Owner/Director : Anita Khare
Contact No. : 9009991052
Sampadak : Shashank Khare
Contact No. : 7987354738
Raipur C.G. 492007
City Office : In Front of Raj Talkies, Block B1, 2nd Floor, Bombey Market GE Road, Raipur C.G. 492001
जन्म के समय शिशु बहुत नाज़ुक होता है। उसके शरीर का हर एक हिस्सा बहुत कोमल और सेंसेटिव होता है। जन्म के बाद शिशु को गोद में उठाने तक में माता-पिता को डर लगता है। ऐसे में पहली बार माता-पिता बने लोगों को अपने बच्चे को नहलाने तक में मुश्किल आती है। शिशु की त्वचा बाहरी पर्यावरण के लिए बहुत संवेदनशील होती है। गर्भ में शिशु सुरक्षित होता है और उसे वहां के वातावरण की आदत होती है लेकिन बाहर आने पर उसकी दुनिया बिल्कुल ही बदल जाती है। शिशु को संभालने में बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है।
हाईजीन और सफाई को लेकर शिशु के यौन अंगों पर ध्यान देना सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है। अगर आपका शिशु लड़का है तो आपको ऐसे अंगों का ख्याल रखना है जिनके बारे में आपको ज़्यादा पता नहीं है। शिशु का पेनिस बहुत संवेदनशील होता है। इस अंग की देखभाल में आपको बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। बच्चे को खुश और स्वस्थ रखने के लिए आपको उसकी देखभाल से जुड़ी कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। आज हम आपको बेबी ब्वॉय के यौन अंगों का ध्यान रखने के लिए कुछ ज़रूरी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।
खतना करना है या नहीं
खतना सबसे ज़्यादा धर्म और निजी मान्यताओं पर निर्भर करता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पेनिस की चमड़ी हटाने की कोई ज़रूरत नहीं है। जो लोग खतना करते हैं वे कहते हैं कि चमड़ी को हटाने से स्वच्छता बनाए रखने में मदद मिलती है। इस विषय पर चर्चा होती है और इसके फायदे और नुकसान दोनों ही हैं। आखिरकार, ये आपकी मर्ज़ी है कि आप अपने शिशु का खतना करवाना चाहते हैं या नहीं। आप चाहें तो अपने बच्चे के बड़े होने पर इस चीज़ का निर्णय उसी पर छोड़ सकते हैं। बच्चे के यौन अंग की देखभाल के लिए अलग दिशा-निर्देश होते हैं।
खतना किए गए मेल बॉडी पार्ट की सफाई
कई माता-पिता जितना जल्दी हो सके अपने बच्चे का खतना करवा सकते हैं। ऐसे में पेनिस को पानी से साफ करना चाहिए। शिशु के यौन अंग को केमिकल या किसी साबुन से साफ नहीं करने चाहिए। बेबी सोप या प्रॉडक्ट का इस्तेमाल भी ना करें। इससे बच्चे की त्वचा पर सूजन, जलन या घाव भी बन सकता है। नहाने के बाद पेनिस पर हल्की से पेट्रोलियम जैली लगा सकते हैं।
खतने के बाद डायपर कैसे पहनाएं
डायपर पहनाने से पहले शिशु की पेनिस अच्छी तरह से सूखी होनी चाहिए। प्यूबिक एरिया में शिशु की पेनिस साइड या नीचे की ओर होनी चाहिए। डायपर पहनाते समय पेनिस की मूवमेंट से बच्चे को दर्द या असहजता हो सकती है। हो सके तो अपने शिशु को डायपर के बिना ही रहने दें। इससे उसे हवा लगती रहेगी। घाव भी जल्दी भरेगा और कोई इंफेक्शन भी नहीं होगा।
खतने के बाद घाव भरने में कितना समय लगता है
