Sunday, 19 October 2025

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जिम में 'आपका' वजन कम हो रहा है या 'जेब' का.....

 
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फिटनेस फंडा आजकल जरूरत के अलावा ट्रेंड भी बनता जा रहा है। इसके लिए डाइट से लेकर योगा, एरोबिक्स, डांस थैरेपी और अन्य कई माध्यम प्रचलन में हैं। ऐसा ही एक बेहद प्रचलित माध्यम है 'जिम', लेकिन 'जिम' ज्वाइन करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि आप सही तरीके व नियमों का ध्यान रखने वाले को ही ज्वाइन कर रहे हैं या नहीं। फिल्म स्टार हों या बिजनेस मैन, मॉडल हों या कोई और सेलिब्रिटीज, सभी अपने को फिट रखने के लिए जिम जाते हैं। क्योंकि फिट रहना उनकी इच्छा का ही सवाल नहीं होता अपितु उनके प्रोफेशनल इंट्रैस्ट से भी जुड़ा है।
 
लेकिन जरूरी नहीं है कि आप जिम तभी जाएं जब आपका हेल्दी एवं फिट रहना आपके प्रोफेशनल प्रॉफिट से ही जुड़ा हो। आजकल यूं भी फिट रहने के लिए जिम जाने का आम आदमियों तक में चलन बढ़ रहा है। फिट रहने का कतई यह मतलब नहीं है कि आप अपने शरीर के फैट को घटाकर अपने को 10-20 किलो कम करें। वजन घटाए बिना भी जिम जाने की जरूरत होती है और लोग जा भी रहे हैं। ऐसे लोगों का 'राइट डाइट, राइट जिम' नारा होता है। स्वस्थ रहने के प्रति बढ़ती अवेयरनेस के चलते आजकल जिम जाने वालों की तादाद काफी बढ़ गई है लेकिन जरूरी नहीं है कि जिम जाने वाले सभी लोग इसका भरपूर फायदा उठा पाते हों। सच बात तो यह है कि ज्यादातर लोग जिम का भरपूर फायदा नहीं उठा पाते। कारण होता है गलत जिम का चुनाव। सवाल है क्यों हममें से ज्यादातर युवा अपने लिए सही जिम का चुनाव नहीं कर पाते हैं?
 
दरअसल किसी की भी फिटनेस उसकी जिम यूज करने की क्षमता और जिम में उसकी क्षमता के अनुकूल साजो-सामान व माहौल पर निर्भर करती है। सवाल है कि जिम में ऐसी क्या बातें होनी चाहिए? जाहिर है जिम वेल इक्विप्ड हो, क्वॉलिफाइड ट्रेनर हों, सही हेल्थ के लिए जूस, चाय-कॉफी आदि के लिए कैफे हों। न्यूट्रिशिनस्ट्स और पर्सनल ट्रेनर हों। यही नहीं वहाँ के इक्विपमेंट भी ब्रांडेड होने चाहिए... तो क्या आप भी इस प्रकार के जिम को परफेक्ट मान रहे हैं? ठहरिए आप गलती कर रहे हैं। दरअसल, ये सभी चीजें तो जरूरी हैं मगर इन सभी चीजों से ही कोई भी जिम परफेक्ट नहीं हो जाता। ....किसी भी जिम में जाने से पहले हमें मूल रूप से कई बातों पर भी ध्यान देना चाहिए-
 
* जिम का चुनाव करते समय इस बात को सबसे पहले जेहन में रखें कि वह आपकी लाइफस्टाइल के अनुरूप हो, उसे प्रमोट करने वाला हो। जिम ऐसा न हो जो सिर्फ आपके लिए एक मेडिकल प्रोग्राम की ही भूमिका अदा करे।
 
* जिम में आने वाले जहां एक ओर यंगस्टर्स होते हैं वही दूसरी ओर मिडिल एज ग्रुप के लोग भी होते हैं। यंगस्टर्स वहां बॉडी बिल्डिंग के लिए आते हैं तो कुछ लोग सामान्य रूप से फिट रहने के लिए इसे ज्वाइन करते हैं। उम्र और शरीर के अनुसार सबके शरीर अलग प्रकार के होते हैं। उनके फिटनेस लेवल में भी फर्क होता है। कुछ हार्ट पेशेंट, हाई ब्लडप्रैशर, आस्ट‍ियोपोरोसिस के पेशेंट होते हैं। जिम में ऐसे तमाम लोगों के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रोग्राम होने चाहिए इसलिए ट्रेनर का उच्च प्रशिक्षित होना बेहद जरूरी है।
 
