Thursday, 13 March 2025

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आज के समय में ज्यादातर लोगों की जो जीवनशैली है, उसका विपरीत प्रभाव हमारे दिमाग पर पड़ता है।..... 

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वैसे तो इंसानी असीमित क्षमता लिए होता है लेकिन आज के समय में ज्यादातर लोगों की जो जीवनशैली है, उसका विपरीत प्रभाव हमारे दिमाग पर पड़ता है। इस भागदौड़भरी व्यस्ततम दिनचर्या का असर न केवल हमारे सेहत पर पड़ता है बल्कि हमारे दिमाग और दिमागी सेहत पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
 
आइए जानें ऑफिस, घर, बाजार के हजारों कामों को जल्द से जल्द और समय पर निपटाने की भादौड़ में हम ऐसी क्या गलतियां रोजाना करते हैं, जो हमारे दिमाग को धीरे-धीरे कुंद बना रही होती हैं।
 

* तनाव के अलावा कई और ऐसी आदतें हैं, जो आपके दिमाग को नुकसान पहुंचाती और सुस्त बनाती हैं। 

* यदि आप बीमार हैं और ऐसे समय में आप कोई भी ऐसा काम करते हैं जिसमें ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल हो, जिससे आपको अपने दिमाग पर अधिक जोर देना पड़े, तो ऐसी नाजुक हालत में यह अतिरिक्त दबाव आपके दिमाग को नुकसान करता है।

* सुबह का नाश्ता लगातार नहीं करने से दिमाग की कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है।

* बहुत ज्यादा खाने से भी दिमाग सुस्त होते जाता है। जरूरत से अधिक खाने से दिमाग कंफ्यूज हो जाता है और इंसुलिन के उत्पादन का संतुलन बिगड़ जाता है।



* कम पानी पीने से भी दिमाग के कार्य करने की दक्षता पर नकारात्मक असर होता है।

*बहुत ज्यादा मीठा खाने से को नुकसान होता है।

*अपने मुंह को ढंककर सोने से ताजी हवा अंदर नहीं जा पाती है जिससे शरीर में ऑक्सीजन कम हो जाती है और कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ जाती है, जो सीधे-सीधे दिमाग को हानि पहुंचाती है।

* लंबे समय तक तनाव में रहने से दिमाग कम काम करने लगता है, याददाश्त कम होने लगती है और अवसाद व अन्य कई मानसिक रोग हो जाते हैं।

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लेप्टोस्पायरोसिस भी एक ऐसी बीमारी है जिसके कैसेज मानसून के दौरान ही देखने को मिलते है।...... 







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हम में से कई लोग वायरस बैक्‍टीरिया के वजह से होने वाले कई संक्रमण और बीमार‍ियों के बारे में जानते है जैसे हैजा, टाइफाइड, मलेरिया जो कि खासतौर पर बारिश के मौसम में फैलते है। लेकिन ऐसी कई बीमार‍ियां हमारे आसपास मौजूद होती है जिनके चपेट में आने से हमारी जान भी जा सकती है लेकिन हम उनके बारे में अवेयर नहीं है जैसे कि लेप्टोस्पायरोसिस। 

लेप्टोस्पायरोसिस भी एक ऐसी बीमारी है जिसके कैसेज मानसून के दौरान ही देखने को मिलते है। भारत में 2013 मे इस बीमारी का पहला मामला सामने आया था। उसके बाद से हर साल इस बीमारी के कारण करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों प्रभावित होते है। इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा 10-15 फीसदी का रहता है। इस साल मुंबई में अब तक इसके कारण चार लोग अपनी जान खो चुके है।

his Monsoon, Stay Away From Leptospirosis: Heres How

 

यह बीमारी में जानवरों के मल-मूत्र से फैलने वाले लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। चूहों के यूरीन के पाए जाने वाले इस बैक्‍टीरिया के संपर्क में आए पालतू जानवर इस बीमारी को इंसाने के शरीर में पहुंचा देते है। आमतौर पर यह भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी, सूअर और कुत्ते के कारण फैलता है। मानसून में इस संक्रमण के फैलने की संभावना ज्‍यादा रहती है।