खतना की गई पेनिस का घाव भरने में एक हफ्ते से 10 दिन का समय लगता है। 10 दिन के भीतर पेनिस लाल या सूजी हुई रहती है। कभी-कभी इससे पीले रंग का पानी भी निकलता है। ये सब घाव भरने के सामान्य लक्षण हैं। अगर 100 दिनों से ज़्यादा समय तक ये लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको डॉक्टर से संपर्क करने की ज़रूरत है।
बिना खतने के बेबी ब्वॉय की स्किन
खतने के बिना भी बेबी ब्वॉय की पेनिस पर स्किन होता है। इसका अंदरूनी हिस्सा संक्रमित हो सकता है इसलिए इसकी सफाई बहुत ज़रूरी है लेकिन आपको इस स्किन को खींचना नहीं चाहिए। ये त्वचा अपने आप साफ हो जाती है और इसे ज़्यादा पानी से धोने की ज़रूरत नहीं है लेकिन इसे दबाव के साथ खींचना नहीं चाहिए। इससे घाव हो सकता है। शिशु के यौन अंग में इससे संक्रमण भी फैल सकता है।
बिना खतने वाले बच्चे के यौन अंग कैसे करें
साफ शिशु की त्वचा के अंदरूनी हिस्से को साफ करने की ज़रूरत नहीं है। बच्चे की पेनिस पर एंटीसेप्टिक सॉल्यूशन या साबुन भी ना लगाएं। गुनगुने पानी और मुलायम कपड़े से शिशु की पेनिस और त्वचा के बाहरी हिस्से को साफ करें। साबुन या अन्य कोई बेबी क्लींज़र का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे शिशु के यौन अंगों से दूर ही रखें।
किस तरह के बेबी वाइप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं और कैसे
शिशु के पेशाब और मल को साफ करने के लिए हर वक्त पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यात्रा के दौरान डायपर बदलने के लिए आपको कुछ बेबी वाइप्स खरीदकर रखने चाहिए। ये खुशबूदार और एल्कोहोलिक नहीं होने चाहिए। इससे शिशु की त्वचा सूख जाती है और इंफेक्शन और जलन का खतरा रहता है। बेबी वाइप्स से सिर्फ बाहरी त्वचा की सफाई करें। बाहर से इसे साफ करने से मल त्वचा पर नहीं चिपकता है और इससे संक्रमण और जलन का खतरा नहीं रहता है।
गलती से त्वचा खींच जाए तो क्या करें
शिशु की देखभाल के समय अचानक से त्वचा खींच सकती है। ये त्वचा बहुत टाइट होती है बिल्कुल रबड़ बैंड की तरह। इससे रक्तप्रवाह रूक सकता है और सूजन भी हो सकती है। इस त्वचा को वापस अपने स्थान पर लाने के लिए तुरंत डॉक्टर के पास शिशु को लेकर जाएं।
शिश्नमल क्या होता है
ये एक स्राव होता है जोकि सफेद रंग का होता है। इसमें पेनिस की मृत कोशिका होती है। ये सामान्य होता है। अगर आपको स्मेग्मा यानि शिश्नमल के बारे में पता होगा तो आपको इसे लेकर चिंता नहीं होगी। अगर संक्रमण का कोई लक्षण जैसे लालपन, सूजन नज़र आता है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। गुनगुने पानी से रोज़ाना सफाई करने से स्मेग्मा साफ हो जाता है। तेज़ी से इसे ना हटाएं।
गर्भावस्था के दौरान एक स्त्री का पूरा ध्यान उसके आने वाले बच्चे पर रहता है। इसके लिए वह हर छोटी छोटी बात का ख्याल रखती है जैसे क्या खाना पीना है, कैसे उठना बैठना है, यहां तक की उसकी भावनाओं पर भी नज़र रखी जाती है। यह सब एक अच्छे कारण के लिए किया जाता है। आपके द्वारा किये हुए हर छोटे बड़े कार्यों का प्रभाव आपके अंदर पल रहे उस नाज़ुक सी जान पर पड़ता है।