* जिम में इस्तेमाल होने वाले बॉडी इक्विपमेंट भी ब्रांडेड तथा उच्च क्वॉलिटी के होने चाहिए। इस तरह के इक्विपमेंट द्वारा ही एक्सरसाइज का सही तकनीकी ढंग से विकास किया जा सकता है। सही मसल्स के डेवलपमेंट के लिए यह इक्विपमेंट सुरक्षित होने चाहिए ताकि इससे किसी प्रकार की दुर्घटना होने की आशंका न रहे।
 
* जिम ऐसा हो जो आप में मोटापा कम करने का आकर्षण जगाने के बजाय आपके शरीर के फैट के स्तर को संतुलित करे। पहली बार जिम ज्वाइन करने वालों के लिए जरूरी है कि वे जिम में ऐसी एक्सरसाइज रूटीन और न्यूट्रिशिनल गाइड लाइन्स अपनाएँ जो कि शॉट टर्म हों, जिन्हें आप अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार पूरा कर सकने में सफल हो सकें। वर्क आउट के लिए आपका मूड तभी तैयार हो सकता है जब आपके आसपास का वातावरण इसके अनुकूल हो। जिम की साफ-सफाई, वहां कार्यरत लोगों का पॉजिटिव रुख और वहाँ आने वाला क्राउड आपके वर्कआउट के मूड को लगातार ताजा बनाए रखता है। ऐसा हो भी क्यों न आखिर आप जिम में अपनी बॉडी, माइंड को सिर्फ एनर्जी देने के लिए ही नहीं आए हैं बल्कि एक दिन आने के बाद यहां अगले दिन भी आपका दोबारा आने के लिए मन करे। जिम का ऐसा होना भी जरूरी है। जिम का चुनाव करते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि जिम में आप बॉडी और माइंड दोनों को फिट करने जा रहे हैं। डि-स्ट्रेस के लिए वहाँ मसाज, स्टीम, शॉवर, हेल्थ जूस कैफे की सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए। जिम में ट्रेंड प्रोफेशनल्स के अलावा फिटनेस प्रोग्राम को साइंटिफिक एप्रोच से करवाने की सुविधा भी होनी चाहिए।
 
* जिम में फिटनेस प्रोग्राम को सही तरीके से गाइड करने के लिए प्रोफेशनल कंसल्टेंट्स, फिटनेस एक्सपर्ट्‌स, फिजियो थैरेपिस्ट्स, न्यूट्रिशनिस्ट्स आदि होने चाहिए। याद रखें हमारे शरीर की जरूरत मेडिकल हिस्ट्री और बॉडी डाइट के अनुसार ही एक्सपर्ट हमें गाइड करें तो बेहतर होता है।
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खुश रहने के कुछ आसान नियम हैं जिनसे आप एक खुशमिज़ाज इंसान बन सकते हैं.....



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आज की इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में हम कई तरह की चिंताओं से घिरे रहते हैं। तनाव तो हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गया है, ऐसे में हम खुशियों से बहुत दूर हो जाते हैं। उतार चढ़ाव तो जीवन में आते ही रहते हैं, अगर हम ज़िंदगी में संतुलन बनाकर चलें और यह जान लें कि ज़िंदगी का असली मज़ा छोटी छोटी खुशियों को जीने में है तो सब कुछ हमारे लिए बहुत ही आसान हो जाएगा।

कई बार हम पैसा, नाम और इज़्ज़त कमाने में इतने डूब जाते हैं कि हम यह देख ही नहीं पाते कि हमारे आस पास भी ऐसी कई छोटी छोटी चीज़ें हैं जो हमें खुशियां दे सकती हैं। खुश रहने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है खुद से प्यार करना और उन बातों से दूर रहना जिनसे आप दुखी होते हैं। इसके बावजूद यदि खुशियां आपके पास नहीं आती हैं तो आप खुशियों के पास जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि आप कुछ बातों को अपने ध्यान में रखें।

तो चलिए हम आपको खुश रहने के कुछ आसान नियम बताते हैं जिनसे आप एक खुशमिज़ाज इंसान बन सकते हैं और साथ ही अपने जीवन का भरपूर आनंद भी उठा सकते हैं।

अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें

खुश रहने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि आप अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखें क्योंकि कमज़ोर शरीर दिमाग को भी कमज़ोर बना देता है। ऐसे में आपके सोचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है और आप नकारात्मक विचारों से घिरे रहते हैं। अगर आप स्वस्थ रहेंगे तो अच्छा सोचेंगे और अच्छा काम भी करेंगे। इसके लिए बेहतर खान पान के साथ आपको व्यायाम भी करना होगा।