कैसे सम्‍पर्क में आता है ये बैक्‍टीर‍िया

लेप्टोस्पायरोसिस के बैक्‍टीर‍िया चूहें, पक्षियों और स्‍तनधारी जीवों के जर‍िए इंसानों तक पहुंच सकते है। कोशिश करें कि आप ऐसी मिट्टी वाली जगह और पानी से दूर रहें, जहां जानवर ज्‍यादा घूमते है। वहां उनके मूत्र करने की ज्‍यादा सम्‍भावनाएं रहती हैं। अगर भूले से आप ऐसी जगह के सम्‍पर्क में आते हैं तो आपकी स्किन में दरारें और स्‍क्रेच उभरकर आ सकते है। ये बैक्‍टीरिया आपके चेहरे पर कान, नाक और जननांगों और घाव के जरिए प्रवेश कर सकते हैं।

यदि आपके घर में पालतू कुत्ता या गाय आदि है तो आपको उनसे ये बीमारी फ़ैल सकती है। इस बीमारी से ग्रस्त जानवर को अगर आप छूते हैं या उनके साथ खाते हैं तो बैक्टीरिया आपके शरीर में प्रवेश कर जाएंगे। दूसरी ओर अगर आपके घर में चूहों को ये बीमारी है तो भी आपके संक्रमित होने की काफी संभावना है। जानवरों के झूठे पानी में भी इस बीमारी के बैक्टीरियां मौजूद रहते हैं जो हवा के द्वारा आपके शरीर में प्रेवश करते हैं। घरेलू जानवरों द्वारा किए जाने वाले मल-मूत्र को छूने या सके संपर्क में आने से भी ये बीमारी आपको हो सकती है।

लक्षण

लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण दो सप्ताह के भीतर दिखने शुरू होते है।आपको यह 104 डिग्री तक बुखार का आना। इसके अलावा इसमें सिरदर्द, मसल्स में दर्द, पीलिया, उल्टी आना, डायरिया, त्वचा पर रैशेज पड़ने जैसे लक्षण दिखते है।
यह लक्षण इतने सामान्य है कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए आपको ब्लड टेस्ट कराने की जरूरत ही पड़ती है।

इलाज

लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज एंटीबायोटिक्स के जरिए ही किया जा सकता है। इसके अलावा शरीर दर्द आदि के लिए डॉक्टर आपको पेनकिलर दे सकते है। यह इलाज करीब हफ्ते भर के लिए चलता है। लेकिन अगर यह बीमारी गंभीर रुप ले लेती है तो आपको अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। इस संक्रमण की वजह से आपके शरीर के अंग भी खराब हो सकते है।

 बचाव

इस बीमारी से बचाव के लिए आपको पीने के पानी के साथ सावधानी बरतनी चाहिए।

मानसून के दौरान स्विमिंग, वाटर स्कीइंग, सेलिंग आदि से बचे।

इसके अलावा घर के पालतू जानवरों की साफ-सफाई पर भी जरूर ध्यान दें। ट्रेवल के दौरान सफाई का पूरा ध्‍यान रखें।

चोट को खुला न छोड़े, इस पर मरहम पट्टी करवा कर रखें।

चूहों से रहें दूर और पालतू जानवरों का रखें ध्‍यान

बारिश का पानी और चूहों से दूर रहना ही बेहतर विकल्प है। मानसून के समय जल भराव और बहते पानी के कारण यह संक्रमण पानी में मिलकर उसे दूषित कर देता है और इसी वजह से मानसून में लेप्टोस्पायरोसिस होने की आशंका दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है। इसके अलावा इस बैक्‍टीरिया के सम्‍पर्क में पालतू जानवरों के आने से आप भी संक्रमित हो सकते हैं।

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आपकी में रखी हैं ये चीजें जो की औषधियां हैं, वजन गिरेगा तुरंत.....

