Wednesday, 01 January 2025

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खुश रहने के कुछ आसान नियम हैं जिनसे आप एक खुशमिज़ाज इंसान बन सकते हैं.....



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आज की इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में हम कई तरह की चिंताओं से घिरे रहते हैं। तनाव तो हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गया है, ऐसे में हम खुशियों से बहुत दूर हो जाते हैं। उतार चढ़ाव तो जीवन में आते ही रहते हैं, अगर हम ज़िंदगी में संतुलन बनाकर चलें और यह जान लें कि ज़िंदगी का असली मज़ा छोटी छोटी खुशियों को जीने में है तो सब कुछ हमारे लिए बहुत ही आसान हो जाएगा।

कई बार हम पैसा, नाम और इज़्ज़त कमाने में इतने डूब जाते हैं कि हम यह देख ही नहीं पाते कि हमारे आस पास भी ऐसी कई छोटी छोटी चीज़ें हैं जो हमें खुशियां दे सकती हैं। खुश रहने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है खुद से प्यार करना और उन बातों से दूर रहना जिनसे आप दुखी होते हैं। इसके बावजूद यदि खुशियां आपके पास नहीं आती हैं तो आप खुशियों के पास जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि आप कुछ बातों को अपने ध्यान में रखें।

तो चलिए हम आपको खुश रहने के कुछ आसान नियम बताते हैं जिनसे आप एक खुशमिज़ाज इंसान बन सकते हैं और साथ ही अपने जीवन का भरपूर आनंद भी उठा सकते हैं।

अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें

खुश रहने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि आप अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखें क्योंकि कमज़ोर शरीर दिमाग को भी कमज़ोर बना देता है। ऐसे में आपके सोचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है और आप नकारात्मक विचारों से घिरे रहते हैं। अगर आप स्वस्थ रहेंगे तो अच्छा सोचेंगे और अच्छा काम भी करेंगे। इसके लिए बेहतर खान पान के साथ आपको व्यायाम भी करना होगा।

 ज़रुरत से ज़्यादा सोचना बंद करें

ज़रुरत से ज़्यादा किसी बात को लेकर चिंता करना आपके लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं होता। इससे आप शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों से बीमार हो सकते हैं। बेहतर होगा आप अपने दिमाग को थोड़ा आराम दें इससे आप अपने जीवन में सकारात्मक चीज़ों पर ध्यान दे पाएंगे। अधिक चिंता और तनाव के कारण आपकी बची हुई ख़ुशियां भी समाप्त हो सकती हैं।

छोटी छोटी जीत का भी जश्न मनाएं

अकसर हम बड़ी बड़ी मुश्किलों में उलझे रह जाते हैं और अपनी छोटी छोटी जीत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हम यह भी भूल जाते हैं कि इनसे भी हमें खुशियां मिल सकती हैं। ऐसे में हमारे लिए अच्छा यही होगा कि हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढें और साथ ही हर दिन होने वाली छोटी ही सही मगर अपनी जीत का भरपूर आनंद उठाएं। इससे आपका आत्मविश्वास और मनोबल भी बढ़ेगा।

लोगों का शुक्रिया अदा करें

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी जीत की खुशियां मनाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन लोगों को भूल जाते हैं जिन्होंने किसी न किसी तरीके से उनकी जीत में अपना योगदान दिया होता है। ऐसा करना बिल्कुल गलत होता है। आपको हमेशा ऐसे लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने सफलता प्राप्त करने में आपकी मदद की है और जिनकी वजह से आपके जीवन में छोटी छोटी खुशियां आती हैं।

योजना बनाएं

अगर आप किसी भी काम को करने से पहले योजना बनाकर चलेंगे तो आपको सफलता और संतुष्टि दोनों ही मिलेगी। इसके अलावा अगर आपने भविष्य में कुछ मज़ेदार करने का सोच रखा है तो उसके लिए भी आप अपनी योजना पहले ही बना लें ताकि बाद में आप केवल मौज मस्ती ही करें। ना कि बेवजह की चिंता में अपना क़ीमती समय व्यर्थ करें।

मुस्कुराएं

जीवन में मिलने वाली छोटी खुशियों और चीज़ों पर मुस्कुराना न भूलें। इससे आपका दिन और भी बेहतर हो जाएगा। खुद भी हंसे और दूसरों को भी हंसाएं। कहते हैं खुशियां बांटने से और भी बढ़ती है।

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सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञ भी समझ नहीं पाते और वे ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो नहीं की जानी चाहिए।....