गर्भधारण करने के बाद आपकी ज़िंदगी अचानक से बदल जाती है। कई बार यह बदलाव आपके लिए सुखद नहीं होता। आपको कई तरह की सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है। आपके डॉक्टर, परिवार के सदस्य और मित्र भी आपको अपने खाने पीने से लेकर अन्य कई चीज़ों पर ध्यान देने की सलाह देते हैं ताकि आपके गर्भ में पल रहे शिशु का विकास ठीक से हो। वे आपको पौष्टिक आहार का सेवन करने के लिए कहेंगे जिससे आप एक्टिव रह सकें और किसी भी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्या आपके समक्ष न आए।
गर्भावस्था के दौरान जहां आपको कई चीज़ें करने की सलाह दी जाती है वैसे ही ऐसी कई चीज़ें हैं जिनसे आपको बचने की भी ज़रुरत है। आपको खाने पीने की चीज़ों का विशेष ध्यान रखना होता है। वहीं आपको शराब और सिगरेट जैसी चीज़ों से परहेज़ करने के लिए कहा जाता है। इसके साथ ही ऐसी कई गतिविधियां हैं जो इस अवस्था में आप नहीं कर सकती क्योंकि यह आपके बच्चे के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में वो कौन सी चीज़ें हैं जिन्हें करने की मनाही होती है। इसमें कुछ शारीरिक गतिविधियां भी शामिल हैं जिन्हें गर्भावस्था में नहीं करना चाहिए।
1. एम्यूजमेंट पार्क के झूले
2. खेल कूद में हिस्सा न लें
3. साइकिल ना चलाएं
4. वेट लिफ्टिंग या पेट के बल लेट कर करने वाले व्यायाम न करें
5. जकूज़ी और सोना बाथ
6. एडवांस्ड प्रेगनेंसी में ना करें दौड़भाग
7. कठिन मुद्रा वाले योग न करें
8. घर पर ज़्यादा भारी काम करने से बचें
9. घुड़सवारी न करें
10. अपरिचित इलाकों में लंबी पैदल यात्रा न करें
हो सकता है एम्यूजमेंट पार्क आपकी मौज मस्ती और तनाव को दूर करने का एक बढ़िया ज़रिया हो लेकिन गर्भावस्था में इस जगह पर झूले में बैठना आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। रोलर कोस्टर, वाटर स्लाइड्स और अन्य दूसरे झूलों पर भूल कर भी न बैठें। इस तरह के झूलों में बैठने से गर्भपात होने का डर रहता है। इसके अलावा आपके गर्भ में पल रहे शिशु को चोट भी लग सकती है। चक्रीय गति वाले झूलें से चक्कर आने और गिरने का भी खतरा बना रहता है।
खेल कूद में हिस्सा न लें
हर तरह के खेलकूद गर्भावस्था में हानिकारक नहीं होते लेकिन ध्यान रहे फुटबाल, क्रिकेट और वॉलीबाल जैसे खेलों से दूर ही रहें। इसमें आपको चोट लगने की संभावना ज़्यादा होती है।
साइकिल ना चलाएं
साइकिलिंग एक बहुत ही अच्छा व्यायाम है लेकिन तब जब आप गर्भवती न हों। गर्भवती महिलाओं को दूसरे तिमाही या फिर उससे ऊपर के दौरान साइकिलिंग नहीं करनी चहिए। बढ़ते हुए पेट के कारण आपको संतुलन बनाने में मुश्किल होगी जिसकी वजह से आप गिर भी सकती हैं और इस अवस्था में गिरना बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। यदि ऐसा हादसा आपके साथ भीड़भाड़ वाले इलाके में हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। ऐसे में स्टेशनरी बाइक्स अच्छे विकल्प होते हैं।
वेट लिफ्टिंग या पेट के बल लेट कर करने वाले व्यायाम न करें
