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जब कोई स्त्री पहली बार माँ बनती है तो एक सुखद एहसास के साथ साथ उसके मन में कई सारी चिंताएं भी उत्पन्न होने लगती है। उसके अंदर शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों से बदलाव आने लगते हैं। कई स्त्रियां घंटों प्रेगनेंसी से जुड़ी किताबें पढ़ती हैं ताकि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हासिल हो सके।
इसके अलावा कुछ स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जो बार बार खुद को आईने में निहारती हैं लेकिन जब औरत दूसरी बार माँ बनती है तो चीज़ें एकदम बदल जाती हैं। आज अपने इस लेख में हम आपको पहली और दूसरी प्रेगनेंसी में बड़े अंतर के विषय में बताएंगे।
जब आप पहली बार माँ बनती हैं तो आप हर चीज़ को लेकर चिंतित रहने लगती हैं। हर वक़्त आपके दिमाग में एक ही बात रहती है कि कैसे अपना और अपने होने वाले बच्चे का ख्याल रखें। यहां तक कि हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली छोटी छोटी चीज़ों जैसे शैम्पू, साबुन आदि को लेकर भी आपके मन में शंका बनी रहती है कि क्या गर्भावस्था में ये सारी चीज़ें आपके लिए सुरक्षित है या नहीं।
वहीं दूसरी ओर जब आप दोबारा माँ बनने वाली होती हैं तो थोड़ी निश्चिंत रहती हैं। छोटी छोटी बातों पर आप घबराती नहीं है हालांकि अपने बच्चे की चिंता आपको हमेशा रहती है लेकिन जिस तरह आप अपनी पहली प्रेगनेंसी में किसी भी बात पर फ़ौरन परेशान हो जाती थी, इस बार वैसा कुछ नहीं होता। इस बार आपका विशवास बढ़ जाता है।
कम चिंता
अपनी पहली प्रेगनेंसी में आप हर वक़्त किसी न किसी बात को लेकर सोच में ही डूबी रहती हैं चाहे वो आपका घर हो या फिर दफ्तर। हर समय आपको एक ही बात की चिंता सताती रहती है कि कहीं कोई पौष्टिक आहार या दवा आपसे छूट न जाए। इतना ही नहीं आप अपने सहकर्मियों या फिर परिवार के सदस्यों से खुद में हो रहे शारीरिक और मानसिक बदलाव के बारे में अकसर बातें करती रहती हैं। हालांकि दूसरी प्रेगनेंसी में आप चीज़ों को लेकर इतना ज़्यादा नहीं सोचती क्योंकि पहले से आपके पास आपका एक बच्चा है जिसके पीछे आप दिन भर भागती हैं। इस बार आप आम दिनों की तरह ही रहती हैं, आप बस अपनी दवाइयां समय पर लेना नहीं भूलती। इस तरह से नौ महीनों का सफ़र आपके लिए और भी आसान हो जाता है।
कमरे की सजावट
जब आपका पहला बच्चा आने वाला होता है तब आप उसके स्वागत में अपने कमरे को खूब सजाती हैं। इसके लिए आप कई सारे साज सजावट की चीज़ें भी लाती हैं। आप अधिकांश समय यही सोचती हैं कि अपने नए मेहमान के लिए किस रंग के परदे लगाएं या फिर बिस्तर पर किस रंग की चादर बिछाएं। वहीं अपनी दूसरी प्रेगनेंसी में आप यह बात समझ जाते हैं कि आपके नन्हे शिशु को साज सजावट से कोई मतलब नहीं होता उसे तो बस देखभाल की ज़रुरत होती है। आप उसके लिए वही कमरा इस्तेमाल करते हैं जो आपने अपने पहले बच्चे के लिए किया होता है। लेकिन इस बार आप कमरे की सजावट पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते।
उत्साह कम हो जाता है
घर में पहले बच्चे के आने से न सिर्फ माता पिता बल्कि घर के बाकी सदस्य भी उत्साहित हो जाते हैं। खुश होने के साथ सब भावुक भी हो जाते हैं क्योंकि यह सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पल होता है। कुछ लोग इस तरह की खुशखबरी मिलने पर दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए पार्टी का आयोजन करते हैं ताकि वे उनके साथ अपनी यह खुशी बांट सकें। लेकिन जब घर में जब दूसरा बच्चा आने वाला होता है तब पहले की तुलना में उत्साह थोड़ा कम हो जाता है।