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सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म अपनी अलग-अलग खूबियां रखते हैं। उन सबका उद्देश्य भी अलग-अलग है, लेकिन कई लोग यह गलती कर जाते हैं कि वे इस अंतर को नहीं समझ पाते। उन्हें लगता है कि सारे प्लेटफार्म सोशल मीडिया के हैं और वे उसका उपयोग किसी भी तरह कर लेना चाहते हैं, जबकि यह सही तरीका नहीं है। फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नैपचेट, गूगल प्लस, पिंटरेस्ट आदि हर प्लेटफार्म का अल्गोरिदम अलग-अलग है और वे अलग-अलग तरीके से बनाए गए सर्च इंजन के मुताबिक पसंद-नापसंद का चयन करते हैं। इस बात को सोशल मीडिया के कई विशेषज्ञ भी समझ नहीं पाते और वे ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो नहीं की जानी चाहिए।

अव्वल बात तो यह कि अनेक संस्थाओं और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की सोशल मीडिया को लेकर कोई पॉलिसी है ही नहीं। उन्हें जो सूझता है, उसे ही वे करने बैठ जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। कुछ विद्वानों ने सोशल मीडिया की तुलना इसीलिए अंधों के हाथों से की है। सब अपनी-अपनी कल्पना और अंदाज से सोशल मीडिया पर उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। कई बार हम देखते हैं कि कंपनियां अपने प्रोडक्ट को लोकप्रिय बनाने के लिए सोशल मीडिया के हर एक प्लेटफार्म पर सक्रिय हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया से ही उनका कारोबार बढ़ेगा। वास्तविकता यह है कि जब वे अपने कारोबार पर ध्यान देंगे और उसे बढ़ाने के लिए प्रयत्न करेंगे, तब सोशल मीडिया उसमें मदद करेगा, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से ही कारोबार होने लगेगा, यह एक कल्पना मात्र है।

कई लोग एक ही पोस्ट को सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर जैसे का तैसा शेयर कर देते हैं। यह बेहद उबाऊ और घटिया काम है। इसलिए कई बार हमें फेसबुक पेज पर ट्विटर के हैशटैग नजर आ जाते हैं और इंस्टाग्राम के भी। ऐसा करने से यूजर्स को लगता है कि अगर संस्थान के पास इतना धीरज भी नहीं है कि हर एक के लिए अलग-अलग पोस्ट लिखी जा सकें, तो उससे क्या अपेक्षा की जाए? यह ऐसा ही है, जैसा कि प्रिंट का विज्ञापन टेलीविजन में दिखा दिया जाए और टेलीविजन के विज्ञापन को प्रिंट में दिखाने की कोशिश की जाए। 
सोशल मीडिया पर अनेक लोगों के पोस्ट बेहद मशीनी होते हैं। साफ-साफ नजर आता है कि यह कंट्रोल+कॉपी+पेस्ट किया गया मैटर है। कोई भी यह अपेक्षा क्यों करता है कि जिस पोस्ट को लिखने के लिए आपके पास समय नहीं है, उसे पढ़ने के लिए यूजर्स वक्त निकालेंगे। बिना मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं के सोशल मीडिया पर कोई भी पोस्ट अपना असर और प्रभाव नहीं छोड़ सकती।

