Monday, 23 December 2024

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मोटी जांघों में होने वाली रगड़ काफी दर्दनाक है, कभी-कभी ये इतना असहनीय हो जाती है कि चलने में कठिनाई होने लगती है.....


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जो लोग दुबले-पतले होते हैं उन्हें इस दर्द का पता भी नहीं है,लेकिन जिन लोगों की जांघ के आस-पास वसा होती है, वे इस दर्द को अच्छी तरह से जानते हैं। मोटी जांघों में होने वाली रगड़ काफी दर्दनाक है, कभी-कभी ये इतना असहनीय हो जाती है कि चलने में कठिनाई होने लगती है।

ज्यादातर गर्मी में जांघ से पसीना बहुत आता है, जिस कारण लोग इस समस्या से पीड़ित हो जाते हैं। तो यहां हम आपको जांघ की रगड़ को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है इस बारे में बताने जा रहे हैं...

high chafing meaning

 

थाई फैट को कम करने के लिये कैलोरी बर्न करना बहुत जरूरी है। जब तक आप फैट कम नहीं करेंगे तब तक आप इस समस्या से पूर्णतया छुटकारा नहीं पा सकते हैं। ऐसे कई अभ्यास है जो जांघ के फैट को कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं, जैसे कि:

गेट स्विंग्स

इसको करने के लिए सबसे पहले अपने बाएं पैर पर खड़े हो जाए और अपने दोनों हाथों को अपने सिर के पीछे रखें। इसके बाद अपने दायें पैर को घुटनों से मोड़ें। इसके बाद अपने मुड़े हुए दायें पैर को आगे से घुमाते हुए बाएं पैर की तरफ लेकर जाए। इसको 10 मिनट के लिए करें और फिर से इसे दोहराएं।

साइड लंज स्वीप

इसको करने के लिए सबसे पहले अपने दोनों पैरों पर खड़े हो जाएं। इसके बाद अपनी कमर मोड़ते हुए अपने दाएं पैर को बाएं पैर से बाहर की ओर दायीं तरफ लेकर जाए। इस समय अपने बाएं पैर को घुटनों से मोड़ कर रखें। इसके बाद अपने बाएं पैर को दाएं तरफ लेकर जाएं। इस समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका दायां पैर बिल्कुल भी नहीं मुड़ा हो। साथ ही साथ इस पूरे एक्सरसाइज के दौरान आपके दोनों हाथ आपके कमर पर हो। अपने पैर को बाईं तरफ वापस घुमाएं और प्रोसेस को दोहराएं। आप प्रत्येक पैर के साथ 15 बार इसे कर सकते हैं। 

थाई लिफ्ट

फर्श पर अपने दाहिनी तरफ, अपनी दाहिनी कोहनी के नीचे झुकें। अपने बाएं हाथ को अपने सिर के पीछे रखें और दोनों पैरों को आगे करें।अब अपने बाएं घुटने को छाती तरफ लाएं और अपने बाएं पैर को अपने दाहिने घुटने के अंदर डालें। अब फर्श से थोड़ा दाहिना पैरा उठाओ। आपका दाहिना पैर मुड़ा होना चाहिए। अब आप दूसरी तरफ से इसे प्रक्रिया को दोहराएं। आप प्रत्येक पैर से 10 बार इस अभ्यास को कर सकते हैं।

साइड प्लैंक लिफ्ट

इसको करने के लिए सबसे पहले प्लैंक की मुद्रा में आ जाये। इसके बाद अपने एक तरफ के बॉडी को साइड से उठा लें। इसे इस तरह से करें कि आपके शरीर का एक हतः फर्श पर टिका हो और दूसरा हिस्सा विपरीत दिशा में ऊपर की ओर हो। इसके बाद अपने एक पैर को इसी मुद्रा में 90 डिग्री के कोण पर घुटनों से मोड़ लें। इसको करीबन 15 मिनट तक करना अच्छा माना जाता है। इस अभ्यास को 10 बार करें.

