Sunday, 19 October 2025

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सेक्सुअल र‍िलेशनशिप बनाने से पहले पार्टनर के बीच पॉर्न देखना ट्रेंड बन गया है।.....




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एक रिलेशनशिप वेबसाइट द्वारा कराएं सर्वे 'हैपी ऐंड हेल्दी सेक्स इन मैरिज' के जरिए रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स ने यह जानने की कोशिश की, आजकल कपल्‍स के बीच कौनसा सेक्‍सुअल ट्रेंड सबसे ज्‍यादा पॉपुल्‍यर है। इस सर्वे में शामिल 26 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वो अपने पार्टनर के साथ इरॉटिक नॉवल पढ़ना पसंद करते है, जबकि 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो अपने पार्टनर के साथ पॉर्न देखना पसंद करते है। सेक्सुअल र‍िलेशनशिप बनाने से पहले पार्टनर के बीच पॉर्न देखना ट्रेंड बन गया है। लेकिन क्या ऐसा करना सेक्‍सुअल और मेंटल हेल्थ के लिए सही है? आइए जानते है इस सर्वे के बारे में?

क्‍यों साथ देखते है पॉर्न

पॉर्न दूसरे विषयों की तरह अपने आप में एक बड़ा विषय है, जिसमें हर तरह की कामोत्तेजना और कल्‍पनाएं शामिल होती है। वहीं दूसरी और पॉर्न इन दिनों वास्‍तविकता का हिस्‍सा बनता जा रहा है। पॉर्न कपल के लिए साथ बैठकर देखना हेल्दी है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे क्या देखते हैं। अगर कपल्‍स पॉर्न को देखकर गलत उम्‍मीदें रखते है कि पॉर्न के उतेजक दृश्यों से उनकी उत्तेजनाएं बढ़ सकतीहै और वो भी ऐसा कुछ अपनी रियल लाइफ में एक्‍सपैर‍िमेंट के तौर कर सकते है तो यह करने पहले जान लें पॉर्न और रियल लाइफ में कुछ अंतर होता है कभी कभी कुछ एक्‍सपैरिमेंट गलत भी साबित हो सकते है।

सेक्‍सुअल इंट्रेस्‍ट के बारे में मालूम चलता है

इस सर्वे में एक बात सामने आई है कई महिलाओं से बात करने पर इस बात का खुलासा हुआ कि पार्टनर के साथ पॉर्न देखने के बाद उनके बीच सेक्‍स को लेकर एक ओपन बातचीत होती है जिसके जरिए वे एक दूसरे के सेक्सुअल इंट्रेस्ट के बारे में अवेयर होते हैं और एक दूसरे को सेक्‍सुअली ज्‍यादा समझ पाते हैं। जबकि कुछ महिलाओं ने बताया कि शुरुआत में उन्‍हें इस बारे में अपने पार्टनर से बात करने में थोड़ा असहज महसूस होता था कि वो कहीं उन्‍हें जज करना शुरु ना कर दें और उन्‍हें इसे लेकर शार्मिंदा न होना पड़े। लेकिन सर्वे में एक बात की पुष्टि हो गई कि साथ में पॉर्न देखने से आप एक दूसरे की पसंद नापसंद को अच्छी तरह से समझ पाते हैं।

फॉरप्‍ले की तरह काम करता है

हर रिश्‍तें की शुरुआत में चीजें जोश सी भरी हुई रहती है, लेकिन जैसे जैसे र‍िश्‍ता पुराना होता जाता है उसमें वो जोश गायब होने लगता है। ऐसे में कई कपल्‍स पॉर्न को फोरप्ले के तौर पर भी देखना पसंद करते हैं। सर्वे में कई कपल्स ने बताया उन्‍होंने महसूस किया है कि पॉर्न देखने पर सेक्‍सुअल फीलिंग्‍स और उतेजना बढ़ती है और इंटीमेट होने का मूड पूरी तरह बन जाता है।