कई लोग समझते हैं कि हैशटैग लगा देना ही काफी है। वे यह भूल जाते हैं कि हैशटैग तभी महत्वपूर्ण होता है, जब सही जगह सही हैशटैग का इस्तेमाल किया जाए। कई पर हैशटैग उतने प्रभावी माध्यम नहीं भी हैं। इंस्टाग्राम में उपयोग किया जाने वाला हैशटैग फेसबुक पर शायद कोई प्रभाव ना छोड़ पाए। कई लोग सोशल मीडिया पर ही ज्ञान की गंगा बहाने लगते हैं। उन्हें यह इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि सोशल मीडिया के यूजर्स कोई गीता-रामायण पढ़ने नहीं आए हैं। उन्हें यहां जीवन का दर्शन नहीं चाहिए। न ही उन्हें यहां आपके जीवन की महानताओं के किस्से पढ़ने में रुचि है। आपकी पोस्ट को देखने और लाइक करने वाला भी आपके ही जैसा सामान्य व्यक्ति है और उसे भी उतना ही ज्ञान प्राप्त है, जितना कि आपको है। भले ही ऐसा नहीं भी हो, पर वह समझता है कि ज्ञान के मामले में वह यूजर कोई कम नहीं है। ऐसे में सोशल मीडिया पर ज्ञान की गंगा बहाना व्यर्थ है। 

छोटी-मोटी बातों को ध्यान दिया जाए तो सोशल मीडिया का प्रयोग और प्रभावी उपयोग कोई भी कर सकता है। आंखें मूंदकर किसी का अनुसरण न करें। अपना दिमाग लगाएं और सही लोगों तक पहुंचें। यही सोशल मीडिया पर लोगों की दरकार रहती है।

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Rape : दक्षिण अफ्रीका में जोहानसबर्ग के सबसे खतरनाक इलाकों में से एक है। यहां महिलाओं का होना आम बात है।....

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 दक्षिण अफ्रीका के शहर डीपस्लूट के रहने वाले दो युवाओं ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने अबतक कई महिलाओं का बलात्कार किया है। कैमरे के सामने ये कहते वक़्त उनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी। उन्होंने दावा किया कि वो नहीं जानते थे कि वो कुछ गलत कर रहे हैं। उन्होंने कभी खुद को उन बलात्कार पीड़िताओं की जगह रखकर उनकी तकलीफ़ का अंदाज़ा लगाने की कोशिश नहीं की। वो कैमरे पर अपना चेहरा दिखाने को तैयार थे लेकिन अपने नाम गुप्त रखना चाहते थे। उन्होंने बड़े आराम से अपने अपराधों की कहानियां हमारे सामने रखीं।

उन्होंने बताया, "जैसे ही वो दरवाज़ा खोलतीं, हम उनके घर में घुस जाते और अपना चाकू निकाल लेते। वो चिल्लाती थीं। हम उन्हें चुप हो जाने को कहते। उन्हीं के बिस्तर में ले जाकर हम उनका करते थे।" दोनों युवकों में से एक दूसरे की ओर मुड़ा और बोला, "यहां तक कि मैंने एक बार इसी के सामने इसकी गर्लफ्रेंड का रेप कर दिया था।" ये बयान हैरान कर देने वाले हैं, लेकिन डीपस्लूट में ये सब बेहद आम है।
 
हर तीसरा शख्स रेपिस्ट
 
इस शहर के तीन में से एक पुरुष ने माना कि उन्होंने कम से कम एक बार बलात्कार किया है। ये संख्या यहां की आबादी की 38 फ़ीसदी है। ये बात 2016 में किए गए एक सर्वे में सामने आई थी। इस सर्वे के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटर्सरंड ने 2,600 से अधिक आदमियों से बात की थी। कुछ लोगों ने एक ही महिला का दो बार रेप किया था। मारिया का उनके ही घर में रेप किया गया था। जिस वक्त उनका रेप हुआ, उनकी बेटी बगल के कमरे में सो रही थी। "मैं बेटी के ना उठने की प्रार्थना कर रही थी, मुझे डर था कि कहीं वो लोग उसे कुछ नुकसान ना पहुंचाएं।" उनके ने कहा कि वो किसी को मारेंगे नहीं, लेकिन वो जो करना चाहते हैं मारिया उन्हें करने दे।
 
मारिया बताती हैं, "मैंने कहा तुम्हे मेरे साथ जो करना है कर लो। इसके बाद उसने मेरा रेप किया। वो दूसरी बार मेरा रेप कर रहा था।" बहुत कम पीड़िताएं अपने रेपिस्ट का विरोध कर पाती हैं। डीपस्लूट में लोगों के मन में ये धारणा है कि बलात्कार अपराध नहीं है।