कहते हैं गर्भावस्था के दौरान औरतों को एक्टिव रहना चाहिए इससे डिलीवरी के समय परेशानी कम होती है। लेकिन ध्यान रहे ज़्यादा कठिन व्यायाम या फिर पेट के बल लेट कर होने वाले व्यायाम गर्भावस्था में न करें। ये व्यायाम करना बेहद मुश्किल और असहज होता है। इस अवस्था में यह काफी दर्दनाक हो सकता है ख़ास तौर पर हमारी मांसपेशियों के लिए।
जकूज़ी और सोना बाथ
वैसे तो हॉट और जकूज़ी बाथ बहुत ही आरामदायक होता है। इससे दिन भर की थकान मिट जाती है साथ स्किन पोर्स की सफाई भी हो जाती है। लेकिन प्रेगनेंसी में यह मुसीबत का कारण बन सकता है। जी हां, इसमें कई लोग बैठते हैं जिसके कारण आपको इन्फेक्शन हो सकता है। इस तरह के इन्फेक्शन आपके बच्चे की सेहत को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं, कहते हैं ऐसे में आपके बच्चे को चोट भी लग सकती है। आप गर्म पानी का उपयोग कर सकती हैं जो आपके शरीर के तापमान के लगभग आसपास हो।
एडवांस्ड प्रेगनेंसी में दौड़ें नहीं
गर्भधारण करने से पहले आपको अपनी सेहत बनाने के लिए दौड़ने में काफी आनंद आता होगा लेकिन गर्भवती होने के बाद आपको अपनी इस आदात को बदलना पड़ेगा ख़ास तौर पर दूसरे और तीसरे तिमाही में। ऐसा इसलिए क्योंकि दौड़ने के लिए काफी संतुलन की ज़रुरत होती है जो गर्भावस्था के दौरान स्त्री के पास नहीं होता। आप गिर सकती हैं जिससे आपको चोट भी लग सकती है। इसके अलावा आपको इस बात का भी ध्यान रखा चाहिए कि आप हाइड्रेटेड रहें और आपका शरीर ज़्यादा गर्म न हो।
कठिन मुद्रा वाले योग न करें
आज की इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में फिट रहने के लिए योग सबसे अच्छा उपाय है। प्रेगनेंसी के दौरान भी यह काफी फायदेमंद होता है। यह आपको आराम के साथ प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले स्ट्रेस से भी राहत दिलाता है। योग का सही परिणाम तभी मिलता है जब इसे सही समय और सही तरीके से किया जाए। लेकिन कुछ योग मुद्राएं हैं जो गर्भावस्था के समय स्त्रियों को नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसमें ज़्यादातर मुड़ना, ऐंठना और खींचाव होता है।
घर पर ज़्यादा भारी काम करने से बचें
हो सकता है आप गर्भवती होने के बाद भी इतनी एक्टिव रहें कि घर के सारे कामों को आसानी से निपटा लें लेकिन फिर भी कुछ काम ऐसे हैं जिन्हें इस समय न करने में ही आपकी और आपके होने वाले बच्चे की भलाई है। ख़ास तौर पर मेहनत वाले काम इस दौरान भूल कर भी न करें जैसे घर की साफ़ सफाई, लॉन की घास कटाई, बाग़बानी आदि। इस तरह के कामों में आपको झुकना पड़ता है और भारी चीज़ें भी उठानी पड़ती हैं। इसके अलावा आप हाथ से कपड़े भी न धोएं। ऐसे में या तो आप अपने पति की मदद लें या फिर अपने नौकरों की। इस तरह के कामों को करने से आपके शरीर का तापमान एक खतरनाक स्तर तक बढ़ सकता है। साथ ही इसमें आपके गिरने और चोट लगने का भी रिस्क होता है।
कुछ औरतों को घुड़सवारी बहुत पसंद होती है और वे लगातार घुड़सवारी करती हैं लेकिन घुड़सवारी करते समय जो उछाल होता है वह आपके गर्भ में पल रहे नन्हे शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे में घोड़े पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता। उसके अचानक मुड़ने या दौड़ने से आपके गिरने का भी खतरा होता है। यहां तक कि समझदार घोड़े भी कई बार ऐसा कर सकते हैं इसलिए बेहतर यही होगा कि आप प्रेगनेंसी के दौरान घुड़सवारी से दूर ही रहें।