शारीरिक आकार को लेकर उत्साह कम
पहली बार जब आप माँ बनती हैं तो अपने शरीर में होने वाले बदलाव को लेकर काफी उत्साहित रहती हैं ख़ास तौर पर अपने बढ़ते हुए पेट को लेकर। हर हफ़्ते आपको अपने शरीर में होने वाले बदलावों को देखना बेहद अच्छा लगता है। साथ ही अपने बढ़ते हुए पेट को छूकर अपने होने वाले बच्चे को महसूस करना आपको बहुत अच्छा लगता है। हालांकि दूसरी बार आप इन सब पर थोड़ा कम ध्यान देती हैं ऐसा इसलिए क्योंकि आप अपनी पहली प्रेगनेंसी में ये सब अनुभव कर चुकी होती हैं।
ज़्यादा कठिन डाइट नहीं
अपनी पहली प्रेगनेंसी में आप अपने खाने पीने को लेकर बहुत ज़्यादा सतर्क रहती हैं इसके लिए आप बहुत ही कड़ा डाइट भी फॉलो करती हैं। आप शुद्ध शाकाहारी भोजन पर ज़्यादा ज़ोर देती हैं। इसके अलावा आप जंक फ़ूड या फिर बाहर का खाना भी खाने से परहेज़ करती हैं। इतना ही नहीं आप अपने खाने पीने की चीज़ों के लिए पूरी लिस्ट तैयार करती हैं लेकिन दूसरी बार आप खाने पीने को लेकर इतना नहीं सोचतीं। आप ख़ुशी ख़ुशी सारी चीज़ें खाती हैं साथ ही इस बात का ध्यान रखती हैं कि वे चीज़ें आपके और आपके होने वाले बच्चे के लिए सुरक्षित हो।
पहली बार माँ बनने पर आपके दिमाग में कई सारे सवाल उठते हैं और इसलिए अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने के लिए आप प्रेगनेंसी से जुड़ी कई सारी किताबें और लेख पढ़ती हैं। किताबों के अलावा आप हर तरह के ब्लॉग्स और आर्टिकल्स भी पढ़ती हैं। साथ ही आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी लोगों से जुड़कर प्रेगनेंसी पर चर्चा करती हैं। लेकिन जब आप दूसरी बार माँ बनती हैं तो आपको इन सब की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि अपनी पहली प्रेगनेंसी में आपने इस तरह की कई जानकारी प्राप्त कर चुकी होती है।
::/fulltext::औरतों के बीच अकसर यह मुद्दा उठता है कि आखिर गर्भधारण करने के लिए सही उम्र कौन सी होती है। कई बार ऐसे जवाब सामने आते हैं जिसे सुनकर कोई भी आश्चर्यचकित रह जाए। 20 की उम्र के आस पास की महिलाओं में गजब की ऊर्जा होती है साथ ही उनका शरीर भी काफी मज़बूत होता है। 30 की उम्र महिलाओं का करियर सुरक्षित रहता है। वहीं 40 की उम्र के आस पास की महिलाएं आत्मविश्वास से भरी होती हैं लेकिन उनके मन में पहली बार माँ बनने को लेकर कई सारी शंकाएं रहती है। हालांकि इन सभी उम्र में कोई न कोई कमी रह जाती है।
यदि आप 40 साल के आस पास की हैं तो निराश होने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि शोधकर्ताओं के अनुसार कुछ समस्याओं के बावजूद आप इस उम्र में भी माँ बनने का सुख प्राप्त कर सकती हैं। कई बार 40 की उम्र की महिला के ऊर्जा का स्तर 20 साल की महिला से भी अच्छा होता है। ये सब आपकी जीवनशैली पर निर्भर करता है कि किस तरह आप खुद को मेन्टेन रखती हैं। आपकी अच्छी सेहत, ऊर्जा, व्यक्तित्व सारी परेशानियों को दूर कर सकता है जिससे आप हेल्दी प्रेगनेंसी का आनंद ले सकती हैं चाहे आपकी उम्र कितनी भी हो।