 
रेप की कोई सज़ा नहीं
 
बीते तीन सालों में डीपस्लूट में बलात्कार की 500 शिकायतें की गईं, लेकिन किसी भी मामले में कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। रेप के मामले में ही नहीं बल्कि दूसरे अपराधों के मामलों में
भी यहां का कानून अपाहिज नज़र आता है।
 
स्थानीय पत्रकार गोल्डन एमटिका क्राइम रिपोर्टिंग करते हैं। वो कहते हैं, "रात में डीपस्लूट की सड़कों पर निकलना बेहद खतरनाक है। कुछ बुरा होने पर मदद मिलना मुश्किल होता है।" "रात के 10 या 11 बजे भी किसी की हत्या हो सकती है और पुलिस अगले दिन तक उस व्यक्ति के शव को नहीं उठाती।"

लोगों ने कानून हाथ में लिया
 
एमटिका कहते हैं कि डीपस्लूट में कानून नाम की कोई चीज़ नहीं है। ऐसे में कई बार बड़े से बड़े अपराध हो जाते हैं। अपराधों के प्रति प्रशासन का ये ढीला रवैया यहां के आम लोगों को खूब अखरता है। प्रशासन के कार्रवाई ना करने की वजह से यहां के लोग कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। अपराधियों को सज़ा देने के लिए लोग कई बार उन्हें पीट-पीट कर मार देते हैं।

एमटिका के मुताबिक ऐसी घटनाएं यहां हर हफ्ते होती हैं। उन्होंने आंखों देखी एक घटना के बारे में बताया, "भीड़ ने तीन लोगों पर पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी।" एमटिका कहते हैं कि किसी इंसान को अपनी नज़रों के सामने तड़पते हुए देखना बहुत ही भयानक होता है, लेकिन वो उस व्यक्ति की मदद के लिए कुछ नहीं कर सके। क्योंकि अगर वो ऐसा करते तो उन्हें भी भीड़ के गुस्से का शिकार होना पड़ता। यहां तक की पुलिस भी इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, भले ही वो सब उनके सामने ही क्यों ना घट रहा हो।
 
यहां कई लोग लिंचिंग को सही ठहराते हैं, ख़ासकर अगर अपराधी रेपिस्ट हो। डीपस्लूट के एक निवासी कहते हैं, "उनका मर जाना ही अच्छा है, वो हमारे घर में घुस जाते हैं और हमारे पतियों के सामने हमारा रेप करते हैं। वो हमारे पति को कहते हैं कि देखो, देखो मैं कैसे तुम्हारी पत्नी का रेप कर रहा हूं।" 
लेकिन लिंचिंग के बाद भी अपराध रुक नहीं रहे हैं। डीपस्लूट को "डीप डिच" यानी गहरी खाई कहा जाता है और यहां के लोगों को लगता है कि वो इसी गहरी खाई में फंस कर रह गए हैं। ये शहर गरीबी और बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है। लेकिन महिलाओं के खिलाफ़ अपराध और रेप कल्चर ने यहां की आर्थिक स्थिति को और बुरा कर दिया है।
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चलती बस-मेट्रो में लड़के होते हैं यौन उत्पीड़न का शिकार.....

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"मैं फॉर्म भरने की लाइन में खड़ा था, तभी उन्होंने पीछे से मुझ पर अपना प्राइवेट पार्ट टच किया।" बिक्रम का इतना कहना था कि उनके आस-पास बैठे उनके तीन दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगे। वो एक सुर में कहने लगे कि अच्छा आगे बताओ फिर क्या हुआ। बिक्रम थोड़ा हिचकिचाए और फिर बताने लगे, ''जब तक मैं लाइन में लगा रहा, उन्होंने कई बार ऐसा किया। मेरे पीछे खड़े अंकल की उम्र 50 साल से ऊपर रही होगी और मैं उस समय कॉलेज जाने वाला लड़का था। जब मैंने अंकल से कहा कि वे ठीक से खड़े हो जाएं तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- 'क्या हो गया, रहने दो ना।''
 
