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भारत में कोरोना वायरस के मरीज की संख्या काफी तेजी से बढ़ ही है। इस महामारी को खत्म करने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है। वैक्सीन लगाने के बाद लोगों में साइड इफेक्ट देखने को मिला है। वैक्सीन लगने के बाद तमाम लोगों के साइड इफेक्ट के मामले सामने आ रहे हैं।
वैक्सीन का महिलाओं पर साइड इफेक्ट
वैक्सीन लगाने के बाद महिलाओं में कई तरह के साइड इफेक्ट देखने को मिल सकते हैं। अमेरिका की प्रमुख स्वास्थ्य संस्था सीडीसी ने वैक्सीन लेने वाले 1 करोड़ 37 लाख लोगों पर एक डेटा तैयार किया है। इस डेटा के अनुसार 79 % महिलाएं वैक्सीन के साइड इफेक्ट का शिकार हुई है।
पीरियड के दौरान हो सकता है हैवी फ्लो
वैक्सीन के साइड इफेक्ट महिलाओं को पीरियड के दौरान हो सकते है। वैक्सीन के बाद पीरियड के दिनों में अधिक फ्लो हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन का डोज लेने से इम्युन सिस्टम तेजी से रिएक्ट करता है जो की बॉडी में मौजूद प्लेटलेट्स के थक्के को नष्ट कर देता है। इसी वजह से हैवी फ्लो होने लगता है। वहीं पेट में ऐंठन और तेज दर्द भी हो सकता है। जरुरी नहीं है ऐसा हर महिला के साथ हो, कुछ महिलाएं इसका शिकार हो सकती है।
वैक्सीन लेने के बाद कुछ महिलाओं को पेट दर्द, उल्टी और थकान महसूस होने लगती है। यह टीका का साइड इफेक्ट भी हो सकता है। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि कुछ समय बाद ये परेशानी अपने आप ठीक हो जाती है। कुछ महिलाओं को वैक्सीन के बाद ठंड और बुखार भी हो सकता है। वैक्सीन के बाद कुछ महिलाओं के बॉडी पार्ट्स में दर्द भी हो सकता है।
कुछ महिलाओं का मानना है कि गर्भावस्था के दौरान मांसाहारी भोजन का सेवन करना गर्भवती स्त्री और भ्रूण के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि, डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस दावे का दृढ़ता से खंडन करते हैं। उनके अनुसार, मांसाहारी भोजन का सेवन गर्भावस्था के दौरान बिल्कुल भी हानिकारक नहीं है।
क्या गर्भावस्था के दौरान नॉन-वेज फूड सुरक्षित है?
गर्भावस्था के दौरान नॉन-वेज फूड को ना खाने के पीछे मुख्य वजह यह होती है कि अधिकांश नॉन-वेज फूड्स में बहुत अधिक पोटेशियम और कोलेस्ट्रॉल होता है, जिससे आपका वजन बढ़ने लगता है। इसके अलावा, नॉन-वेज को पकाने के लिए जिस तेल का इस्तेमाल किया जाता है, वह भी गर्भवती स्त्री के लिए हर दिन खाना सही नहीं माना जाता।
यहां हम आपको कुछ ऐसे नॉन-वेज फूड्स के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें आप गर्भावस्था में भी बेहद आसानी से खा सकती हैं। हालांकि आपको इनका सेवन करते समय इनकी मात्रा पर भी नजर रखनी चाहिए।
गर्भावस्था में सुरक्षित नॉन-वेज फूड
नीचे दिए गए नॉन-वेज फूड को गर्भवती महिलाओं की राय और किए गए अध्ययन के आधार पर लिस्ट किया गया है। चूंकि हर गर्भवती महिला की क्रेविंग एक जैसी नहीं होती, इसलिए आप अपनी क्रेविंग के आधार पर लिस्ट में दिए गए नॉन-वेज फूड में से किसी एक का चयन कर सकती हैं।
चिकन
गर्भावस्था के दौरान, चिकन सबसे सुरक्षित नॉन-वेज फूड आइटम्स में से एक है जिसका आप उपभोग कर सकती हैं। हालांकि, इनका सेवन करते समय आप यह सुनिश्चित करें कि आप बहुत अधिक मसालेदार चिकन जैसे फूड आइटम्स को ना खाएं, क्योंकि इससे पेट खराब हो सकता है। इसके स्थान पर मलाई चिकन जैसे हल्के मसालेदार चिकन व्यंजन गर्भवती महिलाओं के लिए एक सुरक्षित विकल्प हैं।
लैम्ब