बढ़ती उम्र में माँ बनने से प्रेगनेंसी से जुड़े कुछ रिस्क होते हैं साथ ही अन्य सेहत से जुड़ी परेशानियां भी होती हैं जिससे आपको और होने वाले बच्चे को निपटना पड़ता है। क्योंकि उम्र के बढ़ने के साथ साथ आपके रिप्रोडक्टिव सिस्टम में भी बदलाव आते हैं, साथ ही स्वास्थ से जुड़ी परेशानियां भी। उक्त रक्तचाप, 35 के बाद गर्भधारण करने में समस्या, 35 के बाद गर्भपात की ज़्यादा संभावना, मानसिक और व्यक्तिगत परेशानियां जुड़वा बच्चों का रिस्क जो खतरे को और बढ़ाता है, बच्चे के जन्म के समय होने वाली कुछ अन्य बड़ी समस्याएं आदि जैसी सेहत से जुड़ी परेशानियां आम होती हैं।
इस लेख में हम अलग अलग उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं द्वारा गर्भावस्था में अनुभव किये जाने वाली कमियों और जोखिमों के बारे में बात करेंगे।
1. जब आप 20 से 25 के बीच की उम्र की हों
2. जब आप 26 से 34 की उम्र की हों
3. जब आप 35 से 40 की उम्र की हों
4. 40 की उम्र के बाद प्रेगनेंसी
जब आप 20 से 25 के बीच की उम्र की हों
यही वह समय है जब आपकी प्रजनन क्षमता अधिकतम स्तर पर होती है। साथ ही इस उम्र में कुछ दिक्कतें भी आती है जैसे गर्भकालीन मधुमेह और हाइपरटेंशन। शोधकर्ताओं के अनुसार पहली प्रेगनेंसी में आपकी उम्र जितनी कम होगी आप में स्तन कैंसर होने का खतरा भी कम होगा। ज़्यादा उम्र वाली महिला की तुलना में आपकी त्वचा भी ज़्यादा अच्छी होगी इसलिए आपको स्ट्रेच मार्क्स की समस्या भी ज़्यादा नहीं होगी। यदि थोड़े बहुत स्ट्रेच मार्क्स होंगे भी तो वह कुछ समय बाद अपने आप चले जाएंगे। अगर आप 20 की उम्र के आस पास माँ बनती हैं तो आपके शरीर की बनावट भी ख़राब नहीं होगी। प्रेगनेंसी के बाद आप आसानी से अपने पुराने शेप में वापस आ सकती हैं। कम उम्र की महिलाओं में ऊर्जा का स्तर अधिक होता है। ऐसे में आप बड़े ही आराम से रात भर अपने बच्चे के लिए जाग सकती हैं इसलिए अगर आप पूरी तरह से अपने मातृत्व का आनंद उठाना चाहती हैं तो माँ बनने के लिए यह सबसे सही उम्र है।
आपका बच्चा: इस उम्र में माँ बनने से आपका बच्चा भी स्वस्थ रहेगा। ऐसे में इस बात का खतरा भी कम होता है कि आपका बच्चा किसी भी तरह के क्रोमोसोमल असामान्यताओं या डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हो। इसके अलावा इस उम्र में गर्भपात की संभावना भी कम होती है जितनी कम आपकी उम्र होगी उतने ही ताज़े आपके अण्डाणु होंगे। यदि आप कम उम्र में माँ बनती हैं तो पहले तिमाही में गर्भपात की सम्भावना 12 प्रतिशत रहती है वहीं बढ़ती उम्र में यह 25 प्रतिशत हो जाती है।
जब आप 26 से 34 की उम्र की हों
जैसे ही आप 30 की उम्र के आस पास पहुंचती हैं आपकी प्रजनन शमता बिगड़ने लगती है। शोध के मुताबिक, 26 से 29 वर्ष की उम्र की महिलाओं में बांझपन दर 9% है जो 30-34 साल की आयु की महिलाओं के लिए 15% तक बढ़ जाती है। हो सकता है माँ बनने में देर करने से आप अपने करियर में काफी आगे पहुंच जाएं लेकिन शायद आप अपनी सेहत का भरपूर ध्यान न रख पाएं। जैसे आपके खाने पीने की आदत में गड़बड़ी हो जाए जिसके कारण आप कई तरह के रोगों से ग्रसित हो सकती हैं। आपके पास अभी भी बहुत ताकत हो सकती है, हालांकि, अध्ययनों के मुताबिक, सीज़ेरियन सेक्शन की दर 20 के आस पास की महिलाओं की तुलना में 30 से 34 साल की उम्र की महिलाओं में दोगुनी होती है।
आपका बच्चा: इस उम्र में माँ बनने से बच्चे को क्रोमोसोमल असामान्यताओं या डाउन सिंड्रोम होने खतरा बढ़ जाता है।
जब आप 35 से 40 की उम्र की हों
