Thursday, 13 March 2025

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मानसून में फूड प्‍वाइजिंग की समस्‍या बढ़ जाती है वजह बैक्‍टीरिया और जर्म्‍स।........

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मानसून में कई बीमारियां हमें घेरे रहती हैं। इस मौसम में साफ सफाई का खासतौर पर ध्‍यान रखना पड़ता है। साफ-सफाई के अलावा इस मौसम में खानपान का भी ध्‍यान रखना बहुत जरुरी होता है। वरना छोटी सी चूक की वजह से बड़ा फूड प्‍वाइजिंग जैसी समस्‍या का हर्जाना चुकाना पड़ सकता है। मानसून में फूड प्‍वाइजिंग की समस्‍या बढ़ जाती है वजह बैक्‍टीरिया और जर्म्‍स। ऐसे में खाने-पीने की आदतों को सही करके फूड प्‍वाइजनिंग से बचाव किया जा सकता है। मानसून में आर्द्रता की वजह से बैक्‍टीरिया काफी जल्‍दी फैलते हैं।

वहीं साफ-सफाई भी फूड प्‍वाइजनिंग को दूर करने के लिए काफी अहम रहती है। फूड प्‍वाइजनिंग की हालत में पानी का भरपूर मात्रा में सेवन और दही का सेवन करना काफी फायदेमंद साबित होता है। 

Beware of Food Poisoning in This Monsoon

 आइए जानते हैं इस मानसून फूड प्‍वाइजनिंग से बचाव के लिए अपनाए जाने वाले कुछ उपाय....

हाथों को रखें साफ

बारिश के मौसम में आप गंदे पानी के सम्‍पर्क में आते है। इस वजह से आप कई तरह के जर्म्‍स के सम्‍पर्क में भी आते है। इस मौसम में बाहर से आने पर हाथ जरुर साफ करें। इससे आप फूड प्‍वाइजनिंग के खतरें से दूर रहेंगे। ऐसे में खासकर खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथों को साफ करना न भूले। इसके अलावा टॉयलेट से आने के बाद, घर पर अगर पालतू जानवर हैं तो उनको छूने के बाद भी हाथों को अच्छे से धोना चाहिए।

बासी खाना न खाएं

बारिश में बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। बारिश के द‍िनों में बासी खाने में जल्‍दी फंगस लगने का डर रहता है साथ में मक्खियां और मच्‍छर खाने के आसपास भिनभिनाते रहते हैं।अगर खाना बच जाता है तो उसे फ्रीज में रखें और कोशिश करें की जल्‍द से जल्‍द इसें खत्‍म कर दें।

सब्‍जियों को धोएं

खाना बनाने से पहले कच्ची सब्जियों को अच्छे से धोना चाहिए, ताकि इन सब्जियों पर मौजूद बैक्‍टीरिया साफ हो जाए। बरसात के द‍िनों सब्जियों में कीड़े लगना आम समस्‍या है इसल‍िए फूड प्‍वाइजनिंग से बचाव के लिए सब्जियों को धोना सही विकल्‍प है।

खाने को पूरी तरह से पकाएं

खाने को पूरी तरह से पकने दें। अगर खाना पूरी तरह से नहीं पका है तो उसमें विषैले तत्‍व रह जाते हैं जो शरीर को नुकसान देते हैं। ऐसे में खाने को तब तक पकाएं जब तक उसके विषैले तत्‍व बाहर न निकल जाएं।

 एक्सपायरी फूड का रखें ध्‍यान

फूड प्रोडक्ट को हमेशा एक्सपायरी डेट देखकर ही खरीदना चाहिए। कभी भी एक्सपायर फूड प्रोडेक्ट को न खरीदें। इससे फूड प्‍वाइजनिंग हो जाने की संभावना ज्यादा रहती है।

ट्रेवल मे न खाएं बाहर का फूड

अगर आप कहीं ट्रेवल कर रहे हैं तो ट्रेवल के दौरान अपने साथ घर का बना गरम और ताजा खाना ही ले जाएं। बाहर ठेले का खुला खाने से बचें।

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कैल्शियम की कमी की वजह से हो सकती है ये शरीर के साथ ये कमियां.....