दिल्ली में नौकरी करने वाले बिक्रम के साथ हुई इस घटना को लगभग आठ साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी उन्हें सब याद है। वो बताते हैं, ''मैं उन अंकल की उम्र का सम्मान करते हुए बहुत देर तक यह सब सहता रहा लेकिन आख़िरकार गुस्से में मैंने उन्हें बहुत बुरा-भला कहा।'' बीबीसी से इस बात को साझा करते हुए उन्होंने साफ़ किया कि इतने सालों में वो पहली बार किसी के सामने इस घटना का ज़िक्र कर रहे हैं। इसके पहले उन्हें कभी कोई ऐसा दोस्त नहीं मिला जो पूरी संवेदनशीलता के साथ उनकी परेशानी समझ पाता। हालांकि, जिस वक्त बिक्रम 'संवेदनशीलता' की बात कर रहे थे, उस वक़्त भी उनके दोस्त दबी हुई हंसी में अपनी असंवेदनशीलता दर्शा रहे थे।

में सीट देने के बहाने उत्पीड़न
 
इस तरह की घटना उत्तर प्रदेश के रहने वाले कपिल शर्मा के साथ भी हुई। कपिल के साथ पहली बार ऐसा तब हुआ जब वो 10 साल के थे। उनके मुताबिक़, वो आज भी बसों में सफ़र करते समय इससे जूझते हैं जबकि आज वो नौकरी पेशा हैं और सरकारी नौकरी में हैं। कपिल अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, ''मैं नौकरी के सिलसिले में लखनऊ से दिल्ली आया था और अक्सर बस से सफ़र करता था। इसी तरह एक दिन एक अधेड़ उम्र के आदमी ने मुझे अपने पास बैठने के लिए सीट दी। मैं भी ख़ुशी-ख़ुशी बैठ गया, लेकिन थोड़ी देर बाद वह आदमी मेरे प्राइवेट पार्ट की तरफ अपना हाथ लगाने लगा। मुझे लगा बस में भीड़ है, इस वजह से शायद उनका हाथ लग गया हो, लेकिन वे लगातार ऐसी हरकत करते रहे। मैं किसी को कुछ बता भी न पाया। चुपचाप सहता रहा।''
 
लेकिन ये पूछे जाने पर कि आख़िर लड़के इस तरह की घटना में चुप क्यों रहते हैं, कपिल बेझिझक बताते हैं, "इसके पीछे एक तरह का डर होता है। डर इस बात का कि दोस्तों के बीच मेरी छवि एक कमज़ोर पुरुष वाली न बन जाए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारा समाज लड़कों को शुरुआत से ही ताकतवर, मज़बूत, कभी ना रोने वाला जैसे विशेषणों में ढाल देता है।"

क्या है फ़्रोटेरिज़्म
 
बिक्रम और कपिल के साथ सार्वजनिक स्थानों पर हुई इस तरह की छेड़छाड़ की तस्दीक़ दूसरे पुरुष भी करते हैं। आख़िर ऐसी क्या वजह है कि के शिकार पुरुष अपने साथ हुई घटनाओं को अक्सर छिपाते हैं। दिल्ली में मनोचिकित्सक डॉक्टर प्रवीण त्रिपाठी भी कपिल की बात से सहमति जताते हैं। बीबीसी से बातचीत में डॉ. प्रवीण कहते हैं, "इसके पीछे सबसे बड़ी वजह शर्मिंदगी का डर होता है। पुरुषों को लगता है कि उनके दोस्त या परिजन उन पर हंसेंगे। पुरुषों के भीतर घर कर गई तथाकथित मर्दानगी की भावना भी उन्हें अपने साथ हुई छेड़छाड़ की घटना को साझा करने से रोकती है।"

पुरुषों के साथ सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों में एक और बात जो निकलकर आती है, वह यह कि इस तरह की हरकतें करने वालों में ख़ुद पुरुष ही शामिल रहते हैं। इन पुरुषों की मानसिकता के बारे में डॉ. प्रवीण कहते हैं कि ये लोग 'फ़्रोटेरिज़्म' नामक बीमारी के शिकार होते हैं। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जेनेटिकल पार्ट को छूने से एक तरह की यौन संतुष्टि प्राप्त करता है। इसके लिए वह दूसरे व्यक्ति की सहमति भी नहीं मांगता।

इस बीमारी में और क्या क्या होता है?
 