अपरिचित इलाकों में हाईकिंग न करें
गर्भावस्था में हाईकिंग आपकी सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होता है। ऐसे में आपको चक्कर आने का खतरा बना रहता है जिसे आपका संतुलन बिगड़ सकता है और आप गिर भी सकती हैं। अगर आप किसी अपरिचित स्थान पर हों और वहां आपको लेबर पेन शुरू हो गया तो ऐसे में आसपास कोई मदद भी नहीं मिल पाएगी। इससे आपके और होने वाले बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है।
::/fulltext::आज ऑनलाइन डेटिंग के ज़माने में प्यार आपसे बस एक क्लिक की दूरी पर है। इंटरनेट पर अपने लिए पार्टनर ढूंढने वाले लोग इस बात से जरूर सहमत होंगें। आजकल ज्यादातर लोग ना केवल मनोरंजन बल्कि काम, बिल भरने, किराने का सामान ऑर्डर करने और कैब बुक करने, अपॉइंटमेंट लेने आदि के इंटरनेट का इस्तेमाल करते है
।
इसलिए ऐसे लोगों के लिए इंटरनेट पर एकसाथ हज़ारों लोगों में से अपने लिए दोस्त या पार्टनर चुनना काफी आसान हो गया है। डेटिंग एप्स की मदद से आप बस अपने जीवनसाथी से एक क्लिक की दूरी पर हैं। डेटिंग एप के ज़रिए किसी से मिलने से पहले ही आप उसकी पसंद, नापसंद आदि के बारे में जान सकते हैं। डेटिंग एप से आप उस इंसान को चुन सकते हैं जो आपको अपने कंपैटिबल लगता हो। आंकड़ों की मानें तो एक खास एज ग्रुप के लोग डेटिंग एप्स पर एक से ज्यादा पार्टनर्स बनाते हैं। अब लोग अपनी पसंद के हिसाब से डेटिंग एप्स का इस्तेमाल करने लगे हैं। डेटिंग एप्स पर कुछ लोग अपने लिए ऐसे पार्टनर की तलाश कर रहे होते हैं जो जीवनभर उनका साथ दे जबकि कुछ लोग टाइमपास या सेक्शुअल जरूरतों को पूरा करने के लिए पार्टनर ढूंढ रहे होते हैं।
तो क्या डेटिंग एप्स की वजह से यौन संक्रमित रोग बढ़ रहे हैं ? आइए जानते हैं ....
एसटीडी और एसटीआई क्या है
ये दोनों बीमारियां यौन संबंध बनाने के दौरान एक से दूसरे व्यक्ति में संचारित होती हैं। ये बीमारियां बैक्टीरिया या वायरस के ज़रिए फैलती हैं। एसटीडी और एसटीआई सिर्फ पेनिस के वजाईना में जाने या वजाईना में सेमिनल फ्लूइड के पहुंचने से ही नहीं होता है। एसटीडी और एसटीआई की ऐसी कई बीमारियां हैं जो सिर्फ किस करने, ओरल सेक्स, एनल सेक्स या संक्रमित व्यक्ति के यौन फ्लूइड से त्वचा के संपर्क में आने से भी हो जाती हैं। ऐसे मामलों में कॉन्डम भी कुछ नहीं कर पाती है।
यहां तक एसटीडी की एक सबसे खतरनाक बीमारी है एड्स जिसका कोई ईलाज नहीं है। इसके अलाावा एसटीडी की अन्य बीमारियों में जेनिटल हर्प्स, क्लामिदिया, सिफिलिस, गोनोरोईआ, यीस्ट इंफेक्शन आदि हैं। एसटीडी ना केवल जान के लिए खतरा है बल्कि इसके कई खतरनाक लक्षण भी हैं जो सेहत और जिंदगी को प्रभावित करते हैं।
डेटिंग एप्स से कैसे बढ़ रही हैं एसटीडी की बीमारियां