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कैल्शियम एक रासायनिक तत्‍व है जिसकी मानव शरीर को बहुत आवश्‍यकता होती है। ये शरीर में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला खनिज है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसे महत्वपूर्ण माना गया है। दिमाग और शरीर के अन्‍य हिस्‍सों के बीच हैल्‍दी कम्‍युनिकेशन और हड्डियों को मजबूत और सेहतमंद बनाए रखने के लिए हम कुछ मात्रा में कैल्शियम का सेवन करते हैं। कैल्शियम कई चीज़ों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है जबकि कुछ प्रॉडक्‍ट्स और सप्‍लीमेंट में इसे डाला जाता है।

मानव शरीर में कैल्शियम कई तरह की भूमिका अदा करता है। आज इस पोस्‍ट के ज़रिए हम आपको बताएंगें कि हमारे शरीर को कैल्शियम की जरूरत क्‍यों होती है और हमें कैल्शियमयुक्‍त आहार क्‍यों लेना चाहिए और इसे पर्याप्‍त मात्रा में ना लेने पर शरीर में क्‍या होता है।

कैल्शियम से जुड़े तथ्‍य

हड्डियों की सेहत के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी होता है।

विटामिन डी, कैल्शियम को अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है।

दूध, ब्रोकली और टोफू कैल्श्यिम के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं।

कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स के कुछ हानिकारक प्रभाव भी होते हैं जैसे कि जी मिचलाना या गैस आदि।

कुछ गहरे रंग की हरी सब्जियां जिनमें ऑक्‍सेलिक एसिड की मात्रा ज्‍यादा हो, वो शरीर की कैल्शियम को अवशोषित करने की क्षमता को घटा देती हैं।

हमें कैल्शियम की जरूरत क्‍यों पड़ती है ?

कैल्‍शियम शरीर में कई तरह की भूमिका निभाता है, जैसे कि :

हडि्डयों की सेहत

शरीर में लगभग 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों और दांतों में पाया जाता है। ये हड्डियों के विकास, उत्‍थान और रखरखाव के लिए जरूरी होता है। 20 से 25 साल की उम्र तक कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करता है। इस दौरान हड्डियों की बढ़ने की क्षमता सबसे ज्‍यादा होती है। इस उम्र के बाद हड्डियों का घनत्‍व बंद हो जाता है लेकिन कैल्शियम हड्डियों को मजबूती देना बंद नहीं करता है और हड्डियों के घनत्‍व को कम होने से रोकता है जोकि एजिंग की प्रक्रिया का एक प्राकृतिक हिस्‍सा है।

जो लोग 20 से 25 की उम्र से पहले पर्याप्‍त मात्रा में कैल्शियम का सेवन नहीं करते हैं उनमें हड्डियों के रोग ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि बढ़ती उम्र में हड्डियों में जमा कैल्शियम खत्‍म होने लगता है।

मांसपेशियों में संकुचन

कैल्शियम मांसपेशियों में संकुचन करता है। ये ह्रदय की मांसपेशियों में भी काम करता है। जब नर्व मांसपेशी को उत्तेजित करती है तो कैल्शियम रिलीज़ होता है। यह मांसपेशियों में प्रोटीन को संकुचन का काम करने में मदद करता है। मांसपेशी को तभी आराम मिलता है जब कैल्शियम मांसपेशियों से बाहर पंप हो जाए।

ब्‍लड क्‍लॉटिंग

सामन्‍य ब्‍लड क्‍लॉटिंग में कैल्शियम अहम भूमिका निभाता है। क्‍लॉटिंग की प्रक्रिया में कई तरह के स्‍टेप्‍स होते है जिसमें केमिकल्‍स शामिल होते हैं। इन स्‍टेप्‍स में कैल्शियम अहम हिस्‍सा होता है।