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तोंद निकल रही है या फिर पूरा शरीर ही है मोटापे का शिकार, आयुर्वेद के अनुसार यह है बढ़े हुए कफ दोष की निशानी। आयुर्वेद के मुताबिक आपके शरीर में तीन महत्वपूर्ण तत्व कफ, पित्त और वात का संतुलन बिगड़ चुका है। आपकी दिनचर्या ऐसी हो चली है जो आयुर्वेद के मुताबिक दोषपूर्ण है और इसलिए भीतरी विकार शरीर के बाहर मोटापे और अन्य बीमारियों के रूप में बाहर आ रहे हैं।
 
अगर आप भी मोटापे से जूझ रहे हैं तो अपने कफ दोष को दूर करने के उपाय तुरंत अपना लीजिए। आपका मेटाबोलिज्म दुरूस्त हो जाएगा या आयुर्वेद की भाषा में कफ दोष नियंत्रित हो जाएगा। आपका वजन तेजी से कम होगा। आयुर्वेद में कुछ ऐसी चीजों का वर्णन है जिनके उपयोग से आपके शरीर की सभी क्रियाएं व्यवस्थित हो जाएगी। इनमें से कुछ चीजें तो आपकी रसोई में ही मौजूद हैं। जानिए कौन सी है ऐसी आयुर्वेदिक चीजें जो कर देंगी और मिलेंगी रसोई में ही।
 
1. मैथी : मैथी सिर्फ रसोई में ही इस्तेमाल नहीं होती। यह आयुर्वेदिक औषधी है। इसका सही इस्तेमाल आपको कई तकलीफों से निजात दिला देगा। इसमें गैलेक्टोमन्ना (एक पानी में घुलनशील तत्व जो भूख को नियंत्रित करता है) होता है। इससे शरीर का मैटाबोलिक रेट कंट्रोल होता है। मैथी के बीज सेंककर इनका पाउडर बना लीजिए। इसे सुबह खाली पेट पानी के साथ ले लीजिए। वजन कम हो जाएगा।
 
2. दालचीनी : दालचीनी शरीर का शुद्धीकरण करती है। इससे शरीर का मेटाबोलिज्म दुरूस्त होता है। इसके इस्तेमाल से आपका मोटापा तेजी से कम होगा। हर दिन की शुरुआत में दालचीनी की चाय पीजिए।
 
3. हल्दी : हल्दी में करक्यूमिन नाम का तत्व होता है। करक्यूमिन ही ऐसा तत्व है जो हल्दी को सुपरफूड बनाता है। अगर दूध के साथ हल्दी को रोज लिया जाए तो शरीर एकदम साफ रहेगा। कफ दोष नियंत्रित रहने से आपका वजन भी नहीं बढ़ेगा।

4. अदरक : तासीर में गर्म अदरक वजन भी गलाता है। एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर अदरक शरीर के भीतर जहर नहीं टिकने देता। हानिकारक बैक्टेरिया को मार देता है। कफ दोष अदरक के इस्तेमाल से नियंत्रित रहता है। इससे वजन तेजी से घटता है।
 
5. त्रिफला : यह ऐसा ताकतवर चूर्ण है जो आपके शरीर की लगभग हर मुश्किल का समाधाना है। यह आयुर्वेद की जानी मानी औषधी है जिसके सिर्फ फायदे ही हैं और नुकसान बिल्कुल भी नहीं। इसकी कोई आदत नहीं पड़ती और यह शरीर के हर अंग को फायदा पहुंचाता है। आंवला, हरितकी और भिभितकी का मिश्रण यह चूर्ण हर दिन गर्म पानी के साथ लिया जाना चाहिए।
 
6. गुग्गुल : ये आपकी में अभी तो नहीं है लेकिन होना चाहिए। सदियों से आयुर्वेद में गुग्गुल को औषधी के रूप में अपना रखा है। इसमें गुग्गुलस्टेरोन नाम का तत्व होता है जिससे तेजी से वजन घटता है। कोलेस्ट्रोल कम होता है। इसकी चाय पीजिए।
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8 साल की बच्ची के ब्रेन में थे 100 से अधिक टेपवर्म के अंडे, क्‍या है टेपवर्म जानिए!.....