इस उम्र में आपको गर्भधारण करने में कई तरह की समस्याएं आती है। अचानक 38 की उम्र में आपकी प्रजनन क्षमता में गिरावट आने लगती है। हालांकि आज कल महिलाएं 35 की उम्र में बच्चे को जन्म दे रही हैं। इस उम्र में भी आपको गर्भकालीन मधुमेह और हाइपरटेंशन होने का खतरा होता है। यदि आपका वज़न सामान्य से ज़्यादा है तो खतरा और भी बढ़ जाता है। अगर आप इस उम्र में माँ बनना चाहती हैं तो इसके लिए आपको अपने वज़न पर नियंत्रण रखना होगा। साथ ही बेहतर खान पान और व्यायाम भी ज़रूरी है।
आपका बच्चा: जितनी ज़्यादा आपकी उम्र होगी आपके बच्चे को क्रोमोसोमल असामान्यताओं या डाउन सिंड्रोम होने का खतरा भी उतना ही होगा। इसके अलावा गर्भपात की भी संभावना ज़्यादा होती है। 38 साल की उम्र में, हर 100 गर्भवती महिलाओं में से एक में क्रोमोसोमल असामान्यता देखी जा सकती है। चाहे आप विभिन्न प्रकार के प्रजनन उपचार करें या नहीं, इस उम्र में आपके शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन के कारण ओवुलेशन के समय एक से अधिक अंडे की सम्भावना बढ़ जाती है।
40 की उम्र के बाद प्रेगनेंसी
शोधकर्ताओं का कहना है कि लगभग 1/3 महिलाएं जो 40 वर्ष से अधिक उम्र की हैं, बांझपन का शिकार होती हैं। इस उम्र की महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह का खतरा 3 से 6 गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा आपका बढ़ा हुआ वज़न मेटाबोलिज्म को कम करता है जिससे गर्भावस्था के बाद ठीक करना मुश्किल हो जाता है। ध्यान रहे कि प्रेगनेंसी के बाद भी आप लगातार व्यायाम करती रहें ताकि सेहत से जुड़ी जो भी परेशानियां हो उससे छुटकारा पाया जा सके।
आपका बच्चा: 40 की उम्र के बाद माँ बनने वाली महिलाओं में गर्भपात का खतरा 50 प्रतिशत बढ़ जाता है। इसके अलावा क्रोमोसोमल असामान्यताओं की भी सम्भावना दोगुनी हो जाती है।
::/fulltext::::/introtext::
गर्भावस्था का समय हर महिला के लिए बहुत खास होता है। इसमें उसे बस इंतज़ार होता है कि कब उसका शिशु उसकी गोद में आएगा लेकिन प्रेगनेंसी का समय बहुत मुश्किल होता है। खासतौर पर गर्भावस्था के अंतिम चरण में ज़्यादा मुश्किलें आती हैं। आप चाहे कितनी भी तैयारी कर लें लेकिन फिर भी ये बात मानने में मुश्किल होती है कि आपके अंदर बच्चा पल रहा है। पहली बार मां बन रही महिलाओं के लिए ये सफर बहुत अलग होता है।
प्रेगनेंसी के खत्म होते-होते उनके मन में कई तरह के ख्याल आते हैं। इस दौरान हार्मोंस बदलने की वजह से वो काफी इमोशनल भी हो जाती हैं। अगर आप इस दौर से गुज़र रही हैं तो अच्छी तरह से समझ सकती हैं कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं। आज हम आपको बताएंगे कि प्रेगनेंसी के आखिरी चरण में महिलाओं के दिमाग में कैसे ख्याल आते हैं।
दर्द होगा
शिशु को जन्म देने में मां को असहनीय पीड़ा होती है। प्रसव पीड़ा इस दुनिया की सबसे मुश्किल प्रक्रिया में से एक है जिसमें सबसे ज़्यादा दर्द होता है। इसे लेकर गर्भवती स्त्रियां सबसे ज़्यादा परेशान रहती हैं। अच्छी बात ये है कि आजकल की महिला इस दर्द को बर्दाश्त कर लेती हैं। अपने दर्द को सहने के लिए सांस लेने के कुछ व्यायाम और मेडिटेशन सीखें।
बच्चे की सेहत
पूरी प्रेगनेंसी के दौरान मां के मन में एक ही बात रहती है और वो है बच्चे की सेहत। जैसे-जैसे बच्चे के जन्म का समय पास आता है मां की चिंता बढ़ती जाती है। अगर आप बच्चे की सेहत को लेकर बहुत ज़्यादा चिंतित हैं तो अपने डॉक्टर से बात करें। चेकअप और अल्ट्रासाउंड से आप अपने बच्चे की सेहत के बारे में जान सकती हैं। भगवान से अपने बच्चे के लिए प्रार्थना ज़रूर करें।