सेक्‍सुअल अट्रेक्‍शन

हालांकि कई बार तीसरी चीज के जरिए उत्‍तेजित होने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इस बात का ध्‍यान रखें कि पोर्न देखना कहीं आपकी आदत में शुमार न हो जाएं। कई बार कपल्‍स में से किसी एक के ल‍िए ये स्वीकार करना बेहद मुश्किल होता है कि उनका पार्टनर उनके नहीं किसी और के जरिए सेक्‍सुअली उत्तेजित होता। जब कपल्स साथ में पॉर्न देखते हैं तो दोनों पार्टनर इस बात को महसूस करते हैं कि किसी और की वजह से सेक्‍सुअली उत्तेजित होने में कोई बुराई नहीं है। खासकर लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में अक्सर पार्टनर्स किसी और के बारे में फैंटसाइज करते हैं। जब पार्टनर एक साथ मिलकर पॉर्न देखते है तो वो एक दूसरे की बाहरी उत्तेजनाओं से लेकर शारीरिक प्रतिक्रियाओं को समझते है।


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महिलाएं एक बच्चे के बाद दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं। उनका नया नारा है - हम दो, हमारा एक।.....

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"कौस्तुब बहुत ज़िद्दी हो गया है, अपनी चीज़ें किसी से शेयर ही नहीं करता। बस हर बात अपनी ही मनवाता है। और दिन भर मेरे साथ ही चिपका रहता है।" 35 साल की अमृता दिन में एक बार ये शिकायत अपनी मां से फोन पर ज़रूर करती है। हर बार मां का जवाब भी एक सा ही होता है। "दूसरा बच्चा कर लो, सब ठीक हो जाएगा।"
 
अमृता दिल्ली से सटे नोएडा में रहती हैं और में टीचर है। कौस्तुब 10 साल का है। पति भी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। हर दिन अमृता के लिए सुबह की शुरुआत 5 बजे होती है। पहले बेटे को उठाना, फिर उसे तैयार करना, फिर साथ में नाश्ता और टिफिन भी तैयार करना। सुबह झाडू, पोछा और डस्टिंग के बारे में सोचती तक नहीं हैं।
 
एसोचैम की रिपोर्ट
 
सोचे भी कैसे? इतना करने में ही सात कब बज जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता। बेटे के साथ साथ अमृता खुद भी तैयार होती हैं क्योंकि वो सरकारी स्कूल में टीचर हैं। आठ बजे उन्हें भी स्कूल पहुंचना होता है। पिछले 7-8 साल से अमृता का जीवन इसी तरह से चल रहा है। बेटे की तबियत खराब हो, या फिर बेटे के स्कूल में कोई कार्यक्रम ज़्यादातर छुट्टी अमृता को ही लेनी पड़ती है। इसलिए अमृता अब दूसरा बच्चा करना नहीं चाहती। और अपनी तकलीफ मां को वो समझा नहीं पाती। उद्योग मंडल एसोचैम ने हाल ही में देश के 10 मेट्रो शहरों में कामकाजी महिलाओं के साथ एक सर्वे किया। सर्वे में पाया की 35 फीसदी महिलाएं एक बच्चे के बाद दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं। उनका नया नारा है - हम दो, हमारा एक।
 
अमृता भी इसी नक्शे-कदम पर चल रही हैं। सवाल उठता है कि आखिर अमृता दूसरा बच्चा क्यों नहीं चाहतीं?
 
 
बच्चा पालने का खर्च
 
वो हंस कर जवाब देती हैं, "एक समस्या के हल के लिए दूसरी समस्या पाल लूं ऐसी नसीहत तो मत दो?" अपनी इस लाइन को फिर वो विस्तार से समझाना शुरू करती हैं। "जब कौस्तुब छोटा था तो उसे पालने के लिए दो-दो मेड रखे, फिर प्ले-स्कूल में पढ़ाने के लिए इतनी फ़ीस दी जितने में मेरी पीएचडी तक की पढ़ाई पूरी हो गई थी। उसके बाद स्कूल में एडमिशन के लिए फ़ीस। हर साल अप्रैल का महीना आने से पहले मार्च में जो हालत होती है वो तो पूछो ही मत। स्कूल की फ़ीस, ट्यूशन की फ़ीस, फ़ुटबॉल कोचिंग, स्कूल की ट्रिप और दूसरी डिमांड, दो साल बाद के लिए कोचिंग की चिंता अभी से होने लगी है। क्या इतने पैसे में दूसरे बच्चे के लिए गुंजाइश बचती है।"
 
अमृता की इसी बात को मुंबई में रहने वाली पूर्णिमा झा दूसरे तरीके से कहती हैं। "मैं नौकरी इसलिए कर रही हूं क्योंकि एक आदमी की कमाई में मेट्रो में घर नहीं चल सकता। एक बेटा है तो उसे सास पाल रही हैं। दूसरे को कौन पालेगा। एक और बच्चे का मतलब ये है कि आपको एक मेड उसकी देखभाल के लिए रखनी पड़ेगी। कई बार तो दो मेड रखने पर भी काम नहीं चलता। और मेड न रखो को क्रेच में बच्चे को छोड़ो। ये सब मिलाकर देख लो तो मैं एक नहीं दो बच्चे तो पाल ही रही हूं। तीसरे की गुंजाइश कहां हैं?"