अन्‍य भूमिका

कई एंजाइम्‍स के लिए कैल्शियम सह कारक होता है। इसका मतलब ये है कि कैल्शियम के बिना ये जरूरी एंजाइम्‍स ठीक तरह से काम नहीं कर पाते हैं। रक्‍त वाहिकाओं के आसपास की मुलायम मांसपेशियों पर कैल्शियम का असर पड़ता है। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है। विटामिन डी के बिना शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता है।

कैल्शियम युक्‍त फूड

सेहत विशेषज्ञों के अनुसार डायट्री कैल्शियम कई चीज़ों और ड्रिंक्‍स में पाया जाता है। हम विभिन्‍न स्रोतों से अपने शरीर की कैल्शियम की जरूरत को पूरा कर सकते हैं। 

इन खाद्यों और पेय पदार्थों में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है :

डेन्डेलियन फूल और पत्तियां

दूध

चीज़

योगर्ट

केल्‍प, हिजिकी और वकामे

नट्स और बीज जैसे कि पिस्‍ता, तिल, बादाम और हेज़लनट

बींस

अंजीर

ब्रोकली

पालक

टोफू

इसके अलावा कई तरह के पेय पदार्थ जैसे सोया मिल्‍क और कई तरह के फलों के रस से भी कैल्शियम की आपूर्ति की जा सकती है।

अंडों में भी कैल्शियम होता है।

कुछ गहरे रंग की हरी सब्जियों जिनमें ओक्‍सेलिक एसिड होता है वो शरीर की कैल्शियम को अवशोषित करने की क्षमता घटा देती हैं।

हर दिन कितने कैल्शियम की जरूरत होती है

1 - 3 साल की उम्र में : 700 मिली ग्राम

4 - 8 साल की उम्र में : 1,000 मिलीग्राम

9 - 18 साल की उम्र में : 1300 मिलीग्राम

19 - 50 साल की उम्र में : 1000 मिलीग्राम

स्‍तनपान करवाने वाली और गर्भवती लड़की को : 1000 मिलीग्राम

स्‍तनपान करवाने वाली और गर्भवती महिला को : 1000 मिलीग्राम

51 - 70 साल की उम्र के पुरुषों को : 1000 मिलीग्राम

51 - 70 साल की उम्र की महिलाओं को : 1200 मिलीग्राम

71 से अधिक उम्र में : 1200 मिलीग्राम

कैल्शियम की कमी और कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स

जिन लोगों में कैल्शियम की कमी होती है उन्‍हें कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स लेने की सलाह दी जाती है। इन सप्‍लीमेंट्स को उन चीज़ों के साथ लिया जाता है जो आसानी से कैल्शियम को अवशोषित कर लें और जिससे इसके हानिकारक प्रभाव कम हो जाएं। कोई भी सप्‍लीमेंट एक बार में 600 ग्राम से ज्‍यादा नहीं होना चाहिए।

कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स भी पूरे दिन में एकसाथ लेने की बताया धीरे-धीरे लेने चाहिए। दिन में दो से तीन सप्‍लीमेंट्स लेने चाहिए। कई सप्‍लीमेंट्स में विटामिन डी मिलाया जाता है क्‍योंकि ये शरीर में प्रोटीन को संश्‍लेषण करने में मदद करता है जिससे कैल्शियम अवशोषित हो पाता है। आजकल अपने लिए सही सप्‍लीमेंट चुन पाना बहुत मुकिश्‍ल है। कई तरह के कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स मौजूद हैं जिन्‍हें विभिन्‍न तरह के मेल और सामग्री से बनाया जाता है। ये सब मरीज़ की जरूरत, मेडिकल स्थिति या वो कोई दवा ले रहा है या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है।

कैल्शियम तत्‍व एक शुद्ध मिनरल होता है जोकि अन्‍य यौगिकों में प्राकृतिक रूप में होता है। कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स में विभिन्‍न तरह के कैल्शियम यौगिक होते हैं और इनमें कैल्शियम की मात्रा भी अलग होती है। जैसे कि कैल्शियम कार्बोनेट में 40 प्रतिशत कैल्शियम का तत्‍व होता है। इस तरह के सप्‍लीमेंट सस्‍ते और आसानी से मिल जाते हैं। खाने के साथ इन्‍हें लेने पर ये आसानी से घुल जाते हैं क्‍योंकि इन्‍हें अवशोषित होने के निए पेट के एसिड की जरूरत होती है।