 लॉन्ग सॉक्स को पहनें

जब आप शॉर्ट ड्रेस पहनते हैं तो आप लॉन्ग सॉक्स पहनते होंगे। यह आपको जांघ रगड़ से बचाता है और आप बिना किसी दर्द के आसानी से चल सकते हैं।

टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल करें

जांघ रगड़ से छुटकारा पाने के लिये एक और तरीका है। टैल्कम पाउडर का उपयोग जिसकी मदद से त्वचा चिकनी रहती है और जांघ में रगड़ नहीं लगती है। यह उपाय ज्यादा देर तक कामगर नहीं होता है। यदि आपको लंबे वक्त के लिये यह तरीका करना है तो आप टैल्कम पाउडर की बड़ी बोतल ले लें।

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सांस लेने में और दिल की धड़कन में ज़रा सा भी परिवर्तन होने पर बच्चे को महसूस हो जाता है कि कोई दिक्कत है.......




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जिस दिन से एक स्त्री को यह पता चलता है कि वह माँ बनने वाली है उस दिन से उसे अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से भावनात्मक लगाव हो जाता है। यह बात कि उसके अंदर एक नया जीवन पल रहा है उसे उत्साहित कर देता है। जीवन कब से शुरू होता है इस बात पर अगर हम चर्चा करें तो सभी के अलग अलग मत होते है। कोई कहता है कि माँ के गर्भ में ही जीवन शुरू हो जाता है तो कोई कहता है कि जन्म के बाद जीवन शुरू होता है।

जो भी हो पर यह एक सच है कि बच्चा अपनी माँ के गर्भ से ही सब कुछ महसूस कर सकता है और उसपर अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकता है। हालाँकि यह गर्भधारण के तुरंत बाद नहीं होता लेकिन एक समय के बाद गर्भवती महिला अपने बच्चे की हरकतों को महसूस कर पाती है। कहतें है माँ बनने वाली महिलाओं को हमेशा खुश रहना चाहिए और उनके आस पास का माहौल भी चिंता और तनाव से दूर खुशनुमा होना चाहिए क्योंकि परेशान और दुखी रहने वाली गर्भवती महिलाओं के होने वाले बच्चों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि माँ के सांस लेने से और उसके दिल की धड़कन की निरंतर लय से बच्चे को एहसास होता है कि सब कुछ ठीक है। सांस लेने में और दिल की धड़कन में ज़रा सा भी परिवर्तन होने पर बच्चे को महसूस हो जाता है कि कोई दिक्कत है और उसका बुरा असर बच्चे पर भी पड़ता है। 

emotions your baby can feel in the womb

 सिर्फ यही नहीं माँ जो कुछ भी खाती है, पीती है यह वह जो कुछ भी सोचती है उन सब का प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है। बच्चे अपनी माँ के गर्भ में क्या क्या महसूस करते है आज हम इस लेख में इसी विषय पर ही चर्चा करेंगे जिसमे हम बच्चे में होने वाले सकारात्मक और नकारात्मक परिवर्तन दोनों पर नज़र डालेंगे। 

1.आस पास के लोगों की प्यार की भावनाएं

2.जलन की भावना

3.बेहद खुशी की भावना

4.जब कोई परेशान करे

5.अपने आप में बहुत भरोसा

6.दुख की भावना

7.चिंतित होना

आस पास के लोगों की प्यार की भावनाएं

किसी का प्यार पाना सबसे खूबसूरत भावनाओं में से एक होता है। जब आपको कोई प्यार करने वाला होता है तो आप सभी चिंताओं से दूर खुद को सुकून में पाते है। ठीक इसी प्रकार आपका बच्चा भी आपके गर्भ में महसूस करता है। गर्भावस्था के दौरान यदि माँ खुश रहती है तो ऐसे में उसका ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है जिसके कारण इस अवस्था में होने वाली कई परेशानियों से उसे छुटकारा मिल जाता है। साथ ही माँ एक स्वस्थ और तंदरुस्त बच्चे को जन्म देती है।