हाल ही में नेशनल कोएलिएशन ऑफ एसटीडी के डायरेक्टर्स ने एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें साल 2014 से उन्होंने पाया है कि डेटिंग एप्स के यूज़र्स के बीच यौन संक्रमित रोगों और संक्रमण में तेजी से इजाफा हुआ है।
यहां तक कि आंकड़े भी बताते हैं कि एसटीडी रोग में 59 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है, खासतौर पर अलग-अलग डेटिंग एप्स यूज़ करने वाले लोगों में सिफिलिस पाया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे ये कारण हो सकता है कि डेटिंग एप्स के ज़रिए लोगों को बड़ी आसानी से एक से ज्यादा सेक्शुअल पार्टनर मिल जाते हैं। जिन लोगों को वो ठीक तरह से जानते तक नहीं हैं उनके साथ भी यौन संबंध बनाने को तैयार हो जाते हैं।
कई लोग, खासतौर पर युवा किसी अनजान शख्स के साथ संभोग के दौरान कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करते हैं। कई बार कॉन्डम के इस्तेमाल के बावजूद ये बीमारियां फैल जाती हैं। अलग-अलग लोगों के साथ संबंध बनाना भी सेहत के लिए खतरनाक होता है। इसलिए डेटिंग एप्स की वजह से लोगों में यौन संक्रमित बीमारियां फैल रही हैं। इससे बचने के लिए बेहतर होगा कि आप सेक्स से पहले अपना और अपने पार्टनर का टेस्ट करवा लें।
::/fulltext::दुनियाभर में यही मान्यता है कि गर्भावस्था में महिलाओं को तनाव नहीं लेना चाहिए। इस दौरान गर्भवती महिलाओं को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है और उन्हें तनाव से बचना चाहिए। शारीरिक और अन्य सभी प्रारूपों से गर्भवती महिलाओं को देखभाल की ज़रूरत होती है ताकि उनके शरीर पर कोई दबाव ना पड़े।
गर्भावस्था में किसी भी तरह का तनाव गर्भ में पल रहे शिशु को प्रभावित करता है। मां के तनाव का भ्रूण पर पड़ रहे असर को जानने से पहले आपको ये समझ लेना चाहिए कि इस तनाव का कारण क्या है। कभी कभी प्रेगनेंसी की वजह से ही कई परेशानियां जैसे कि जी मितली होना, वज़न बढ़ना आदि महिलाओं में तनाव का कारण बनते हैं।
कभी गर्भावस्था के दौरान परिवार में किसी की मौत हो जाना या आर्थिक परेशानियों के चलते तनाव रहता है। इसके अलावा डिप्रेशन, रंगभेद या अनचाहे गर्भ की वजह से भी महिलाओं में तनाव पैदा होता है। तनाव को लेकर आपको सबसे पहले इसके कारण का पता लगाना चाहिए। कारण का पता चल जाए तो डॉक्टर, पार्टनर, दोस्त और परिवार मिलकर इसका हल निकाल सकते हैं। जितना जल्दी आप इसका हल निकाल लेंगे आपके होने वाले बच्चे के लिए उतना ही ज़्यादा अच्छा होगा।
गर्भ में शिशु पर तनाव का क्या असर पड़ता है:
फेटल हार्ट रेट बढ़ जाना
ये एक वैज्ञानिक विवरण है। जब कोई स्ट्रेस लेता है तो उसके शरीर में कई तरह के स्ट्रेस हार्मोंस स्रावित हो जाते हैं। ये हार्मोंस तब भी बनते हैं जब आपको कोई खतरा होता है। इस तरह की परिस्थिति से बचने के लिए मांसपेशियों को मज़बूत बनाना बहुत ज़रूरी है। इन हार्मोंस के बढ़ने पर दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए ये बिल्कुल भी सही नहीं होता है। चूंकि, शिशु आपके गर्भ में पल रहा है इसलिए उसे आपसे ही सारा पोषण मिल रहा है। आपके शरीर में किसी भी नकारात्मक बदलाव का मतलब है शिशु की जान को खतरा होना। इसलिए अपने शिशु की सलामती और सुरक्षा के लिए आपको स्ट्रेस से दूर रहना चाहिए।