कैल्‍शियम लैक्‍टेट में 13 प्रतिशत कैल्शियम का तत्‍व होता है।

कैल्शियम ग्‍लूकोनेट में 9 प्रतिशत कैल्शियम का तत्‍व होता है।

कैल्शियम साइट्रेट में 21 प्रतिशत कैल्शियम तत्‍व होता है। इसे फूड के साथ या उसके बिना लिया जा सकता है।

कैल्शियम सप्‍लीमेंट्स के हानिकारक प्रभाव

कुछ मरीजों को गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल लक्षण जैसे कि जी मितली, कब्‍ज और गैस या इन तीनों की शिकायत रहती है। कैल्शियम साइट्रेट के कैल्शियम कार्बोनेट के मुकाबले कम नुकसान होते हैं। खाने के साथ सप्‍लीमेंट्स लेने या दिन में दो-तीन बार करके लेने से इसके हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सकता है। विटामिन डी के साथ-साथ कभी-कभी मैग्‍निशियम भी मिलाया जा सकता है।

इन बीमारियों में कैल्शियम की कमी हो सकती है :

एनोरेक्‍सिया और अन्‍य ईटिंग डिस्‍ऑर्डर

मैग्‍नीशियम का अत्‍यधिक सेवना करना

किसी दवा जैसे कीमोथेरेपी या कोर्टिकोस्‍टेरॉएड्स आदि का लंबे समय से सेवन करना

पैराथायराएड हार्मोन की कमी

प्रोटीन और सोडियम ज्‍यादा खाने वाले लोगों में भी कैल्शियम की कमी हो जाती है।

कुछ तरह के कैंसर

जो महिलाएं बहुत ज्‍यादा कैफीन, सोडा या शराब का सेवन करती हैं उनमें कैल्शियम की कमी का खतरा बहुत ज्‍यादा रहता है।

किडनी के फेल होने पर

पैंक्रियाटिक्‍स

विटामिन डी की कमी

फास्‍फेट की कमी

ऑस्‍टियोपोरोसिस

ऑस्टिोपेनिआ

कुछ लोगों को वेगन डाइट की वजह से भी कैल्शियम की कमी हो सकती है।

वहीं जिन लोगों में लैक्‍टोज़ के प्रति असंवेदनशीलता हो, अगर वो कैल्शियमयुक्‍त गैर-डेयर उत्‍पादों का सावधानी से सेवन ना करें तो उन्‍हें भी ये परेशानी हो सकती है।

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कार्डियोवास्कुलर डिजीज के कुछ परिचित चेतावनी संकेत हाई बीपी, तनाव और डायबिटीज आदि हैं। लेकिन कुछ अन्य संकेत भी हैं, जो आप वास्तव में नहीं जानते हैं।.....


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कार्डियोवास्कुलर डिजीज के कुछ परिचित चेतावनी संकेत हाई बीपी, तनाव और डायबिटीज आदि हैं। लेकिन इससे अधिक कुछ अन्य संकेत भी हैं, जो आप वास्तव में नहीं जानते हैं। लोग आमतौर पर इन जोखिम वाले कारकों पर ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन अगर आप इस पर ध्यान देना शुरू करते हैं, तो आप उन्हें अपने जीवन में कुछ बदलाव करने रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। काफी समय पहले से हृदय रोगों को रोकने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। इन असामान्य बदलावों को ध्यान में रखते हुए, आपको नहीं पता होगा कि अपने आप को बचाने के लिए क्या करना है। हम आपको हार्ट अटैक के आश्चर्यजनक लक्षण बता रहे हैं, जिन्हें आप कभी नहीं जानते थे।