जलन की भावना

मनुष्य में जलन, ईर्ष्या और द्वेष जैसी भावनाएं आम बात है लेकिन गर्भवती महिलाओं को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि गर्भावस्था में इस प्रकार के विचारों का नकारात्मक प्रभाव उनके होने वाले बच्चे पर भी पड़ता है। जलन जैसी भावना से तनाव वाले हार्मोन्स उत्पन्न होते है जिसका असर होने वाले बच्चे पर भी होता है।

इतना ही नहीं ऐसे में माँ को सोने और खाने पीने में भी दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है जो बच्चे के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं होता ।

बेहद खुशी की भावना

जब भी हमारे साथ कुछ अच्छा होता है हम बेहद खुश हो जाते है यदि आप गर्भवती है तो याद रखिये अगर आप खुश है तो आपके गर्भ में पल रहा बच्चा भी बहुत प्रसन्न है। इससे आपका ब्लड प्रेशर और हृदत गति भी सामान्य रहती है और शरीर गर्भ में रक्त की आपूर्ति अधिक करता है जिसके कारण आपका बच्चा कई तरह की बीमारियों और इन्फेक्शन से भी दूर रहता है।

जब कोई परेशान करे

मनुष्य को क्रोध आना एक आम बात है इसमें नया कुछ भी नहीं। कभी किसी को ज़्यादा गुस्सा आता है तो कभी किसी को कम। कई बार ऐसी परिस्तिथि पैदा हो जाती है कि हम सामने वाले की गलती को माफ़ नहीं कर पाते लेकिन यह भी एक सत्य है कि यदि हम किसी के लिए भी अपने मन में बुरी भावनाएं रखेंगे तो इसमें हमारा ही नुकसान है क्योंकि बुरे का फल हमेशा बुरा ही होता है। ठीक इसी प्रकार इसका नकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है।

ऐसे में आपका बच्चा भी महसूस करता है कि उसके आस पास कुछ गलत हो रहा है इसलिए गर्भावस्था में बेहतर यही होता है कि आप क्रोध कम करें और अगर ऐसी परिस्तिथि उत्पन्न हो भी जाए तो सामने वाले को माफ़ करके बात वहीँ खत्म कर दें।

अपने आप में बहुत भरोसा

आत्मविश्वास से सिर्फ आपका मनोबल नहीं बढ़ता है बल्कि गर्भ में पल रहे आपके शिशु पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और वह बहुत मज़बूत बन जाता है। हालाँकि, गर्भावस्था में एक स्त्री को कई सारी परेशानियों से गुज़ारना पड़ता है जैसे उल्टी, जी मिचलाना, चक्कर आना आदि ऐसे में अच्छा महसूस करना कठिन होता है । फिर भी जहाँ तक हो सके आप कोशिश करें कि इस अवस्था में आप आत्मविश्वास से भरपूर रहे और खुश रहे। इससे केवल आपका बच्चा ही खुश नहीं रहेगा बल्कि आपकी त्वचा में खिली खिली और दमकती रहेगी।

दुख की भावना

जब किसी भरोसेमंद या किसी अपने से कोई धोखा मिलता है तो हमारा दिल टूट जाता है । यह सिर्फ शब्दों में ज़ाहिर नहीं किया जा सकता क्योंकि जब दिल टूटा है तो उसका दर्द पूरे शरीर का दर्द बन जाता है। इस दर्द का असर आपके स्वभाव में भी दिखने लगता है । आपके मूड में होने वाले बदलाव का प्रभाव आपके बच्चे पर भी पड़ता है । ऐसे में एक गर्भवती महिला के लिए ज़रूरी होता है कि वह अपने बच्चे के लिए अपनी सोच को सकारात्मक रखे और खुश रहे चाहे परिस्तिथि जो भी हो। याद रखिये ऐसे में आप अपनों के बीच ज़्यादातर समय गुज़ारे जो मुश्किल हालातों में भी हमेशा आपको सहारा दें यानी आपका समर्थन करें।