पति इतने बेफिक्र हैं
गर्भावस्था के दौरान आपको बहुत तकलीफ सहनी पड़ती है जबकि आपके पुरुष शारीरिक रूप से फ्री होते हैं। ऐसे में महिलाएं सोचने लगती हैं कि अगर उनके पति को बच्चा पैदा करना होता तो कितना अच्छा होता।
बच्चा किस पर जाएगा
इस समय तक आप कुछ ज़्यादा ही रहस्यमयी होने लगती हैं। जैसे-जैसे प्रेगनेंसी खत्म होने लगती है आपके मन में बच्चे की तस्वीर बनने लगती है और आप सोचने लगती हैं कि वो किस पर गया है। अचानक से आप अपनी और अपने पति के बचपन की तस्वीरें निकाल लेती हैं और उससे बच्चे को मिलाने लगती हैं।
बच्चे को वेलकम करना
डिलीवरी की डेट पास आने लगती है तो आप बेचैन हो जाती हैं कि कब वो दिन आएगा जब आप अपने बच्चे के साथ घर में प्रवेश करेंगी। उसके वेलकम के लिए घर को साफ करने लगती हैं। उसके लिए नई-नई चीज़ें खरीदती हैं। इसे नेस्टिंग इंस्टिंक्ट कहते हैं जो कि आपकी बॉडी को बच्चे के आने के लिए तैयार होने की खबर देता है। इसकी वजह से आपको डिलीवरी से पहले बहुत थकान भी हो सकती है इसलिए थोड़ा सावधान रहें।
वजाइना की स्थिति
अगर आपका सामान्य प्रसव होने वाला है तो आपको अपनी वजाइना की चिंता होना लाज़िमी है। बच्चे के जन्म से पहले वजाईना में थोड़ा खिंचाव होने लगता है। आपको डर लगने लगता है कि अगर आपकी वजाइना को कोई नुकसान हो गया है तो फिर आपकी मैरिड लाइफ बर्बाद हो सकती है।
आपके सारे डर झूठ साबित होते हैं क्योंकि वजाइना बहुत लचीली होती है और कुछ ही हफ्तों में ये वापस अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाती है। प्रसव के दौरान कोई घाव हो तो वो भी भर जाता है। प्रेगनेंसी के बाद आपके पार्टनर को भी ज़्यादा फर्क नहीं लगेगा। फिर भी वजाइना को टाइट करने के लिए आप कीगेल एक्सरसाइज़ कर सकती हैं।
मां कहां है?
डिलीवरी की डेट पास आते-आते आपकी नज़रें अपनी मां को ढूंढने लगती हैं। प्रसव के दौरान मां का साथ बहुत ज़रूरी होता है। गर्भावस्था को लेकर आपके मन में जो भी सवाल होते हैं उनका जवाब आपको अपनी मां के पास मिलता है।
क्या होगा जब आप प्रसव के दौरान तैयार ना हों तो
ऐसा हो सकता है कि डॉक्टर द्वारा बताई गई डेट से पहले या बाद में बच्चे का जन्म हो जाए। आपको डर लगने लगता है कि कहीं प्रसव वाले दिन आप ट्रैफिक या मॉल में ना फंस जाएं। वाकई में ये रिस्क वाली बात है लेकिन इस पर आपका या किसी और का कोई कंट्रोल नहीं है।
ऐसी किसी परिस्थिति से निपटने के लिए अपने साथ कुछ कपड़े और अन्य कपड़े रखें। प्रसव के चरण में अपने साथ ज़रूरी नंबर रखें। अपने पति, माता-पिता और डॉक्टर का नंबर साथ रखें।
::/fulltext::10-15 लोगों का एक ही छत के नीचे मज़े से रहना, दुख-सुख में एक दूसरे के लिए खड़े हो जाना और मिलकर ज़िम्मेदारियों को निभाने वाले संयुक्त परिवार के दिन अब लद चुके हैं। लेकिन जो लोग ऐसे परिवार में पले-बढ़े हैं, वह उन दिनों को भूला नहीं सकते। साथ ही इनके पास अपने अनुभव को बांटने के लिए शब्द ही नहीं है। इतना ही नहीं ऐसे लोग हर परिस्थिति में आसानी से सामंजस्य बैठा सकते हैं।