 ज़रुरत से ज़्यादा सोचना बंद करें

ज़रुरत से ज़्यादा किसी बात को लेकर चिंता करना आपके लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं होता। इससे आप शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों से बीमार हो सकते हैं। बेहतर होगा आप अपने दिमाग को थोड़ा आराम दें इससे आप अपने जीवन में सकारात्मक चीज़ों पर ध्यान दे पाएंगे। अधिक चिंता और तनाव के कारण आपकी बची हुई ख़ुशियां भी समाप्त हो सकती हैं।

छोटी छोटी जीत का भी जश्न मनाएं

अकसर हम बड़ी बड़ी मुश्किलों में उलझे रह जाते हैं और अपनी छोटी छोटी जीत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हम यह भी भूल जाते हैं कि इनसे भी हमें खुशियां मिल सकती हैं। ऐसे में हमारे लिए अच्छा यही होगा कि हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढें और साथ ही हर दिन होने वाली छोटी ही सही मगर अपनी जीत का भरपूर आनंद उठाएं। इससे आपका आत्मविश्वास और मनोबल भी बढ़ेगा।

लोगों का शुक्रिया अदा करें

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी जीत की खुशियां मनाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन लोगों को भूल जाते हैं जिन्होंने किसी न किसी तरीके से उनकी जीत में अपना योगदान दिया होता है। ऐसा करना बिल्कुल गलत होता है। आपको हमेशा ऐसे लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने सफलता प्राप्त करने में आपकी मदद की है और जिनकी वजह से आपके जीवन में छोटी छोटी खुशियां आती हैं।

योजना बनाएं

अगर आप किसी भी काम को करने से पहले योजना बनाकर चलेंगे तो आपको सफलता और संतुष्टि दोनों ही मिलेगी। इसके अलावा अगर आपने भविष्य में कुछ मज़ेदार करने का सोच रखा है तो उसके लिए भी आप अपनी योजना पहले ही बना लें ताकि बाद में आप केवल मौज मस्ती ही करें। ना कि बेवजह की चिंता में अपना क़ीमती समय व्यर्थ करें।

मुस्कुराएं

जीवन में मिलने वाली छोटी खुशियों और चीज़ों पर मुस्कुराना न भूलें। इससे आपका दिन और भी बेहतर हो जाएगा। खुद भी हंसे और दूसरों को भी हंसाएं। कहते हैं खुशियां बांटने से और भी बढ़ती है।

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सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञ भी समझ नहीं पाते और वे ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो नहीं की जानी चाहिए।....

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सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म अपनी अलग-अलग खूबियां रखते हैं। उन सबका उद्देश्य भी अलग-अलग है, लेकिन कई लोग यह गलती कर जाते हैं कि वे इस अंतर को नहीं समझ पाते। उन्हें लगता है कि सारे प्लेटफार्म सोशल मीडिया के हैं और वे उसका उपयोग किसी भी तरह कर लेना चाहते हैं, जबकि यह सही तरीका नहीं है। फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नैपचेट, गूगल प्लस, पिंटरेस्ट आदि हर प्लेटफार्म का अल्गोरिदम अलग-अलग है और वे अलग-अलग तरीके से बनाए गए सर्च इंजन के मुताबिक पसंद-नापसंद का चयन करते हैं। इस बात को सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञ भी समझ नहीं पाते और वे ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो नहीं की जानी चाहिए।

अव्वल बात तो यह कि अनेक संस्थाओं और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की सोशल मीडिया को लेकर कोई पॉलिसी है ही नहीं। उन्हें जो सूझता है, उसे ही वे करने बैठ जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। कुछ विद्वानों ने सोशल मीडिया की तुलना इसीलिए अंधों के हाथों से की है। सब अपनी-अपनी कल्पना और अंदाज से सोशल मीडिया पर उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। कई बार हम देखते हैं कि कंपनियां अपने प्रोडक्ट को लोकप्रिय बनाने के लिए सोशल मीडिया के हर एक प्लेटफार्म पर सक्रिय हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया से ही उनका कारोबार बढ़ेगा। वास्तविकता यह है कि जब वे अपने कारोबार पर ध्यान देंगे और उसे बढ़ाने के लिए प्रयत्न करेंगे, तब सोशल मीडिया उसमें मदद करेगा, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से ही कारोबार होने लगेगा, यह एक कल्पना मात्र है।

