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गर्भनिरोधक के बारे में जब कभी बात होती है तो हम कंडोम, इमरजेंसी पिल्स, बर्थ कंट्रोल पिल्स के बारे में लोग जानते है। जबकि अनचाहे गर्भ को रोकने के लिए कई तरह के अन्य सुरक्षित उपाय भी होते हैं उन्हीं में से एक है कॉपर टी। इंट्रायूटेरिन डिवाइस जिसे आईयूएसडी भी कहते हैं एक सुरक्षित गर्भनिरोधक उपाय माना जाता है। यह सबसे सुरक्षित, कारगर और लंबे समय तक टिकाऊ उपाय माना जाता है। कॉपर टी एक कारगर गर्भ निरोधक है। यह यूटेरस में शुक्राणु और अंडाणु को मिलने नहीं देता और इस कारण गर्भ नहीं ठहरता। यह बच्चों में सही अंतर रखने का सटीक उपाय है, जिसे सुविधानुसार हटाया भी जा सकता है।
3 से 5 साल के लिए लगा सकते है
इसका इस्तेमाल लंबे समय तक प्रभावी रहता है 3 से 5 साल तक इसका उपयोग किया जा सकता है। साथ ही यह बहुत मंहगा भी नहीं होता है।
कॉपर टी लगाने का सही समय?
हालांकि कॉपर टी डिलीवरी के दो दिन बाद लगा सकते है। लेकिन अगर डिलीवरी में कोई जटिलता या इंफेक्शन की हो तो कम से कम 6 सप्ताह तक का इंतजार करना चाहिए। इसे पीरियड के बाद भी लगवा सकते है।
कॉपर टी लगाने से पहले सावधानियां
कॉपर टी किसी विशेषज्ञ की निगरानी में लगवाना जरुरी होता है। हालांकि कई महिलाओं के दिमाग में ये सवाल होता है कि कॉपर टी कब लगानी चाहिए, हालांकि आप कॉपर टी कभी भी लगा सकती है। कॉपर टी लगवाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखें जैसे डिलीवरी के दो दिन बाद से चार हफ्ते तक अगर डिलीवरी या अबॉर्शन के बाद इन्फेक्शन हो तो, पीरियड्स के अलावा भी ब्लीडिंग हो या महिला गर्भवती हो, या फिर यूटेरस या सर्विक्स कैंसर हो। इसके साथ-साथ अगर यौन संक्रमण का रिस्क हो तो भी कॉपर टी लगवाने से पहले इलाज जरूरी होता है।
सेक्स लाइफ को करता है प्रभावित?
कुछ महिलाएं जिन्हें हार्मोनल आईयूडी लगाया जाता है उन्हें सेक्स के दौरान ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है। दरअसल हार्मोनल आईयूडी को पतला बना देते हैं। यह हर महीने पीरियड्स के साथ थोड़ा और खुल जाते हैं। कई बार सेक्स के दौरान भी यह खुल सकते हैं जिसके चलते आपको खून निकलता हुआ महसूस होगा। लेकिन, सेक्स के दौरान खून निकलने के सही कारण का पता लगाने के लिए आपको हमेशा अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
इन महिलाओं को नहीं लगाना चाहिए कॉपर टी
जो महिलाएं पहले से ही गर्भवती हो, जो किसी तरह के गर्भाशय के रोग से गुजर रही हो, जिनके पेल्विक में सूजन हो, जिन्हें पीरियड के दौरान बहुत दिक्कत होती हो, जो महिलाएं एनिमिक हो इसके अलावा एक्टोपिक प्रेगनेंसी में महिलाओं को कॉपर टी को अवॉइड ही करना चाहिए।
हर साल आज के दिन विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है कि ताकि लोगों को विश्व की आबादी को लेकर जागरूक किया जा सके और उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बताया जा सके। इस साल विश्व जनसंख्या दिवस की थीम ' फैमिली प्लानिंग इज़ अ ह्यूमन राइट’ है।
इस दिन को मनाने का प्रमुख उद्देश्य विश्व की जनसंख्या को नियंत्रित करने की जरूरत और महत्व पर ध्यान देना है। साथ ही इसके द्वारा प्रजनन स्वास्थ्य के विषय में जागरूकता भी फैलाना है।