एक बच्चे पर मुंबई में कितना खर्चा होता है?
 
इस पर वो फौरन फोन के कैलकुलेटर पर खर्चा जुड़वाना शुरू करती हैं। महीने में डे केयर का 10 से 15 हजार, स्कूल का भी उतना ही लगता है। स्कूल वैन, हॉबी क्लास, स्कूल ट्रिप, बर्थ-डे सेलिब्रेशन (दोस्तों का) इन सब का खर्चा मिला कर 30 हज़ार रुपए महीना कहीं नहीं गया। मुंबई में मकान भी बहुत मंहगे होते हैं। हम ऑफिस आने जाने में रोजाना 4 घंटे खर्च करते हैं, फिर दो बच्चे कैसे कर लें। न तो पैसा है और न ही वक्त। मेरे लिए दोनों उतने ही बड़ी वजह है।
 
 
एसोचैम सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन की रिपोर्ट अहमदाबाद, बैंगलूरू, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई जैसे 10 मेट्रो शहरों पर आधारित है। इन शहरों की 1500 कामकाजी महिलाओं से बातचीत के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की कई थी। रिपोर्ट में कुछ और वजहें भी गिनाई गई हैं। कामकाजी महिलाओं पर घर और ऑफिस दोनों में अच्छे प्रदर्शन का दबाव होता है, इस वजह से भी वो एक ही बच्चा चाहती हैं। कुछ महिलाओं ने ये भी कहा की एक बच्चा करने से कई फायदे भी है। कामकाज के आलावा मां सिर्फ बच्चे पर ही अपना ध्यान देती है। दो बच्चा होने पर ध्यान बंट जाता है।

फिर एक ही बच्चा क्यों न करें!
 
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एनसीपीसीआर की अध्यक्ष स्तुति कक्कड़ इस ट्रेंड को देश के लिए ख़तरनाक मानती हैं। उनके मुताबिक, "हम दो हमारे दो का नारा इसलिए दिया गया था क्योंकि ओनली चाइल्ड इस लोनली चाइल्ड होता है। देश की जनसंख्या में नौजवानों की संख्या पर इसका सीधा असर पड़ता है। चीन को ही ले लीजिए, वो भी अपने यहां इस वजह से काफी बदलाव ला रहे हैं।" लेकिन एक बच्चा पैदा करने के कामकाजी महिलाओं के निर्णय को स्तुति बच्चों पर होने वाले खर्चे से जोड़ कर देखना सही नहीं है। उनका कहना है महंगे स्कूल में पढ़ाने की जरूरत क्या है? कामकाजी महिलाएं बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं?

तसमीन खजांची खुद एक मां हैं और एक पेरेंटिंग एक्सपर्ट भी। उनकी छह साल की बेटी है। वो कहती हैं, "दो बच्चे होना बहुत जरूरी है। मां-बाप के लिए नहीं बल्कि बच्चों के लिए। बच्चों को आठ दस साल तक दूसरे भाई-बहन की जरूरत नहीं होती। लेकिन बड़े होने के बाद उन्हें कमी खलती है। तब उन्हें शेयर और केयर दोनों के लिए एक साथी भाई-बहन की जरूरत पड़ती है। बच्चे बड़े भाई बहन से बहुत कुछ सीखते हैं। "अकसर महिलएं न्यूक्लियर फैमिली के आड़ में अपने निर्णय को सही बताती हैं। लेकिन ये ग़लत है। बच्चा पल ही जाता है। अपने परेशानी के लिए बड़े बच्चे का बचपन नहीं छीनना चाहिए। ये रिसर्च के आधार पर नहीं कह रही हूं लोगों के मिलने के बाद उनके अनुभव के आधार पर कह रही हूं।"
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