का पानी 4-6 घंटे धूप में रखने से वह पानी कीटाणुमुक्त हो जाता है तथा कैल्शियमयुक्त हो जाता है। अगर बच्चों के दाँत निकलते समय वही पानी पिलाया जाए तो दाँत निकलने में आसानी होती है।
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ऐसी कई दुर्लभ जड़ी बूटियां है जिन्हें अपने पास रखने, खाने या धारण करने से किसी भी प्रकार का संकट नहीं आएगा साथ ही आपको सिद्धियां और धन प्राप्त होगा।.... 

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माना जाता है कि पहाड़ों में मिलने वाली ऐसी कई दुर्लभ जड़ी बूटियां है जिन्हें अपने पास रखने, खाने या धारण करने से आपके जीवन में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आएगा साथ ही आपको सिद्धियां और धन प्राप्त होगा। ये जड़ी बूटियां कौन-कौन सी है और इनसे क्या लाभ मिलेंगे अस बारे में नीचे संक्षिप्त जानकारी। हालांकि उक्त जड़ी बूटियों को पास रखने से ऐसा होता ही है इसका दावा नहीं किया जा सकता। 
 
गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।
 
गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)।
 
धन-समृद्धि हेतु :
1.हरसिंगार का बांदा:- हरसिंगार के बांदे को लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखेंगे तो धन का अभाव समाप्त हो जाएगा।
 
2.शंखपुष्पी की जड़:- शंखपुष्पी की जड़ रवि-पुष्य नक्षत्र में लाकर इसे चांदी की डिब्बी में रख कर घर की तिरोरी में रख लें। यह धन और समृद्धि दायक है।
 
3.बहेड़ा की जड़ : पुष्य नक्षत्र में बहेड़ा वृक्ष की जड़ तथा उसका एक पत्ता लाकर पैसे रखने वाले स्थान पर रख लें। इस प्रयोग से घर में कभी भी दरिद्रता नहीं रहेगी।
 
4.मदार की जड़ : रविपुष्प नक्षत्र में लाई गई मदार की जड़ को दाहिने हाथ में धारण करने से आर्थिक समृधि में वृद्धि होती हैं।
 
5.दूधी की जड़ : सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।
 
6.बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें। भंडार हमेश भरा रहेगा। इसके अलाव धन हेतु बरगद अथवा बड़ के ताजे तोड़े पत्ते पर हल्दी से स्वास्तिक बना कर पुष्य नक्षत्र में घर में रखें।
 
7.श्वेत अपराजिता : श्वेत अपराजिता का पौधा दरिद्रनाशक माना जाता है। श्वेत आंकड़ा, शल और लक्ष्मणा का पौधा भी श्वेत अपराजिता के पौधे की तरह धनलक्ष्मी को आकर्षित करने में सक्षम है। इसके सफेद या नीले रंग के फूल होते हैं। जीवक नाम का पौधा भी ऐश्वर्यदायिनी होता है।
 
8.सफेद पलाश का पौधा : पलाश अक्सर पीला और सिंदूरी होता है, लेकिन सफेद पलाश बहुत ही दुर्लभ माना गया है। लोगों का मानना है कि यह फूल चमत्कारी होता है। लोग इसे श्रद्घा और विश्वास के साथ घर लाकर पूजन कक्ष में स्थापित करते हैं। तंत्र शास्त्र में इस वृक्ष के फूल से यंत्र बनाने का प्रयोग बताया गया है, जो धन लक्ष्मी के लिए कारगर बताया गया है।
 
9.धतूरे की जड़ : धतूरे की जड़ के कई तां‍त्रिक प्रयोग किए जाते हैं। इसे अपने घर में स्थापित करके महाकाली का पूजन कर 'क्रीं' बीज का जाप किया जाए तो धन सबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
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बच्चे पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते, कई ऐसे कारण हो सकते हैं जैसे घर का वास्तु, स्टडी रूम का वास्तु, कुंडली में कोई दोष आदि।....

