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मां का दूध बच्चे के लिए वरदान है लेकिन अगर बच्चे को ये वरदान जन्म के पहले घंटे में नहीं मिला तो उसकी ज़िंदगी ख़तरे में भी पड़ सकती है. यूनिसेफ़ के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले ज़्यादातर देशों में पांच में से सिर्फ़ दो बच्चों को ही जन्म के पहले घंटे में मां का दूध मिल पाता है. इसके चलते बच्चों की सेहत पर तो असर पड़ता है ही साथ ही उनके जीवित नहीं रहने का ख़तरा भी बढ़ जाता है. ये रिपोर्ट दुनियाभर के 76 देशों में हुए अध्ययन पर आधारित है. रिपोर्ट के अनुसार, क़रीब 7 करोड़ 80 लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिला.
लेकिन पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिलने पर होता क्या है?
सवाल उठता है कि अगर कोई औरत अपने बच्चे को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान नहीं करा पाए तो इसका असर क्या होगा? रिपोर्ट की मानें तो अगर बच्चे को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान नहीं मिलता है तो बच्चे की मौत आशंका 33 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है. अगर बच्चे को जन्म के 24 घंटे तक भी मां का दूध नहीं मिलता है तो मौत का ख़तरा दोगुना हो जाता है.
दावा किया गया है कि जिन बच्चों को मां का दूध पहले घंटे में मिलता है वो तुलनात्मक रूप से ज़्यादा स्वस्थ रहते हैं और उन्हें कई तरह के संक्रमण से भी सुरक्षा मिलती है. मां और बच्चे का यह संपर्क ब्रेस्टमिल्क प्रोडक्शन के लिहाज़ से भी ज़रूरी है. इस पहले संपर्क से ही कोलोस्ट्रम बनने में भी मदद मिलती है.
साइंसडेली के अनुसार, कोलोस्ट्रम को पहला दूध भी कहते हैं. मां बनने के बाद कुछ दिनों तक कोलोस्ट्रम ही प्रोड्यूस होता है. कोलोस्ट्रम गाढ़ा, चिपचिपा और पीलापन लिए हुए होता है. कोलोस्ट्रम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, एंटी-बॉडीज़ का ख़जाना होता है. इसमें फ़ैट बहुत कम होता है, इस लिहाज़ से बच्चा इसे आसानी से पचा भी लेता है. बच्चे के पहले स्टूल (मेकोनियम) के लिए भी ये ज़रूरी है.
रिपोर्ट के अनुसार, मां के पहले दूध को बच्चे के पहले वैक्सीन के तौर पर भी माना जाता है.
भारत में क्या है स्थिति?
यूनिसेफ़ ने 76 देशों में अध्ययन के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसके अनुसार, पूर्वी और दक्षिणी अफ़्रीका में ब्रेस्टफीडिंग को लेकर सबसे अधिक जागरुकता (65 फ़ीसदी) है जबकि पूर्वी एशिया में सबसे कम (32 प्रतिशत). 76 देशों की इस सूची में भारत 56वें नंबर पर है जबकि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान 75वें पर. श्रीलंका इस क्रम में पहले नंबर पर है.
क्या सी-सेक्शन से भी असर पड़ता है?
रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि सी-सेक्शन यानी ऑपरेशन से होने वाली डिलीवरी में तेज़ी आने की वजह से भी कई बार मां, बच्चे को एक घंटे के भीतर दूध नहीं पिला पाती. साल 2017 के आकड़ों के आधार पर पाया गया है कि दुनिया भर में सी-सेक्शन के मामलों में 20 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है. मिस्र का उदाहरण देते हुए इसके प्रभाव को समझाने की कोशिश की गई है. यहां सी-सेक्शन से पैदा सिर्फ़ 19 फ़ीसदी बच्चों को ही पहले घंटे में मां का दूध मिला जबकि नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए 39 फ़ीसदी बच्चों को एक घंटे के भीतर मां का दूध मिल गया. सी-सेक्शन के अलावा एक और भी बहुत बड़ी वजह है जिसके चलते बच्चे को पहले घंटे में मां का दूध नहीं मिल पाता.
रिपोर्ट में संबंधित देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे नवजात बच्चों के लिए तैयार फॉर्मूले और दूसरे उत्पादों के बाज़ारीकरण के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानूनी प्रक्रिया अपनाएं ताकि पहले घंटे में मां के दूध का ही विकल्प प्राथमिकता रहे.
लेकिन क्या कहना है भारतीय महिलाओं का?
