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जिम की मेंबरशिप लेने से पहले आप वहां के ट्रेनर, उपकरण और साफ-सफाई पर ध्यान देते होंगे। हम में से कई लोग अपनी सुविधा के लिए ऐसा जिम देखते हैं जहां पर ए.सी लगा हो लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जिम में ए.सी लगा होना आपके लिए अच्छा है या नहीं? आजकल लोग अपनी फिटनेस और सेहत को लेकर ज़्यादा सतर्क हो गए हैं और स्वस्थ और फिट बॉडी पाने के लिए वो जिम की मेंबरशिप ले लेते हैं। हम जिम में काफी समय बिताते हैं और इस वजह से यहां हमारे कुछ दोस्त भी बन जाते हैं। हम हमेशा से ऐसी जगह की तलाश में रहते हैं जहां हमें सुविधा मिले। इसलिए एयर कंडीशन होना तो बहुत ज़रूरी है लेकिन क्या ये आपके वर्कआउट को प्रभावित करता है?
आजकल कई सार्वजनिक जगहों जैसे कैफे, रेस्टोरेंट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और यहां तक कि सार्वजनिक वाहनों में भी ए.सी लगा होता है। इन जगहों पर तो ए.सी फिर भी ठीक रहता है लेकिन जिम में ए.सी लगाना सेहत और फिटनेस की चाहत रखने वाले लोगों को परेशान करता है। अगर आपके मन में भी यही सवाल चल रहा था तो आज आपको इस आर्टिकल में अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा। आजकल हम जहां भी जाते हैं वहां पर ए.सी होता ही है। लेकिन आखिर हमें ए.सी की इतनी ज़रूरत क्यों है?
बंद जगहों पर हवा की क्वालिटी को बनाए रखना ज़रूरी होता है और इसलिए ए.सी हमें आसपास की जगह से हवा लेकर सांस लेने के लिए ताजी हवा देता है। मानव शरीर से लगातार गर्मी निकलती है जिससे बंद जगहों पर लंबे समय तक रहना हम इंसानों के लिए मुश्किल काम है। वैसे आज हर जगह ए.सी होता ही है लेकिन इसकी ज़रूरत नहीं है। ए.सी सिर्फ उन जगहों पर लगा होना चाहिए जहां पर प्राकृतिक हवा कम या बिलकुल ना पहुंच पाती हो।
क्या जिम में ए.सी की ज़रूरत है?
ये एक गंभीर चर्चा का विषय है। जिम में ए.सी की ज़रूरत है या नहीं ये जानने के लिए आपको ये समझना पड़ेगा कि जिम जिस जगह पर स्थित है वो कैसी है, वहां पर एसी की ज़रूरत है भी या नहीं। शोधकर्ताओं का कहना है कि आरामदायक वातावरण में हम ज़्यादा व्यायाम कर पाते हैं लेकिन ऐसे में शरीर को वार्म अप होने में बहुत समय लगता है जिससे हमें थकान महसूस होने लगती है। तो वर्कआउट के लिए सही वातावरण कैसा होना चाहिए? इस बात को समझने के लिए पहले जान लेते हैं कि जिम में ए.सी होने के क्या फायदे और नुकसान हैं:
जिम में ए.सी के फायदे
आरामदायक वातावरण से आप जिम में ज़्यादा समय बिताते हैं जिससे आप अपना लक्ष्य जल्दी पा लेते हैं।
वर्कआउट के बाद शरीर जल्दी ठंडा हो जाता है।
ऐसे वातावरण में एक्सरसाइज़ करने पर मसल क्रैंप्स कम होते हैं।
जिम में ए.सी ना होने के फायदे
वर्कआउट के दौरान जो पसीना बाहर निकलता है उसके ज़रिए शरीर से विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं।
बिना ए.सी के कार्डियो एक्सरसाइज़ करना फायदेमंद होता है।
ब्रेक के बाद भी मांसपेशियों को बार-बार वार्मअप करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
क्या इससे वर्कआउट पर असर पड़ता है?