डॉ. प्रवीण कहते हैं, ''यौन उत्पीड़न के अधिकतर मामले अपनी ताक़त दर्शाने की कोशिश होती है। पुरुषों के ज़रिए पुरुषों के यौन उत्पीड़न के मामलों में ताक़त का प्रदर्शन और ज़्यादा हो जाता है।'' ऐसी कई रिपोर्ट भी हैं जिनसे यह पता चला है कि पुरुषों के ज़रिए पुरुषों का रेप करने की घटनाओं में यौन सुख प्राप्त करने की बजाय अपनी ताक़त दर्शाना बड़ी वजह रही है। महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न का जितना असर उन पर पड़ता है, ठीक वैसा ही असर पुरुषों पर भी होता है। डॉक्टरों का मानना है कि कई बार इस ट्रॉमा से बाहर निकलने में उन्हें सालों लग सकते हैं। कपिल कहते हैं, ''मैं आज भी इस तरह की घटनाओं को याद कर सिहर जाता हूं और चाहता हूं कि मेरी आने वाली पीढ़ी को यूं घुट-घुटकर ना रहना पड़े। वह खुलकर अपने साथ होने वाले यौन उत्पीड़न की शिकायत करें।''
 
पुलिस में दर्ज क्यों नहीं करते मामला?
 
कपिल शर्मा ने जब अपने साथ कई सालों तक अलग-अलग जगहों पर हुई छेड़छाड़ की बातें बताईं, तो उनसे एक सवाल पूछना वाजिब था कि आख़िर उन्होंने इसकी रिपोर्ट कभी पुलिस को क्यों नहीं की। तपाक से कपिल के मुंह से जवाब निकला, "पुरुषों के साथ छेड़छाड़ के मामले पर सबसे पहले तो कोई यकीन ही नहीं करता और एक बार के लिए कोई विश्वास कर भी ले तो भारतीय क़ानून भी इस तरह के मामलों में पुरुषों का साथ नहीं देता।" ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे पीड़ित पुरुषों के लिए आख़िर क़ानून में क्या है?

दिल्ली हाईकोर्ट के वकील विभाष झा कहते हैं, "भारतीय दंड संहिता आईपीसी में धारा 354 के तहत यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज किए जाते हैं। इसके अलावा धारा 376 और 509 के तहत भी यौन हिंसा से जुड़े मामलों को दर्ज किया जाता है। क़ानून में लिखा है कि इसमें पीड़िता महिला है। साथ ही धारा 509 में महिला की मर्यादा का हनन होने की बात कही गई है। इस तरह से ये क़ानून पुरुषों के ख़िलाफ़ ही हो जाते हैं और पुरुष इन धाराओं के तहत मामला दर्ज नहीं करवा सकते।''
 
विभाष बताते हैं कि 18 साल से कम उम्र के लड़का या लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में तो पोक्सो क़ानून कारगर हो जाता है लेकिन वयस्क पुरुषों के मामले में क़ानून उनके साथ नहीं रहता। हालांकि, वकील अनुजा कपूर की राय इस संबंध में थोड़ी जुदा है। वो कहती हैं कि पुरुषों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ जैसे मामलों को भी इन्हीं धाराओं के तहत दर्ज किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक़, ''अगर पुरुषों के साथ छेड़खानी या यौन उत्पीड़न होता है तो उन्हें पुलिस में मामला दर्ज करवाने जाना चाहिए और अगर पुलिस मामला ना दर्ज करे तो इसके ख़िलाफ़ जनहित याचिका दायर करनी चाहिए।''

अनुजा इस बात पर सहमत दिखती हैं कि पुरुष भी यौन उत्पीड़न का शिकार होते हैं। उनकी राय है कि जब तक पुरुष एकजुट होकर अपने हक़ की मांग नहीं करेंगे तब तक क़ानून में भी बदलाव नहीं हो पाएगा। इसका सीधा-सा उदाहरण है महिलाएं। अपने ख़िलाफ़ हो रही घटनाओं पर एकजुट होकर उन्होंने आवाज़ उठाई और कई क़ानून में बदलाव करवाए।
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