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दिल्‍ली से सटे गुरुग्राम में एक बहुत ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक 8 साल की बच्ची के दिमाग में टेपवर्म यानी फ़ीताकृमि के 100 से अधिक अंडे मिले हैं। बताते हैं कि बच्ची 6 महीने से सिरदर्द की शिकायत कर रही थी और उसे दर्द के चलते अजीब से दौर भी पड़ने लगे थे। प्रारम्भिक जांच में मालूम चला कि उसके ब्रेन में सिस्ट मौजूद हैं। जिसकी वजह से बच्‍ची के दिमाग में सूजन आ रही है।

इलाज के दौरान आने वाले दौरों को भी मिर्गी का दौरा समझा जाता था। मामला तब और भी ज्‍यादा गंभीर हो गया, जब इस बच्ची को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। जिसके बाद सिटी स्कैन कराया गया, रिपोर्ट में मालूम चला कि बच्‍ची के ब्रेन में 100 से ज्यादा सिस्ट हैं। जिन्हें ध्यान से देखने के बाद डॉक्टर समझ पाए कि ये टेपवर्म अंडे हैं। इसे बीमारी को न्यूरो-सिस्टीसरकोसिस कहा जाता है।
 
 Tapeworm

इसके बाद ऑपरेशन से डॉक्‍टर्स ने उसके ब्रेन का ऑपरेशन करके इन टेपवर्म झिल्लियों को निकालने के बाद खबर की पुष्टि की अब बच्‍ची की हालात में सुधार है। आइए जानते है टेपवर्म क्‍या होता है और शरीर तक कैसे पहुंचता है और बारिश के मौसम में खासतौर पर इससे बचाव क्‍यों जरुरी है?
 
क्या है टेपवर्म?

टेपवर्म यानी फ़ीताकृमि एक परजीवी है। यह अपने पोषण के लिए दूसरों पर आश्रित रहता है। इसकी 5000 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। इसकी लंबाई 1 मिमी से 15 मीटर तक हो सकते हैं। इसके शरीर में डायजेस्टिव सिस्टम न होने के कारण पचा-पचाया भोजन ही खाता है। टेपवर्म आमतौर पर जानवरों के मल में पाया जाता है। ये बारिश के पानी के साथ जमीन में पहुंच जाता है और फिर कच्‍ची सब्जियों के जरिए मनुष्‍यों के पेट में पहुंच जाता है। ये पेट से आंत में और खून के जरिए नर्वस सिस्‍टम से होते हुए दिमाग तक पहुंच जाते है। जिसकी वजह से मरीज को दौरे यानी ऐपीलेप्‍सी पड़ने लगती है। कुछ मामलों में तो ये रीढ़ की हड्डी यानी स्‍पाइन में हो जाने से लोगों को चलने और फिरने में भी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है।

कैसे पहुंचता है शरीर में?

दूषित और अधपका भोजन, सब्जियों और मांस की वजह से टेपवर्म आसानी से शरीर तक पहुंच सकता है। खासकर बारिश के दिनों में ऐसी सब्जियों को खाने से बचें। इसके अलावा गंदे पानी और मिट्टी में उगाई गई सब्जियों से भी यह आसानी से फैलता है। ऐसे लोग जो सुअर का मांस ज्‍यादा खाते हैं उनमें टेपवर्म होने की आशंका अधिक होती है। दूषित पत्तागोभी, पालक जैसी सब्जियों से भी इसके फैलने का खतरा रहता है। यहां इसके अंडे से निकलने वाला लार्वा रक्त के संपर्क में आने पर ब्रेन तक पहुंचता है।
 
ये है लक्षण
अगर किसी को अक्सर सिरदर्द की शिकायत रहती है या दौरे पड़ते हैं तो न्यूरोलॉजिस्ट से मिलें। इसके अलावा पेट में दर्द, भूख न लगना या कमजोरी होना, अचानक वजन बढ़ना और खूनी की कमी जैसे लक्षण भी द‍िखें तो डॉक्‍टर से जरुर मिलें। डब्‍लूएचओ ने कहा सेक्‍स की लत है एक मानसिक बीमारी, जानिए इसके लक्षण

इन तरीकों से करें बचाव

- सब्जियों को अच्छे से धोकर और पकाकर ही खाएं।

- खासकर बारिश में दिनों में सलाद और कच्ची सब्जी खाने से बचें।

- दूषित मीट और अधपकी मछली खाने से बचें।

- फिल्टर पानी का इस्तेमाल करें।

- बारिश के दिनों में संभव हो तो पानी को उबालकर ठंडा करके ही पीएं।

- नंगे पांव घूमने से बचें।
 
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