विश्व जनसंख्या दिवस के उद्देश्य
क्या है प्रजनन स्वास्थ्य
प्रजनन स्वास्थ्य एक मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्थित है। इसे केवल प्रजनन रोगों के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। ये जीवन के सभी स्तरों पर प्रजनन प्रक्रिया, प्रणाली और व्यवस्था पर कार्य करता है।
प्रजनन सेहत के प्रकार
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार प्रजनन स्वास्थ्य के प्रकार हैं इस प्रकार हैं :
गर्भाश्य फाइब्रॉएड
प्रजनन की उम्र में महिलाओं में इस प्रकार का कैंसर होने का खतरा रहता है। गर्भाश्य के अंदर और उसकी आसपास की दीवार की मांसपेशियों की कोशिकाएं और अन्य टिश्यूज़ पर फ्राइब्रॉएड बनने लगते हैं। इसके लक्षणों में कमर दर्द, बार-बार पेशाब आना, पेट का निचला हिस्सा भारी महसूस होना, माहवारी में दर्द होना, सहवास के दौरान दर्द, प्रजनन समस्याएं जैसे बांझपन और कई बार गर्भपात होना।
एंडोमेट्रिओसिस
ये एक प्रजनन विकार है जो महिलाओं के गर्भाश्य को प्रभावित करता है। एंडोमेट्रिओसिस गर्भाश्य में सामान्य टिश्यूज़ के बनने पर होता है या फिर ये टिश्यूज ओवरी औश्र गर्भाश्य, ब्लैडर और आंत में कहीं भी बन जाते हैं। ये टिश्यूज़ बांझपन, दर्द और भारी माहवारी का कारण बनते हैं।
एचआईवी संक्रमित पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने पर महिलाओं में भी एचआईवी वायरस संक्रमित हो जाता है। ये संक्रमण एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति पर प्रयोग की गई सुईं से भी फैल सकता है। गर्भवती महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए शिशु एचआईवी के संपर्क में ना आए। इसके खतरे से बचने के लिए डॉक्टर से चैकअप जरूर करवाते रहें।
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
ये बीमारी तब होती है जब किसी महिलाकी ओवरी या एड्रेनल ग्लैंड सामान्य से ज्यादा मात्रा में पुरुष हार्मोन पैदा करने लगते हैं। इसकी वजह से ओवरी में सिस्ट बनने शुरु हो जाते हैं। मोटे लोगों में पीसीओएस का खतरा ज्यादा रहता है और इनमें ह्रदय रोग और मधुमेह का खतरा भी ज्यादा रहता है।
इंटरस्टिशियल सिस्टिटिस
मूत्राशय में पैदा होने वाली ये एक गंभीर स्थिति है। इससे ग्रस्त लोगों को मूत्राशय की झिल्लियों में जलन और सूजन महसूस होती है जिसकी वजह से मूत्राशय सख्त होने लगता है। इसके लक्षणों में बार-बार पेशाब आना, पेट में दर्द रहना, मूत्राशय में बहुत ज्यादा दर्द महसूस होना शामिल है।
यौन हिंसा
भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में यौन हिंसा बड़ी तेजी से फैल रही है। यौन हिंसा एक यौन क्रिया है जिसमें दो लोगों की सहमति से संबंध नहीं बनते हैं। इसमें पुरुषों से ज्यादा महिलाएं पीडित होती हैं।
यौन संक्रमित रोग
बैक्टीरियल, वायरस और पैरासाइट्स यौन संक्रमित रोग का कारण है। आपको बता दें कि महिलाओं और पुरुषों में 20 तरह के एसटीडी रोग होते हैं
प्रजनन स्वास्थ्य का महत्व
ये तथ्य लोगों की संतुष्टि और सुरक्षित यौन जीवन में निहित है। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना है कि महिलाएं प्रजनन से संबंधित निर्णय स्वयं और स्वतंत्र होकर लें। बचपन, किशोरावस्था और जवानी में प्रजनन सेहत बहुत महत्वपूर्ण होती है।