लैम्ब एक सॉफ्ट नॉन-वेज फूड है जिसका सेवन आप गर्भावस्था के दौरान कर सकती हैं। यह प्रोटीन और विटामिन में भी समृद्ध है। अध्ययन बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को किसी भी अन्य किसी भी नॉन वेज फूड की जगह मटन का सेवन करना चाहिए।
बीफ
रेड मीट का सेवन काफी कम मात्रा में करना चाहिए क्योंकि यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर में उच्च होता है जो गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन का कारण बन सकता है। ऐसे में गर्भवती महिलाएं बीफ के व्यंजन रोस्ट करके बना सकती हैं जो कम मसालेदार होते हैं और अच्छी तरह से पकाया जाता है।
गर्भावस्था के समय ट्यूना सैंडविच सबसे गर्भवती महिलाओं में से एक होते हैं। हालांकि, ट्यूना सैंडविच का सेवन आपको सीमित मात्रा में करना चाहिए। यह ओमेगा -6 फैटी एसिड का एक उच्च स्रोत है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान इनका सेवन सीमित किया जाना चाहिए।
उबले हुए या स्क्रैम्ब्ल्ड बंडे
एग व्हाइट कैल्शियम से भरपूर होते है और इसलिए यह भ्रूण के विकास में मदद करता है। गर्भस्थ शिशुऔर माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिए नाश्ते में गर्भवती स्त्री एग व्हाइट का सेवन कर सकती हैं।
अध्ययनों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान सूप सबसे अच्छा नॉन-वेज फूड होता है। सूप हमेशा प्रेग्नेंसी डाइट में एक हेल्दी एडिशन होते हैं। वे एंटीऑक्सिडेंट का एक भंडार हैं और पचाने में आसान हैं।
गर्भावस्था के दौरान इन नॉन-वेज फूड से बचें
अगर आप गर्भावस्था में नॉन-वेज फूड खा रही हैं तो आपको बस इतना ध्यान रखना है कि अस्वास्थ्यकर वजन बढ़ने, उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर और हृदय रोगों के जोखिम से बचने के लिए नियंत्रित मात्रा में ही इनका सेवन करें। इसके अलावा, कुछ ऐसे नॉन-वेज फूड होते हैं, जिनसे बचना आपके लिए अधिक सुरक्षित रहेगा-
डेली-मीट या प्री-कुक्ड मीट, जो लिस्टिरिया संक्रमण के खतरे के कारण बन कता है।
कच्चे अंडे साल्मोनेला बैक्टीरिया को स्थानानंतरित कर सकते हैं।
मछली जिसमें मर्करी का उच्च स्तर होता हैं, जैसे ट्यूना, समुद्री बास, मैकेरल आदि।
कच्चे शेलफिश (सुशी) शैवाल से संबंधित संक्रमण से ग्रस्त हैं।
इसलिए जहां तक हो सके, इस तरह के नॉन-वेज फूड को गर्भावस्था में खाने से बचें।
मां बनना एक स्त्री के लिए किसी सपने के पूरे होने जैसा है। आमतौर पर गर्भावस्था में महिला अपने स्वास्थ्य को लेकर अतिरिक्त सजग रहती हैं। एक हेल्दी प्रेग्नेंसी के लिए महिला अपने खानपान से लेकर व्यायाम आदि कई गतिविधियों पर ध्यान देती हैं। गर्भावस्था में योगासन करना महिला के लिए बेहद लाभकारी माना गया है। इससे उन्हें गर्भावस्था के दौरान होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से तो राहत मिलती है ही, साथ ही साथ लेबर पेन आदि में भी लाभ होता है। हालांकि एक गर्भवती स्त्री को किसी भी योगासन को करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। केवल कुछ ही आसन होते हैं जो गर्भावस्था में सुरक्षित माने गए हैं। साथ ही इन्हें करते समय भी आपको कोई गलती करने से बचना चाहिए। तो चलिए आज वुमन हेल्थ रिसर्च फाउंडेशन की फाउंडर और योगा गुरू नेहा वशिष्ट कार्की आपको बता रही हैं कि गर्भावस्था में महिलाओं को कौन-कौन से योगासन करने चाहिए। योगा गुरू नेहा कार्की ने योगा फॉर प्रेग्नेंसी नामक किताब भी लिखी है, जो हिन्दी व इंग्लिश में अवेलेबल है-