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बदलते हुए समय की मांग के कारण माता पिता अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। जब बच्चा पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पता तो यह पेरेंट्स के लिए सिर दर्द बन जाता है। कई मामलों में बच्चे लाख कोशिशों के बाद भी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते। इसका सबसे बड़ा कारण है इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का ज़्यादा इस्तेमाल जिससे बच्चों की एकाग्रता भंग होती है। इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हो सकते हैं जैसे घर का वास्तु, स्टडी रूम का वास्तु, कुंडली में कोई दोष, या फिर जिस दिशा में आपका बच्चा बैठकर पढ़ रहा है आदि। आज इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। हम आपको वास्तु के कुछ टिप्स के साथ इस समस्या से निपटने के आसान उपाय भी बताएंगे। तो चलिए अपनी इस चर्चा को हम आगे बढ़ाते हैं।

Astrological Remedies for children

कमरे के वास्तु को ध्यान में रखें

1. कमरे को डिज़ाइन करते समय या फिर कंस्ट्रक्शन के दौरान इस बात को ध्यान में रखें कि कमरा पूर्वी उत्तर कोने में हो। अगर यह संभव न हो तो उत्तर दिशा में भी आप अपना कमरा बनवा सकते हैं लेकिन याद रखिये कमरे का दरवाज़ा पूर्वी उत्तर दिशा में ही होना चाहिए।

2. घर बनवाते समय एक अन्य बात आपको ध्यान में रखनी चाहिए कि कभी भी वाशरूम बच्चों के बैडरूम और स्टडी रूम के ऊपर न हो। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है जिसका प्रभाव आपके बच्चे पर भी पड़ता है। इसके अलावा वाशरूम न तो पलंग के सामने होना चाहिए और न ही स्टडी टेबल के सामने। यदि ऐसा हुआ तो वाशरूम का दरवाज़ा हमेशा बंद ही रखें।

3. कमरे की सिर्फ दिशा ही नहीं बल्कि आकार भी बहुत मायने रखता है। कहते हैं स्टडी रूम चौकौर होना चाहिए क्योंकि यह चारों तरफ से आने वाली ऊर्जा को संतुलित रखता है। 

4. कमरे की दीवार का रंग और पर्दों का रंग हरा ही रखें। इससे आपको एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलेगी। साथ ही सभी बाधाएं दूर होंगी और आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा।

5. यदि लाख कोशिशों के बाद भी आपके बच्चे को पढ़ाई में एकाग्रता बनाए रखने में दिक्कत होती है तो आप उन्हें सोते समय अपने पैर उत्तर दिशा में रखने की सलाह दें। इससे उनके कॉन्सेंट्रेशन पावर में सुधार आएगा। इसके अलावा पूर्व दिशा में सिर रख कर सोना भी आपके बच्चे के लिए लाभदायक सिद्ध होगा। इससे उन्हें सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी और जब वे सुबह उठेंगे तो तरोताज़ा महसूस करेंगे।

6. स्टडी रूम में बुक शेल्फ कभी भी स्टडी टेबल के आगे या फिर बच्चे के सामने नहीं होना चाहिए। इससे उनकी एकाग्रता भंग होती है।

7. यदि स्टडी रूम में खिड़की है तो वह हमेशा पूर्व दिशा में होनी चाहिए।

8. स्टडी टेबल पूर्व या फिर पूर्वी उत्तर दिशा में रखें ना कि खिड़की के ठीक सामने।

9. टेबल के ऊपर स्टडी लैंप ज़रूर रखें चाहे आपका बच्चा इसे इस्तेमाल करे या नहीं। माना जाता है कि इससे पढ़ाई का माहौल बनता है साथ ही बच्चे का कॉन्सेंट्रेशन पावर भी बढ़ता है।

10. कमरे में अच्छे चित्र लगाएं जैसे दौड़ते हुए घोड़े, उगता हुआ सूरज आदि इससे आपके बच्चे के कमरे में सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा। भूलकर भी कमरे में नकारात्मक तस्वीरें ना लगाएं।

11. देवी सरस्वती ज्ञान की देवी होती है। कमरे के दक्षिण दिशा में माता का चित्र लगाना शुभ होता है।

12. दक्षिण दिशा में आप अपने बच्चे के सर्टिफिकेट्स, ट्रॉफी, मेडल आदि जैसी चीज़ें रख सकते हैं। यह बेहद शुभ होता है साथ ही आपके बच्चे को प्रोत्साहित भी करता है।