यौन रोग

अगर आपको बिस्तर पर अपने प्रदर्शन में परेशानी का अनुभव होता है, तो यह आपके दिल की स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय हो सकता है। जब रक्त वाहिकाएं अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं, तो यौन समस्याएं हो सकती हैं।

गंजापन

बालों की हानि का मतलब सर्कुलेशन का नुकसान भी हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार सिर के गंजेपन और हृदय रोग के बीच एक संबंध है।

स्लीप एपनिया

एक अध्ययन में पाया गया है कि स्लीप एपनिया या खर्राटों वाले लोगों में अवरुद्ध वायुमार्ग हृदय रोग के उच्च जोखिम से जुड़े थे। यह दिल का दौरा पड़ने के आश्चर्यजनक लक्षणों में से एक है।

प्लास्टिक की चीजों में खाना-पीना

प्लास्टिक में बीसपेनॉल ए (बीपीए) नामक केमिकल पाया जाता है, जो अणु जैसा एस्ट्रोजन पैदा कर सकता है जिससे महिलाओं में हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है।

माइग्रेन

हाल ही के एक अध्ययन में यह पता चला है कि जो महिलाएं महीने में एक बार माइग्रेन का अनुभव करती हैं, उनमें हृदय रोग का विकास होने की संभावना दो गुना होती है। यह दिल के दौरे के शीर्ष संकेतों में से एक है।

वैवाहिक तनाव

रिश्तों में नियमित रूप से किसी बात को लेकर बहस होने से महिलाओं के दिल पर बुरा असर पड़ता है। एक अध्ययन से पता चला है कि वैवाहिक तनाव से ग्रस्त महिलाओं में हृदय रोग के अतिरिक्त लक्षण देखे गए थे।

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बहुत से लोग शान से कहते हैं कि वो तो बस खाने के लिए ज़िंदा हैं।......

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आप जीने के लिए खाते हैं या खाने के लिए जीते हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि बहुत से लोग शान से कहते हैं कि वो तो बस खाने के लिए ज़िंदा हैं। खाने से हमारा रिश्ता बड़ा पेचीदा है। इस रिश्ते पर खाने की चीज़ों की क़ीमत, उनकी उपलब्धता और आस-पास के लोगों के खाने के स्वभाव का असर पड़ता है। हर इंसान बाक़ी लोगों से एक चीज़ साझा करता है और वो है कुछ खाने की हमारी ख़्वाहिश। भूख के ज़रिए हमारा शरीर हमें बताता है कि कब उसे ईंधन यानी खाने की ज़रूरत है। लेकिन, हमारी खाने की ख़्वाहिश सिर्फ़ भूख से नहीं जुड़ी होती। इसका वास्ता कई बातों से है। क्योंकि कई बार हम भूख न होने पर भी खाते हैं। और, कई बार भूख लगी होने पर भी खाना नहीं खाते।

हालिया रिसर्च ने बताया है कि खाने से जुड़े कई संकेत हमारी खाने की इच्छा पर असर डालते हैं। जैसे ख़ुशबू, खाना बनने की आवाज़ और विज्ञापन। कुल मिलाकर, हमारे इर्द-गिर्द ऐसा इंद्रजाल बन जाता है, जिसमें फंसकर हम ज़्यादा खा लेते हैं। हमारी खाने की इच्छा भी हमेशा एक जैसी नहीं होती। ज़िंदगी के अलग-अलग दौर में ये अलग-अलग होती है। के साथ खाने की ख़्वाहिश में बदलाव आता है। खाने की बात करें तो किसी आम इंसान की ज़िंदगी में इस उतार-चढ़ाव के सात चरण आते हैं। इनके बारे में अपनी समझ बढ़ाकर हम कम खाने या ज़्यादा खाने की चुनौती से निपट सकते हैं। खाने की आदतों के हमारी सेहत पर पड़ने वाले मोटापे जैसे असर पर नियंत्रण कर सकते हैं।

उम्र का पहला दौर (0-10 साल)
 