ए.सी के होने या ना होने से वर्कआउट पर कोई असर नहीं पड़ता है। शरीर को ज़्यादा ठंडा ना रखें। आपके आसपास के वातावरण का वर्कआउट पर ज़्यादा असर नहीं पड़ता है। कुछ लोग ज़्यादा से ज़्यादा कैलोरी बर्न करने के लिए पसीना बहाते हैं। आपको ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पसीना ज़्यादा बहाने से ज़्यादा कैलोरी बर्न नहीं होती है। पसीना तो बस शरीर से विषाक्त चीज़ों को बाहर निकाल देता है। अगर आप फिर भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आपके लिए क्या सही है तो दूसरी बातों को भी ध्यान में रखकर अपनी पसंद को चुन लें।
जैसे कि अगर अपने आप ही आपके शरीर पर बहुत पसीना आता है तो आपको ए.सी वाले जिम में जाना चाहिए क्योंकि ज़्यादा पसीना आने की वजह से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा रोग उत्पन्न करते हैं। वहीं अगर आप ठंडी जगह पर रहते हैं तो बिना ए.सी वाला जिम लें ताकि पैसे भी बच जाएं। अगर आप हाईजीन का बहुत ध्यान रखते हैं तो ए.सी वाला जिम ही आपके लिए बेहतर रहेगा। ए.सी वाले जिम में वर्कआउट करने से आपको बिना ए.सी वाले जिम के मुकाबले फिट बॉडी पाने में थोड़ा ज़्यादा समय लग सकता है।
अच्छे वर्कआउट का क्या है सीक्रेट
हर किसी को फिट बॉडी चाहिए होती है। अगर आप भी इसे पाने के सही तरीकों के बारे में जानना चाहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दें:
जिम में वर्कआउट करते समय इन बातों का ध्यान रखें-
अपना लक्ष्य तैयार करें और ट्रेनर से बात करें
आपको चाहे वज़न बढ़ाना हो या कम करना हो, हमेशा अपने ट्रेनर से अपने लक्ष्य के बारे में बात करें ताकि वो उसी तरह से आपका एक्सरसाइज़ रूटीन तैयार करें।
अपने जिम के कपड़ों का खास ख्याल रखें
आपके जिम के कपड़े धुले हुए होने चाहिए। पसीने की वजह से किसी भी तरह की बीमारी से बचने के लिए रोज़ साफ कपडे पहनें।
नहाना ज़रूरी है
जिम के दौरान पसीना बहाना ज़रूरी है। इसलिए जिम के बाद नहाने से त्वचा साफ हो जाती है जिससे पसीने और धूल से बंद हुए रोमछिद्र खुल जाते हैं।
वार्मअप ज़रूर करें
बिना वार्मअप किए सीधा एक्सरसाइज़ शुरु कर देने से मांसपेशियों पर तनाव बढ़ता है। इससे मांसपेशियों में दर्द हो सकता है।
अपनी डाइट का ख्याल रखें
जिम जा रहे हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप कुछ भी खा सकते हैं। एक्सरसाइज़ और डाइट दोनों साथ रहने चाहिए। कभी-कभी आप अपनी पसंद से खा सकते हैं लेकिन जिम जाकर कैलोरी बर्न करना ना भूलें।
::/fulltext::मॉनसून न केवल भीषण गर्मी बल्कि गर्मी से होने वाली बहुत सी बीमारियों से भी हमें राहत दिलाता है, लेकिन बारिश का यह मौसम अपने साथ कई स्वास्थ्य व त्वचा से जुड़ी समस्याएं भी लेकर आता है. त्वचा पर लाल चकत्ते, मुंहासे, उलझे चिपचिपे बाल जैसी दिक्कतों के साथ एक दिक्कत और आती है और वह है 'फंगल संक्रमण'. मानसून की शुरुआत के बाद फंगल संक्रमण के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. फंगस पैदा करने वाले जीवाणु आमतौर पर मानसून के दौरान कई गुना तेजी से फैलते हैं. यह सामान्य तौर पर शरीर के नजरअंदाज किए गए अंगों जैसे की पैर की उंगलियों के पोरों पर, उनके बीच के स्थानों पर या उन जगहों पर जहां जीवाणु या कवक का संक्रमण बहुत अधिक तेजी से होता है, वहां फैलते हैं.
अक्सर मॉनसून के दौरान लोग हल्की बूंदा-बांदी में भीगने के बाद अपनी त्वचा को अनदेखा कर देते हैं. लेकिन यही छोटी सी असावधानी कई बार फंगस से संक्रमित होने का कारण बन जाती है. फंगल संक्रमण से बचने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आप इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि त्वचा ज्यादा देर तक गीली नहीं रहे. यह समस्या जुलाई और अगस्त के महीने के दौरान काफी बढ़ जाती है. स्कैल्प में होने वाले फंगल संक्रमण के लक्षण सामान्य फंगल संक्रमण से अलग होते हैं. सामान्यतौर पर यह स्कैल्प पर छोट-छोटे फोड़ों, दानों या चिपचिपी परत के रूप में दिखाई देता है. आपको ऐसा कोई लक्षण नजर आए तो फौरन ही विशेषज्ञ की मदद लें अन्यथा समय पर इलाज नहीं करने पर यह आपके बाल झड़ने का बड़ा कारण बन सकता है .
सर गंगाराम अस्पताल के त्वचा विशेषज्ञ डॉ. रोहित बत्रा का कहना है, "इस समस्या से बचने के लिए खुद को साफ और सूखा रखना आवश्यक है. इसके साथ ही एंटीबैक्टीरियल साबुन के प्रयोग से भी आप खुद को फंगस से संक्रमित होने से बचा सकते हैं. इसके अलावा अपने कपड़ों को नियमित रूप से धोएं. बरसात में अगर आपके कपड़ों में कीचड़ आदि लग जाए तो उसे फौरन धो लें. इससे फंगल संक्रमण से बचाव में मदद मिलेगी."