यूनिसेफ़ की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए हमनें बीबीसी के फ़ेसबुक ग्रुप लेडीज़ कोच पर महिलाओं से उनके अनुभव साझा करने को कहा. ज़्यादातर महिलाओं का मानना है कि मां, बच्चे को पहले घंटे में दूध पिला पाएगी या नहीं ये बहुत हद तक अस्पताल, डॉक्टर, नर्स और उस वक़्त मौजूद लोगों पर निर्भर करता है. अनुमेधा प्रसाद का कहना है कि कुछ बातों को भारत के ज़्यादातर अस्पतालों में तवज्जो नहीं दी जाती है जबकि विकसित देशों में बच्चे के पैदा होते ही उसे उसी तरह मां को दे दिया जाता है. इसके बाद कहीं जाकर नाल काटी जाती है और साफ़-सफाई की जाती है. वहां और यहां में ये बड़ा अंतर है.
बतौर अनुमेधा "ज़्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि बच्चों को जन्म के तुरंत बाद स्तन से लगाते ही दूध आता नहीं है. लेकिन बच्चे को छाती से सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नहीं लगाया जाता, ये भावनात्मक लगाव के लिए भी ज़रूरी है." अनुमेधा के दोनों बच्चों की डिलीवरी नॉर्मल हुई थी. वो बताती हैं कि उनके पिता डॉक्टर हैं इसलिए उन्हें पहले से ही पता था कि मां का पहला दूध एक घंटे के भीतर देना ज़रूरी होता है. वहीं दिप्ति दुबे भी उन मांओं में से हैं जिन्हें ये पता था कि बच्चे के जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को दूध पिलाना ज़रूरी है. उन्होंने भी अपने बच्चे को जन्म के तुरंत बाद स्तनपान कराया था.
अनुमेधा से अलग ख़दीजा के दोनों बच्चे सी-सेक्शन से हुए. ख़दीजा के अनुसार, "सी-सेक्शन में चुनौती तो होती है लेकिन जब ये पता हो कि बच्चे को कैसे ब्रेस्टफ़ीड कराना है तो ज़्यादा परेशानी नहीं होती." ख़दीजा के एक बच्चे का जन्म लंदन में हुआ. जहां उन्हें डॉक्टरों ने ये बता दिया था कि क्योंकि उन्हें स्टिचेज़ हैं तो बैठने की ज़रूरत नहीं वो लेटे-लेटे भी बच्चे को दूध पिला सकती हैं.
वो कहती हैं "मैंने अपने बच्चे को आधे घंटे के भीतर फ़ीड कराना शुरू कर दिया था. लेकिन वहीं जब मेरी पहली डिलीवरी दिल्ली में हुई थी तो मुझे डॉक्टरों की पूरी मदद नहीं मिली थी. मेरी बच्ची भी मुझे दो दिन बाद मिली थी. मेरे टांके में दर्द हो रहा था. ऐसे में मैं अपनी बेटी को पहला दूध नहीं पिला सकी थी."
क्या आपने अपने बच्चे को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया था?
ख़दीजा मानती हैं कि सही जानकारी हो तो सी-सेक्शन में भी बच्चे को दूध पिलाया जा सकता है लेकिन कई बार जानकारी के अभाव में बच्चा इससे अछूता रह जाता है.
लेकिन मां का पहला दूध इतना ज़रूरी है क्यों?
दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाले बच्चों के डॉक्टर डॉ. दिनेश सिंघल का कहना है इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मां का दूध बच्चे के लिए बहुत ज़रूरी है.
डॉ. सिंघल के मुताबिक, "सबसे अच्छा तो यही होता है कि बच्चे को जन्म के फ़ौरन बाद मां का दूध मिले लेकिन अगर किसी वजह से बच्चा दूध नहीं पी पा रहा है तो सक्शन पंप से दूध निकालकर ड्रिप से पिलाया जा सकता है. इसके अलावा अगर मां ही दूध पिलाने में अक्षम है तो बच्चे को फॉर्मूला मिल्क देना ही विकल्प रह जाता है." रिपोर्ट में भी इस बात का ज़िक्र है. रिपोर्ट के मुताबिक, "बहुत से देशों में लोग बच्चे को मां का पहला दूध देने के बजाय शहद, चीनी का पानी और फॉर्मुला मिल्क देना सही समझते हैं लेकिन इससे बच्चे और मां के बीच संपर्क बनने में देर हो जाती है."
डॉ. सिंघल मानते हैं कि मां का दूध ज़िंदगी भर बच्चे को बीमारियों से बचाएगा ये पूरी तरह से सही नहीं है लेकिन जन्म के बाद बच्चे को कई तरह के संक्रमण होने का डर होता है, ऐसे में मां का ही दूध दिया जाना चाहिए. वो मानते हैं कि इस बात की हर संभव कोशिश की जानी चाहिए कि बच्चे को मां का पहला दूध मिल जाए क्योंकि ऐसा नहीं होने पर बच्चे को पूरी सुरक्षा नहीं मिल पाती है. डॉ. सिंघल का कहना है कि कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे को अगर मां के दूध के अलावा कोई और दूध दिया जाए तो बच्चा मां के दूध से रीलेट नहीं कर पाता और स्तनपान ही नहीं करता. ये स्थिति और भी ख़तरनाक हो जाती है.