इस दौर में बच्चे बहुत तेज़ी से बढ़ रहे होते हैं। इस वक़्त जो खान-पान वो करते हैं, वो उनके बड़े होने तक असर डालता है। कोई बचपन में मोटा होता है तो वो बड़ा होकर भी मोटा रह सकता है। बच्चे अक्सर कुछ चीज़ों को खाने से डरते हैं। आनाकानी करते हैं। लेकिन बच्चों को बार-बार ऐसी चीज़ें चखाकर, उनकी ख़ूबियों के बारे में बताकर हम बच्चों को सेहतमंद चीज़ें, जैसे सब्ज़ियां खाने की आदत डाल सकते हैं। बच्चों को हमें खाते वक़्त ख़ुद पर क़ाबू रखना भी सिखाना चाहिए। ख़ास तौर से उन्हें ये बताना चाहिए कि वो कितना खाएं। इतना ठूंस कर न खा लें कि मोटापे की तरफ़ बढ़ चलें। कई बार मां-बाप बच्चों को प्लेट 'साफ़' करने यानी प्लेट में मौजूद पूरा खाना ख़त्म करने पर मजबूर करते हैं। इससे होता ये है कि बच्चे बेमन से पूरा खाना ठूंस लेते हैं। बाद के दिनों में ये उनमें ज़्यादा खाने की आदत डाल सकता है।
 
इन दिनों कई देशों में बच्चों को जंक फूड के विज्ञापनों से बचाने की मुहिम चल रही है। ये विज्ञापन सिर्फ़ टीवी या रेडियो पर नहीं आते, बल्कि ऐप, होर्डिंग, सोशल मीडिया और वीडियो ब्लॉगिंग से भी बच्चों को उकसाते हैं। खान-पान के विज्ञापन से खाने की डिमांड बढ़ जाती है। बच्चों में बढ़ते मोटापे के लिए ये एक बड़ी वजह मानी जा रही है।
 
उम्र का दूसरा पड़ाव (10-20 साल)
 
किशोरावस्था में शरीर तेज़ी से बढ़ता है। हारमोन्स का रिसाव मूड और बर्ताव को कंट्रोल करता है। इस दौरान कोई इंसान खाने को लेकर कैसा बर्ताव करता है, वो बाद की ज़िंदगी के लिए बेहद अहम होता है। किशोर अवस्था में खान-पान को लेकर किए जाने वाले फ़ैसले, आने वाली पीढ़ी तक पर असर डालते हैं। यानी जो शख़्स उम्र के इस दौर में जैसा खान-पान करता है, उसका असर सिर्फ़ उसी इंसान पर नहीं, बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ी तक पर पड़ता है। बदक़िस्मती से इस दौर में सलाह-मशविरे की कमी की वजह से किशोरवय लोग ऐसे खाने-पीने की आदतें डाल लेते हैं, जो उनकी सेहत के लिए बुरा होता है। फिर लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों पर इन बुरी आदतों का ज़्यादा असर पड़ता है, क्योंकि इस उम्र में उनके शरीर में प्रजनन की प्रक्रिया यानी मासिक धर्म की शुरुआत भी हो जाती है। कम उम्र में गर्भवती होने वाली लड़कियों के लिए ये चुनौती और भी बढ़ जाती है। क्योंकि उनका शरीर अपने विकास के लिए पेट में पल रहे बच्चे के साथ मुक़ाबिल होता है।
 
तीसरा दशक (20-30 साल)
 
युवावस्था में ज़िंदगी में कई बदलाव आते हैं। लोग कॉलेज जाना शुरू करते हैं। शादी करते हैं या किसी के साथ रहना शुरू करते हैं। इस दौर में कई लोग मां-बाप भी बनते हैं। इन सभी वजहों से वज़न बढ़ने का अंदेशा होता है। शरीर में जब एक बार फैट जमा हो जाता है, तो उससे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। जब हम अपने शरीर की ज़रूरतों से कम खाते हैं, तो हमारा शरीर बहुत तेज़ इशारे देता है। लेकिन, जब हम शरीर की ज़रूरत से ज़्यादा खाते हैं, तो इसे रोकने वाले सिग्नल बहुत कमज़ोर होते हैं। बहुत से शारीरिक और मानसिक कारण होते हैं, जिनकी वजह से हम कम खाने की आदत को लंबे वक़्त तक बरक़रार नहीं रख पाते हैं।
 