फैमिली प्लानिंग से प्रजनन सेहत कई मायनों में अलग है। बांझपन का ईलाज करना थोड़ा मुश्किल और महंगा है लेकिन प्रसव के दौरान और उसके बाद उचित सावधानी रखकर इससे बचा जा सकता है।
इसके अलावा ये स्तनपान के महत्व और प्रोत्साहन एवं कई तरीकों से प्रजनन सेहत पर इसके प्रभाव पर भी केंद्रित है। इसमें कुछ पोस्ट-पार्टम समस्याओं, ओवररी और स्तन कैंसर को रोकने और नवजात शिशु के स्वास्थ्य में सुधार शामिल है।
इन बातों को भी जान लें
बिलासपुर। डॉक्टरों के मुताबिक थैलेसीमिया पीड़ितों की अल्प आयु होती है। पीड़ित व्यक्ति का जीवन 16 से 20 साल तक का होता है। इस अवधारणा को पीड़ित किरण व उसके पिता ने बदल दिया है। वह 24 की उम्र में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं।पिता ने ब्लड, दवा और खान-पान का ध्यान रखकर असंभव को संभव बनाने में मदद की है। आरती के पिता दिलीप यादव बताते हैं कि आरती एक साल की हुई तो अचानक तेज बुखार आने लगा। डॉक्टर के पास गए तो उसने बोनमेरा टेस्ट कराया।
रिपोर्ट आने के बाद पता चला की वह थैलेसीमिया से ग्रसित है। उस समय इस बीमारी के बारे में लोग कम ही जानते थे। डॉक्टरों ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का अल्प जीवन होता है। समय पर उपचार मिलता रहा तो भी 10 साल के उम्र के बाद उलटी गिनती शुरू हो जाती है। अधिकतम 20 साल तक ही पीड़ित जीवन जी पाते हैं। यह सुनकर पिता स्तब्ध रह गए। डॉक्टर ने यह भी जानकारी दी कि अब आरती को हर महीने खून लगेगा। साथ ही दवाइयां चलेगी। उसकी देखभाल पर खास ध्यान देना होगा। इसके बाद पिता ने अपनी बेटी की सेवा में जुट गए।
हर महीने खून उपलब्ध कराना संघर्ष के कम नहीं था। साथ ही दवाओं का ख्याल रखना था। उनकी देखभाल का ही नतीजा है कि किरण पर बीमारी हावी नहीं हो पाई। आज किरण 24 साल की हो गई है और बिलकुल सामान्य जीवन व्यतीत कर रही है। यह ही नहीं किरण ने बीकाम, पीजीडीसीए की पढ़ाई भी पूरी कर ली है। पिता व बेटी का कहना है कि कोई भी बीमारी बड़ी नहीं होती है। लड़ने के जज्बे और उचित देखभाल से बीमारी को हराया जा सकता है। किरण व उसके पिता दिलीप अन्य पीड़ितों व उनके अभिभावकों के लिए प्रेरणा हैं।
जज्बा दे रहा सहारा
किरण का जिम्मा अब जज्बा फाउंडेशन उठा रहा है। इसके लिए हर माह नि:शुल्क ब्लड की व्यवस्था की गई है। साथ ही संस्था दवाओं का खर्चा भी उठा रही हैं। जज्बा के संयोजक संजय मतलानी ने बताया कि किरण और उसके पिता के संघर्ष को हम समझते हैं। उसके अलावा अन्य 20 थैलेसीमिया पीड़ितों को गोद लेकर उनकी आवश्यकता को पूरा किया जा रहा है।
संभाग की सबसे बड़ी थैलेसीमिया पीड़ित
जिले में सैकड़ों थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे हैं। ज्यादातर जीवन का पहला दसक भी देख नहीं पाते हैं। समय पर ब्लड मिलने व उचित देखभाल मिलने पर कुछ साल जीवन बढ़ जाता है। 24 साल की किरण संभाग की सबसे अधिक उम्र की थैलेसीमिया पीड़ित मरीज है।
अब तक लग चुका है 550 यूनिट ब्लड
दिलीप यादव छत्तीसगढ़ स्कूल में क्लर्क हैं। शुस्र्आती दिनों में उनका वेतन बेहद कम था। 24 साल पहले रक्तदान के प्रति लोगों में जागरूकता भी नहीं थी। उस समय खून खरीदना पड़ता था। आर्थिक तंगी के बाद भी पिताने हर नहीं मानी और हर माह ब्लड की व्यवस्था करते रहे। इसके लिए प्रदेश के अन्य शहर के साथ ही दूसरे प्रदेश तक जाना पड़ता। आरती को अब तक 550 यूनिट ब्लड लग चुका है।