कई लोग एक ही पोस्ट को सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर जैसे का तैसा शेयर कर देते हैं। यह बेहद उबाऊ और घटिया काम है। इसलिए कई बार हमें फेसबुक पेज पर ट्विटर के हैशटैग नजर आ जाते हैं और इंस्टाग्राम के भी। ऐसा करने से यूजर्स को लगता है कि अगर संस्थान के पास इतना धीरज भी नहीं है कि हर एक के लिए अलग-अलग पोस्ट लिखी जा सकें, तो उससे क्या अपेक्षा की जाए? यह ऐसा ही है, जैसा कि प्रिंट का विज्ञापन टेलीविजन में दिखा दिया जाए और टेलीविजन के विज्ञापन को प्रिंट में दिखाने की कोशिश की जाए। 
सोशल मीडिया पर अनेक लोगों के पोस्ट बेहद मशीनी होते हैं। साफ-साफ नजर आता है कि यह कंट्रोल+कॉपी+पेस्ट किया गया मैटर है। कोई भी यह अपेक्षा क्यों करता है कि जिस पोस्ट को लिखने के लिए आपके पास समय नहीं है, उसे पढ़ने के लिए यूजर्स वक्त निकालेंगे। बिना मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं के सोशल मीडिया पर कोई भी पोस्ट अपना असर और प्रभाव नहीं छोड़ सकती।

कई लोग समझते हैं कि हैशटैग लगा देना ही काफी है। वे यह भूल जाते हैं कि हैशटैग तभी महत्वपूर्ण होता है, जब सही जगह सही हैशटैग का इस्तेमाल किया जाए। कई पर हैशटैग उतने प्रभावी माध्यम नहीं भी हैं। इंस्टाग्राम में उपयोग किया जाने वाला हैशटैग फेसबुक पर शायद कोई प्रभाव ना छोड़ पाए। कई लोग सोशल मीडिया पर ही ज्ञान की गंगा बहाने लगते हैं। उन्हें यह इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि सोशल मीडिया के यूजर्स कोई गीता-रामायण पढ़ने नहीं आए हैं। उन्हें यहां जीवन का दर्शन नहीं चाहिए। न ही उन्हें यहां आपके जीवन की महानताओं के किस्से पढ़ने में रुचि है। आपकी पोस्ट को देखने और लाइक करने वाला भी आपके ही जैसा सामान्य व्यक्ति है और उसे भी उतना ही ज्ञान प्राप्त है, जितना कि आपको है। भले ही ऐसा नहीं भी हो, पर वह समझता है कि ज्ञान के मामले में वह यूजर कोई कम नहीं है। ऐसे में सोशल मीडिया पर ज्ञान की गंगा बहाना व्यर्थ है। 

छोटी-मोटी बातों को ध्यान दिया जाए तो सोशल मीडिया का प्रयोग और प्रभावी उपयोग कोई भी कर सकता है। आंखें मूंदकर किसी का अनुसरण न करें। अपना दिमाग लगाएं और सही लोगों तक पहुंचें। यही सोशल मीडिया पर लोगों की दरकार रहती है।

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Rape : दक्षिण अफ्रीका में जोहानसबर्ग के सबसे खतरनाक इलाकों में से एक है। यहां महिलाओं का होना आम बात है।....

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 दक्षिण अफ्रीका के शहर डीपस्लूट के रहने वाले दो युवाओं ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने अबतक कई महिलाओं का बलात्कार किया है। कैमरे के सामने ये कहते वक़्त उनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी। उन्होंने दावा किया कि वो नहीं जानते थे कि वो कुछ गलत कर रहे हैं। उन्होंने कभी खुद को उन बलात्कार पीड़िताओं की जगह रखकर उनकी तकलीफ़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश नहीं की। वो कैमरे पर अपना चेहरा दिखाने को तैयार थे लेकिन अपने नाम गुप्त रखना चाहते थे। उन्होंने बड़े आराम से अपने अपराधों की कहानियां हमारे सामने रखीं।

उन्होंने बताया, "जैसे ही वो दरवाज़ा खोलतीं, हम उनके घर में घुस जाते और अपना चाकू निकाल लेते। वो चिल्लाती थीं। हम उन्हें चुप हो जाने को कहते। उन्हीं के बिस्तर में ले जाकर हम उनका करते थे।" दोनों युवकों में से एक दूसरे की ओर मुड़ा और बोला, "यहां तक कि मैंने एक बार इसी के सामने इसकी गर्लफ्रेंड का रेप कर दिया था।" ये बयान हैरान कर देने वाले हैं, लेकिन डीपस्लूट में ये सब बेहद आम है।
 