रोहित बात्रा का कहना है कि पिछले एक महीने में फंगल संक्रमण के बहुत से मामले देखने को मिले हैं. ऐसे में आपका सतर्क रहना बहुत ही जरूरी हैं. अगर आपको आपकी त्वचा में कुछ भी अजीब नजर आए तो फौरन किसी अच्छे त्वचा विशेषज्ञ से संपर्क करें, क्योंकि मॉनसून के दौरान त्वचा से संबंधित बहुत सी समस्याओं का जन्म होता है. विशेषज्ञ की राय लें, जिससे फंगल संक्रमण से आप पूरी तरह से मुक्त हो सकें.
संयुक्त राष्ट्र के ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में लगभग दो करोड़ बच्चे पूर्ण टीकाकरण के लाभ से वंचित थे. इनमें से 80 लाख (40 प्रतिशत) नाजुक हालत में रहते हैं, जिनमें संघर्ष से प्रभावित देश शामिल हैं. हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, "मिशन इंद्रधनुष के तहत सात बीमारियों के खिलाफ बच्चों का टीकाकरण करने का लक्ष्य है. यह बीमारियां हैं डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस, बचपन की टीबी, पोलियो, हिपेटाइटिस बी और मीसल्स. इसके अलावा, चयनित राज्यों में जेई (जापानी इंसीफेलाइटिस) और हिब (हीमोफिलस इन्फ्लूएंजा, प्रकार बी) के लिए टीका भी उपलब्ध कराया जा रहा है. सभी के लिए टीकाकरण आवश्यक है."
उन्होंने कहा, "अक्सर, लोग मानते हैं कि यह आवश्यक नहीं है, क्योंकि उनके बच्चे स्वस्थ दिखाई देते हैं या अक्सर बीमार नहीं पड़ते हैं. अन्य मामलों में किसी निश्चित बिंदु पर सदस्यों की अनुपलब्धता के कारण स्वास्थ्य कर्मचारी कुछ परिवारों तक पहुंचने में सक्षम नहीं हो पाते हैं. विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती माताओं के लिए टीकाकरण के महत्व पर जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है." यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) को वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष के रूप में फिर से शुरू किया गया था. इसका लक्ष्य 2020 तक टीकाकरण के दायरे को 90 प्रतिशत तक फैलाना था. डॉ. अग्रवाल ने कहा, "केवल सतत टीकाकरण कवरेज साल दर साल निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. प्रयास मिशन जैसे होने चाहिए. जीवन रक्षा टीकों को देने में आने वाली चुनौतियों को मौजूदा ज्ञान से ठीक करने की आवश्यकता है और पिछले अनुभवों से सीखना चाहिए."
बीसीजी (बैसिलस कैल्मेट गुरिन) जन्म पर एक खुराक (1 साल तक यदि पहले नहीं दिया गया हो).
डीपीटी (डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टिटनेस टोक्सॉयड) पांच खुराक : तीन प्राइमरी खुराक छह सप्ताह, 10 सप्ताह व 14 सप्ताह बाद और दो बूस्टर खुराक 16-24 महीने एवं 5 साल की उम्र में.
ओपीवी (ओरल पोलियो टीका) पांच खुराक : तीन प्राथमिक खुराक छह, 10 और 14 सप्ताह बाद और एक बूस्टर खुराक 16-24 महीने की उम्र में.
हिपेटाइटिस बी टीका चार खुराक : जन्म के 24 घंटे के भीतर 0 खुराक और छह, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में तीन खुराक
खसरा, दो खुराक : पहली खुराक 9-12 महीने और दूसरी खुराक 16-24 महीने की उम्र में.
टीटी (टेटनस टोक्सॉयड) दो खुराक : 10 साल और 16 साल की उम्र में.
टीटी : गर्भवती महिला के लिए दो खुराक या एक खुराक अगर पहले 3 साल के भीतर टीका लगाया जाता है.
इसके अलावा, जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई टीका) टीका 2006-10 से चरणबद्ध तरीके से अभियान मोड में 112 स्थानिक जिलों में पेश किया गया था और अब इसे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया है.
::/fulltext::नई दिल्ली: मॉनसून के मौसम का आनंद हर उम्र के लोग लेना चाहते हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े सब खिल उठते हैं, और प्रकृति की खूबसूरती तो देखते ही बनती है। पर क्या आप जानते हैं कि भारत में मानसून अपने साथ फ्लू जैसी बीमारियां भी लेकर आता है। इस मौसम में छोटे बच्चों से लेकर वयस्क भी फ्लू का शिकार होते हैं। इसके अलावा बार-बार बदलते तापमान का भी शरीर पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए मानसून का आनंद लेने के साथ-साथ खुद को स्वस्थ रखना भी जरूर है। मॉनसून में होने वाली बीमारियों और उनसे कैसे बचा जाए बता रही हैं, नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में इंटरनल मेडिसीन सीनियर कंसल्टेंट डॉ. तरुण साहनी:
किन उम्र के लोगों को रहना है ज्यादा सावधान-
क्या हैं लक्षण-
कैसे बचें-
इन बातों का रखें ध्यान-