घर भी बेचना पड़ा
ब्लड के साथ दवाओं में लाखों खर्चा करना पड़ा। इसके बाद भी पिता ने हार नहीं मानी। यहां तक की उन्होंने अपना घर तक बेच दिया। आरती के लिए चिकित्सकीय संसाधन जुटाते आए। इसी का नतीजा है कि आरती पूरी तरह स्वस्थ है।शादी से पहले कराएं जांच दिलीप ने बताया कि इस बीमारी को रोकने का एक ही उपाय है कि जब कभी भी किसी की शादी हो तो उन्हें थैलेसीमिया का टेस्ट जरूर कराना चाहिए। यदि किसी एक में इसका वाहक मिला तो शादी नहीं करनी चाहिए। दोनों के बच्चे के थैलेसीमिया से ग्रसित होने की आशंका 90 प्रतिशत तक रहती है।
::/fulltext::हर माता पिता यही चाहते हैं कि उनका बच्चा हमेशा स्वस्थ रहे लेकिन अगर बार बार उनको इन्फेक्शन हो जाए तो पेरेंट्स परेशान हो जाते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। क्या एक के बाद एक आपके बच्चे को इन्फेक्शन हो जाता है क्या वह रात को ठीक से सो नहीं पाता। क्या उसका पेट हमेशा गड़बड़ रहता है या फिर उसे पेट दर्द की शिकायत रहती है। इसके अलावा क्या आपके बच्चे के शरीर पर रैशेज़ हो जाते हैं। यदि आपका जवाब हाँ है तो समझ जाइए कि आपके बच्चे को एलर्जी हो रही है।अच्छी बात है कि इस तरह की एलर्जी कुछ मामलों में ज़्यादा दिन तक नहीं रहती और समय पर इनका इलाज करने से ये ठीक भी हो जाती हैं। बस आपको यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आपके बच्चे को शरीर के किस हिस्से में एलर्जी हो रही है और किस चीज़ से हो रही है।
ऐसे में बेहतर होगा कि आप किसी अच्छे चिकित्सक से सलाह लेकर अपने बच्चे का इलाज करवाएं लेकिन इससे पहले हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देंगे जिससे आप यह पता लगा पाएंगे कि आपके बच्चे को एलर्जी है।
1. भरी हुई नाक
2. खांसी
3. लाल आँखें
4. रैशेज
5. पेट में गड़बड़ी
6. वायु से एलर्जी
7. जब बच्चा रात भर न सोए
8. कान में दिक्कत
9. शरीर पर चकत्ते
बंद नाक:
अकसर मौसमी बीमारी की वजह से बच्चे को सर्दी ज़ुकाम हो जाता है जिसके कारण उसकी नाक बंद हो जाती है और वह मुंह से सांस लेने लगता है। अगर लगातार आपका बच्चा मुंह से सांस ले रहा है और उसकी नाक बंद ही है तो फिर यह चिंता की बात है। यह एलर्जी के लक्षण है और यह घर के अंदर या बाहर से भी हो सकता है।
खांसी:
यदि आपके बच्चे को लगातार सूखी खांसी आ रही हो तो ये भी एलर्जी का एक कारण हो सकता है। ऐसे में आपको फ़ौरन अपने चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए और एलर्जी की जांच करवानी चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह के अपने बच्चे को किसी नई तरह की दवाई भूल कर भी न दें। इससे उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है।
लाल आँखें:
आम तौर पर लाल आँखें वायरस के कारण होती हैं लेकिन इसकी वजह एलर्जी भी हो सकती है। इसमें बच्चे की आँखें लाल हो जाती हैं और साथ ही आँखों में से पानी निकलता है। ऐसे में बच्चे की आंख चिपक कर बन्द भी हो जाती है। अगर इस तरह की परेशानी की वजह वायरल और बैक्टीरियल है तो फिर यह बीमारी संक्रामक है। लेकिन अगर या एलर्जी के कारण हो रही है तो फिर घर में इसे किसी और को होने का कोई खतरा नहीं है। इसके अलावा ऐसी परिस्थिति में बच्चे को हल्का ज़ुकाम भी हो सकता है। साथ ही उसे थोड़ी खुजली भी हो सकती है। बेहतर होगा आप अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं और उनसे सलाह लें। इस तरह की एलर्जी धूल मिट्टी के कारण भी हो सकती है।