हर तीसरा शख्स रेपिस्ट
 
इस शहर के तीन में से एक पुरुष ने माना कि उन्होंने कम से कम एक बार बलात्कार किया है। ये संख्या यहां की आबादी की 38 फ़ीसदी है। ये बात 2016 में किए गए एक सर्वे में सामने आई थी। इस सर्वे के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटर्सरंड ने 2,600 से अधिक आदमियों से बात की थी। कुछ लोगों ने एक ही महिला का दो बार रेप किया था। मारिया का उनके ही घर में रेप किया गया था। जिस वक्त उनका रेप हुआ, उनकी बेटी बगल के कमरे में सो रही थी। "मैं बेटी के ना उठने की प्रार्थना कर रही थी, मुझे डर था कि कहीं वो लोग उसे कुछ नुकसान ना पहुंचाएं।" उनके ने कहा कि वो किसी को मारेंगे नहीं, लेकिन वो जो करना चाहते हैं मारिया उन्हें करने दे।
 
मारिया बताती हैं, "मैंने कहा तुम्हे मेरे साथ जो करना है कर लो। इसके बाद उसने मेरा रेप किया। वो दूसरी बार मेरा रेप कर रहा था।" बहुत कम पीड़िताएं अपने रेपिस्ट का विरोध कर पाती हैं। डीपस्लूट में लोगों के मन में ये धारणा है कि बलात्कार अपराध नहीं है।

 
रेप की कोई सज़ा नहीं
 
बीते तीन सालों में डीपस्लूट में बलात्कार की 500 शिकायतें की गईं, लेकिन किसी भी मामले में कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। रेप के मामले में ही नहीं बल्कि दूसरे अपराधों के मामलों में
भी यहां का कानून अपाहिज नज़र आता है।
 
स्थानीय पत्रकार गोल्डन एमटिका क्राइम रिपोर्टिंग करते हैं। वो कहते हैं, "रात में डीपस्लूट की सड़कों पर निकलना बेहद खतरनाक है। कुछ बुरा होने पर मदद मिलना मुश्किल होता है।" "रात के 10 या 11 बजे भी किसी की हत्या हो सकती है और पुलिस अगले दिन तक उस व्यक्ति के शव को नहीं उठाती।"

लोगों ने कानून हाथ में लिया
 
एमटिका कहते हैं कि डीपस्लूट में कानून नाम की कोई चीज़ नहीं है। ऐसे में कई बार बड़े से बड़े अपराध हो जाते हैं। अपराधों के प्रति प्रशासन का ये ढीला रवैया यहां के आम लोगों को खूब अखरता है। प्रशासन के कार्रवाई ना करने की वजह से यहां के लोग कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। अपराधियों को सज़ा देने के लिए लोग कई बार उन्हें पीट-पीट कर मार देते हैं।

एमटिका के मुताबिक ऐसी घटनाएं यहां हर हफ्ते होती हैं। उन्होंने आंखों देखी एक घटना के बारे में बताया, "भीड़ ने तीन लोगों पर पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी।" एमटिका कहते हैं कि किसी इंसान को अपनी नज़रों के सामने तड़पते हुए देखना बहुत ही भयानक होता है, लेकिन वो उस व्यक्ति की मदद के लिए कुछ नहीं कर सके। क्योंकि अगर वो ऐसा करते तो उन्हें भी भीड़ के गुस्से का शिकार होना पड़ता। यहां तक की पुलिस भी इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, भले ही वो सब उनके सामने ही क्यों ना घट रहा हो।
 
यहां कई लोग लिंचिंग को सही ठहराते हैं, ख़ासकर अगर अपराधी रेपिस्ट हो। डीपस्लूट के एक निवासी कहते हैं, "उनका मर जाना ही अच्छा है, वो हमारे घर में घुस जाते हैं और हमारे पतियों के सामने हमारा रेप करते हैं। वो हमारे पति को कहते हैं कि देखो, देखो मैं कैसे तुम्हारी पत्नी का रेप कर रहा हूं।" 
लेकिन लिंचिंग के बाद भी अपराध रुक नहीं रहे हैं। डीपस्लूट को "डीप डिच" यानी गहरी खाई कहा जाता है और यहां के लोगों को लगता है कि वो इसी गहरी खाई में फंस कर रह गए हैं। ये शहर गरीबी और बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है। लेकिन महिलाओं के खिलाफ़ अपराध और रेप कल्चर ने यहां की आर्थिक स्थिति को और बुरा कर दिया है।
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