अगर गर्भावस्था में किए जाने वाले सुरक्षित योगासनों की बात की जाए तो इसमें सबसे पहला नाम ताड़ासन का लिया जाता है। अगर सुबह के समय गर्भवती महिला इसका अभ्यास करे तो शरीर में थकावट या सुस्ती का अहसास नहीं होता। इसके अलावा यह मार्निंग सिकनेस, मतली व उल्टी आदि में भी आराम दिलाता है। आप पहली तिमाही में इस आसन को पैर मिलाकर करें। दूसरी तिमाही में पैरों में थोड़ा गैप करें और तीसरी तिमाही में कमर जितना गैप रखकर ही इस आसन का अभ्यास करना चाहिए।
कटिचक्रासन
यह मेरूदंड को सही तरह से ट्विस्ट करता है, जिससे आपको गर्भावस्था में कमर दर्द की शिकायत से आराम मिलता है। इस योगासन को गर्भावस्था के पूरे नौ महीने बेहद आसानी से किया जा सकता है।
मर्जरी आसन आसन कमर के लिए काफी अच्छा माना जाता है। हाथों और पैरों की मसल्स को मजबूत बनाता है। साथ ही यह बॉडी की टाइटनिंग व टोनिंग भी करता है। इसे भी गर्भावस्था के पूरे नौ महीने किया जा सकता है। लेकिन अगर किसी को बार-बार मिसकैरिज होता है या फिर आईवीएफ बेबी है तो इस आसन का अभ्यास पहला अल्ट्रासाउंड देखने के बाद अर्थात् 20 सप्ताह के बाद ही किया जाना चाहिए।ं इसके अलावा, दूसरी व तीसरी तिमाही में दोनों पैरों के नीचे तौलिया या कुशन लगाकर ही इस आसन का अभ्यास करें। वहीं, सांस भरते वक्त चेहरे को उपर लेकर जाएं और सांस छोड़ते वक्त चेहरे को नीचे लेकर आएं।
त्रिकोणासन
त्रिकोणासन भी पूरी प्रेग्नेंसी में किया जा सकता है, लेकिन इसका अभ्यास भी पहले अल्ट्रासाउंड के बाद ही शुरू किया जाना चाहिए। इसमें पैरों के बीच समानांतर गैप रखते हैं। लेकिन इसमें आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि सीधे व उल्टे पैर की एड़ी दोनों आमने-सामने नहीं होनी चाहिए, बल्कि आगे-पीछे होनी चाहिए। इससे गिरने की संभावना कम होती है। इसके अलावा, दूसरी व तीसरी तिमाही के दौरान आप इसे दीवार के सहारे से अभ्यास करें। यह आसन कमर व हाथों के लिए बहत अच्छा है। साथ ही साथ यह गर्भावस्था में महिला को पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर करता है।
इस आसन को करते समय आप ध्यान रखें कि तीसरी तिमाही के दौरान आप सीधा जमीन पर बैठकर आसन ना करें, बल्कि नीचे कुशन लगाकर ही इसका अभ्यास करें। ऐसा ना करने पर महिला को कमर दर्द की शिकायत हो सकती है। यह श्रोणि भाग की मसल्स व बोन्स को मजबूती प्रदान करता है। साथ ही महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में मदद करता है। यह वजाइना से संबंधित समस्याओं व यूटीआई की शिकायत को दूर करता है।
मलासन
आप इसे दूसरी तिमाही से कर सकती हैं और तीसरी तिमाही में आप इसे अलमारी, बेड व अन्य किसी चीज को पकड़कर अभ्यास कर सकती हैं। यह आपके पैरों की मसल्स को मजबूत करता है। इसके आपको नार्मल डिलीवरी की चांसेस तो बढ़ते हैं ही, साथ ही प्रसव के बाद होने वाली समस्याओं जैसे पाइल्स आदि भी नहीं होती। यह आसन महिलाओं के रिप्रॉडक्टिव सिस्टम को बेहद मजबूत बनाता है।
नोट- चूंकि हर महिला की प्रेग्नेंसी कॉम्पलीकेशन अलग होती है, इसलिए किसी भी आसन का अभ्यास करने से पहले अपनी स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह अवश्य दें व योगा गुरू की देख-रेख में ही इनका अभ्यास करें।
जब एक महिला गर्भवती होती है तो उसके शरीर में आने वाले संकेत उसे इस बात का इशारा देते हैं। मितली, थकान, स्तनों में सूजन आदि लक्षणों को गर्भधारण से जोड़कर देखा जाता है। जब किसी महिला को यह लक्षण नजर आते हैं तो उसे यही लगता है कि वह गर्भधारण कर चुकी है। हालांकि, कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसा नहीं होता है। इसे ही फैंटम प्रेग्नेंसी या फॉल्स प्रेग्नेंसी भी कहा जाता है। वहीं क्लीनिकल टर्म में इसे स्यूडोसिसिस कहते हैं। यह एक असामान्य स्थिति है जिसमें