रैशेज़
बच्चों में रैशेज़ की समस्या बहुत ही आम है। इस तरह की समस्या एक्जिमा भी हो सकती है या फिर बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाला साबुन या फिर उसके कपड़े। बच्चों की त्वचा बहुत संवेदनशील होती है। हालांकि अधिकतर रैशेज़ कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं और इनके लिए ज़्यादा चिंता करने की बात नहीं होती लेकिन अगर ये लंबे समय तक ठीक न हो फिर उसे इलाज की ज़रूरत है।
पेट में गड़बड़ी
पेट से संबंधित परेशानियां अकसर एलर्जी के कारण होती हैं। हालांकि ये वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होती है लेकिन छोटे बच्चों में ये खाने पीने की एलर्जी के कारण होता है। उल्टी, डायरिया, दर्द, पैखाने में खून आदि इस तरह की एलर्जी के लक्षण होते हैं। ऐसे में आप इस बात का ध्यान रखिए कि किस खाने से आपके बच्चे को ऐसी समस्याएं हो रही हैं। आप अपने डॉक्टर से मिलकर बच्चे की जांच करवाएं ताकि एलर्जी की असली वजह पता चल सके।
वायु से एलर्जी
सांस लेते वक़्त जो वायु हम अपने अंदर निगलते हैं वह भी एलर्जी का एक कारण हो सकता है क्योंकि इसमें ऐसी कई चीज़ें पायी जाती हैं जो बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। उदाहरण के तौर पर सिगरेट का धुआं, धुल मिट्टी आदि इसलिए बेहतर होगा आप बच्चे के आस पास का वातावरण स्वच्छ रखें।
जब आपका बच्चा रात भर न सोए
बहुत सारे नवजात शिशु रात भर ठीक से सो नहीं पाते और रोते हैं मुमकिन है उसे किसी प्रकार का दर्द हो रहा है। यदि बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो ऐसा माना जाता है कि बच्चे के दांत निकल रहे हैं लेकिन अगर ये कारण भी न हो तो समझ लीजिए कि आपके बच्चे को किसी तरह की एलर्जी हो गई है। अपने चिकित्सक से उसका इलाज करवाएं और असली वजह का पता लगाएं।
कान में दिक्कत
अकसर आपने एलर्जी के कारण रैशेज़, खांसी, सूजन या फिर छींक आते देखा होगा लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि कान में दर्द भी एलर्जी के कारण होता है। यदि आपके बच्चे को लगातार कान में इन्फेक्शन, दर्द, खुजली, सुनने में परेशानी हो रही है तो ये सारे एलर्जी के लक्षण होते हैं। छोटे बच्चों को अकसर इस तरह की एलर्जी खाने की वजह से होती है। ऐसे में कान बहने जैसी समस्या भी होती है यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो बहरेपन की भी शिकायत हो सकती है।
शरीर पर चकत्ते
बच्चों के शरीर पर चकत्ते एलर्जी के कारण हो सकता है। ये धीरे धीरे पूरे शरीर पर फ़ैल जाते हैं। ये खाने पीने की चीज़ों, दवा या फिर किसी कीड़े के काटने से भी हो सकता है। ऐसे में अपने डॉक्टर से सलाह लेकर यह जानने की कोशिश करें कि आखिर किस चीज़ से बच्चे को ऐसी परेशानी हो रही है। अगर यह किसी दवा के कारण हो रही है तो ध्यान रखें कि जब भी अपने डॉक्टर के पास जाएं उन्हें इसके विषय में ज़रूर बताएं।
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