हाल के दिनों में एक नए तरह की रिसर्च शुरू हुई है। इसके तहत लोगों को कम खाकर तसल्ली होने का एहसास कराने के तरीक़े विकसित किए जा रहे हैं। जो लोग वज़न घटाने की कोशिश कर रहे होते हैं, उनके लिए ये रिसर्च कारगर हो सकती है क्योंकि भूख महसूस करने की वजह से ही हम कई बार शरीर की ज़रूरत से ज़्यादा खा लेते हैं। अलग-अलग तरह की खाने की चीज़ें हमारे दिमाग़ को अलग-अलग संकेत देती हैं। यही वजह है कि ढेर सारी आइसक्रीम खाते जाने के बावजूद दिमाग़ हमें रोकने के इशारे नहीं देता। क्योंकि फैट हमारे दिमाग़ को वो संकेत नहीं देता कि हम खाना रोकें। यही वजह है कि समोसे, चाट-पकौड़ी या कचौरियां खाते वक़्त अंदाज़ा ही नहीं होता कि कितना खाए जा रहे हैं हम! 

 
वहीं प्रोटीन से भरपूर हो या ज़्यादा पानी वाले फल, इन्हें खाने से हमें जल्दी पेट भरने का अहसास होता है, और लंबे वक़्त तक ऐसा महसूस होता रहता है। खान-पान के कारोबार की समझ बेहतर करके हम भविष्य में ऐसा खाना या नाश्ता तैयार कर सकते हैं, जो सेहत के लिए ज़्यादा अच्छा हो।

उम्र का चौथा दशक (30-40 साल)
 
कामकाजी उम्र में पेट के शोर के अलावा भी कई और चुनौतियां हमारे सामने आती हैं। तनाव बढ़ जाता है। और तनाव की वजह से 80 फ़ीसद आबादी के खान-पान की आदतों पर असर पड़ता है। कुछ लोग तनाव में ज़्यादा खाने लगते हैं, तो, कुछ खाना ही छोड़ देते हैं। तनाव से निपटने के ये तरीक़े कई बार समझ से परे होते हैं। किसी को खान-पान की लत पड़ जाती है। वो ज़्यादा कैलोरी वाली चीज़ें खाने लगते हैं। लेकिन, इसकी ठोस वजह समझ में नहीं आ सकी है। काम के प्रति ईमानदारी और हर काम को सलीक़े से करने की आदत का भी हमारे खान-पान और तनाव से गहरा नाता है। काम का माहौल ऐसा बनाना जिसमें तनाव कम हो, लोग ज़्यादा कैलोरी वाली चीज़ें न खाएं, बहुत मुश्किल है। कंपनियों को चाहिए कि वो कर्मचारियों के लिए ऐसा सस्ता खाना मुहैया कराएं, जो सेहत के लिए अच्छा हो। इससे कामगार सेहतमंद होंगे। और सेहतमंद कर्मचारी बेहतर काम करेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं।
 
उम्र का पांचवां दशक (40-50 साल)
 
डाइट शब्द ग्रीक ज़बान के डायेटिया से आया है। इसका मतलब है, 'ज़िंदगी जीने का तरीक़ा, या जीवन-शैली'। लेकिन हम सब आदतों के गुलाम होते हैं। हम अक्सर अपनी आदतों में वो बदलाव नहीं ला पाते हैं, जिनके बारे में हमें पता होता है कि ये हमारे ही फ़ायदे की चीज़ होगी। लोग वज़न तो घटाना चाहते हैं, मगर समोसे-कचौरी और ऐसी ही तली-भुनी, ज़्यादा कैलोरी वाली चीज़ें खाते हुए। अब भला ये कैसे मुमकिन है? बिना खान-पान की आदतों में बदलाव लाए हम सेहतमंद शरीर और स्वस्थ ज़हन कैसे पा सकते हैं?
 