::/fulltext::डिलीवरी के बाद हर महिला का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है। क्योंकि एक नन्हीं सी जान का जन्म देना कोई आसान काम नहीं होता है। प्रेगनेंसी के दौरान महिला को अपना खूब ध्यान रखना होता है लेकिन डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को अपना खास ख्याल रखना होता है। हालांकि डिलीवरी के बाद सारा ध्यान न्यू बोर्न बेबी की तरफ चला जाता है। लेकिन शिशु के साथ डिलीवरी के बाद महिला का ध्यान रखना भी जरुरी होता है।
क्योंकि डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में काफी कमजोरी आ जाती है। इस कमजोरी से बाहर आने में काफी समय लग जाता है। इसलिए डिलीवरी के बाद महिला को अपने स्वास्थय पर ध्यान देते हुए खास किस्म के डाइट पर ध्यान देना चाहिए।
गौंद
प्रेगनेंसी के बाद गौंद के लड्डू जोड़ों को लूब्रिकेंट करने मे मदद करते हैं और कमर दर्द के साथ जोड़ों के अन्य दर्द को कम करते हैं। यह स्तनपान कराने वाली मां के शरीर के पोषण के लिए उन्हें दिया जा सकता है। यह वसा और रेशे से भरपूर होता है और स्तनपान कराने वाली मां को प्रतिरक्षा के लिए दिया जा सकता है क्योंकि यह प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है।
अजवाइन
माना जाता है कि अजवाइन न सिर्फ पेट दर्द और गैस से निजात दिलाता है, इससे ब्रेस्टमिल्क का दूध भी बनता है। आयुर्वेद में अजवाइन को एक औषधि के तौर पर बताया गया है। अजवाइन में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल औार एंटीफंगल गुण होते है। महिलाएं डिलीवरी के बाद अजवाइन के पराठा से लेकर हलवा तक खा सकती है। इससे उनका एनर्जी लेवल भी बढ़ेगा।
सौंठ
डिलीवरी के बाद महिला के सौंठ का सेवन जरूर करना चाहिए। आप चाहे तो इसके लड्डू बनाकर खा सकती है। इसमें खूब सारा देसी घी और ड्राई फ्रूट्स डालें, जो डिलीवरी के बाद महिला में होने वाली कमियों को पूरा करने में मदद करेगा।
दालें
दालों में प्रोटीन के अलावा अन्य पोषक तत्व भी मौजूद होते है। डिलीवरी के बाद दाल को उबालकर उसका सूप बनाकर पीने से काफी फायदा मिलता है। इसके अलावा मूंग दाल का हलवा भी बनाकर खिलाएं। इससे बैस्ट मिल्क बढ़ेगा और कमजोरी भी दूर होगी।
साबुत अनाज
डिलीवरी के बाद नाश्ते में साबुत अनाज का सेवन करना चाहिए क्योंकि इससे पूरे दिन शरीर में एनर्जी बनी रहती है। नाश्ते में ओट्स, दलिया आदि का भी सेवन करें। इससे भी महिला को पोषक तत्व मिलते हैं।
हरी सब्जियां
हरी सब्जियों में आयरन भरपूर होता है, जो महिला के शरीर में ब्लड की मात्रा को बढ़ाने के साथ शिशु को भी फायदा देता है। खासकर पालक का सूप या सब्जी बनाकर खाएं।
रागी या मडुआ
दक्षिण भारत का रागी और उत्तर भारत में मडुआ के नाम से जाने वाला अनाज, डिलीवरी के बाद खाने वाले पोष्टिक आहार में से एक है। यह शरीर में स्टेमिना बढ़ाता है। और जो माएं डेयरी प्रॉडक्ट से एर्लिजिक है। वो इसे डोसा, इडली और हलवा के साथ मिलाकर खा सकती है।
दूध का सेवन
दूध से बनी चीजों का सेवन भी महिला के लिए बहुत जरूरी है। इससे शरीर को कैल्शियम भी पर्याप्त मात्रा मिलती है,जिससे शिशु की हड्डियों का विकास और महिला के शरीर में डिलीवरी के दौरान आई कमजोरी भी दूर होती है।
तिल के लड्डू केल्शियम, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम और फास्फोरस से भरा हुआ होता है। यह शरीर में आवश्यक तत्वों की पूर्ति करता है। इसके अलावा यह आंतों की क्रिया को नियंत्रित करता है। तिल के लड्डू वैसे भी अपने टेस्ट के वजह से काफी मशहूर है।
बादाम
बादाम में कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर, विटामिन बी12 और ई के अलावा अन्य कई मिनरल्स होते हैं। प्रसव के बाद महिला यदि बादाम को अपनी डाइट में शामिल करें तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद है। आप चाहे तो बादाम का हल्वा बनाकर भी महिला को दे सकते है।