लेकिन सच में ऐसे बड़े परिवार में तालमेल बिठाना बहुत बड़ा काम है, खासतौर पर जब बात हो नई बहू की तो यह काम और मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इनके कंधों पर नई-नई ज़िम्मेदारियां डाल दी जाती हैं। फिर भले ही बहू एक छोटे परिवार या संयुक्त परिवार से ही क्यों न आती हो। उसे चुनिदां चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि वह ऐसे घर की सदस्य बनने जा रही है, जहां पहले ही बहुत सारे लोग एक साथ रहते हैं। ऐसे में हर नई बहू को संयुक्त परिवार में सभी को पहले समझना होता है और फिर काम करके तालमेल कायम करना पड़ता है।
रिश्तेदारों का करें सत्कार: संयुक्त परिवार में सबसे पहले और सबसे ज़रूरी बात है कि आप सभी रिश्तों और रिश्तेदारों की इज़्ज़त करें और उनका सत्कार करें। साथ ही हो सकता है कि आपने सभी के बारे में कुछ न कुछ सुन रखा हो, लेकिन कही सुनी बातों के आधार पर राय बना लेना गलत होगा। आपको अपनी समझ के अनुरूप ही लोगों के प्रति राय बनानी चाहिए। साथ ही हमेशा बड़ों को आदर व बच्चों को प्यार देने की कोशिश करें।
गॉसिप से रहें दूर: चूंकि परिवार संयुक्त है तो, स्वाभाविक है कि चटपटी गॉसिप भी बहुत सारी होगी। ऐसे में परिवार के नए सदस्य होने के नाते कोशिश करें कि आप इन सबसे दूर ही रहें। साथ ही अगर कोई आप से कुछ कहता भी है तो आप उसे अपने तक ही रखें।
शब्दों में हो दम: संयुक्त परिवार में निभाने के लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि आपकी कथनी और शब्दों में थोड़ा दम होना चाहिए। याद रखें कि परिवार में सभी लोग अलग अलग स्वभाव के होते हैं, ऐसे में आपको नहीं पता होता कि कौन आपके शब्दों को कैसे स्वीकार करे। इसलिए कोशिश कीजिए कि एक मध्यस्थ रास्ता अपनाते हुए सभी के साथ तरीके और संयम के साथ बात करें।
शिकवे न रखें: जब चार बर्तन घर में होते हैं तो खटकते तो है ही, यह कहावत संयुक्त परिवार पर बिल्कुल सटीक बैठती है। ऐसे परिवार में चार अलग-अलग तरह के लोग एक साथ रहते हैं और इनके बीच किसी भी बात को लेकर मन मुटाव होना भी मुमकिन है। लेकिन नई बहू होने के नाते आपकी कोशिश यह होनी चाहिए कि आप कोई शिकायत या शिकवा न रखें। क्योंकि याद रहे कि हर छोटी-छोटी बात को लेकर शिकायत करना आपके लिए ही खतरा बन सकता है। ऐसे में सामने वाले को समझने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया दें।
समझें ज़िम्मेदारियां: बड़े परिवार का मतलब है कि ज़िम्मेदारियां और उन्हें सम्पूर्णता से निभाने का निश्चय। परिवार का हिस्सा होने के नाते, ज़रूरी है कि आप परिवार और परिवार के हर सदस्य को समझें। इसी के साथ बड़े परिवार में सभी के हिस्से थोड़ी-थोड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है, जिन्हें हर मुमकिन कोशिश कर पूरा करना सभी का कर्त्तव्य है। अब जब आप परिवार का हिस्सा हैं तो आप जो भी करते हैं वह परिवार की अच्छाई के लिए ही होता है।
मदद करें सबकी: जब आप किसी की मदद करते हैं तो ज़रूरत पड़ने पर आपको भी मदद मिल ही जाती है और आपका रूका हुआ काम बन जाता है। साथ ही हमेशा ध्यान रखें कि आप अकेले नहीं जी रहे हैं, आपके साथ बहुत से रिश्ते जुड़े हैं। इसलिए हमेशा साथ मिलकर रहें और एक दूसरे की मदद करते रहें।
बनाएं हेल्दी रिश्ता: किसी भी परिवार में लड़ाई झगड़े होना आम है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस वजह से घर के माहौल पर असर पड़े, या फिर आपकी बोल चाल ही बंद हो जाए। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो रिश्ते और परिवार दोनों के टूटने का खतरा बना रहता है। साथ ही आप माने या न माने लेकिन एक बहू ही किसी परिवार को एकजुट कर सकती है।