13. कमरे में जिस दिशा से हवा आ रही हो बच्चे को उस दिशा में बैठकर पढ़ना नहीं चाहिए। इसे उनकी एकाग्रता भंग होती है। इसी वजह से खिड़की और दरवाज़े के पास बैठकर नहीं पढ़ना चाहिए।

14. ध्यान रहे पढ़ते समय बच्चे के ठीक सामने दीवार न हो या फिर आपका बच्चा कोने में बैठकर न पढ़ें। इससे उसे एकाग्रता बनाए रखने में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कई बार विद्यार्थी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें पढ़ाई में एकाग्रता बनाए रखने में मुश्किलें आती है और उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता। इस स्थिति से निपटने के लिए हमारे पास कुछ बेहतरीन उपाय हैं। यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा आलसी है और पढ़ना नहीं चाहता तो ऐसे में आप उसे तांबे में जड़ा हुआ पंचमेश रत्न या फिर सोने में जड़ा हुआ नवमेश रत्न पहनाएं।

अगर आपके बच्चे को पढ़ाई में एकाग्रता बनाने में परेशानी हो रही है तो उसे ज़्यादा मीठा खाने की सलाह दें ना कि नमकीन। नीम के पौधे को कमरे के दरवाज़े के आस पास रखने से सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर रहेंगी। ध्यान के लिए ब्रह्ममुहूर्त को सबसे अच्छा समय माना जाता है इसलिए अगर आपके बच्चे को लगता है कि वह पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रहा है तो उसे ब्रह्ममुहूर्त के दौरान पढ़ने की सलाह दें। कहते हैं इस समय की हुई पढ़ाई लंबे समय तक याद रहती है। ब्रह्ममुहूर्त सुबह 4 से 6 बजे तक रहता है।

सुलेमानी हकीक एक पत्थर है। नौ सुलेमानी हकीक के पत्थरों को हरे कपड़े में बांध कर स्टडी रूम में रखने से भी पढ़ाई में ध्यान लगाने में मदद मिलती है। कभी हमारे दायीं तरफ की नॉस्ट्रिल एक्टिव रहती है तो कभी हमारी बायीं तरफ की नॉस्ट्रिल सक्रिय रहती है। जब बच्चे के दायीं तरफ की नॉस्ट्रिल एक्टिव रहती है तो उसे कठिन विषय की पढ़ाई करनी चाहिए। इसके अलावा यदि दायीं तरफ की नॉस्ट्रिल एक्टिव है तो स्कूल के या एग्जाम के लिए जाते समय घर से पहले दांया पैर बाहर निकालें। यहां तक की स्कूल या एग्जाम हॉल में प्रवेश करते समय यदि बायीं तरफ की नॉस्ट्रिल एक्टिव हो तो पहला बायां पैर आगे बढ़ाएं।

अपने स्टडी टेबल पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर श्री यंत्र रखें। पढ़ाई शुरू करने से पहले थोड़ी देर के लिए आप श्री यन्त्र के सामने हाथ जोड़कर ध्यान करें। साथ ही ॐ भवाये विद्यम देहि देहि ॐ नमः मंत्र का जाप करें। इन उपायों से आपके बच्चे की पढ़ाई में सुधार आएगा और वह अच्छा प्रदर्शन कर पाएगा। यह सभी उपाय आपके बच्चे के लिए बेहद फायदेमंद साबित होंगे।
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सेक्सुअल र‍िलेशनशिप बनाने से पहले पार्टनर के बीच पॉर्न देखना ट्रेंड बन गया है।.....




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एक रिलेशनशिप वेबसाइट द्वारा कराएं सर्वे 'हैपी ऐंड हेल्दी सेक्स इन मैरिज' के जरिए रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स ने यह जानने की कोशिश की, आजकल कपल्‍स के बीच कौनसा सेक्‍सुअल ट्रेंड सबसे ज्‍यादा पॉपुल्‍यर है। इस सर्वे में शामिल 26 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वो अपने पार्टनर के साथ इरॉटिक नॉवल पढ़ना पसंद करते है, जबकि 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो अपने पार्टनर के साथ पॉर्न देखना पसंद करते है। सेक्सुअल र‍िलेशनशिप बनाने से पहले पार्टनर के बीच पॉर्न देखना ट्रेंड बन गया है। लेकिन क्या ऐसा करना सेक्‍सुअल और मेंटल हेल्थ के लिए सही है? आइए जानते है इस सर्वे के बारे में?