::/fulltext::बच्चे को दिया गया मां का पहला दूध किसी अमृत से कम नहीं है। मां का पहला गाढ़ा दूध पीले रंग का होता है, जिसे 'कोलोस्ट्रम' भी कहा जाता है। इसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। यदि इसे शिशु को पिलाया जाता है तो इससे शिशु की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। साथ ही यह बच्चे को रोगो से मुक्त रखने में भी मदद करता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में हर साल लगभग 7.8 करोड़ शिशु यानी प्रत्येक 5 में से 3 शिशुओं को जन्म के बाद शुरुआती पहले घंटे में स्तनपान नहीं कराया जाता है।
क्या है रिपोर्ट में
यूनिसेफ और डब्लूएच की तरफ से जारी एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में हर 5 में से 3 नवजात बच्चे ऐसे हैं जिन्हें जन्म के पहले 1 घंटे के भीतर मां का दूध नहीं मिल पाता है। ऐसे बच्चों की संख्या दुनियाभर में 7 करोड़ 80 लाख के करीब है। ऐसे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के साथ ही गंभीर बीमारी होने के साथ ही मौत का खतरा मंडराता रहता है। जन्म के 1 घंटे के अंदर मां का दूध न पीने वाले बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास पर काफी असर पड़ता है।
भारत में स्तनपान को लेकर अवेयरनेस
WHO की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने ब्रेस्टफीडिंग के मामले में साल 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार किया है। यहां 1 घंटे के अंदर नवजात को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 सालों में दोगुने हो गए हैं। जहां 2005 में ये आंकड़ा 23.1 प्रतिशत था वहीं 2015 में यह आंकड़ा 41.5 प्रतिशत हो गया। भारत की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के हिसाब से 55 प्रतिशत बच्चों को जन्म के 6 महीने तक पर्याप्त रूप से स्तनपान कराया जाता है।
साइंस के अनुसार जन्म के तुरंत बाद या ज्यादा से ज्यादा घंटेभर के भीतर नवजात को स्तनपान कराने से शिशु मृत्युदर काफी कम हो सकती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, नवजात शिशु के लिए पीला गाढ़ा चिपचिपा युक्त मां का के स्तन का पहला दूध (कोलेस्ट्रम) संपूर्ण आहार होता है, ये शिशु में फर्स्ट वैक्सीन की तरह काम करता है, जो शिशुओं में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसलिए जन्म के तुरंत 1 घंटे के भीतर ही शिुशु को स्तनपान करा देना चाहिए। जो महिलाएं प्रसव के बाद शिशु को स्तनपान नहीं करवा पाती है तो मां के स्तन से दूध निकालकर चम्मच की मदद से बच्चे को पिलाना चाहिए, लेकिन मां का पहला गाढ़ा दूध शिशु के सम्पूर्ण विकास के लिए बेहद जरुरी है।
रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान में देरी बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। स्तनपान में जितनी देरी होती है शिशु के जीवन पर उतना ही खतरा बढ़ता जाता है। स्तनपान प्रैक्टिस में सुधार के बाद 1 साल के अंदर 5 वर्ष तक की आयु के लगभग 8 लाख बच्चों की जानें बचाई जा सकती हैं। वैसी माएं जो बच्चे के जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान कराती हैं उनकी तुलना में पहले 2 से 23 घंटों के भीतर स्तनपान कराने वाले बच्चों में 28 दिनों के भीतर मौत का खतरा 30 फीसदी तक बढ़ जाता है।
स्तनपान कराने के फायदे
- बच्चे को डायरिया जैसे रोग की संभावना कम हो जाती है।
- मां के दूध में मौजूद तत्व बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।
- स्तनपान कराने से मां व बच्चे के मध्य भावनात्मक लगाव बढ़ता है।
- मां का दूध न मिलने पर बच्चे में कुपोषण की संभावना बढ़ जाती है।
- स्तनपान कराने से मां को स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है।
- यह बच्चे के मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निभाता है।
- स्तनपान से प्रसव पूर्व खून बहने और एनीमिया की संभावना को कम करता है।
- स्तनपान कराने से महिलाओं का काफी हद तक वजन कम होता है, नियमित स्तनपान कराने वाली माएं मोटापे की समस्या से कम ग्रसित होती है।