चिंतित होना

अक्सर हमने देखा है कि गर्भावस्था में महिलाओं को छोटी छोटी बातों पर चिंता होने लगती है ख़ास तौर पर उन्हें जो पहली बार माँ बनने वाली होती है। माँ बनना एक औरत के लिए बेहद ख़ास अनुभव होता है वह अपने जीवन के एक नए चरण में कदम रखने वाली होती है और उसके जीवन में कई तरह के परिवर्तन आने वाले होते है ।

अगर गर्भावस्था में एक औरत जरूरत से ज्यादा चिंता करने लगती है तो कोर्टिसोल अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगते है जिससे गर्भवती महिला को कई सारी शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है जैसे डिप्रेशन, थकान, सिर दर्द उक्त रक्तचाप आदि। यदि आप को कोई भी चिंता हो रही है तो इस अवस्था में कोशिश करें कि आप चिंतामुक्त रहे क्योंकि यहाँ सवाल आपके बच्चे की सलामती का है। इसके लिए आप योग या लैवेंडर आयल से अरोमाथेरपी का सभी सहारा ले सकती है।

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स्‍टडी : जो महिलाएं मां बनने के बाद धूम्रपान करती हैं,  इसका असर बच्‍चे के दूध पीने पर पड़ता है.....

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जो महिलाएं मां बनने के बाद धूम्रपान करती हैं उन्हें सिगरेट ना पीने वाली महिलाओं की तुलना में स्‍तनपान जल्‍दी बंद करना पड़ता है। ये बात हाल ही में हुई एक स्‍टडी में सामने आई है। इसके अनुसार नई माएं अगर घर पर सिगरेट पीती हैं तो उन्‍हें स्‍तनपान करवाना जल्‍दी बंद करना पड़ता है। ब्रेस्‍टफीडिंग मेडिसिन के जर्नल में प्रकाशित हुई इस स्‍टडी के मुताबिक जो महिलाएं घर में धूम्रपान करती हैं उनकी स्‍तनपान करवाने की प्रक्रिया पर इसका गलत असर पड़ता है। इस स्‍टडी के अनुसार अगर परिवार में से कोई भी सदस्‍य जैसे पति, मां या अन्‍य कोई व्यक्ति घर पर सिगरेट पीता है तो इसका असर बच्‍चे के दूध पीने पर पड़ता है।

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यहां तक कि घर में जितने ज़्यादा स्‍मोकर्स होंगे उतने ही कम समय के लिए शिशु स्‍तनपान करेगा। इस स्‍टडी के लिए शोधकर्ताओं ने हांगकांग के चार बड़े अस्‍पतालों में 1200 महिलाओं को शामिल किया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक तिहाई प्रतिभागियों के पार्टनर या घर का कोई अन्‍य सदस्‍य धूम्रपान करने का आदि है। अगर महिला धूम्रपान नहीं करती है लेकिन उसका पार्टनर स्‍मोकर है तो इससे भी शिशु के स्‍तनपान करने पर असर पड़ता है। इस स्‍टडी में सामने आया है कि स्‍मोकिंग पार्टनर की वजह से मां स्‍तनपान बंद करने का निर्णय ले सकती है और पिता के घर में किसी भी सदस्‍य का सिगरेट पीना बच्‍चे के दूध पीने को किसी ना किसी तरह प्रभावित करता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार स्‍तन के दूध में निकोटिन मिलकर शिशु तक पहुंचता है और इस वजह से स्‍तन के दूध की मात्रा में कमी आ जाती है। इसके अलावा सेकेंड हैंड स्‍मोक का भी बच्‍चे पर असर पड़ता है। हम जानते हैं कि युवा बच्चों पर पर्यावरणीय तम्बाकू के धुएं के प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं क्योंकि धूम्रपान के आसपास रहने वाले बच्चों को श्वसन संक्रमण और अन्य श्वसन समस्याओं का खतरा रहता है। हालांकि, अगर मां स्‍तनपान करवा रही है तो वो कुछ बातों का ध्‍यान रखकर शिशु को इस मुश्किल से बचा सकती है। स्‍मोकिंग हाईजीन का ध्‍यान रखकर और तंबाकू के धुएं से शिशु को बचाकर आप धूम्रपान से होने वाले नकारात्‍मक असर से उसकी रक्षा कर सकती हैं।


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चूड़ी, पायल, बिछिया सिर्फ सुहाग की सामग्री नहीं है, वैज्ञानिक कारण हैं ......