अगर कोई गर्भवती महिला लंबे समय तक तनाव में रहती है तो उसके शिशु को इस तरह की समस्या आ सकती है। आपको ये बात समझनी चाहिए कि शिशु आपके गर्भ में पल रहा है और उसकी सभी चेतनांए विकसित हो रही हैं। ऐसे में आपको अपने स्ट्रेस को दूर करने पर काम करना चाहिए। अगर आप बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेंगी तो आपके शरीर का स्ट्रेस मैनेजमेंट सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं कर पाएगा।
इसका असर आपके शिशु पर पड़ेगा। कई मामलों में देखा गया है कि ऐसी परिस्थिति में भ्रूण अतिसंवेदनशील या इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भेजता है। ये इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भ्रूण की संपूर्ण सेहत पर सीधा असर डालती है। नौ महीने तक शिशु को इस सबसे गुज़रना पड़ता है और प्रसव पर भी इसका गलत प्रभाव पड़ता है।
बच्चे का कम वज़न
अगर आप गर्भावस्था के दौरान ज़्यादा स्ट्रेस लेती हैं तो इससे आपको प्रसव के दौरान ज़्यादा मुश्किलें सहनी पड़ती हैं। अत्यधिक तनाव के कारण भ्रूण, मां के शरीर से आवश्यक पोषण नहीं सोख पाता है। परिणामस्वरूप, शिशु का आकार सामान्य से छोटा हो जाता है। इससे प्राकृतिक डिलीवरी होना असंभव हो जाता है और शिशु के जन्म में कई तरह की दिक्कतें आती हैं।
भ्रूण के मस्तिष्क का विकास
डॉक्टर ने साफ बताया है कि मां के तनाव का सीधा असर भ्रूण के मानसिक विकास पर पड़ता है। इसका बच्चे पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। कई बार आपको अपने बच्चे में जन्म के तुरंत बाद कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे पाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में शिशु के जन्म के कई सालों बाद भी किसी विकार का पता नहीं चल पाता है।
हालांकि, जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है उसके व्यवहार में बदलाव नज़र आने लगते हैं। यह अक्षमता से लेकर स्वभाव में परिवर्तन को रोकने से संबंधित हो सकता है। डॉक्टरों ने गर्भवती स्त्री और तनाव के बीच संबंध बताया है। इसकी वजह से ऐसे बच्चों में हाइपरटेंशन भी बढ़ सकता है और बच्चों को अपने आगे के जीवन में स्ट्रेस ज़्यादा रहता है।
डॉक्टरों का कहना है कि किसी भी तरह का स्ट्रेस गर्भ के लिए केमिकल खतरे पैदा करता है। स्ट्रेस के दौरान कोर्टिकोट्रोपिन नामक हार्मोन रिलीज़ होता है। रक्त वाहिकाओं में इस हार्मोन के ज़्यादा बनने पर गर्भाश्य का संकुचन होने लगता है। अगर ये संकुचन गलत समय पर हो तो गर्भवती स्त्री का गर्भपात तक हो सकता है।
अगर आप बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेती हैं तो आपको मालूम होना चाहिए कि इतने ज़्यादा तनाव की वजह से आपके गर्भ में पल रहे शिशु की जान को खतरा हो सकता है। बाहरी पर्यावरण चाहे जैसा भी हो, अगर आप अपने बच्चे को स्वस्थ रखना चाहती हैं तो सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से सेहतमंद रहें और किसी भी तरह का तनाव ना लें।
::/fulltext::