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* तनाव के अलावा कई और ऐसी आदतें हैं, जो आपके दिमाग को नुकसान पहुंचाती और सुस्त बनाती हैं।
* यदि आप बीमार हैं और ऐसे समय में आप कोई भी ऐसा काम करते हैं जिसमें ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल हो, जिससे आपको अपने दिमाग पर अधिक जोर देना पड़े, तो ऐसी नाजुक हालत में यह अतिरिक्त दबाव आपके दिमाग को नुकसान करता है।
* सुबह का नाश्ता लगातार नहीं करने से दिमाग की कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है।
* बहुत ज्यादा खाने से भी दिमाग सुस्त होते जाता है। जरूरत से अधिक खाने से दिमाग कंफ्यूज हो जाता है और इंसुलिन के उत्पादन का संतुलन बिगड़ जाता है।
* कम पानी पीने से भी दिमाग के कार्य करने की दक्षता पर नकारात्मक असर होता है।
*बहुत ज्यादा मीठा खाने से याददाश्त को नुकसान होता है।
*अपने मुंह को ढंककर सोने से ताजी हवा अंदर नहीं जा पाती है जिससे शरीर में ऑक्सीजन कम हो जाती है और कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ जाती है, जो सीधे-सीधे दिमाग को हानि पहुंचाती है।
* लंबे समय तक तनाव में रहने से दिमाग कम काम करने लगता है, याददाश्त कम होने लगती है और अवसाद व अन्य कई मानसिक रोग हो जाते हैं।
हम में से कई लोग वायरस बैक्टीरिया के वजह से होने वाले कई संक्रमण और बीमारियों के बारे में जानते है जैसे हैजा, टाइफाइड, मलेरिया जो कि खासतौर पर बारिश के मौसम में फैलते है। लेकिन ऐसी कई बीमारियां हमारे आसपास मौजूद होती है जिनके चपेट में आने से हमारी जान भी जा सकती है लेकिन हम उनके बारे में अवेयर नहीं है जैसे कि लेप्टोस्पायरोसिस।
लेप्टोस्पायरोसिस भी एक ऐसी बीमारी है जिसके कैसेज मानसून के दौरान ही देखने को मिलते है। भारत में 2013 मे इस बीमारी का पहला मामला सामने आया था। उसके बाद से हर साल इस बीमारी के कारण करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों प्रभावित होते है। इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा 10-15 फीसदी का रहता है। इस साल मुंबई में अब तक इसके कारण चार लोग अपनी जान खो चुके है।
यह बीमारी में जानवरों के मल-मूत्र से फैलने वाले लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। चूहों के यूरीन के पाए जाने वाले इस बैक्टीरिया के संपर्क में आए पालतू जानवर इस बीमारी को इंसाने के शरीर में पहुंचा देते है। आमतौर पर यह भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी, सूअर और कुत्ते के कारण फैलता है। मानसून में इस संक्रमण के फैलने की संभावना ज्यादा रहती है।
कैसे सम्पर्क में आता है ये बैक्टीरिया
लेप्टोस्पायरोसिस के बैक्टीरिया चूहें, पक्षियों और स्तनधारी जीवों के जरिए इंसानों तक पहुंच सकते है। कोशिश करें कि आप ऐसी मिट्टी वाली जगह और पानी से दूर रहें, जहां जानवर ज्यादा घूमते है। वहां उनके मूत्र करने की ज्यादा सम्भावनाएं रहती हैं। अगर भूले से आप ऐसी जगह के सम्पर्क में आते हैं तो आपकी स्किन में दरारें और स्क्रेच उभरकर आ सकते है। ये बैक्टीरिया आपके चेहरे पर कान, नाक और जननांगों और घाव के जरिए प्रवेश कर सकते हैं।
यदि आपके घर में पालतू कुत्ता या गाय आदि है तो आपको उनसे ये बीमारी फ़ैल सकती है। इस बीमारी से ग्रस्त जानवर को अगर आप छूते हैं या उनके साथ खाते हैं तो बैक्टीरिया आपके शरीर में प्रवेश कर जाएंगे। दूसरी ओर अगर आपके घर में चूहों को ये बीमारी है तो भी आपके संक्रमित होने की काफी संभावना है। जानवरों के झूठे पानी में भी इस बीमारी के बैक्टीरियां मौजूद रहते हैं जो हवा के द्वारा आपके शरीर में प्रेवश करते हैं। घरेलू जानवरों द्वारा किए जाने वाले मल-मूत्र को छूने या सके संपर्क में आने से भी ये बीमारी आपको हो सकती है।
लक्षण
लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण दो सप्ताह के भीतर दिखने शुरू होते है।आपको यह 104 डिग्री तक बुखार का आना। इसके अलावा इसमें सिरदर्द, मसल्स में दर्द, पीलिया, उल्टी आना, डायरिया, त्वचा पर रैशेज पड़ने जैसे लक्षण दिखते है।
यह लक्षण इतने सामान्य है कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए आपको ब्लड टेस्ट कराने की जरूरत ही पड़ती है।
इलाज
लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज एंटीबायोटिक्स के जरिए ही किया जा सकता है। इसके अलावा शरीर दर्द आदि के लिए डॉक्टर आपको पेनकिलर दे सकते है। यह इलाज करीब हफ्ते भर के लिए चलता है। लेकिन अगर यह बीमारी गंभीर रुप ले लेती है तो आपको अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। इस संक्रमण की वजह से आपके शरीर के अंग भी खराब हो सकते है।
इस बीमारी से बचाव के लिए आपको पीने के पानी के साथ सावधानी बरतनी चाहिए।
मानसून के दौरान स्विमिंग, वाटर स्कीइंग, सेलिंग आदि से बचे।
इसके अलावा घर के पालतू जानवरों की साफ-सफाई पर भी जरूर ध्यान दें। ट्रेवल के दौरान सफाई का पूरा ध्यान रखें।
चोट को खुला न छोड़े, इस पर मरहम पट्टी करवा कर रखें।
चूहों से रहें दूर और पालतू जानवरों का रखें ध्यान
बारिश का पानी और चूहों से दूर रहना ही बेहतर विकल्प है। मानसून के समय जल भराव और बहते पानी के कारण यह संक्रमण पानी में मिलकर उसे दूषित कर देता है और इसी वजह से मानसून में लेप्टोस्पायरोसिस होने की आशंका दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है। इसके अलावा इस बैक्टीरिया के सम्पर्क में पालतू जानवरों के आने से आप भी संक्रमित हो सकते हैं।
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