क्‍यों साथ देखते है पॉर्न

पॉर्न दूसरे विषयों की तरह अपने आप में एक बड़ा विषय है, जिसमें हर तरह की कामोत्तेजना और कल्‍पनाएं शामिल होती है। वहीं दूसरी और पॉर्न इन दिनों वास्‍तविकता का हिस्‍सा बनता जा रहा है। पॉर्न कपल के लिए साथ बैठकर देखना हेल्दी है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे क्या देखते हैं। अगर कपल्‍स पॉर्न को देखकर गलत उम्‍मीदें रखते है कि पॉर्न के उतेजक दृश्यों से उनकी उत्तेजनाएं बढ़ सकतीहै और वो भी ऐसा कुछ अपनी रियल लाइफ में एक्‍सपैर‍िमेंट के तौर कर सकते है तो यह करने पहले जान लें पॉर्न और रियल लाइफ में कुछ अंतर होता है कभी कभी कुछ एक्‍सपैरिमेंट गलत भी साबित हो सकते है।

सेक्‍सुअल इंट्रेस्‍ट के बारे में मालूम चलता है

इस सर्वे में एक बात सामने आई है कई महिलाओं से बात करने पर इस बात का खुलासा हुआ कि पार्टनर के साथ पॉर्न देखने के बाद उनके बीच सेक्‍स को लेकर एक ओपन बातचीत होती है जिसके जरिए वे एक दूसरे के सेक्सुअल इंट्रेस्ट के बारे में अवेयर होते हैं और एक दूसरे को सेक्‍सुअली ज्‍यादा समझ पाते हैं। जबकि कुछ महिलाओं ने बताया कि शुरुआत में उन्‍हें इस बारे में अपने पार्टनर से बात करने में थोड़ा असहज महसूस होता था कि वो कहीं उन्‍हें जज करना शुरु ना कर दें और उन्‍हें इसे लेकर शार्मिंदा न होना पड़े। लेकिन सर्वे में एक बात की पुष्टि हो गई कि साथ में पॉर्न देखने से आप एक दूसरे की पसंद नापसंद को अच्छी तरह से समझ पाते हैं।

फॉरप्‍ले की तरह काम करता है

हर रिश्‍तें की शुरुआत में चीजें जोश सी भरी हुई रहती है, लेकिन जैसे जैसे र‍िश्‍ता पुराना होता जाता है उसमें वो जोश गायब होने लगता है। ऐसे में कई कपल्‍स पॉर्न को फोरप्ले के तौर पर भी देखना पसंद करते हैं। सर्वे में कई कपल्स ने बताया उन्‍होंने महसूस किया है कि पॉर्न देखने पर सेक्‍सुअल फीलिंग्‍स और उतेजना बढ़ती है और इंटीमेट होने का मूड पूरी तरह बन जाता है।

सेक्‍सुअल अट्रेक्‍शन

हालांकि कई बार तीसरी चीज के जरिए उत्‍तेजित होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इस बात का ध्‍यान रखें कि पोर्न देखना कहीं आपकी आदत में शुमार न हो जाएं। कई बार कपल्‍स में से किसी एक के ल‍िए ये स्वीकार करना बेहद मुश्किल होता है कि उनका पार्टनर उनके नहीं किसी और के जरिए सेक्‍सुअली उत्तेजित होता। जब कपल्स साथ में पॉर्न देखते हैं तो दोनों पार्टनर इस बात को महसूस करते हैं कि किसी और की वजह से सेक्‍सुअली उत्तेजित होने में कोई बुराई नहीं है। खासकर लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में अक्सर पार्टनर्स किसी और के बारे में फैंटसाइज करते हैं। जब पार्टनर एक साथ मिलकर पॉर्न देखते है तो वो एक दूसरे की बाहरी उत्तेजनाओं से लेकर शारीरिक प्रतिक्रियाओं को समझते है।


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