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं लेकिन प्रकृति ने दोनों के स्वरूप अलग बनाए हैं, मन से, तन से वह पुरुष से भिन्न है। स्त्री संवेदनशील होती है। तुलनात्मक रूप से पुरुष कठोर। बाह्य स्वरूप के हिसाब से भी उनकी प्रकृति भिन्न है। उनमें हारमोंस के उतार-चढाव का काफी प्रभाव होता है। प्राचीन ऋषियों ने कुछ ऐसे साधन निर्मित किए जिनसे उनके मन और स्वास्थ्य की रक्षा हो सके। प्रचलन बढ़ने पर इनको मिलने लगा और यह नियमपूर्वक पहने जाने लगे। आइए जानते हैं क्या हैं फायदे इन आभूषणों के. .. 
 
गर्मी और चांदी के गहने ठंड का असर करते हैं। कमर के ऊपर के अंगों में सोने के गहने और कमर से नीचे के अंग में चांदी के आभूषण पहनने चाहिए... यह नियम शरीर में गर्मी और शीतलता का संतुलन बनाए रखता है।
 
 
चूड़ी पहनने के फायदे
 
चूड़ी कलाई की त्वचा से घर्षण करके हाथों में रक्त संचार बढाती है। यह घर्षण ऊर्जा भी पैदा करता है जो थकान को जल्दी हावी नहीं होने देता। कलाई में गहने पहनने से श्वास रोग, ह्रदय रोग की संभावना घटती है। चूड़ी मानसिक संतुलन बनाने में सहायक है। चटकी हुई या दरार पड़ी हुई चूड़ियां नहीं पहननी चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा बढती है। लाल रंग और हरे रंग की चूड़ियां सबसे अच्छे असर वाली मानी जाती हैं।
 
 
बिछिया पहनने के फायदे
 
विवाहित महिलाएं पैरों में बीच की 3 अंगुलियों में बिछिया पहनती है। यह गहना सिर्फ साज-श्रृंगार की वस्तु नहीं है। दोनों पैरों में बिछिया पहनने से महिलाओं का हार्मोनल सिस्टम सही रूप से कार्य करता है, बिछिया पहनने से थाइराइड की संभावना कम हो जाती है। बिछिया एक्यूप्रेशर उपचार पद्धति पर कार्य करती है जिससे शरीर के निचले अंगों के तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियां सबल रहती हैं। बिछिया एक खास नस पर प्रेशर बनाती है जोकि गर्भाशय में समुचित रक्तसंचार प्रवहित करती है। इस प्रकार बिछिया औरतों की गर्भधारण क्षमता को स्वस्थ रखती है। मछली की आकार की बिछिया सबसे असरदार मानी जाती है। मछली का आकार मतलब बीच में गोलाकार और आगे-पीछे कुछ नोकदार सी।


पहनने के फायदे

पायल पैरों से निकलने वाली शारीरिक विद्युत ऊर्जा को शरीर में संरक्षित रखती है। पायल महिलाओं के पेट और निचले अंगों में वसा (फैट) बढ़ने की गति को रोकती है। वास्तु के अनुसार पायल की छनक निगेटिव ऊर्जा को दूर करती है। चांदी की पायल पैरों से घर्षण करके पैरों की हड्डियां मजबूत बनाती हैं। पैर में पायल पहनने से महिला की इच्छा-शक्ति मजबूत होती है। यही वजह है कि औरतें अपने स्वास्थ्य की चिंता किए बिना पूरी लगन से परिवार के भरण-पोषण में जुटी रहती हैं। पैरों में हमेशा चांदी की पायल पहनें। सोने की पायल शारीरिक गर्मी का संतुलन खराब करके रोग उत्पन्न कर सकती है।
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