अभी तक इस बात का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि कुछ महिलाएं स्यूडोसिसिस या फैन्टम प्रेग्नेंसी का अनुभव क्यों करती है? लेकिन इसके तीन प्रमुख सिद्धांत हैं। कुछ मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह गर्भवती होने की तीव्र इच्छा या डर से संबंधित हो सकता है। यह संभव है कि यह महिला के एंडोक्राइन सिस्टम को प्रभावित करता है, जिसके कारण उन्हें गर्भावस्था के लक्षण नजर आने लगते हैं।
वहीं एक दूसरा सिद्धांत यह भी है। कुछ मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब एक महिला लंबे समय तक गर्भवती होने के लिए तरसती है, तो संभवतः वह कई गर्भपात या बांझपन का अनुभव करती है। ऐसे में वह अपने शरीर में कुछ बदलावों को गलत संकेत के रूप में समझ सकती है कि वह गर्भवती है।
तीसरा सिद्धांत तंत्रिका तंत्र में कुछ रासायनिक परिवर्तनों से संबंधित है जो अवसादग्रस्तता विकारों से संबंधित हैं। यह संभव है कि ये रासायनिक परिवर्तन फैन्टम प्रेग्नेंसी के लक्षणों के लिए जिम्मेदार हों।
अगर स्यूडोसिसिस या फैन्टम प्रेग्नेंसी के लक्षणों की बात हो तो यह अक्सर हर तरह से गर्भावस्था से मिलती है, हालांकि इसमें महिला के गर्भ में बच्चे की उपस्थिति नहीं होती है। सभी मामलों में, महिला पूरी तरह से निश्चित है कि वह गर्भवती है। शारीरिक लक्षणों में, उसमें पेट में होने बदलाव शामिल है। फैन्टम प्रेग्नेंसी में महिला के पेट का विस्तार उसी तरह शुरू हो सकता है जैसे गर्भावस्था के दौरान होता है जब एक विकासशील बच्चा बढ़ता है। हालांकि, एक झूठी गर्भावस्था के दौरान, यह पेट का विस्तार एक बच्चे के होने या उसके विकास होने का परिणाम नहीं है। इसके बजाय, यह गैस, फैट व मूत्र के बिल्डअप के कारण माना जाता है। वहीं, एक महिला के मासिक धर्म चक्र की अनियमितता दूसरा सबसे आम शारीरिक लक्षण है। इतना ही नहीं, कुछ महिलाएं तो फैन्टम प्रेग्नेंसी में बच्चे के मूव होने यहां तक कि बच्चे के किक होने का भी अहसास किया। भले ही उनके गर्भ में कोई बच्चा मौजूद नहीं था। वहीं अन्य लक्षणों में मॉर्निंग सिकनेस, उल्टी, स्तनों में टेंडरनेस, स्तनों में परिवर्तन, लैक्टेशन होना, वजन बढ़ना, प्रसव पीड़ा का अहसास होना, भूख बढ़ना, यूट्रस का एनलार्ज होना, गर्भाशय ग्रीवा का नरम होना आदि शामिल हैं।
फैन्टम प्रेग्नेंसी में नजर आने वाले लक्षणों की खास बात यह होती है कि ये लक्षण इतने विश्वसनीय हो सकते हैं कि डॉक्टर भी धोखा खा सकते हैं और उन्हें भी ऐसा लगता है कि महिला गर्भवती है।
अगर एक महिला फैन्टम प्रेग्नेंसी या स्यूडोसिसिस का अनुभव करती है तो ऐसे में उसे इस अवस्था से बाहर लाने का सबसे अच्छा तरीका है कि उसे इस बात के सबूत दिखाए जाएं कि वह गर्भवती नहीं है। इसके लिए वास्तव में इमेजिंग तकनीक जैसे अल्ट्रासाउंड आदि का सहारा लिया जा सकता है। चूंकि स्यूडोसिसिस या फैन्टम प्रेग्नेंसी की स्थिति किसी फिजिकल या शारीरिक कारणों से नहीं होता, इसलिए इस समस्या के इलाज के लिए किसी तरह की दवा का सेवन नहीं किया जा सकता। हालांकि, अगर एक महिला मासिक धर्म में अनियमितता जैसे लक्षणों का अनुभव कर रही है, तो ऐसे में दवाओं के माध्यम से उनकी समस्या का इलाज किया जा सकता है। वहीं, कई बार महिलाएं मनोवैज्ञानिक अस्थिरता के कारण भी फैन्टम प्रेग्नेंसी का अनुभव करती हैं। ऐसे में वह उपचार के लिए मनोचिकित्सक की सलाह ले सकती हैं।