इस बात के तमाम सबूत हैं जो बताते हैं कि खान-पान का अच्छी या ख़राब सेहत से गहरा ताल्लुक़ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि धूम्रपान, सेहत के लिए बुरी चीज़ें खाने, वर्ज़िश न करने और शराब पीने की आदतें, हमारी जीवन शैली के सेहत पर बुरे असर की बड़ी वजहें हैं। इससे लोगों के मरने की दर भी बढ़ जाती है। 40-50 साल की उम्र के दौर में लोगों को अपनी सेहत के हिसाब से ही खाना चाहिए। लेकिन, बहुत से लोग सेहत के ख़राब होने के संकेत, जैसे ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की अनदेखी कर देते हैं और सही समय पर उचित क़दम नहीं उठाते। इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है।
 
साठ का दशक (50-60 साल)
 
50 साल की उम्र पार करने के बाद किसी भी इंसान के शरीर की मांसपेशियां घटने लगती हैं। इसमें सालाना आधा से एक फ़ीसद की दर से गिरावट आने लगती है। शरीर की सक्रियता और चपलता कम हो जाती है। प्रोटीन कम खाने और महिलाओं में मीनोपॉज़ होने से पेशियां तेज़ी से कम होने लगती है। इस दौर में सेहतमंद और तमाम तरह के डाइट आज़माने से उम्र ढलने का असर कम होता है। उम्रदराज़ होती आबादी को इस दौर में ज़्यादा प्रोटीन वाली डाइट की ज़रूरत होती है, जो अक्सर पूरी नहीं होती। अभी बाज़ार में जो प्रोटीन वाली खाने-पीने की चीज़ें मिल रही हैं, वो हमारी ज़रूरतों को नहीं पूरा कर सकतीं।
 
सातवां दशक (60-70 साल और उसके आगे)
 
आज लोगों की औसत उम्र बढ़ गई है। ऐसे में हमें रहन-सहन को सेहतमंद बनाने की चुनौती से ज़्यादा जूझना पड़ रहा है। अगर हम स्वस्थ जीवन-शैली नहीं अपनाते हैं, तो हमारा समाज बुज़ुर्ग, कमज़ोर और विकलांग लोगों से भर जाएगा। बुढ़ापे में पोषण की अहमियत बढ़ जाती है। वजह साफ़ है। इस उम्र में भूख कम लगती है। लोग कम खाते हैं। खाने में दिलचस्पी नहीं लेते। इससे शरीर का वज़न घट जाता है। कमज़ोरी आ जाती है। इससे भूलने वाली बीमारी यानी अल्ज़ाइमर होने का ख़तरा बढ़ जाता है। खाना एक सामाजिक अनुभव है। बुढ़ापे में जीवनसाथी के चले जाने या परिवार से बिछुड़ने के बाद अकेले खाना लोगों से खाने से हासिल होने वाली तसल्ली और ख़ुशी छीन लेता है। फिर चबाने और निगलने में भी बुढ़ापे में दिक़्क़त होती है। इससे खाने का स्वाद और ख़ुशबू नहीं महसूस होती। नतीजा ये कि खाने की ख़्वाहिश और भी कम हो जाती है क्योंकि लोग उससे मिलने वाली ख़ुशी से महरूम हो जाते हैं।
 
हमें याद रखना चाहिए कि ज़िंदगी के हर दौर में खाना केवल हमारे शरीर का ईंधन भर नहीं है। ये ऐसा सामाजिक-सांस्कृतिक तजुर्बा है, जिसका लुत्फ़ उठाया जाता है। हम सब खाने के एक्सपर्ट हैं, क्योंकि हम रोज़ खाते हैं। इसलिए हमें हर बार खाने को लुत्फ़ लेने के मौक़े के तौर पर देखना चाहिए। और ये समझना चाहिए कि अच्छा और स्वादिष्ट खाना हमारी सेहत के लिए कितनी नेमतें ले आता है।
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